प्रधानमंत्री कार्यालय

प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित करने के बाद सार्वजनिक समारोह को संबोधित किया, महाकाल में पूजा, आरती और दर्शन किए


"उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत के धन और समृद्धि, ज्ञान और सम्मान, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है"

उज्जैन के हर कण में अध्यात्म समाया हुआ है और यह कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा का संचार करता है"

"सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए और अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो जाए"

"आज़ादी के अमृत काल में भारत ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’और 'अपनी विरासत में गर्व' जैसे पंच प्रणों का आह्वान किया है"

"मेरा मानना है, हमारे ज्योतिर्लिंगों का विकास भारत की आध्यात्मिक ज्योति का विकास, भारत के ज्ञान और दर्शन का विकास है"

"भारत का सांस्कृतिक दर्शन एक बार फिर शिखर पर पहुंच रहा है और दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो रहा है"

"भारत अपने आध्यात्मिक आत्मविश्वास के कारण हजारों वर्षों से अमर है"

"भारत के लिए धर्म का अर्थ है हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प"

"आज का नया भारत अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, तो आस्था के साथ-साथ विज्ञान और शोध की परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है"

"भारत अपने गौरव, वैभव की पुनर्स्थापना कर रहा है और इसका लाभ पूरे विश्व और पूरी मानवता को मिलेगा"

"भारत की दिव्यता शांतिपूर्ण विश्व का मार्ग प्रशस्त करेगी"

Posted On: 11 OCT 2022 9:25PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महाकाल लोक परियोजना के पहले चरण को राष्ट्र को समर्पित करने और मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर के आंतरिक गर्भगृह में पूजा और आरती करने के बाद एक सार्वजनिक समारोह को संबोधित किया। प्रधानमंत्री के आगमन पर उनका अभिनंदन किया गया। इसके बाद प्रसिद्ध गायक श्री कैलाश खेर द्वारा श्री महाकाल का स्तुति गान और ध्वनि, प्रकाश और सुगंध शो का आयोजन किया गया।

प्रधानमंत्री ने भगवान महाकाल की जय-जयकार करते हुए अपने संबोधन की शुरुआत की और कहा, “उज्जैन की ये ऊर्जा, ये उत्साह! अवंतिका की ये आभा, ये अद्भुतता, ये आनंद! महाकाल की ये महिमा, ये महात्म्य! महाकाल लोकमें लौकिक कुछ भी नहीं है। शंकर के सानिध्य में साधारण कुछ भी नहीं है। सब कुछ अलौकिक है, असाधारण है। अविस्मरणीय है।प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि किसी को महाकाल का आशीर्वाद मिलता है तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं, समय की सीमाएं सिमट जाती हैं और अनंत के अवसर प्रस्फुटित हो जाते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है, बल्कि ये भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है। ये वो नगर है, जो हमारी पवित्र सात पुरियों में से एक गिना जाता है। ये वो नगर है, जहां स्वयं भगवान कृष्ण ने भी आकर शिक्षा ग्रहण की थी। उज्जैन ने महाराजा विक्रमादित्य का वो प्रताप देखा है, जिसने भारत के नए स्वर्णकाल की शुरुआत की थी। महाकाल की इसी धरती से विक्रम संवत के रूप में भारतीय कालगणना का एक नया अध्याय शुरू हुआ था। उज्जैन के क्षण-क्षण में,पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है, कण-कण में आध्यात्म समाया हुआ है, और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत के धन और समृद्धि, ज्ञान और सम्मान, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए यह जरूरी है राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए और अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो जाए।" सांस्कृतिक विश्वास के महत्व को जारी रखते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, "किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम, विश्व पटल पर लहराता है। उन्होंने कहा, “आज़ादी के अमृत काल में भारत ने गुलामी की मानसिकता से मुक्तिऔर 'अपनी विरासत में गर्व' जैसे पंच प्रणों का आह्वान किया है।इसलिए आज अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण पूरी गति से हो रहा है। काशी में विश्वनाथ धाम भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव बढ़ा रहा है। सोमनाथ में विकास कार्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उत्तराखंड में बाबा केदार के आशीर्वाद से केदारनाथ-बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र में विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार हमारे चारों धाम ऑल वेदर रोड से जुड़ने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “स्वदेश दर्शन और प्रसाद योजना के माध्यम से देश भर में हमारी आध्यात्मिक चेतना के ऐसे कई केंद्रों का गौरव बहाल किया जा रहा है। और अब इसी कड़ी में यह भव्य 'महाकाल लोक' भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य का स्वागत करने को तैयार है।"

प्रधानमंत्री ने ज्योतिर्लिंगों के महत्व के बारे में अपनी अवधारणा के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "मेरा मानना है, हमारे ज्योतिर्लिंगों का यह विकास भारत की आध्यात्मिक ज्योति का विकास, भारत के ज्ञान और दर्शन का विकास है। भारत का यह सांस्कृतिक दर्शन एक बार फिर शिखर पर पहुंच रहा है और दुनिया के मार्गदर्शन के लिए तैयार हो रहा है।" प्रधानमंत्री ने कहा, "भगवान महाकाल एकमात्र ऐसा ज्योर्तिलिंग है, जो दक्षिणमुखी है। ये शिव का ऐसा स्वरूप है, जिसकी भस्मारती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।" उन्होंने कहा, “हर भक्त अपने जीवन में भस्मारती के दर्शन जरूर करना चाहता है। मैं इस परंपरा में हमारे भारत की जीवटता और जीवंतता के दर्शन भी करता हूं।

भगवान शिव के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा "सोयं भूति विभूषणः", अर्थात भस्म को धारण करने वाले हैं, वो 'सर्वाधिपः सर्वदा' भी है। वह शाश्वत और अविनाशी भी है। इसलिए जहां महाकाल हैं, वहां कालखंडों की कोई सीमा नहीं होती हैं। "महाकाल की शरण में विष में भी स्पंदन होता है। महाकाल के सानिध्य में अवसान से भी पुनर्जीवन होता है।

राष्ट्र के जीवन में आध्यात्म की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने कहा, “यह हमारी सभ्यता का वह आध्यात्मिक आत्मविश्वास है, जिसके सामर्थ्य से भारत हजारों वर्षों से अमर बन हुआ है। जब तक हमारी आस्था के ये केंद्र जागृत हैं, भारत की चेतना जागृत है, भारत की आत्मा जागृत है।

इतिहास को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने इल्तुतमिश जैसे आक्रमणकारियों की चर्चा की, जिसने उज्जैन की ऊर्जा को भी नष्ट करने के प्रयास किए। श्री मोदी ने पूर्व में भारत को नष्ट करने के लिए किए गए प्रयासों को भी याद किया। श्री मोदी ने संतों और ऋषियों का हवाला देते हुए कहा, “महाकाल शिव की शरण में मृत्यु भी हमारा क्या कर लेगी?” उन्होंने कहा, “भारत अपनी आस्था के इन प्रामाणिक केंद्रों की ऊर्जा से फिर पुनर्जीवित हो उठा, फिर उठ खड़ा हुआ। एक बार फिर, आजादी के इस अमृतकाल में अमर अवंतिका भारत की सांस्कृतिक अमरत्व की घोषणा कर रही है।

भारत में धर्म के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, “यह हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प है। हमारे संकल्पों का ध्येय है, विश्व का कल्याण, मानव मात्र की सेवा।प्रधानमंत्री ने दोहराया कि हम शिव की आराधना करते हैं, और विश्वपति को नमन करते हैं, जो अनेक रूपों से पूरे विश्व के हितों में लगे हैं। यही भावना हमेशा भारत के तीर्थों, मंदिरों, मठों और आस्था केन्द्रों की भी रही है। उन्होंने कहा कि विश्व के हित के लिए, विश्व की भलाई के लिए कितनी प्रेरणाएं यहां निकल सकती हैं।

अध्यात्म और शिक्षा के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी जैसे हमारे आध्यात्मिक केंद्र धर्म के साथ-साथ ज्ञान, दर्शन और कला की राजधानी भी रहे, और उज्जैन जैसे स्थान खगोल विज्ञान से जुड़े शोधों का शीर्ष केंद्र रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का नया भारत जब अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, तो आस्था के साथ-साथ विज्ञान और शोध की परंपरा को भी पुनर्जीवित कर रहा है। आज हम खगोल विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया की बड़ी ताकतों के बराबर खड़े हो रहे हैं। भारत के अंतरिक्ष मिशनों जैसे चंद्रयान और गगनयान पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत अंतरिक्ष में अन्य देशों के उपग्रह भेज रहा है। इन अभियानों के जरिए भारत आकाश की वह छलांग लगाने के लिए तैयार है, जो हमें एक नई ऊंचाई देगी। श्री मोदी ने कहा कि आज रक्षा के क्षेत्र में भी भारत पूरी ताकत से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। खेलों से लेकर स्टार्टअप तक भारत के युवा अपनी प्रतिभा का दुनिया में डंका बजा रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जहां नवोन्मेष है, वहीं पर नवीकरण भी है। उन्होंने कहा कि हमने गुलामी के कालखंड में जो खोया, आज भारत उसे फिर से हासिल कर रहा है। भारत के गौरव, वैभव की पुनर्स्थापना हो रही है और इसका लाभ पूरे देश और मानवता को मिलेगा। अपना भाषण समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा,  “महाकाल के आशीर्वाद से भारत की भव्यता विश्व के विकास की नई संभावनाओं को जन्म देगी और भारत की दिव्यता दुनिया के लिए शांति का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने उज्जैन में श्री महाकाल लोक में महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित किया। इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, छत्तीसगढ़ की राज्यपाल श्री अनुसुईया उइके, झारखंड के राज्यपाल श्री रमेश बैंस, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, डॉ. वीरेन्द्र कुमार, श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और श्री जी. किशनरेड्डी, केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री फग्गनसिंह कुलस्ते और श्री प्रह्लाद पटेल उपस्थित थे।

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