प्रधानमंत्री कार्यालय
भारत और जापान के बीच सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा
Posted On:
29 AUG 2025 7:43PM by PIB Delhi
भारत और जापान की सरकारें (जिन्हें आगे 'दोनों पक्ष' कहा जाएगा),
साझा मूल्यों और समान हितों पर आधारित भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी के राजनीतिक दृष्टिकोण और उद्देश्यों को याद करते हुए,
नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने वाले एक स्वतंत्र, खुले, शांतिपूर्ण, समृद्ध और दबाव-मुक्त भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए दोनों देशों की अपरिहार्य भूमिका को रेखांकित करते हुए,
हाल के वर्षों में अपने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में उल्लेखनीय प्रगति और दोनों पक्षों के रणनीतिक दृष्टिकोण और नीतिगत प्राथमिकताओं के विकास को ध्यान में रखते हुए,
संसाधन संपदा और तकनीकी क्षमताओं के संदर्भ में अपनी पूरक शक्तियों की पहचान करते हुए,
अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और निरंतर आर्थिक गतिशीलता के हित में व्यावहारिक सहयोग बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए,
भारत-प्रशांत क्षेत्र और उसके बाहर साझा चिंता के सुरक्षा मुद्दों पर गहन समन्वय की तलाश करते हुए,
कानून के शासन पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए,
अपनी साझेदारी के नए चरण को प्रतिबिंबित करने के लिए सुरक्षा सहयोग पर इस संयुक्त घोषणापत्र को अपनाया है और इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि उन्हें:
1. अपने रक्षा बलों के बीच अंतर-संचालनीयता और तालमेल को बढ़ावा देकर, एक-दूसरे की रक्षा क्षमताओं और तत्परता में योगदान देने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं:
- (1) बढ़ती जटिलता और परिष्कार वाले विविध क्षेत्रों में हमारी सेनाओं के बीच द्विपक्षीय अभ्यास आयोजित करना और एक-दूसरे द्वारा आयोजित बहुपक्षीय अभ्यासों में पारस्परिक भागीदारी करना
- (2) संयुक्त स्टाफ़ के बीच व्यापक संवाद पर एक नई बैठक रूपरेखा स्थापित करने की संभावना की तलाश करना
- (3) भारत-प्रशांत क्षेत्र में मानवीय और आपदा राहत अभियानों की तैयारी के लिए तीनों सेनाओं के अभ्यासों की संभावना की तलाश करना
- (4) विशेष अभियान इकाइयों के बीच सहयोग करना
- (5) लॉजिस्टिक्स साझा करने और समर्थन करने के लिए जापान आत्मरक्षा बलों और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान से संबंधित भारत-जापान समझौते के उपयोग को बढ़ाना
- (6) आतंकवाद-रोधी, शांति अभियानों और साइबर रक्षा जैसे एक-दूसरे की प्राथमिकताओं के विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग के अवसरों की तलाश करना
- (7) उभरते सुरक्षा जोखिमों के संदर्भ में आकलन सहित जानकारी साझा करना
- (8) रक्षा प्लेटफार्मों की मरम्मत और रखरखाव के लिए एक-दूसरे की सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा देना
- (9) रासायनिक, जैविक और रेडियोलॉजिकल खतरों से सुरक्षा बलों और आबादी की सुरक्षा के लिए सहयोग के अवसरों की खोज करना, जिसमें पता लगाने, संदूषण दूर करने, चिकित्सा प्रतिउपायों, सुरक्षात्मक उपकरणों और जवाबी कार्रवाई रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना।
2. अपने साझा समुद्री सुरक्षा लक्ष्यों को आगे बढ़ाना और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांतिपूर्ण समुद्री वातावरण के लिए नौसेना और तटरक्षक बल के सहयोग को बढ़ावा देना, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं:
- (1) जापान आत्मरक्षा बलों, भारतीय सशस्त्र बलों और उनके तटरक्षक बल के जहाजों द्वारा अधिक बार यात्राएँ और बंदरगाहों पर आना-जाना
- (2) सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (आईएफसी-आईओआर) और भारत-प्रशांत समुद्री क्षेत्र जागरूकता साझेदारी (आईपीएमडीए) के माध्यम से एक साझा समुद्री परिदृश्य के लिए स्थितिजन्य जागरूकता और द्विपक्षीय एवं क्षेत्रव्यापी सहयोग को बढ़ाना
- (3) समुद्र में समुद्री डकैती, सशस्त्र डकैती और अन्य अंतरराष्ट्रीय अपराधों के विरुद्ध द्विपक्षीय और क्षेत्रीय पहलों और मंचों के माध्यम से कानून प्रवर्तन सहयोग को बढ़ाना, जिसमें एशिया में जहाजों के विरुद्ध समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती से निपटने पर क्षेत्रीय सहयोग समझौता (आरईसीएएपी) भी शामिल है
- (4) ज्ञान-साझाकरण और क्षमता निर्माण के जरिये भारत-प्रशांत क्षेत्र में आपदा जोखिम को कम करने और उसके विरुद्ध तैयारी के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग (आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन और एशियाई आपदा न्यूनीकरण केंद्र सहित),
- (5) भारत-प्रशांत क्षेत्र और उसके बाहर तीसरे देशों को उनकी संबंधित समुद्री सुरक्षा और समुद्री कानून प्रवर्तन सहायता पर समन्वय
3. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुदृढ़ता के लिए अपनी सरकारी संस्थाओं और निजी क्षेत्र के हितधारकों के बीच तकनीकी और औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना और सुगम बनाना, जिसमें निम्नलिखित तरीके शामिल हैं:
- (1) रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग व्यवस्था के तहत पारस्परिक लाभ और उपयोग के लिए सहयोग के अवसरों की खोज करना ताकि उनकी वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप उपकरणों और प्रौद्योगिकी का सह-विकास और सह-उत्पादन किया जा सके।
- (2) रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में नियमित उद्योग अनुभव दौरे; वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए विशिष्ट क्षमताओं, स्टार्ट-अप और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर ध्यान केंद्रित करना।
- (3) नए क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी साझा करना जो दोनों पक्षों के परिचालन दृष्टिकोणों का प्रभावी ढंग से समर्थन करते हों।
- (4) उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी, उपकरण और आपूर्ति श्रृंखला संबंधों में सहयोग को प्रोत्साहित और बढ़ावा देने के लिए संबंधित निर्यात नियंत्रण नीतियों और प्रथाओं की पारस्परिक समझ।
- (5) आर्थिक सुरक्षा से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर सहयोग, जिसमें रणनीतिक क्षेत्रों में कमजोरियों को कम करने के साथ-साथ आर्थिक दबाव, गैर-बाजार नीतियों व प्रथाओं तथा उनसे उत्पन्न होने वाली और अतिरिक्त क्षमता का समाधान शामिल है, साथ ही आपूर्ति श्रृंखला की सहनीयता को मज़बूत करना
- (6) विभिन्न खतरों के खिलाफ तैयारी और सहनीयता को बढ़ाने के लिए सैन्य चिकित्सा और स्वास्थ्य सुरक्षा में सहयोग के अवसरों की खोज करना
- (7) भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और जापान की अधिग्रहण, प्रौद्योगिकी एवं लॉजिस्टिक्स एजेंसी (एटीएलए) के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास सहयोग बढ़ाना
- (8) महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में सहयोग, जिसमें अन्वेषण, प्रसंस्करण और शोधन हेतु सूचना और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान शामिल है
4. प्रमुख पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों के विरुद्ध अपने सुरक्षा सहयोग को समकालीन बनाने और नई, महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों का सामना करने के लिए अतिरिक्त अवसरों की तलाश करना, जिसमें निम्नलिखित तरीके शामिल हैं:
- (1) खुफिया जानकारी और अनुभव साझा करने के माध्यम से, डिजिटल क्षेत्र में और मानवरहित प्रणालियों तथा आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग सहित आतंकवाद, कट्टरपंथी उग्रवाद और संगठित अंतरराष्ट्रीय अपराधों का मुकाबला करना
- (2) सुरक्षा और अखंडता सुनिश्चित करते हुए, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, क्वांटम, सेमीकंडक्टर, स्वायत्त प्रौद्योगिकी, भविष्य के नेटवर्क, जैव प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा जैसी प्रौद्योगिकियों में प्रगति के साथ संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा जगत और उद्योग जगत सहयोग को बढ़ावा देना।
- (3) सूचना साझा करके महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना की मज़बूती सहित अपनी साइबर सुदृढ़ता का निर्माण करना
- (4) राष्ट्रीय सुरक्षा, उपग्रह-आधारित मापन, भू-अवलोकन और अंतरिक्ष क्षेत्र में परस्पर तय किए गए अन्य क्षेत्रों के लिए संबंधित अंतरिक्ष प्रणालियों के उपयोग का विस्तार करना
- (5) अंतरिक्ष मलबे की जानकारी, निगरानी और प्रबंधन सहित अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता में सहयोग के लिए परामर्श आयोजित करना
5. साझा क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा उद्देश्यों को बढ़ावा देना और प्रासंगिक बहुपक्षीय समूहों में नीतियों और पदों का समन्वय करना, जिसमें निम्नलिखित तरीके शामिल हैं:
- (1) आसियान की केंद्रीयता और एकता, आसियान-नेतृत्व वाले फ्रेमवर्क और भारत-प्रशांत पर आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करना और क्षेत्र के लिए एक-दूसरे की रणनीतिक प्राथमिकताओं, अर्थात् भारत-प्रशांत महासागर पहल और एक स्वतंत्र एवं खुले भारत-प्रशांत (एफओआईपी) में योगदान देना
- (2) भारत-प्रशांत क्षेत्र में विश्वसनीय, स्थायी, सहनीय और गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना निवेश को बढ़ावा देना, जो राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता हो
- (3) किसी भी अस्थिर करने वाली या एकतरफा कार्रवाई का विरोध करना, जो बलपूर्वक या ज़बरदस्ती यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती हो और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता, तथा समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में प्रतिबिम्बित अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप समुद्र के अन्य वैध उपयोगों का समर्थन करना।
- (4) क्वाड के भीतर सहयोग को प्रगाढ़ करना तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और प्रगति के लिए क्वाड के सकारात्मक और व्यावहारिक एजेंडे को आगे बढ़ाना।
- (5) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार को बढ़ावा देना, जिसमें स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों का विस्तार शामिल है और विस्तारित यूएनएससी में स्थायी सदस्य के रूप में एक-दूसरे की उम्मीदवारी का समर्थन करना।
- (6) सीमा पार आतंकवाद सहित आतंकवाद की सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में निंदा करना और आतंकवादी गतिविधियों को भौतिक और वित्तीय सहायता को तत्काल समाप्त करने के लिए मिलकर काम करना, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर काम करना और संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को अपनाने के लिए प्रयास करना।
- (7) परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन और परमाणु प्रसार एवं परमाणु आतंकवाद को समाप्त करने के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करना। साथ ही, शैनन अधिदेश के आधार पर निरस्त्रीकरण सम्मेलन में एक गैर-भेदभावपूर्ण, बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तथा प्रभावी रूप से सत्यापन योग्य विखंडनीय पदार्थ नियंत्रण संधि पर वार्ता की तत्काल शुरुआत और इसका समापन करना।
- (8) वैश्विक अप्रसार प्रयासों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता के लिए मिलकर काम करना जारी रखना।
6. दोनों पक्षों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की मंत्रिस्तरीय 2+2 बैठक और चयनित व्यवस्थाओं के साथ विभिन्न आधिकारिक सुरक्षा वार्ताओं के माध्यम से द्विपक्षीय परामर्श और आदान-प्रदान की मौजूदा संरचना को पूरक और सुदृढ़ बनाना, जैसे:
- (1) भारत और जापान के सामने मौजूद सुरक्षा स्थिति का व्यापक जायजा लेने के लिए उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की वार्षिक वार्ता
- (2) भारत के विदेश सचिव और जापान के विदेश उप-मंत्री के बीच रणनीतिक व्यापार और प्रौद्योगिकी सहित आर्थिक सुरक्षा पर वार्ता, ताकि पारस्परिक आर्थिक सुरक्षा को बढ़ाया जा सके और रणनीतिक उद्योगों और प्रौद्योगिकी पर सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके
- (3) जापान आत्मरक्षा बलों और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच संयुक्त और अंतर-सेवा सहयोग के उद्देश्य से एक उच्च-स्तरीय वार्ता
- (4) भारतीय तटरक्षक और जापान तटरक्षक के बीच सहयोग ज्ञापन पर आधारित तटरक्षक के कमांडेंट स्तर की बैठक
- (5) व्यावसायिक सहयोग की संभावनाओं की पहचान करने के लिए फिर से सुदृढ़ बनाया गया भारत-जापान रक्षा उद्योग मंच
- (6) सुरक्षा चुनौतियों की व्यापक समझ को बढ़ावा देने और नए सहयोग के लिए विचार प्राप्त करने हेतु भारत और जापान के प्रबुद्ध मंडलों (थिंक-टैंक) की ट्रैक 1.5 वार्ता
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पीके/केसी/जेके
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