वित्त मंत्रालय
सरकार की विवेकपूर्ण मौद्रिक और व्यापार नीति, मजबूत आउटपुट वृद्धि के सहयोग के चलते वित्त वर्ष 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति कम होकर चार साल के न्यूनतम 5.4 प्रतिशत पर आ गई
कोर सेवाओं में मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में 9 साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई
भारतीय रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत पर आ जाएगी और वित्त वर्ष 2026 में यह घटकर 4.1 प्रतिशत हो जाएगी
आर्थिक सर्वेक्षण में नए माप एवं वस्तुओं के अनुरूप उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को संशोधित किए जाने सिफारिश की गई है
आर्थिक सर्वेक्षण में दलहन एवं तिलहन की फसलों का दायरा बढ़ाकर और आधुनिक भंडारण एवं प्रसंस्करण सुविधाओं का विकास कर मुद्रास्फीति कारक दबावों को कम करने की सलाह दी गई है
Posted On:
22 JUL 2024 3:05PM by PIB Delhi
आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कीमतों और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने पर विशेष जोर दिया गया, क्योंकि ‘निम्न और स्थिर मुद्रास्फीति सतत आर्थिक विकास की कुंजी हैं।’ इसमें कहा गया है कि सरकार और केंद्रीय बैंकों के समक्ष मुद्रास्फीति को मध्यम स्तर पर रखते हुए देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने की चुनौती है। इस नाजुक संतुलन को हासिल करने के लिए आर्थिक संकेतकों की सतर्कता से निगरानी करने और समयोचित और समुचित सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। कीमतों को स्थिर रखने के भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य और केंद्र सरकार की नीतिगत कदम उठाने की प्रतिबद्धता के फलस्वरूप भारत खुदरा मुद्रास्फीति को वित्त वर्ष 2024 में कोविड-19 महामारी काल के बाद के पिछले चार साल के न्यूनतम यानी 5.4 प्रतिशत के स्तर पर कायम रखने में सफल रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि भारत में खुदरा मुद्रास्फीति अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के आंकड़ों के अनुसार 2022-23 में उभरते हुए बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (इएमडीई) और विश्व औसत से काफी कम रही है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्थापित मुद्रा नीतियों, आर्थिक स्थिरता, मांग और आपूर्ति स्थितियों का संतुलन कायम रखने वाले पूरी तरह विकसित एवं कुशल बाजारों और मुद्रा स्थिरता ने मुद्रास्फीति का प्रभावी प्रबंधन करने में योगदान दिया है। ऐतिहासिक तथ्य यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति आमतौर पर उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले काफी कम होती है।
मुद्रास्फीति प्रबंधन
मूल्य स्थिरता कायम करने के उद्देश्य से बहुत से देशों ने अपने आर्थिक लक्ष्यों को सफल बनाने वाले कारकों पर आधारित अपने खुद के मुद्रास्फीति लक्ष्य तय किए हुए हैं। भारत के मुद्रास्फीति प्रबंधन की प्रशंसा करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह दिलचस्प है कि भारत विभिन्न विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले अपने मुद्रास्फीति लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में बेहतर ढंग से काम कर रहा है। 2023 में भारत की मुद्रास्फीति दर उसके अपने 2 से 6 प्रतिशत के निर्धारित लक्ष्य के भीतर थी। अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में 2021 से 23 के दौरान त्रैवार्षिक औसत मुद्रास्फीति दर में अपने मुद्रास्फीति लक्ष्य से न्यूनतम विचलन हुआ। जारी भू-राजनीतिक तनावों के चलते वैश्विक मांग एवं आपूर्ति असंतुलन से उपजी चुनौतियों के बावजूद भारत की मुद्रास्फीति दर 2023 में वैश्विक औसत से 1.4 प्रतिशत बिंदु नीचे रही।
2020 के बाद से विभिन्न देश मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने के मामले में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत अपने विवेकपूर्ण प्रशासनिक उपायों और मौद्रिक नीति के जरिए हेडलाइन और कोर मुद्रास्फीति में गिरावट का रूख बरकरार रखने में सफल रहा। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार मई 2022 के बाद से हमारी मौद्रिक नीति में मौटे तौर पर व्यवस्था की अति तरलता को अवशोषित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया और इसके लिए पॉलिसी रेपो रेट को मई 2022 के 4 प्रतिशत से 250 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर फरवरी 2023 में 6.5 प्रतिशत कर दिया गया। इसके बाद से पॉलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया और इसके लिए धीरे-धीरे समायोजन को वापस लेने, मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने और साथ ही साथ विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2023 में जिस अस्थिर और दृढ़ कोर मुद्रास्फीति से सामना हुआ था उसे जून 2024 में गिरावट के साथ 3.1 प्रतिशत पर ले आया गया।
सर्वेक्षण में आगे बताया गया है कि एलपीजी, पेट्रोल और डीजल के मूल्य में कटौती जैसे प्रशासनिक उपायों से एलपीजी और पेट्रोलियम उत्पादों की मुद्रास्फीति में कमी आई। सितंबर 2023 से एलपीजी मुद्रास्फीति दर अपस्फीतिकर खंड में थी जबकि पेट्रोल और डीजल की खुदरा मुद्रास्फीति मार्च 2024 में इस खंड में पहुंची। इसके साथ ही 2023 में वैश्विक उपयोगी वस्तु मूल्य में गिरावट आई जिससे ऊर्जा, धातु, खनिज और कृषि उपभोग की वस्तुओं पर आयातित मुद्रास्फीति चैनल के जरिए मूल्य का दबाव कम हुआ। 2024 में खाद्य वस्तुओं के दामों में अनिचिश्चतता के बावजूद ईंधन और कोर मुद्रास्फीति की दर कम होने से हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर में गिरावट सुनिश्चित हुई। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार जून 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत रही।
कोर मुद्रास्फीति, खाद्य एवं ऊर्जा संबंधी वस्तुओं को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) हेडलाइन मुद्रास्फीति से अलग रखकर मापी जाती है और यह पिछले चार साल में वित्त वर्ष 2024 में सबसे कम दर पर रही। भारत में महामारी के दौरान बढ़े मुद्रास्फीति दबाव वित्त वर्ष 2022 में काफी कम हुए और इसमें खाद्य मुद्रास्फीति के नरम होने से मदद मिली। वित्त वर्ष 2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने के चलते मुद्रास्फीति गत दबाव फिर से बढ़े और इसके परिणामस्वरूप खाद्य एवं ईंधन कीमतों में वृद्धि हुई। वर्ष 2024 में वस्तु एवं सेवाओं दोनों में कोर मुद्रास्फीति में गिरावट आने से मूल्य स्थिति में सुधार हुआ और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जनित मुद्रास्फीति में भी सुधार हुआ। वित्त वर्ष 2024 में कोर सेवाओं की मुद्रास्फीति में 9 साल में पहली बार सुधार हुआ और इसके साथ ही कोर वस्तुओं की मुद्रास्फीति में चार साल में पहली बार गिरावट आई।
मौद्रिक नीति की रूपरेखा के निर्धारण में कोर मुद्रास्फीति के रूझान महत्वपूर्ण हैं। मूल्य दबाव के उभरते हुए तरीकों के मूल्यांकन करते हुए आरबीआई ने मई 2022 से रेपो रेट में धीरे-धीरे 250 आधार प्वाइंट की वृद्धि की है, ताकि मुद्रास्फीति दबाव को कम किया जा सके। इससे अप्रैल 2022 और जून 2024 के बीच कोर मुद्रास्फीति में लगभग चार प्रतिशत प्वाइंट की कमी आई। इसमें आवास किराया मुद्रास्फीति में कमी का भी योगदान रहा जिससे वर्ष 2023 में नये मकानों के स्टॉक में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।
उपभोक्ता वस्तुओं की मुद्रास्फीति में वित्त वर्ष 2020 और 2023 के बीच लगातार पांच प्रतिशत प्वाइंट की वृद्धि हुई, जिसमें वित्त वर्ष 2021 में सोने के तथा वित्त वर्ष 2022-23 में परिधानों के मूल्यों में वृद्धि का योगदान रहा। वित्त वर्ष 2024 में मुख्य कच्चे माल की आपूर्ति में सुधार से उपभोक्ता वस्तुओं की मुद्रास्फीति दर में कमी आई। हालांकि अपेक्षित फेड रेट कटौती और भू-राजनीतिक अनिश्चिता में वृद्धि के कारण सोने के रिकार्ड ऊंचे मूल्यों से समग्र टिकाऊ वस्तु मुद्रास्फीति के बढ़ते हुए दबावों को बल दिया। वित्त वर्ष 2020 में उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तु (सीएनडी) मुद्रास्फीति ने छलांग लगाई। इसमें वित्त वर्ष 2021 में तेजी शुरू हुई जो वित्त वर्ष 2022 में सर्वकालीन ऊंचे स्तर पर पहुंची और वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 में इसमें तेजी से गिरावट आई।
पिछले दो वर्षों में खाद्य मुद्रास्फीति एक वैश्विक घटना रही है। अनुसंधान से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में काफी तेजी आई। वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 में कृषि क्षेत्र में मौसम की प्रतिकूल घटनाओं, जल भण्डारण के गिरते स्तर, फसलों की हानि से कृषि क्षेत्र प्रभावित हुए है, जिससे कृषि उत्पादन और खाद्य मूल्य बुरी तरह प्रभावित हुए। इसलिए उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) पर आधारित खाद्य मूल्य स्थिति वित्त वर्ष 2022 में 3.8 प्रतिशत, वित्त वर्ष 2023 में 6.6 प्रतिशत रही, जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई। हालांकि सरकार ने खुले बाजार बिक्री, निदिष्ट बिक्री केन्द्रों पर खुली बिक्री, समय रहते आयात आवश्यक खाद्य वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने सहित तुरंत कार्रवाई की। इसके अलावा गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को जनवरी 2024 से शुरू करते हुए पांच वर्ष की अवधि तक बढ़ा दिया गया था। यह योजना 81 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान उपलब्ध कराती है।
वैश्विक खाद्य मूल्य और घरेलू मुद्रास्फीति
वैश्विक खाद्य मूल्यों का भी घरेलू मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ा है। भारत में खाद्य तेल बाजार मुख्य रूप से आयात पर निर्भर करता है। कुल खाद्य तेल की जरूरत का 50 प्रतिशत से अधिक आयात किया जाता है जो इसे वैश्विक मूल्यों के कारण संवेदी बनाता है। सरकार ने उचित मूल्य पर उपभोक्ता को खाद्य तेलों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक बाजार रूझानों की बड़ी नजदीकी से निगरानी की है। वैश्विक मूल्य संवेदनशीलता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए तथा आयात और घरेलू उत्पादों को संतुलित करने के भी प्रयास किए गए हैं। इस संदर्भ में खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन- पॉम ऑयल का उद्देश्य आयात का बोझ कम करने के लिए घरेलू कच्चे पॉम ऑयल उत्पादन को बढ़ाना है। चीनी के मामले में सरकार ने पर्याप्त, स्थानीय आपूर्ति सुनिश्चित करने और चीनी मुद्रास्फीति का प्रबंध करने के लिए जून 2022 में निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इन निर्यात प्रतिबंधों ने घरेलू चीनी मूल्यों को स्थिर रखने में वास्तविक भूमिका निभाई है। इसके परिणाम स्वरूप वैश्विक चीनी मूल्य सूचकांक में वृद्धि हुई। जिससे फरवरी 2023 से भी इसके मूल्यों में अस्थिरता रही, लेकिन घरेलू चीनी मूल्यों में बहुत कम उतार चढ़ाव रहा।
खुदरा मुद्रास्फीति अंतर्राज्यीय बदलाव पर आर्थिक समीक्षा में यह दावा किया गया है कि 36 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में से 29 में मुद्रास्फीति दर छह प्रतिशत से कम रही थी। मुद्रास्फीति में ये अंतर्राज्यीय बदलाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट हैं क्योंकि ग्रामीण खपत बॉस्केट में खाद्य वस्तुओं (47.3 प्रतिशत) का अधिमान्य शहरी (29.6 प्रतिशत) की तुलना में अधिक है। इसलिए पिछले दो वर्षों में जिन राज्यों में खाद्य मूल्यों में तेजी आई उनकी ग्रामीण मुद्रास्फीति में तेजी का अनुभव रहा।
भावी मुद्रास्फीति अनुमान
आईबीआई और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के उपभोक्ता मूल्यों के बारे में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि यह वित्त वर्ष 2026 में मुद्रास्फीति लक्ष्य के लगातार अनुरूप रहेंगे। मॉनसून को सामान्य मानते हुए कोई बाह्य या नीतिगत संघर्ष न होने पर आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2026 में 4.1 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है। आईएमएफ ने भी 2024 में 4.6 प्रतिशत तथा 2025 में 4.2 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर रहने का अनुमान लगाया है। विश्व बैंक का अनुमान है कि उपभोक्ता वस्तुओं की वैश्विक आपूर्ति बढ़ेगी और उन्नत औद्योगिक गतिविधि और व्यापार वृद्धि के कारण उनकी मांग में भी वृद्धि होगी। यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में वर्ष 2024 के दौरान तीन प्रतिशत और 2025 में चार प्रतिशत की कमी का अनुमान व्यक्त करती है। इसके पीछे कम ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक मूल्यों में कमी का मुख्य योगदान है। ऊर्जा मूल्य सूचकांक इस वर्ष कोयला और प्राकृतिक गैस के मूल्यों में महत्वपूर्ण गिरावट के कारण कम होने का अनुमान है। उर्वरक मूल्य घटने के आसार है, लेकिन ये 2015-2019 के स्तर से ऊंचे बने रहेंगे। इसके पीछे मजबूत मांग और निर्यात प्रतिबंधों का योगदान है। आधार धातु मूल्य बढ़ने का अनुमान है, जो वैश्विक औद्योगिक गतिविधि और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि को दर्शाती है। सामान्य रूप से भारत द्वारा आयातित वस्तुओं के मूल्य में मौजूदा गिरावट का रूख घरेलू मुद्रास्फीति दृष्टिकोण के लिए सकारात्मक है।
अल्पकालीन मुद्रास्फीति आउटलुक भारत के लिए अनुकूल है। हालांकि दीर्घकालीन मूल्य स्थिरता के दृष्टिकोण से आर्थिक समीक्षा आगे बढ़ने के मार्ग के निम्नलिखित विकल्पों का पता लगाने का सुझाव देती है।
- प्रमुख तिलहनों के घरेलू उत्पादों को बढ़ाकर खाद्य तेलों के लिए आयात निर्भरता कम करना, राइस ब्रॉन तेल और कोर्न तेल जैसे गैर-पारंपरिक तेलों की संभावना का पता लगाना और खाद्य तेलों के नेशनल मिशन के दायरे को बढ़ाना।
- दालों विशेष तौर पर मसूर, अरहर और उड़द के तहत अधिक से अधिक जिलों में और राइस-फैलो क्षेत्रों में रकबे का विस्तार करना। अच्छे सिंचित सुविधा वाले क्षेत्रों में उड़द और मूंग के ग्रीष्म उत्पादन को बढ़ावा देना है।
- सब्जियों विशेष रूप से टमाटर और प्याज के लिए आधुनिक भंडारण और प्रोसेसिंग सुविधाओं को बेहतर और विकसित करना।
- कृषि क्षेत्र से अंतिम उपभोक्ता तक मात्रात्मक तरीके से उच्च आवृति मूल्य निगरानी डेटा के मिलान से निर्दिष्ट वस्तुओं के मूल्य में भाव-मोल के साथ सरकार द्वारा प्रशासनिक कार्य की गति और प्रभावशीलता को बेहतर बनाना, लागतजन्य मुद्रास्फीति के मामले में बेहतर पकड़ के लिए वस्तु और सेवाओं के लिए उत्पादक मूल्य सूचकांक में तेजी लाना।
- परिवार उपभोक्ताओं व्यय सर्वेक्षण 2022-23 का उपयोग करते हुए फ्रेश वेट और आइटम बॉस्केट के साथ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को संशोधित करना।
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