वित्त मंत्रालय
कृषि क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों के दौरान औसत वार्षिक वृद्धिदर 4.18 प्रतिशत दर्ज की गई: आर्थिक समीक्षा
छोटे खेतिहरों को उच्च मूल्य की फसलों की खेती करने की जरूरत है
सभी तिलहनों का कुल बुवाई क्षेत्र 2014-15 में 25.60 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 30.08 मिलियन हेक्टेयर हो गया (17.5 प्रतिशत की वृद्धि)
कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए इसमें निजी क्षेत्र निवेश बढ़ाना जरूरी है
Posted On:
22 JUL 2024 2:59PM by PIB Delhi
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2023-24’ पेश की। इस आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि छोटे खेतिहरों को उच्च मूल्य की फसलों की खेती करने की जरूरत है। समीक्षा के अनुसार, जब छोटे किसानों की आय बढ़ेगी तो वे विनिर्मित वस्तुओं की मांग करेंगे, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में बदलाव आएगा।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि भारतीय कृषि क्षेत्र 42.3 प्रतिशत आबादी को आजीविका प्रदान करता है और मौजूदा कीमतों पर देश की जीडीपी में इसकी 18.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। कृषि क्षेत्र हमेशा उछाल पर रहा है, इसका पता इस तथ्य से चलता है कि इसने पिछले पांच वर्षों के दौरान 4.18 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की है और 2023-24 के लिए अतंतिम अनुमान के अनुसार कृषि क्षेत्र की विकास दर 1.4 प्रतिशत रही।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कृषि अनुसंधान में निवेश और सक्षम नीतियों ने खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कृषि अनुसंधान (शिक्षण सहित) में निवेश किए गए प्रत्येक रुपए के लिए 13.85 रुपए भुगतान किए जाने का अनुमान है। वर्ष 2022-23 में कृषि अनुसंधान पर 19.65 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए।
आर्थिक समीक्षा में कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाने की जरूरत बताई गई है। समीक्षा में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए इसमें निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाना जरूरी है। प्रौद्योगिकी, खेती के तरीकों और विपणन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसानों में कमी लाने की जरूरत है। फसल कटाई इंफ्रास्ट्रक्चर और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास पर विशेष ध्यान देने से अपशिष्ट/हानि को कम किया जा सकता है और भंडारण की अवधि को बढ़ाया जा सकता है, जिससे किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिलना सुनिश्चित हो सकेगा।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि वर्ष 2022-23 में खाद्यान उत्पादन अब तक सबसे अधिक 329.7 मिलियन टन रहा और तिलहन उत्पादन 41.4 मिलियन टन पर पहुंच गया। वर्ष 2023-24 में खाद्यान उत्पादन मानसून में देरी और कम बारिश के कारण इससे थोड़ा कम 328.8 मिलियन टन रहा। खाद्य तेल की घरेलू उपलब्धता 2015-16 में 86.30 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 121.33 लाख टन हो गई। सभी तिलहनों का बुवाई क्षेत्र 2014-15 में 25.60 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 30.08 मिलियन हेक्टेयर हो गया (17.5 प्रतिशत की वृद्धि)। इससे आयातित खाद्य तेल की प्रतिशत हिस्सेदारी में कमी आई है। घरेलू मांग में बढ़ोत्तरी और तेल के उपभोग रूझानों में आए बदलाव के बावजूद यह 2015-16 में 63.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 57.3 प्रतिशत हो गई।
आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि कृषि विपणन में दक्षता बढ़ाने और बजार कीमत में सुधार के लिए सरकार ने ई-एनएएम योजना लागू की और 14 मार्च 2024 तक ई-एनएएम पोर्टल पर 1.77 करोड़ से अधिक किसानों और 2.56 लाख से अधिक व्यापारियों ने पंजीकरण करा लिया है। भारत सरकार ने इस योजना को 2027-28 तक 6.86 हजार करोड़ रुपए के बजट परिव्यय के साथ 2020 में 10,000 एफपीओ बनाने और उसे बढ़ावा देने के लिए शुरू की थी। 29 फरवरी 2024 तक नई एफपीओ योजना के तहत 8195 एफपीओ में पंजीकरण करा लिया है और 3325 एफपीओ को 157.4 करोड़ रुपए का इक्विटी अनुदान जारी किया गया। 1185 एफपीओ को 278.2 करोड़ रुपए की क्रेडिट गारंटी जारी की गई।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, कृषि मूल्य समर्थन किसानों को लाभकारी रिर्टन और बढती आय का आश्वासन देता है तथा यह सरकार को सही कीमतों पर खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करने की अनुमति देता है। तदनुसार, सरकार कृषि वर्ष 2018-19 से उत्पादन के अखिल भारतीय औसत मूल्य पर कम से कम 50 प्रतिशात की मार्जिन के साथ सभी खरीफ, रबी और अन्य वाणिज्यिक फसलों की एमएसपी बढ़ाती रही है।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि सबसे अधिक गरीब किसान परिवारों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना लागू की है। इस योजना के तहत 60 वर्ष की उम्र प्राप्त कर चुके पंजीकृत किसानों को हर महीने 3000 रुपए की पेंशन दी जाती है। 7 जुलाई 2024 तक 23.41 लाख किसान इस योजना में शामिल किए जा चुके है।
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एनबी/एमजी/एआर/हिंदी इकाई-30
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