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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक वर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया

प्रधानमंत्री ने कहा : वंदे मातरम का सार है भारत, मां-भारती जो देश का शाश्वत विचार है

औपनिवेशिक काल के दौरान, वंदे मातरम देश स्वतंत्र होगा, मां-भारती के बंधनों की जंजीरें तोड़ी जाएंगी, और उसकी संतानें अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनेंगी के संकल्प का उद्घोष बन गया

वंदे मातरम देश के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बन गया, एक ऐसा मंत्र जो प्रत्‍येक क्रांतिकारी के होठों पर गूंजता था, एक ऐसी आवाज जिसने प्रत्‍येक भारतीय की भावनाओं को व्यक्त किया

वंदे मातरम, स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों का गीत होने के साथ-साथ शाश्वत प्रेरणा का भी काम करता है, यह हमें न केवल यह याद दिलाता है कि हमने स्वतंत्रता कैसे हासिल की, बल्कि यह भी बताता है कि हमें इसकी रक्षा कैसे करनी चाहिए

जब भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, ये शब्द सहज रूप से हमारे दिलों से उठते हैं - भारत माता की जय! वंदे मातरम!

Posted On: 07 NOV 2025 12:17PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय गीत "वंदे मातरम" के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित वर्ष भर चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया। श्री मोदी ने इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि वंदे मातरम केवल एक शब्द नहीं है - यह एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है और एक पवित्र संकल्प है। उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम मां भारती के प्रति भक्ति और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह शब्द हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है, हमारे वर्तमान को आत्मविश्वास से भर देता है और हमारे भविष्य को यह विश्वास दिलाने का साहस देता है कि कोई भी संकल्प पूर्ण होने से परे नहीं है, कोई भी लक्ष्य हमारी पहुंच से परे नहीं है।

वंदे मातरम के सामूहिक गायन को अभिव्यक्ति की सीमाओं से परे सचमुच एक विशिष्ट अनुभव बताते हुए, श्री मोदी ने कहा कि इतने सारे स्वरों के बीच, विलक्षण लय, एकीकृत स्वर, साझा रोमांच और निर्बाध प्रवाह उभरा। उन्होंने हृदय को ऊर्जा से भरने वाले सद्भाव की प्रतिध्वनि और तरंगों की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि 7 नवंबर ऐतिहासिक दिन है, आज राष्ट्र वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है। उन्होंने कहा कि यह पावन अवसर हमारे नागरिकों को नई प्रेरणा और नई ऊर्जा प्रदान करेगा। इस दिन को इतिहास के पन्नों में अंकित करने के लिए, वंदे मातरम को समर्पित एक विशेष स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया गया है। श्री मोदी ने मां भारती के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले भारत के सभी वीरों और विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उपस्थित सभी लोगों को बधाई दी और वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर प्रत्येक नागरिक को शुभकामनाएं दीं।

यह ध्‍यान में रखते हुए कि प्रत्येक गीत और प्रत्येक कविता एक मूल भावना और एक विशेष संदेश रखती है, प्रधानमंत्री ने प्रश्न उठाया-वंदे मातरम का सार क्या है? उन्होंने कहा कि इसका सार है भारत, मां-भारती-जो देश का शाश्वत विचार है। उन्होंने विस्तार से बताया कि यह विचार मानव सभ्यता की शुरुआत से ही आकार लेने लगा था। यह प्रत्येक युग को एक अध्याय के रूप में देखते हुए, विभिन्न राष्ट्रों के उदय, विभिन्न शक्तियों के उदय, नई सभ्यताओं के विकास, शून्य से महानता की उनकी यात्रा और अंततः शून्य में विलीन होने का साक्षी रहा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने इतिहास के निर्माण और विनाश, विश्व के बदलते भूगोल को देखा है। इस अनंत मानव इतिहास यात्रा से, भारत ने सीखा, नए निष्कर्ष निकाले और उनके आधार पर अपनी सभ्यता के मूल्यों और आदर्शों को आकार दिया तथा अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान गढ़ी। श्री मोदी ने इस बात पर बल दिया कि भारत शक्ति और नैतिकता के बीच संतुलन को समझते हुए शुद्ध सोने की तरह परिष्कृत राष्ट्र के रूप में उभरा और अतीत की चोटों के बावजूद अमर है।

श्री मोदी ने यह भी कहा कि भारत की अवधारणा और उसके पीछे की दार्शनिक शक्ति वैश्विक शक्तियों के उत्थान और पतन से अलग है और स्वतंत्र अस्तित्व की एक विशिष्ट भावना में निहित है। उन्होंने कहा कि जब इस चेतना को लिखित और लयबद्ध रूप में अभिव्यक्त किया गया तो वंदे मातरम जैसी रचना का जन्म हुआ। श्री मोदी ने कहा, "यही कारण है कि औपनिवेशिक काल में, वंदे मातरम इस संकल्प का उद्घोष बन गया कि देश स्वतंत्र होगा, मां-भारती की दासता की बेड़ियां टूट जाएंगी और उसकी संतानें अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बनेंगी।"

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के इन शब्दों को याद करते हुए कि बंकिमचंद्र का आनंदमठ केवल एक उपन्यास नहीं है—यह एक स्वतंत्र भारत का स्वप्न है, प्रधानमंत्री ने आनंदमठ में वंदे मातरम के गहन महत्व पर बल दिया और कहा कि बंकिम बाबू की रचना की प्रत्येक पंक्ति, प्रत्येक शब्द और प्रत्येक भावना गहरे अर्थ रखती है। उन्होंने कहा कि यद्यपि यह गीत औपनिवेशिक काल में रचा गया था, फिर भी इसके शब्द सदियों की गुलामी की छाया में कभी सीमित नहीं रहे। यह पराधीनता की स्मृतियों से मुक्त रहा, और इसीलिए वंदे मातरम हर युग और हर काल में प्रासंगिक बना हुआ है। श्री मोदी ने गीत की पहली पंक्ति—सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम शस्यश्यामलाम मातरम—को उद्धृत किया और प्रकृति के दिव्य आशीर्वाद से सुशोभित हमारी मातृभूमि के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में इसकी व्‍याख्‍या की।

श्री मोदी ने कहा कि नदियां, पहाड़, जंगल, पेड़ और उपजाऊ मिट्टी में हमेशा से प्रचुरता प्रदान करने की शक्ति हज़ारों वर्षों से भारत की पहचान रही है। सदियों से, दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती रही है। कुछ ही सदियों पहले, भारत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा था। हालांकि, उन्होंने स्‍पष्‍ट किया कि जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की, तब भारत उस स्वर्णिम युग से बहुत दूर आ चुका था। विदेशी आक्रमणों, लूटपाट और शोषणकारी औपनिवेशिक नीतियों ने देश को गरीबी और भुखमरी से ग्रस्त कर दिया था। फिर भी, बंकिम बाबू ने एक समृद्ध भारत के दृष्टिकोण का आह्वान किया, जो इस विश्वास से प्रेरित था कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्यों न हों, भारत अपने स्वर्णिम युग को पुनर्जीवित कर सकता है। और इस प्रकार, उन्होंने वंदे मातरम का आह्वान किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि औपनिवेशिक काल में, अंग्रेज़ भारत को हीन और पिछड़ा बताकर अपने शासन को उचित ठहराने की कोशिश करते थे। उन्होंने बल दिया कि वंदे मातरम की पहली पंक्ति ही इस झूठे प्रचार को पूरी ताकत से ध्वस्त कर देती है। इसलिए, वंदे मातरम सिर्फ़ आज़ादी का गीत नहीं था—इसने करोड़ों भारतीयों के सामने एक स्‍वतंत्र भारत की एक तस्वीर भी पेश की यानी सुजलाम सुफलाम भारत का सपना।

श्री मोदी ने कहा कि आज का दिन हमें वंदे मातरम की असाधारण यात्रा और प्रभाव को समझने का अवसर प्रदान करता है। जब बंकिम बाबू ने 1875 में बंगदर्शन में वंदे मातरम प्रकाशित किया, तो कुछ लोगों ने इसे केवल एक गीत माना। लेकिन जल्द ही, वंदे मातरम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बन गया -प्रत्‍येक क्रांतिकारी के होठों पर एक मंत्र, प्रत्‍येक भारतीय की भावनाओं की अभिव्यक्ति। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन का शायद ही कोई अध्याय हो जहां वंदे मातरम किसी न किसी रूप में मौजूद न हो। वर्ष 1896 में, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम गाया था। वर्ष 1905 में, जब बंगाल का विभाजन हुआ जो राष्ट्र को बांटने के लिए अंग्रेजों का खतरनाक प्रयोग था, उस समय वंदे मातरम इस तरह की साजिशों के खिलाफ एक चट्टान की तरह खड़ा था। प्रधानमंत्री ने याद किया कि बंगाल के विभाजन के विरोध के दौरान, सड़कें एक सामूहिक वंदे मातरम की आवाज से गूंज उठी थीं।

यह याद करते हुए कि जब बारीसाल अधिवेशन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं, तब भी उनके होठों पर शब्द थे - वंदे मातरम, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी, जो विदेश से काम कर रहे थे, एक-दूसरे को वंदे मातरम कहकर अभिवादन करते थे। कई क्रांतिकारियों ने फांसी के तख्ते पर खड़े होकर भी वंदे मातरम गाया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि ऐसी अनगिनत घटनाएं, इतिहास की अनगिनत तारीखें, विविध क्षेत्रों और भाषाओं वाले एक विशाल राष्ट्र में, ऐसे आंदोलन हुए जहां एक नारा, एक संकल्प, एक गीत हर आवाज में गूंजता था - वंदे मातरम। उन्होंने महात्मा गांधी की 1927 की टिप्पणी का उल्‍लेख किया कि वंदे मातरम हमारे सामने अविभाजित भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि श्री अरबिंदो ने वंदे मातरम को केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक मंत्र के रूप में वर्णित किया है - जो आंतरिक शक्ति को जागृत करता है।

श्री मोदी ने इस बात पर भी बल दिया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज अपने प्रारंभिक स्वरूप से लेकर आज के तिरंगे के रूप में समय के साथ विकसित हुआ है, लेकिन एक बात हमेशा बनी रही है—जब भी ध्वज फहराया जाता है, प्रत्‍येक भारतीय के हृदय से सहज ही भारत माता की जय! और वंदे मातरम! के शब्द निकलते हैं। उन्होंने बल देकर कहा कि जब राष्ट्र राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, तो यह देश के महान नायकों को भी श्रद्धांजलि है। यह उन अनगिनत शहीदों को श्रद्धांजलि है जिन्होंने वंदे मातरम का उद्घोष करते हुए फांसी को गले लगा लिया, वंदे मातरम का उद्घोष करते हुए कोड़ों की मार झेली, वंदे मातरम का मंत्र पढ़ते हुए बर्फ की सिल्लियों पर अडिग रहे।

प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि आज, सभी 140 करोड़ भारतीय, वंदे मातरम का उच्चारण करते हुए राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले उन प्रत्येक ज्ञात, अज्ञात और गुमनाम देश भक्‍तों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में कभी दर्ज नहीं किए गए।

वैदिक श्लोक का हवाला देते हुए, "यह देश की भूमि हमारी माता है, हमारी जननी है, और हम इसकी संतान हैं," श्री मोदी ने कहा कि वैदिक काल से ही भारत के लोग राष्ट्र की मातृरूप में पूजा करते आए हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इसी वैदिक विचार ने वंदे मातरम के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में नई चेतना का संचार किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग राष्ट्र को केवल एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में देखते हैं, उनके लिए राष्ट्र को मां मानने का विचार आश्चर्यजनक लग सकता है। लेकिन भारत अलग है। भारत में, मां जन्म देने वाली, पालन-पोषण करने वाली और जब उसकी संतान संकट में होती है, तो वह संकटों को हरने वाली भी होती है। उन्होंने वंदे मातरम की पंक्तियों का हवाला देते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि मां भारती अपार शक्ति रखती है, विपत्ति में हमारा मार्गदर्शन करती है और शत्रुओं का नाश करती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र को मां और मां को शक्ति के दिव्य अवतार के रूप में देखने की धारणा ने एक ऐसे स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया जिसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से शामिल करने का संकल्प लिया गया था। उन्होंने आगे कहा कि इस दृष्टिकोण ने भारत को एक बार फिर एक ऐसे राष्ट्र का सपना देखने में सक्षम बनाया जिसमें महिला शक्ति राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे हो।

श्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम, स्वतंत्रता के शहीदों का गीत होने के साथ-साथ हमें उसी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेरित भी करता है। उन्होंने, मां-भारती को ज्ञानदायिनी सरस्वती, समृद्धिदायिनी लक्ष्मी और शस्त्र एवं शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा का स्वरूप बताने वाली बंकिम बाबू की मूल रचना की पंक्तियों का उल्‍लेख किया। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि हमारा दृष्टिकोण एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का है जो ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अग्रणी हो; एक ऐसा राष्ट्र जो ज्ञान और नवाचार की शक्ति से समृद्ध हो; और एक ऐसा राष्ट्र जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में आत्मनिर्भर हो।

हाल के वर्षों में, दुनिया ने भारत के वास्तविक स्वरूप का उदय देखा है, इस बात का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की अभूतपूर्व प्रगति और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में इसके उभरने के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब विरोधियों ने आतंकवाद के माध्यम से भारत की सुरक्षा और सम्मान पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया, तो दुनिया ने देखा कि नया भारत मानवता की सेवा में कमला और विमला की भावना का प्रतीक तो है ही, साथ ही आतंक के विनाश के लिए दस अस्त्रों की धारक दुर्गा बनना भी जानता है।

वंदे मातरम से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पर बात करते हुए और इसके महत्व पर बल देते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम की भावना ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे देश को आलोकित किया था। हालांकि, उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि 1937 में, वंदे मातरम की आत्मा इसके महत्वपूर्ण पद्य को अलग कर दिया गया। यह गीत खंडित हो गया। उन्होंने बल देकर कहा कि इसी विभाजन ने देश के विभाजन के बीज बोए। प्रधानमंत्री ने सवाल उठाया कि इस महान राष्ट्रीय मंत्र के साथ ऐसा अन्याय क्यों किया गया। उन्‍होंने कहा कि आज की पीढ़ी को इस इतिहास को समझना होगा। उन्होंने आगाह किया कि यही विभाजनकारी मानसिकता आज भी राष्ट्र के लिए चुनौती बनी हुई है।

इस सदी को भारत की सदी बनाने पर बल देते हुए, प्रधानमंत्री ने दृढ़ता से कहा कि इसे हासिल करने की ताकत भारत और उसके लोगों में निहित है। उन्होंने इस संकल्प को साकार करने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता पर बल दिया। श्री मोदी ने आगाह किया कि इस यात्रा में, हमें उन लोगों का सामना करना पड़ेगा जो हमें गुमराह करना चाहते हैं और नकारात्मक मानसिकता वाले लोग जो संदेह और संकोच का बीज बोने का प्रयास करेंगे। ऐसे क्षणों में, उन्होंने राष्ट्र से आनंदमठ के उस प्रसंग को याद करने का आग्रह किया, जहां भवानंद वंदे मातरम गाते हैं और एक अन्य पात्र प्रश्न करता है कि अकेला व्यक्ति क्या हासिल कर सकता है। तब वंदे मातरम से प्रेरणा मिलती है - करोड़ों बच्चों और करोड़ों हाथों वाली मां कभी शक्तिहीन कैसे हो सकती है? प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत माता के पास 140 करोड़ बच्चे और 280 करोड़ हाथ हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत से अधिक युवा हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ है, जो हमारे राष्ट्र और मां भारती की शक्ति है। श्री मोदी ने पूछा कि आज हमारे लिए वास्तव में क्या असंभव है? वंदे मातरम के मूल स्वप्न को पूरा करने से हमें कौन रोक सकता है?

इस बात को रेखांकित करते हुए कि आज, जब आत्मनिर्भर भारत का विजन सफल हो रहा है, जब राष्ट्र मेक इन इंडिया के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, और जब हम 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ रहे हैं, श्री मोदी ने कहा कि इस अभूतपूर्व युग में प्रत्येक नई उपलब्धि, स्वतःस्फूर्त नारे - वंदे मातरम - को उद्घाटित करती है! उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बनता है, जब नए भारत की गूंज अंतरिक्ष के सुदूर कोने तक पहुंचती है, तो प्रत्येक नागरिक गर्व से उद्घोष करता है - वंदे मातरम! प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जब हम अपनी बेटियों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लेकर खेल तक के क्षेत्रों में शिखर पर पहुंचते देखते हैं, जब हम उन्हें लड़ाकू विमान उड़ाते हुए देखते हैं, तो प्रत्‍येक गौरवान्वित भारतीय का नारा - वंदे मातरम – गूंज उठता है!

वन रैंक वन पेंशन के कार्यान्वयन के 11 वर्ष पूरे होने का उल्लेख करते हुए श्री मोदी ने कहा कि जब हमारे सशस्त्र बल दुश्मन के नापाक इरादों को कुचल देते हैं, जब आतंकवाद, नक्सलवाद और माओवादी उग्रवाद को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया जाता है, तो हमारे सुरक्षा बल उद्घोष करते हैं - वंदे मातरम!

इस बात पर बल देते हुए कि मां-भारती के प्रति श्रद्धा की यह भावना हमें एक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर ले जाएगी, प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि वंदे मातरम का मंत्र इस अमृत काल की यात्रा में मां भारती की असंख्य संतानों को सशक्त और प्रेरित करता रहेगा। अंत में, उन्होंने एक बार फिर सभी देशवासियों को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर बधाई दी।

इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, दिल्ली के उपराज्यपाल श्री विनय कुमार सक्सेना, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। यह कार्यक्रम 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक, वर्ष भर चलने वाले राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव का औपचारिक शुभारंभ है। यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने और आज भी राष्ट्रीय गौरव और एकता का अलख जगाने वाली कालातीत रचना के 150 वर्ष पूरे होने का उत्सव है।

समारोह में, मुख्य कार्यक्रम के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों के नागरिकों की भागीदारी के साथ सार्वजनिक स्थानों पर वंदे मातरम के पूर्ण संस्करण का सामूहिक गायन किया गया।

वर्ष 2025 में आज वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। बंकिमचंद्र चटर्जी ने हमारे राष्ट्रीय गीत "वंदे मातरम" की रचना, 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन अवसर पर की थी। वंदे मातरम पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में उनके उपन्यास "आनंदमठ" के एक अंश के रूप में प्रकाशित हुआ था। मातृभूमि को शक्ति, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक बताते हुए इस गीत ने भारत की एकता और स्वाभिमान की जागृत भावना को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की और शीघ्र ही यह राष्ट्र भक्ति का एक स्थायी प्रतीक बन गया।

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पीके/केसी/वीके/एमपी



(Release ID: 2187328)