उप राष्ट्रपति सचिवालय
उपराष्ट्रपति ने कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में लोगों के साथ साझेदारी करने के लिए मीडिया की सराहना की
कहा, खुद के प्रभावित होने के बावजूद, मीडिया ने सूचना एवं दृष्टिकोणों के साथ लोगों को सशक्त बनाने का मिशन आगे बढ़ाया
स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के द्वारा लोगों में दहशत फैलाने के खिलाफ सावधान किया
उपराष्ट्रपति ने कहा, महामारी से निपटने की संसदीय जांच प्रगति पर है
Posted On:
19 JUL 2020 10:34AM by PIB Delhi
उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडु ने कोरोना वायरस एवं कोविड-19 महामारी के प्रकोप के विभिन्न पहलुओं के बारे में आवश्यक सूचना, विश्लेषण एवं दृष्टिकोणों के साथ लोगों को सशक्त बनाने के लिए तथा वर्तमान में जारी इस रोग के खिलाफ लड़ने में चिंतित लोगों के साथ साझीदारी करने के लिए मीडिया की सराहना की है। उन्होंने व्यापक जागरूकता के लिए महामारी के बारे में जानकारी देने में जमीनी स्तर पर काम कर रहे मीडिया के लोगों के समर्पित प्रयासों के लिए उन्हें ‘अग्रिम पंक्ति का योद्धा‘ बताया।
‘मीडिया: आवर पार्टनर इन कोरोना टाइम्स‘ शीर्षक के अपने फेसबुक पोस्ट में आज श्री नायडु ने विस्तार से पिछले कुछ महीनो के दौरान, जबसे इस वायरस का प्रकोप हुआ है, मीडिया तथा मीडिया से जुड़े व्यक्तियों को प्रभावी तरीके से सूचना देने, शिक्षित करने एवं महामारी से निपटने में लोगों को सशक्त बनाने के अपने मूल दायित्वों का निर्वहन करने तथा एक विश्वस्त साझेदार की तरह संकट के दौरान हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए मीडिया की भूमिका की चर्चा की। ‘ उन्होंने कहा कि जब लोग विपत्ति में फंसते हैं तो वे इसके कारणों एवं परिणामों, इसकी अवधि तथा इससे निपटने के तरीकों के बारे में जानकारी की तलाश करते हैं और यह जिम्मदारी केंद्र, राज्य सरकारों तथा मीडिया की हो जाती है कि वे लोगों को इसी के अनुरूप उचित जानकारी से लैस करें ।
उपराष्ट्रपति ने नोट किया कि वायरस के प्रसार एवं रोग से लड़ने के खिलाफ सूचित कार्रवाई करने के लिए लोगों को सशक्त बनाने की बेहद आवश्यक माध्यम बनने के अतिरिक्त, मीडिया ने तैयारी पर नियमित संवाद के लिए लोगों तथा सरकार के बीच सेतु बनने के द्वारा महामारी के संभावित इतिहासकारों के उपयोग के लिए महामारी के क्रमिक इतिहासकार की भी भूमिका निभाई है। उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया ने महामारी के विभिन्न पहलुओं तथा समाज के विभिन्न वर्गों पर इसके प्रभावों के बारे में विश्लेषणात्मक अंतर्दृष्टियों के साथ संसदीय संस्थानों में बहसों के लिए भी एजेंडा निर्धारित किया है।
उन्होंने मास्क पहनने, सोशल डिस्टैसिंग, हाथों को बार बार धोने, स्वस्थ भेजन करने, नियमित व्यायाम करने, अध्यात्मिक अनुकूलन आदि जैसे बचाव संबंधी उपायों को बढ़ावा देने के लिए मीडिया द्वारा शुरू किए गए विशेष संवाद अभियानों को भी संदर्भित किया।
श्री नायडु ने खुद के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने के बावजूद, सूचना एवं दृष्टिकोणों के साथ लोगों को सूचित करने के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया की भावना की सराहना की। उन्होंने कहा, ‘ प्रतिबंधों के कारण, अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने के कारण, विज्ञापन के राजस्व सूख गए हैं। परिचालनों की मात्रा को समायोजित किया गया तथा बड़ी संख्या में मीडिया से जुड़े व्यक्तियों के वेतन में कटौती हुई। लेकिन, कुल मिलाकर, मीडिया ने लोगों को अधिकारसंपन्न बनाने का मिशन उस वक्त जारी रखा, जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। ‘ उन्होंने प्रिंट मीडिया की उस विशिष्ट समस्या का भी उल्लेख किया जब उसकी हार्ड कॉपी को वितरित नहीं किया जा सका क्योंकि उन्हें वायरस को प्रसारित करने वाले के रूप में दर्शाया गया।
प्रिंट मीडिया के बारे में श्री नायडु ने कहा कि ‘ मैं प्रिंट मीडिया का अधिक निकटता से अनुसरण करता हूं। कोरोना वायरस तथा महामारी के फैलने के लिए जितनी जगह इसमें उपलब्ध कराई गई, यह यु़द्ध के समय की रिपोर्टिंग से भी अधिक थी। नवोन्मेषी उत्पाद स्थानों को लागू किया गया है और सूचना के भूखे पाठकों को लगातार जानकारी प्रदान की जाती रही। रोग एवं इसके प्रभाव के विभिन्न पहलुओं का व्यापक विश्लेषण अभी भी मिशन मोड में जारी है। ‘
बहरहाल, श्री नायडु ने टेलीविजन के कुछ वर्गों के संबंध में सावधानी बरतने की सलाह दी और नोट किया कि उन्हें इससे बचना चाहिए था और अब के बाद भी स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि दहशत फैलाने से पहले से ही चिंतित लोगों के दिमाग और भी अस्थिर हो जाएंगे। उन्होंने इंटरनेट का उपयोग करने वालों से आग्रह किया कि वे वायरस, रोग एवं इसके उपचार के बारे में केवल प्रमाणित सूचना का ही प्रसार करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करें बजाये भ्रामक काल्पनिक खबरों को प्रचारित करने के।
उन्होंने नोट किया कि मास्क पहने हुए रिपोर्टरों ने अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयों की जमीनी हकीकत को उजागर किया और इस प्रक्रिया में उनमें से कुछ को संक्रमण भी हो गया तथा उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा। मीडिया से जुड़े लोगों को महामारी की जानकारी देने में उनके समर्पण के लिए ‘अग्रिम पंक्ति का योद्धा‘ करार देते हुए, श्री नायडु ने ऐसे बहादुर मीडियाकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके शोकसंतप्त परिवारों के प्रति सहानुभूति प्रकट की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मीडिया द्वारा निभाई गई सक्रिय एवं मिशनरी भूमिका के बिना, महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक शून्यता रही होती। मीडिया की एजेंडा निर्धारित करने वाली भूमिका के बारे में श्री नायडु ने कहा कि ‘ महामारी के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करने एवं तथ्यात्मक तथा विश्लेषणात्मक तरीके से इसका दस्तावेजीकरण करने के द्वारा मीडिया ने हमारे संसदीय संस्थानों में महामारी के प्रबंधन पर बहसों एवं चर्चाओं के लिए एजेंडा निर्धारित किया है। मीडिया रिपोर्ट संगत मुद्वों को उठाने के लिए संदर्भ के प्रमुख स्रोत होंगे। ‘ मीडिया में कुछ टिप्पणियों की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि महामारी से निपटने की संसदीय जांच प्रगति पर है।
श्री नायडु ने कहा कि ‘ घरेलू हवाई यात्रा पर प्रतिबंधों में ढील देने एवं रेल यात्रा पर कुछ कम मात्रा में ढील देने के साथ, दोनों सदनों की विभाग संबंधित स्थायी समितियों ने इस महीने अपनी बैठक फिर से आरंभ कर दी है। उन्होंने महामारी के प्रबंधन एवं परिणाम के विभिन्न पहलुओं की जांच शुरू कर दी है। वास्तव में, इसका अर्थ यह हुआ कि महामारी से निपटने की आवश्यक संसदीय जांच देश के शीर्ष व्यवस्थापिका संभा की अंतिम बैठक से लगभग साढ़े तीन महीने में आरंभ हो गई। देश में व्याप्त स्थिति को देखते हुए कोई भी छोटी समय अवधि संभव नहीं हो सकती थी। ‘
( गृह सचिव द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने पर गृह मामले की समिति ने इस हफ्ते महामारी के प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की। गृह मंत्रालय महामारी से निपटने के लिए नोडल मंत्रालय है। पिछले सप्ताह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समिति ने महामारी के परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान एवं वैज्ञानिक तैयारी की समीक्षा की। प्रत्येक बैठक तीन घंटे से अधिक चली।)
श्री नायडु ने बताया कि संसद के पिछले बजट सत्र को अपने कार्यक्रम से कुछ दिन पहले ही 23 मार्च को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर देना पड़ा था क्योंकि सांसद संकट की इस घड़ी में लोगों के साथ रहना चाहते थे और संसद की अंतिम बैठक को पिछली बैठक के छह महीने के भीतर आयोजित करने की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि वह और लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला अभी तक कई बार कोरोना प्रेरित सोशल डिस्टैंसिंग के परिप्रेक्ष्य में संसदीय समितियों की बैठकों तथा संसद के मानसून सत्र की बैठकों को सक्षम बनाने पर चर्चा कर चुके हैं क्योंकि सीटिंग की लाजिस्टिक्स और कार्यवाहियों में सांसदों की सहभागिता के लिए विस्तृत विचार विमर्श एवं योजना निर्माण की आवश्यकता होती है।
श्री नायडु ने यह भी कहा कि सरकार ने अभी हाल में संसद के मानसून सत्र के आयोजन पर दोनों पीठासीन अधिकारियों से संपर्क किया है।
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