पर्दे पर किरदारों को गढ़ना: एका लखानी ने इफ्फी में फिल्मों के परिधानों के जादू को उजागर किया
पोन्नियिन सेलवन से ओके जानू तक कॉस्ट्यूम डिज़ाइन का एक सिनेमाई सफ़र
एका ने परिधानों के ज़रिए नंदिनी, तारा और रॉकी को डिकोड करके दर्शकों का मन मोह लिया
गोवा में जारी इफ्फी में, 'वेशभूषा और चरित्र निर्माण: सिनेमा के ट्रेंडसेटर' शीर्षक वाला साक्षात्कार सत्र एक मास्टरक्लास में तब्दील हो गया, जिसमें इस बात पर चर्चा की गई कि कैसे परिधान महज़ पात्रों को ही नहीं सजाते, बल्कि खामोशी से उनकी कहानियों को आकार देते है, उन्हें दिशा देते है और कभी-कभी तो उन्हें नए शब्दों में बयां करते हैं। मशहूर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर एका लखानी के और फिल्म निर्माता जयप्रद देसाई के इस सत्र में दर्शकों को पर्दे के पीछे की उस दुनिया में जाने का एक अनूठा अवसर मिला, जहाँ परिधान और फिल्म निर्माण का मिलन होता है।
सत्र की शुरुआत करते हुए, जयप्रद ने एक साधारण सी सच्चाई बताकर माहौल तैयार किया: "किसी पात्र के बोलने से पहले, उसकी वेशभूषा बहुत कुछ कह चुकी होती है।" और इसी के साथ एका ने अपने 15 साल के सफ़र का ज़िक्र किया, जो हाई-फ़ैशन रनवे के सपनों से शुरू हुआ था, लेकिन आखिरकार सिनेमा की शोर, रंग और रचनात्मक उहापोह में बदल गया।
मणिरत्नम का जादू

एका ने मणिरत्नम की फिल्म 'रावण' के सेट पर सब्यसाची मुखर्जी के साथ इंटर्नशिप करते हुए अपने शुरुआती दिनों को याद किया। उन्होंने कहा, "मुझे लगता था कि फ़ैशन का मतलब सुंदर कपड़े बनाना है, लेकिन रावण ने मुझे सिखाया कि सुंदरता भावनाओं के साथ आती है।" सब्यसाची के साथ, उन्होंने सीखा कि कैसे रंग एक फ्रेम में समा जाते हैं, और कैसे कॉस्ट्यूम डिज़ाइन महज़ एक विभाग नहीं, बल्कि एक भाषा है। 'रावण' में उनके काम ने सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को प्रभावित किया, जिन्होंने उन्हें सिर्फ़ 23 साल की उम्र में 'उरुमी' फ़िल्म ऑफर की थी। उन्होंने कहा, "असली सफ़र यहीं से शुरू हुआ।"
एका की रचनात्मक प्रक्रिया, निर्देशक के साथ लंबी बातचीत से शुरू होती है, जिसके बाद स्क्रिप्ट पर गहराई से विचार किया जाता है। उन्होंने बताया कि मणिरत्नम जैसे फिल्म निर्माताओं के साथ, सहयोग और भी पहले शुरू हो जाता है, कभी-कभी लेखन के बीच में ही इस पर काम होने लगता है।

उन्होंने कहा, "मणि सर मुझे स्क्रिप्टिंग के चरण में शामिल करते हैं। जब मैं समझ जाती हूँ कि कोई किरदार कैसे कपड़े पहनता है, तो वे उस किरदार के व्यवहार के बारे में ज़्यादा समझ पाते हैं।" उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किस तरह से कहानी के विकल्पों को आकार दे सकता है।
"सिनेमा टीमवर्क है," उन्होंने ज़ोर देकर कहा। "मैं सबसे खूबसूरत पोशाक बनाने की कोशिश नहीं कर रही हूँ। मैं सही पोशाक बनाने की कोशिश कर रही हूँ, जो अभिनेता को सहजता से किरदार में ढलने दे।" उनकी कार्यप्रणाली में संदर्भों की खोज, विजुअल जर्नलिंग, विस्तृत नोट्स बनाना और अपनी टीम के साथ बेहतर सहयोग शामिल है।
पोन्नियिन सेल्वन: परिधानों में लिखा इतिहास
पोन्नियिन सेल्वन के लिए, मणिरत्नम ने एका को एक भी डिज़ाइन बनाने से पहले तंजावुर भेजा था। यह यात्रा उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि एका ने मंदिर के कांस्य, मूर्तियों और रूपांकनों के ज़रिए चोल युग की भव्यता को गहराई से समझा, जिसने आखिरकार फिल्म के विजुअल की दुनिया को आकार दिया।

फिर उन्होंने किरदारों के रूप-रंग को कई हिस्सों में बांटा और सत्र को एक छोटे फिल्म स्कूल में बदल दिया: उन्होंने बताया कि नंदिनी को मोह और शक्ति की भाषा में रचा गया था, उसकी वेशभूषा उसके चुंबकीय आकर्षण और शक्ति की भूख को दर्शाती है। दूसरी ओर, कुंदवई "शक्ति के साथ जन्मी" थी, और उसका रूप उस सहज अधिकार को दर्शाता है: शांत और संयमित। आदित्य करिकालन का रंग-रूप उनकी आंतरिक उथल-पुथल से प्रेरित था। उनका क्रोध, पीड़ा और भावनात्मक बेचैनी गहरे लाल और काले रंगों में दर्शाई गई। इसके उलट, अरुलमोझी वर्मन की लोगों के शांत, प्रिय नेता के रूप में कल्पना की गई थी, जिससे एका ने उन्हें शांत आइवरी और कोमल सुनहरे रंग पहनाए, जो उनकी स्पष्टता, करुणा और शांत कुलीनता को दर्शाते थे।
दो तारे, दो दुनिया और संजू का पुनर्जन्म
एका ने यह भी बताया कि कैसे एक ही किरदार, तारा, को 'ओके कनमनी' और 'ओके जानू' में दो बिल्कुल अलग परिधानों की ज़रुरत पड़ी। उन्होंने बताया कि दर्शकों की संवेदनशीलता किस तरह परिधानों के चुनाव को प्रभावित करती है, "तमिल में, तारा को लोगों से जुड़ाव महसूस कराना था। हिंदी में, उसे महत्वाकांक्षी होना था।" उन्होंने श्रद्धा कपूर की अब तक की सबसे चर्चित 'हम्मा हम्मा' शॉर्ट्स को कुशन कवर बदलने से आखिरी समय में बदलने का एक मज़ेदार किस्सा भी साझा किया।
'संजू' पर काम करते वक्त, एका ने ज़्यादा शोध-आधारित नज़रिया अपनाया और लगभग पूरी सटीकता के साथ संदर्भों को जोड़ा। उन्होंने किरदार के लुक को एक साथ ढालने में मदद के लिए मेकअप और हेयर टीम, प्रोडक्शन डिज़ाइनरों और फ़ोटोग्राफ़रों के निर्देशकों (डीओपी) को श्रेय दिया। उन्होंने कहा, "डीओपी एक कस्टमर के के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। वे आपको बता देंगे कि कोई रंग स्क्रीन पर आप पर अच्छा लगेगा या नहीं।”
एका ने 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' का उदाहरण देते हुए अपनी बात खत्म की, जहाँ रॉकी का बदलता परिधान, उसके व्यक्तित्व के विकास को दर्शाता है। दर्शकों को रॉकी के लुक को समझने में बहुत मज़ा आया और उन्हें यह भी पता चला कि वेशभूषा किसी किरदार को कैसे परिभाषित करती है। सत्र के खत्म होते होते यह साफ हो गया कि वेशभूषा महज़ एक दृश्य सजावट से कहीं बढ़कर है, वे कहानी कहने के साधन हैं जो किरदारों में जान फूंकते हैं। एका लखानी की दुनिया में, हर सिलाई का एक मकसद होता है और हर रंग का एक अर्थ होता है।
इफ्फी के बारे में
1952 में शुरू हुआ भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े सिनेमा उत्सव के रूप में आज भी प्रतिष्ठित स्थान रखता है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार और गोवा मनोरंजन सोसायटी (ईएसजी), गोवा सरकार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, यह महोत्सव एक वैश्विक सिनेमाई शक्ति के रूप में विकसित हुआ है, जहाँ पुनर्स्थापित क्लासिक फ़िल्मों का साहसिक प्रयोगों के साथ मिलना होता है, और दिग्गज कलाकार, पहली बार आने वाले हुनरमंद कलाकारों के साथ मंच साझा करते हैं। इफ्फी को वास्तव में शानदार बनाने वाला इसका शानदार सिनेमा की विधाओं का सम्मिश्रण है- अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शनियाँ, मास्टरक्लास, श्रद्धांजलि और ऊर्जावान वेव्स फिल्म बाज़ार, जहाँ विचार, सौदे और सहयोग उड़ान भरते हैं। 20 से 28 नवंबर तक गोवा की शानदार झिलमिलाते तटीय इलाके में आयोजित, 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवाचारों और आवाज़ों की एक चकाचौंध भरी श्रृंखला का वादा करता है, जहां विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक गहन उत्सव देखने को मिलता है।
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