Prime Minister's Office
Text of PM addresses the International Conference on Gyan Bharatam in New Delhi
Posted On:
12 SEP 2025 9:44PM by PIB Delhi
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्रीमान गजेन्द्र सिंह शेखावत जी, संस्कृति राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह जी, सभी विद्वतजन, देवियों एवं सज्जनों!
आज विज्ञान भवन, भारत के स्वर्णिम अतीत के पुनर्जागरण का साक्षी बन रहा है। कुछ ही दिन पहले, मैंने ज्ञान भारतम् मिशन की घोषणा की थी। और आज इतने कम समय में ही हम ज्ञान भारतम् इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर रहे हैं। अभी इससे जुड़ा पोर्टल भी लॉन्च किया गया है। ये एक सरकारी या academic event नहीं है, ज्ञान भारतम् मिशन, भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना का उद्घोष बनने जा रहा है। हजारों पीढ़ियों का चिंतन-मनन, भारत के महान ऋषियों-आचार्यों और विद्वानों का बोध और शोध, हमारी ज्ञान परम्पराएँ, हमारी वैज्ञानिक धरोहरें, ज्ञान भारतम् मिशन के जरिए हम उन्हें digitize करने जा रहे हैं। मैं इस मिशन के लिए सभी देशवासियों को बधाई देता हूँ। मैं ज्ञान भारतम् की पूरी टीम को, और संस्कृति मंत्रालय को भी शुभकामनाएँ देता हूँ।
साथियों,
जब हम किसी manuscript को देखते हैं, तो वो अनुभव किसी टाइम ट्रैवल जैसा होता है। मन में ये विचार भी आता है कि आज और पहले की परिस्थितियों में कितना जमीन-आसमां का अंतर था। आज हम की-बोर्ड की मदद से इतना कुछ लिख लेते हैं, डिलीट और करेक्शन का ऑप्शन भी होता है, हम प्रिंटर्स के जरिए एक पेज की हजारों कॉपीज़ बना लेते हैं, लेकिन, सैकड़ों साल पहले की उस दुनिया की कल्पना करिए, तब ऐसे आधुनिक मटैरियल resources नहीं थे, हमारे पूर्वजों को उस समय बौद्धिक resources पर ही निर्भर रहना पड़ता था। एक-एक अक्षर लिखते समय कितना ध्यान देना होता था, एक-एक ग्रंथ के लिए इतनी मेहनत लगती थी, और उस समय भी भारत के लोगों ने विश्व के बड़े-बड़े पुस्तकालय बना दिए थे, libraries बना दी थीं। आज भी भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा manuscript संग्रह है। करीब 1 करोड़ manuscripts हमारे पास हैं। और 1 करोड़ आंकड़ा कम नहीं है।
साथियों,
इतिहास के क्रूर थपेड़ों में लाखों manuscripts जला दी गईं, लुप्त हो गईं, लेकिन जो बची हैं, वो इस बात की साक्षी हैं कि ज्ञान, विज्ञान, पठन, पाठन के लिए हमारे पूर्वजों की निष्ठा कितनी गहरी थी, कितनी व्यापक थी। भोजपत्र और ताड़पत्र से बने नाजुक ग्रंथ, ताम्रपत्र पर लिखे गए शब्दों में metal corrosion का खतरा, लेकिन हमारे पूर्वजों ने शब्दों को ईश्वर मानकर, ‘अक्षर ब्रह्म भाव’ से उनकी सेवा की। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार उन पोथियों और पाण्डुलिपियों को सहेजते रहे। ज्ञान के प्रति अपार श्रद्धा, आने वाली पीढ़ियों की चिंता, समाज के प्रति ज़िम्मेदारी, देश के प्रति समर्पण का भाव, इससे बड़ा उदाहरण कहाँ मिलेगा।
साथियों,
भारत की ज्ञान परंपरा आज तक इतनी समृद्ध है, क्योंकि इसकी नींव 4 मुख्य पिलर्स पर आधारित हैं। पहला- Preservation, दूसरा- Innovation, तीसरा- Addition और चौथा- Adaptation.
साथियों,
अगर मैं Preservation की बात करूं, तो आप जानते हैं हमारे यहाँ सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों को भारतीय संस्कृति का आधार माना गया है, वेद सर्वोपरि हैं। पहले वेदों को ‘श्रुति’ के आधार पर अगली पीढ़ी को दिया जाता था। और हजारों वर्षों तक, वेदों को बिना किसी त्रुटि के authenticity के साथ preserve किया गया। हमारी इस परंपरा का दूसरा पिलर है- इनोवेशन। हमने आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और metallurgy में लगातार इनोवेट किया है। हर पीढ़ी पहले से आगे बढ़ी, और उसने पुराने ज्ञान को और वैज्ञानिक बनाया। सूर्य सिद्धान्त और वराहामिहिर संहिता जैसे ग्रंथ लगातार लिखे जा रहे थे, और नया ज्ञान उसमें जुड़ता रहा है। हमारे संरक्षण का तीसरा पिलर है- addition यानी, हर पीढ़ी पुराना ज्ञान संरक्षित करने के साथ-साथ नया contribute भी करती थी। जैसे कि मूल वाल्मीकि रामायण के बाद कई रामायण लिखी गईं। रामचरितमानस जैसे ग्रंथ हमें मिले। वेदों और उपनिषदों पर भाष्य लिखे गए। हमारे आचार्यों ने द्वैत, अद्वैत जैसी व्याख्याएँ दीं।
साथियों,
इसी तरह, चौथा पिलर है- adaptation. यानी, हमने समय के साथ self-introspection भी किया, और जरूरत के अनुसार खुद को बदला भी। हमने Discussions पर जोर दिया, शास्त्रार्थ की परंपरा का पालन किया। तब समाज ने अप्रासंगिक हो चुके विचारों का त्याग किया, और नए विचारों को स्वीकार किया। मध्यकाल में जब समाज में कई बुराइयाँ आईं, तो ऐसी विभूतियाँ भी आईं, जिन्होंने समाज की चेतना को जागृत रखा और विरासत को सहेजा, उसे संरक्षित किया।
साथियों,
राष्ट्रों की आधुनिक अवधारणों से अलग, भारत की एक सांस्कृतिक पहचान है, अपनी चेतना है, अपनी आत्मा है। भारत का इतिहास सिर्फ सल्तनतों की जीत-हार का नहीं है। हमारे यहाँ रियासतों और राज्यों के भूगोल बदलते रहे, लेकिन हिमालय से हिन्द महासागर तक, भारत अक्षुण्ण रहा। क्योंकि, भारत स्वयं में एक जीवंत प्रवाह है, जिसका निर्माण उसके विचारों से, आदर्शों से और मूल्यों से हुआ है। भारत की प्राचीन पाण्डुलिपियों में, manuscripts में, हमें भारत के निरंतर प्रवाह की रेखाएँ देखने को मिलती हैं। ये पांडुलिपियाँ हमारी विविधता में एकता की घोषणापत्र भी है, उद्घोषपत्र भी हैं। हमारे देश में करीब 80 भाषाओं में manuscripts मौजूद हैं। संस्कृत, प्राकृत, असमिया, बांग्ला, कन्नड़ा, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मराठी, ऐसी कितनी ही भाषाओं में ज्ञान का अगाध सागर हमारे यहां मौजूद है। गिलगिट manuscripts हमें कश्मीर का प्रामाणिक इतिहास बताती हैं। मैं अभी जो छोटा सा जो एग्जिबिशन रखा है वो देखने गया था, वहां इसका विस्तार से वर्णन भी है, और उसके चित्र भी मौजूद हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र की पाण्डुलिपि में हमें राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में भारत की समझ का पता चलता है। आचार्य भद्रबाहु के कल्पसूत्र की पाण्डुलिपि में जैन धर्म का प्राचीन ज्ञान सुरक्षित है। सारनाथ की manuscripts में भगवान बुद्ध का ज्ञान उपलब्ध है। रसमंजरी और गीतगोविंद जैसी manuscripts ने भक्ति, सौन्दर्य और साहित्य के विविध रंगों को सँजो करके रखा है।
साथियों,
भारत की इन manuscripts में समूची मानवता की विकास यात्रा के फुटप्रिंट्स हैं। इन पाण्डुलिपियों में philosophy भी है, साइंस भी है। इनमें मेडिसिन भी है, मेटाफ़िज़िक्स भी है। इनमें आर्ट भी है, astronomy भी है, और architecture भी है। आप कितने ही उदाहरण लीजिये। Mathematics से लेकर के बाइनरी बेस्ड कंप्यूटर साइंस तक, पूरी आधुनिक साइंस की बुनियाद ज़ीरो पर टिकी है। आप सब जानते हैं, शून्य की ये खोज भारत में हुई थी। और, बख्शाली पाण्डुलिपि में शून्य के उस प्राचीन प्रयोग और mathematical formulas के प्रमाण आज भी सुरक्षित हैं। यशोमित्र की बोवर पाण्डुलिपि हमें सदियों पुराने मेडिकल साइंस के बारे में बताती है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों ने आयुर्वेद के ज्ञान को आज तक सुरक्षित रखा है। सुल्व सूत्र में हमें प्राचीन geometrical knowledge मिलती है। कृषि पाराशर में एग्रिकल्चर के traditional knowledge की जानकारी मिलती है। नाट्यशास्त्र जैसे ग्रन्थों की manuscripts से हमें मानव के भावनात्मक विकास की यात्रा को समझने में मदद मिलती है।
साथियों,
हर देश अपनी ऐतिहासिक चीजों को civilizational asset और greatness के तौर पर विश्व के सामने पेश करता है। दुनिया के देशों के पास कहीं कोई manuscript, कोई artifact होता है तो वो उसे नेशनल treasure के रूप में सहेजते हैं। और भारत के पास तो manuscripts का इतना बड़ा खजाना है, ये देश का गौरव हैं। अभी कुछ समय पहले मैं कुवैत गया था, तो मेरे प्रयास के दरमियां मेरी कोशिश रहती है कि वहां कोई 4-6 influencers हो, और मेरे पास समय हो तो, कुछ समय मैं उनके साथ बिताता हूं, उनकी सोच समझने का प्रयास करता हूं। मुझे कुवैत में एक सज्जन मिले, जिनके पास सदियों पहले भारत से समुद्री मार्ग से व्यापार कैसे होता था, उस पर इतने डॉक्यूमेंट्स उनके पास है, और उन्होंने इतना संग्रह किया है, और वो इतने गौरव, यानी बड़े गौरव के साथ कुछ लेकर के मेरे पास आए थे, मैंने देखा, यानी ऐसा क्या-क्या होगा, कहां-कहां होगा, हमें इन सबको संजोना है। अब भारत अपने इस गौरव को, गर्व के साथ विश्व के सामने प्रस्तुत करने जा रहा है। अभी यहां कहा गया कि दुनिया में जितने manuscripts हैं हमने खोज करके लाना चाहिए और फिर धीरे से कहा, प्रधानमंत्री जी ने करना चाहिए। लेकिन आपको पता है कि हमारे से यहां चोरी की गई जो मूर्तियां हैं, पहले बहुत कम मात्रा में आई थीं, आज सैकड़ों की संख्या में पुरानी-पुरानी मूर्तियां वापस आ रही हैं। वापिस इसलिए नहीं आ रही है कि वो मेरा सीना देख करके तय करके देने आ रहे हैं, ऐसा नहीं है। उनको भरोसा है कि ऐसे हाथ में सुपुर्द करेंगे, तो उसका गौरव बढ़ाने का पूरा प्रयास होगा। आज विश्व में भारत ने ये विश्वास पैदा किया है, लोगों को लगता है, यह सही जगह है। जब मैं मंगोलिया गया तो वहां बौद्ध भिक्षुओं से मैं संवाद कर रहा था, तो मैंने देखा उनके पास काफी manuscripts थीं, तो मैंने उनको रिक्वेस्ट किया कि मैं इसके लिए कुछ काम कर सकता हूं, उन सारी manuscripts को लाए, उसको digitalize किया और उनको फिर वापस दिया, अब ये वो उनका खजाना बन गया है।
साथियों,
ज्ञान भारतम् मिशन इस महाअभियान का ही एक अहम हिस्सा है। देश की कितनी ही संस्थाएं इस प्रयास में जनभागीदारी की भावना से सरकार के साथ काम कर रही हैं। काशी नागरी प्रचारणी सभा, कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी, उदयपुर की ‘धरोहर’, गुजरात के कोबा में आचार्य श्री कैलाशसूरी ज्ञानमंदिर, हरिद्वार का पतंजलि, पुणे का भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, तंजावुर की सरस्वती महल लाइब्रेरी, ऐसी सैकड़ों संस्थाओं के सहयोग से अब तक दस लाख से अधिक पांडुलिपियों को digitalize किया जा चुका है। कितने ही देशवासियों ने आगे आकर अपनी पारिवारिक धरोहर को देश के लिए उपलब्ध करवाया है। मैं इन सभी संस्थाओं का, ऐसे सभी देशवासियों का भी धन्यवाद करता हूँ। मैं एक विषय पर जरूर ध्यान देना चाहूंगा, मैं पिछले दिनों कुछ एनिमल लवर से मिला था, क्यों आपको हंसी आ गई? हमारे देश में ऐसे बहुत लोग हैं, और विशेषता ये है कि ये गाय को एनिमल नहीं मानते हैं। तो उनसे बातों-बातों में मैंने उनसे कहा कि हमारे देश में पशुओं की चिकित्सा को लेकर के बहुत कुछ शास्त्रों में पड़ा हुआ है, बहुत सारे manuscripts संभव हैं। जब मैं गुजरात में था, गुजरात के एशियाटिक लायन में तो मेरी एक रुचि थी कि मैं काफी उसमें रुचि देता था। तो ऐसी बातें ढूंढता था कि अगर उन्होंने, अगर ज्यादा शिकार कर लिया और अगर तकलीफ होती है, तो उनको पता होता था कि वो एक पेड़ होता है, उसके फल खाने चाहिए ताकि वोमिटिंग हो सकता है, ये पशु को मालूम था। इसका मतलब जहां पर लायन की बस्तियां हैं, वहां उस प्रकार के, फलों के झाड़ होना जरूरी होता है। अब ये हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है। हमारी कई manuscripts हैं, जिसमें इन सारी बातों को लिखा गया है। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे पास इतना ज्ञान उपलब्ध है, और लिपिबद्ध है, हमें खोजना है, खोज करके उसको आज के संदर्भ में व्याख्यायित करना है।
साथियों,
भारत ने अतीत में कभी भी अपने ज्ञान को पैसे की ताकत से नहीं तौला है। हमारे ऋषियों ने भी कहा है- विद्या-दानमतः परम्। अर्थात्, विद्या सबसे बड़ा दान है। इसीलिए, प्राचीन काल में भारत के लोगों ने मुक्त भाव से manuscripts को दान भी किया है। चीनी यात्री ह्वेन सांग जब भारत आए थे, तो वो अपने साथ साढ़े छह सौ से ज्यादा manuscripts लेकर के गए थे। और मुझे चीन के राष्ट्रपति ने एक बार बताया कि वो मेरे गांव में ज्यादा समय रहे थे, जहां मेरा जन्म हुआ वडनगर में। लेकिन जब यहां से चीन वापस गए, तो वो राष्ट्रपति शी के जन्म स्थान पर रहते थे। तो वो मुझे वहां ले गए अपने गांव और वहां, जहां ह्वेन सांग रहे थे, उस स्थान को मैं देखने के लिए उनके साथ गया, और जो manuscripts थे, वो पूरा विस्तार से मुझे राष्ट्रपति शी ने दिखाया था, और उसमें जो भारत का वर्णन था, उसके कुछ पैराग्राफ थे, जिसको interpreter ने मुझे वहां समझाया। यानी मन को बहुत ही प्रभावित करने वाला, वो एक-एक चीज देखते थे, लग रहा था, क्या खजाना होगा हमारे पास। भारत की कई manuscripts आज भी चीन से जापान भी पहुंची हैं। सातवीं सदी में जापान में उन्हें राष्ट्रीय पूंजी की तरह होर्यूजी Monastery में संरक्षित किया गया। आज भी दुनिया के कितने ही देशों में भारत की प्राचीन manuscripts रखी हुई हैं। ज्ञान भारतम् मिशन के तहत हम ये भी प्रयास करेंगे कि मानवता की ये साझी धरोहर एकजुट हो।
साथियों
हमने G-20 के सांस्कृतिक संवाद के दौरान भी इसकी पहल की थी। जिन देशों के भारत के साथ सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं, हम उन्हें इस अभियान में साथ जोड़ रहे हैं। हमने मंगोलियन कंजूर के reprinted volumes को मंगोलिया के एंबेसडर को गिफ्ट किया था। 2022 में, ये 108 volumes मंगोलिया और रूस की monasteries में भी distribute किए गए थे। हमने थाईलैंड और वियतनाम की यूनिवर्सिटीज़ के साथ MoUs किए हैं। हम वहाँ के scholars को पुरानी manuscripts को digitize करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। इन प्रयासों के चलते, पाली, लान्ना और चाम भाषाओं के कई manuscripts को digitize किया गया है। ज्ञान भारतम् मिशन के जरिए हम इन प्रयासों को और विस्तार देंगे।
साथियों,
ज्ञान भारतम् मिशन के जरिए एक और बड़ा चैलेंज भी एड्रैस होगा। भारत के traditional knowledge system से जुड़ी अनेक जानकारियां, जो अहम, और जो हम सदियों से इस्तेमाल करते रहे हैं, उन्हें दूसरों द्वारा कॉपी करके पेटेंट करा लिया जाता है। इस piracy को रोकना भी आवश्यक है। डिजिटल manuscripts के जरिए इन प्रयासों को और गति मिलेगी, और intellectual piracy पर लगाम लगेगी। दुनिया को भी तमाम विषयों पर प्रामाणिकता के साथ मौलिक स्रोतों का पता चलेगा।
साथियों,
ज्ञान भारतम् मिशन का एक और बहुत अहम पक्ष है। इसके लिए, हम रिसर्च और इनोवेशन के कितने ही नए domain खोल रहे हैं। आज दुनिया में करीब ढाई ट्रिलियन डॉलर की कल्चरल और क्रिएटिव इंडस्ट्री है। Digitised manuscripts इस इंडस्ट्री की वैल्यू चेन्स को फीड करेंगी। ये करोड़ों manuscripts, इनमें छिपी प्राचीन जानकारी एक बहुत बड़े डेटाबैंक का भी काम करेंगी। इनसे ‘डेटा ड्रिवेन इनोवेशन’ को नया पुश मिलेगा। टेक फील्ड के युवाओं को, उनके लिए इसमें नए अवसर बनेंगे। जैसे-जैसे manuscripts का digitization होगा, academic रिसर्च के लिए नई संभावनाएं बनेंगी।
साथियों,
हमें इन डिजिटाइज्ड manuscripts का अध्ययन करने के लिए नई टेक्नोलॉजी जैसे, AI का उपयोग भी बढ़ाना होगा। मैं इस बात से सहमत हूं जब यहां प्रेजेंटेशन में कहा गया कि भई टैलेंट को या ह्यूमन रिसोर्स को AI रिप्लेस नहीं कर सकती है और हम भी चाहते हैं कि रिप्लेस ना करें, वरना हम नयी, नयी गुलामी के शिकार हो जाएंगे। वो एक सपोर्ट सिस्टम है, हमें मजबूती देती है, हमारी ताकत को बढ़ावा देती है, हमारी गति को बढ़ावा देती है। AI की मदद से इन प्राचीन पांडुलिपियों को अगर गहराई से समझा जा सकता है और उनका विश्लेषण भी किया जा सकता है। अब देखिए वैदिक mathematic, सारे ग्रंथ अवेलेबल नहीं है, जो है अगर AI के माध्यम से हम कोशिश करें, तो संभव है कि कई नये सूत्रों की संभावना है खोजने की। हम खोज सकते हैं। इन manuscripts में मौजूद ज्ञान को दुनिया के सामने कैसे लाया जाए, इसमें भी AI की मदद ली जा सकती है। दूसरी एक समस्या है कि हमारे manuscripts बिखरे पड़े हैं, और अलग-अलग कालखंड में, अलग-अलग प्रकार से प्रस्तुत किए गए हैं। AI का फायदा ये होगा कि इन सबको इकट्ठा किया जा सकता है और उसमें से अमृत निचोड़ने में वो एक बहुत अच्छा सा हमें यंत्र मिल सकता है, कि हम 10 जगह अगर चीजें पड़ी होगी लेकिन AI से उसको एक साथ लाकर के देख सकते हैं। हम उसका...हो सकता है जैसे प्रारंभ में ही प्रेजेंटेशन में आया कि एक ही प्रकार के शब्दों का कई उपयोग है, हो सकता है कि उनको एक बार चलिए 100 क्वेश्चन बन जाएंगे, तो सोल्व करना, आज लाखों क्वेश्चन में हम उलझे पड़े हैं, 100 तक तो ले आएंगे। हो सकता है फिर हम मानव शक्ति जुड़ जाएगी तो उसका परिणाम ले आएगी, लेकिन ऐसी कई कठिनाइयां भी हैं, लेकिन रास्ते भी हैं।
साथियों,
मैं देश के सभी युवाओं से आवाहन करता हूं, आप आगे आकर इस अभियान से जुड़िए। और मुझे अभी बता रहे थे मंत्री जी कि कल से आज तक जो लोग इसमें हिस्सा ले रहे हैं, 70% लोग युवा हैं। मैं समझता हूं कि ये सबसे बड़ी इसकी सफलता की निशानी है। अगर युवाओं ने इसमें रुचि लेना शुरू किया, तो ये मैं पक्का मानता हूं कि हम बहुत तेजी से सफल होकर रहेंगे। हम कैसे टेक्नोलॉजी के जरिए अतीत को explore कर सकते हैं, हम कैसे इस ज्ञान को evidence based parameters पर मानवता के लिए सुलभ बना सकते हैं, हमें इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। हमारी यूनिवर्सिटीज़ को, हमारे institutes को भी इसके लिए नए initiatives लेने चाहिए। आज पूरा देश स्वदेशी की भावना और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा है। ये अभियान उसका भी एक विस्तार है। हमें अपनी धरोहरों को अपने सामर्थ्य को, यानी सामर्थ्य का पर्याय बनाना है। मुझे विश्वास है, ज्ञान भारतम मिशन से भविष्य का एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। मैं जानता हूं कि ये ऐसे विषय होते हैं कि जिसमें कोई ग्लैमर नहीं होती है, कोई चमक-धमक नहीं होती है। लेकिन इसका सामर्थ्य इतना है कि जो सदियों तक किसी को हिला नहीं पाता है, इस सामर्थ्य के साथ जुड़ना है। इसी विश्वास के साथ आप सभी को एक बार बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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MJPS/ST/RK
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