प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवकार महामंत्र दिवस का उद्घाटन किया
नवकार महामंत्र सिर्फ एक मंत्र नहीं है, यह हमारी आस्था का मूल है: प्रधानमंत्री
नवकार महामंत्र विनम्रता, शांति और सार्वभौमिक सद्भाव का प्रतीक है: प्रधानमंत्री
पंच परमेष्ठी की वंदना के साथ नवकार महामंत्र सही ज्ञान, धारणा और आचरण एवं मोक्ष की ओर ले जाने वाले मार्ग का प्रतीक है: प्रधानमंत्री
जैन साहित्य भारत के बौद्धिक गौरव का आधार रहा है: प्रधानमंत्री
जलवायु परिवर्तन आज का सबसे बड़ा संकट है और इसका समाधान एक सुव्यवस्थित जीवन शैली है, जिसका जैन समुदाय सदियों से पालन करता आ रहा है और यह भारत के मिशन लाइफ के अनुरूप है: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री ने नवकार महामंत्र दिवस पर 9 संकल्प प्रस्तावित किए
Posted On:
09 APR 2025 11:06AM by PIB Delhi
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में नवकार महामंत्र दिवस का उद्घाटन करते हुए इस कार्यक्रम में सहभागिता की। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्यों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने नवकार मंत्र के गहन आध्यात्मिक अनुभव साझा करते हुए मन में शांति एवं स्थिरता लाने की इसकी क्षमता पर चर्चा की। उन्होंने शांति की अद्वितीय भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह शब्दों और विचारों से परे है और मन एवं चेतना के भीतर गहराई से गूंजती है। श्री मोदी ने नवकार मंत्र के महत्व को रेखांकित किया और इसके पवित्र छंदों का पाठ करते हुए मंत्र को ऊर्जा का एकीकृत प्रवाह बताया। उन्होंने कहा कि यह स्थिरता, समभाव और चेतना एवं आंतरिक प्रकाश की सामंजस्यपूर्ण लय का प्रतीक है। अपने व्यक्तिगत अनुभव पर विचार व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि कैसे वे अपने भीतर नवकार मंत्र की आध्यात्मिक शक्ति को महसूस करते रहते हैं। उन्होंने कई वर्ष पहले बेंगलुरु में इसी तरह के सामूहिक जाप कार्यक्रम की स्मृति को साझा किया जिसने उनके जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ी। प्रधानमंत्री ने देश और विदेश में लाखों पुण्य आत्माओं के एक एकीकृत चेतना में एक साथ आने के अद्वितीय अनुभव का भी उल्लेख किया। उन्होंने सामूहिक ऊर्जा और समन्वित शब्दों पर चर्चा करते हुए कहा कि यह वास्तव में असाधारण और अभूतपूर्व है।
गुजरात में अपनी मातृभूमि पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां हर गली में जैन धर्म का प्रभाव स्पष्ट है। प्रधानमंत्री ने बताया कि किस प्रकार से उन्हें छोटी उम्र से ही जैन आचार्यों की सुसंगति में रहने का सौभाग्य मिला। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र केवल एक मंत्र नहीं है, बल्कि आस्था का मूल और जीवन का सार है। उन्होंने इसके महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आध्यात्मिकता से परे है, व्यक्तियों और समाज का समान रूप से मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र का हर छंद और यहां तक कि हर शब्दांश भी सार्थक भाव रखता है। उन्होंने कहा कि मंत्र का पाठ करते समय, व्यक्ति पंच परमेष्ठी को नमन करता है और इसी विषय पर विस्तार से चर्चा की। श्री मोदी ने कहा कि अरिहंत, जिन्होंने "केवल ज्ञान" प्राप्त किया है और वह "भव्य जीवों" का मार्गदर्शन करते हैं, 12 दिव्य गुणों को धारण करते हैं, जबकि सिद्ध, जिन्होंने आठ कर्मों से मुक्त होते हुए मोक्ष प्राप्त किया है, और वह आठ शुद्ध गुणों से युक्त हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य महाव्रत का पालन करते हैं और पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करते हैं, जो 36 गुणों को अपनाते हैं, जबकि उपाध्याय मोक्ष मार्ग का ज्ञान देते हैं, जो 25 गुणों से समृद्ध होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि साधु तपस्या के माध्यम से स्वयं को परिष्कृत करते हैं और मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं, जिसमें 27 महान गुण होते हैं। उन्होंने इन सभी पूज्य प्राणियों से जुड़ी आध्यात्मिक गहराई और गुणों पर भी चर्चा की।
श्री मोदी ने कहा कि नवकार मंत्र का पाठ करते समय 108 दिव्य गुणों को नमन किया जाता है और मानवता के कल्याण का स्मरण किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह मंत्र हमें याद दिलाता है कि ज्ञान और कर्म ही जीवन की सच्ची दिशाएं हैं, गुरु मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में हैं और मार्ग अपने भीतर से ही निकलता है। उन्होंने नवकार मंत्र की शिक्षाओं पर बल देते हुए कहा कि यह आत्म-विश्वास और व्यक्ति की स्वयं की यात्रा के शुभारंभ को प्रेरित करती हैं। उन्होंने कहा कि असली शत्रु स्वयं के भीतर है इसलिए नकारात्मक विचार, अविश्वास, शत्रुता और स्वार्थ इन सब पर विजय प्राप्त करना ही वास्तविक विजय है। उन्होंने रेखांकित किया कि जैन धर्म व्यक्तियों को बाहरी दुनिया के बजाय स्वयं पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि आत्म-विजय व्यक्ति को अरिहंत बनाती है। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र एक एक ऐसा मार्ग है जो व्यक्ति को भीतर से शुद्ध करता है और उसे सद्भाव और सद्भावना की ओर ले जाता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि नवकार मंत्र वास्तव में मानव ध्यान, अभ्यास और आत्म-शुद्धि का मंत्र है। पीढ़ियों से चली आ रही अन्य भारतीय मौखिक और शास्त्रीय परंपराओं की तरह इसके वैश्विक परिप्रेक्ष्य और इसकी कालातीत प्रकृति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह पहले मौखिक रूप से फिर शिलालेखों के माध्यम से और अंत में प्राकृत पांडुलिपियों के माध्यम से आज भी मानवता का मार्गदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र, पंच परमेष्ठी की वंदना के साथ-साथ सही ज्ञान, सही धारणा और सही आचरण का प्रतीक है, जो मुक्ति का मार्ग है। पूर्णता की ओर ले जाने वाले जीवन के नौ तत्वों के महत्व को रेखांकित करते हुए श्री मोदी ने भारतीय संस्कृति में 9 अंक के विशेष महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने जैन धर्म में 9 अंक की प्रमुखता के बारे में विस्तार से बताया, नवकार मंत्र, 9 तत्वों और 9 गुणों का उल्लेख किया, साथ ही अन्य परंपराओं जैसे कि 9 कोष, 9 द्वार, 9 ग्रह, दुर्गा के 9 रूप और नवधा भक्ति में इसकी उपस्थिति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मंत्रों का दोहराव चाहे 9 बार हो या 9 के गुणकों में जैसे 27, 54 या 108 - संख्या 9 द्वारा दर्शाई गई पूर्णता का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने समझाया कि संख्या नौ केवल गणित नहीं बल्कि एक दर्शन है, क्योंकि यह पूर्णता का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि पूर्णता प्राप्त करने के बाद, मन और बुद्धि स्थिर हो जाती है और प्रत्येक इच्छा से मुक्त होकर ऊपर उठती है। उन्होंने कहा कि प्रगति के बाद भी, व्यक्ति अपने सार में निहित रहता है और यही नवकार मंत्र का सार है।
नवकार मंत्र के दर्शन का विकसित भारत के दृष्टिकोण से सामंजस्य रखने का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने बयान को दोहराया, जिसमें उन्होंने बल दिया था कि विकसित भारत प्रगति और विरासत दोनों का प्रतीक है एक ऐसा राष्ट्र जो न तो रुकेगा और न ही लड़खड़ाएगा, नई ऊंचाइयों को छुएगा, फिर भी अपनी परंपराओं में निहित रहेगा। उन्होंने कहा कि एक विकसित भारत अपनी संस्कृति पर गर्व करेगा। उन्होंने तीर्थंकरों की शिक्षाओं के संरक्षण पर बल दिया। भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महोत्सव के राष्ट्रव्यापी उत्सव का स्मरण करते हुए, श्री मोदी ने विदेशों से तीर्थंकरों सहित प्राचीन मूर्तियों की वापसी का उल्लेख किया। उन्होंने गर्व के साथ साझा किया कि हाल के वर्षों में 20 से अधिक तीर्थंकरों की मूर्तियां भारत वापस लाई गई हैं। उन्होंने भारत की पहचान को आकार देने में जैन धर्म की अद्वितीय भूमिका का उल्लेख करते हुए इस विरासत को संरक्षित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। नई दिल्ली में नए संसद भवन को लोकतंत्र के मंदिर की संज्ञा देते हुए उन्होंने जैन धर्म के स्पष्ट प्रभाव की ओर संकेत किया। उन्होंने शार्दुल गेट प्रवेश द्वार पर स्थापत्य कला दीर्घा में सम्मेद शिखर के चित्रण, लोकसभा के प्रवेश द्वार पर ऑस्ट्रेलिया से वापिस लाई गई तीर्थंकर की मूर्ति, संविधान दीर्घा की छत पर भगवान महावीर की भव्य पेंटिंग और दक्षिण भवन की दीवार पर सभी 24 तीर्थंकरों के एक साथ चित्रण का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये दर्शन भारत के लोकतंत्र का मार्गदर्शन करते हैं और सही मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने प्राचीन आगम शास्त्रों में निहित जैन धर्म की गहन परिभाषाओं जैसे "वत्थु सहवो धम्मो," "चरितं खलु धम्मो," और "जीवना रक्खनम धम्मो" का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने पुनः पुष्टि की कि सरकार इन मूल्यों से प्रेरित होकर "सबका साथ, सबका विकास" के मंत्र के साथ आगे बढ़ रही है।
श्री मोदी ने कहा कि जैन साहित्य भारत की बौद्धिक विरासत का आधार रहा है और इस ज्ञान को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने प्राकृत और पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि इससे जैन साहित्य पर और अधिक शोध हो सकेगा। उन्होंने कहा कि भाषा को संरक्षित करने से ज्ञान का अस्तित्व बना रहता है और भाषा का विस्तार करने से ज्ञान का विकास होता है। प्रधानमंत्री ने भारत में सदियों पुरानी जैन पांडुलिपियों के अस्तित्व का उल्लेख किया और प्रत्येक पृष्ठ को इतिहास का दर्पण और ज्ञान का सागर बताते हुए गहन जैन शिक्षाओं का उद्धरण दिया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों के धीरे-धीरे लुप्त होने पर चिंता व्यक्त करते हुए इस वर्ष के बजट में घोषित "ज्ञान भारतम मिशन" के शुभारंभ का उल्लेख किया। उन्होंने देश भर में लाखों पांडुलिपियों का सर्वेक्षण करने और प्राचीन विरासत को डिजिटल बनाने की योजना साझा की, जिससे प्राचीनता को आधुनिकता से जोड़ा जा सके। उन्होंने इस पहल को 'अमृत संकल्प' बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि नया भारत आध्यात्मिकता के साथ विश्व का मार्गदर्शन करते हुए एआई के माध्यम से संभावनाओं की खोज करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जैन धर्म वैज्ञानिक और संवेदनशील दोनों है, जो अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से युद्ध, आतंकवाद और पर्यावरण संबंधी मुद्दों जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि जैन परंपरा का प्रतीक, जिसमें "परस्परोपग्रहो जीवनम्" कहा जाता है, सभी जीवों की परस्पर निर्भरता पर जोर देता है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, आपसी सद्भाव और शांति के गहन संदेश के रूप में जैन धर्म की अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता, चाहे वह सबसे सूक्ष्म स्तर पर ही क्यों न हो, को रेखांकित किया। उन्होंने जैन धर्म के पांच प्रमुख सिद्धांतों को स्वीकार करते हुए आज के युग में अनेकांतवाद के दर्शन की प्रासंगिकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अनेकांतवाद में विश्वास युद्ध और संघर्ष की स्थितियों को रोकता है, दूसरों की भावनाओं और दृष्टिकोणों की समझ को बढ़ावा देता है। उन्होंने दुनिया को अनेकांतवाद के दर्शन को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
भारत में दुनिया का भरोसा गहरा रहा है, भारत के प्रयास और परिणाम प्रेरणा का स्रोत बन रहे हैं इस बात पर जोर देते हुए श्री मोदी ने कहा कि वैश्विक संस्थाएं अब भारत की ओर देख रही हैं क्योंकि इसकी प्रगति ने दूसरों के लिए मार्ग खोले हैं। उन्होंने इसे जैन दर्शन "परस्परोपग्रहो जीवनम्" से जोड़ा, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि जीवन परस्पर सहयोग पर आधारित है। उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण ने भारत से वैश्विक उम्मीदें बढ़ा दी हैं और राष्ट्र ने अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। जलवायु परिवर्तन के ज्वलंत मुद्दे को संबोधित करते हुए उन्होंने व्यवस्थित जीवन शैली को समाधान के रूप में पहचाना और भारत द्वारा मिशन लाइफ़ की शुरुआत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जैन समुदाय सदियों से सादगी, संयम और स्थिरता के सिद्धांतों पर जी रहा है। जैन अपरिग्रह के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए उन्होंने इन मूल्यों को व्यापक रूप से विस्तारित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सभी से, चाहे वे किसी भी स्थान पर हों, मिशन लाइफ़ के ध्वजवाहक बनने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज की सूचना की दुनिया में ज्ञान प्रचुर मात्रा में है, लेकिन ज्ञान के बिना इसमें गहराई नहीं है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म सही मार्ग तलाशने के लिए ज्ञान और बुद्धि के बीच संतुलन सिखाता है। उन्होंने युवाओं के लिए इस संतुलन के महत्व पर प्रकाश डाला, जहां प्रौद्योगिकी को मानवीय स्पर्श से पूरित किया जाना चाहिए और कौशल को आत्मा के साथ जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नवकार महामंत्र नई पीढ़ी के लिए ज्ञान और दिशा के स्रोत के रूप में कार्य कर सकता है।
श्री मोदी ने सामूहिक नवकार मंत्र के जाप के बाद सभी से नौ संकल्प लेने का आग्रह किया। इनमें पहला संकल्प 'जल संरक्षण' था। उन्होंने बुद्धि सागर महाराज जी के शब्दों को याद किया, जिन्होंने 100 साल पहले भविष्यवाणी की थी कि पानी दुकानों में बेचा जाएगा। उन्होंने पानी की हर बूंद का महत्व समझने और उसे बचाने की आवश्यकता पर बल दिया। दूसरा संकल्प 'एक पेड़ मां के नाम पर लगाने' का है। उन्होंने हाल के महीनों में 100 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए जाने का उल्लेख करते हुए सभी से अपनी मां के नाम पर एक पेड़ लगाने और उनके आशीर्वाद की तरह उसका पालन-पोषण करने का आग्रह किया। उन्होंने इस संबंध में गुजरात में 24 तीर्थंकरों से संबंधित 24 पेड़ लगाने के अपने प्रयासों का भी स्मरण किया, जो कुछ वृक्षों की अनुपलब्धता के कारण पूर्ण नहीं हो सका। हर गली, मोहल्ले और शहर में स्वच्छता के महत्व पर बल देते हुए, सभी से इस मिशन में योगदान देने का आग्रह करते हुए, श्री मोदी ने तीसरे संकल्प के रूप में 'स्वच्छता मिशन' का उल्लेख किया। 'वोकल फॉर लोकल' चौथा संकल्प है, उन्होंने स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देने, उन्हें वैश्विक बनाने और उन वस्तुओं का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिनमें भारतीय मिट्टी और भारतीय श्रमिकों के पसीने की खुशबू है। पांचवां संकल्प 'भारत की खोज' है और उन्होंने लोगों से विदेश यात्रा करने से पहले भारत के विविध राज्यों, संस्कृतियों और क्षेत्रों का पता लगाने का आग्रह किया, देश के हर कोने की विशिष्टता और मूल्य पर बल दिया। 'प्राकृतिक खेती को अपनाना' छठा संकल्प है, प्रधानमंत्री ने जैन सिद्धांत का उल्लेख किया कि एक जीव को दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए और धरती माता को रसायनों से मुक्त करने, किसानों का समर्थन करने और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने सातवें संकल्प के रूप में 'स्वस्थ जीवन शैली' का प्रस्ताव रखा और बाजरा (श्री अन्न) सहित भारतीय आहार परंपराओं की वापसी, तेल की खपत को 10 प्रतिशत कम करने और संयम एवं नियम के माध्यम से स्वास्थ्य बनाए रखने का समर्थन किया। उन्होंने आठवें संकल्प के रूप में 'योग और खेल को शामिल करना' प्रस्तावित किया और शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक शांति सुनिश्चित करने के लिए योग और खेल को घर, काम, स्कूल या पार्क कहीं भी दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने पर जोर दिया। हाथ थामकर या थाली भरकर जैसे भी हो वंचितों की सहायता करने के महत्व का उल्लेख करते हुए उन्होंने सेवा के सच्चे सार के रूप में 'गरीबों की सहायता' को नौवें और अंतिम संकल्प के रूप में प्रस्तावित किया। उन्होंने कहा कि ये संकल्प जैन धर्म के सिद्धांतों और एक स्थायी एवं सामंजस्यपूर्ण भविष्य के दृष्टिकोण से सामंजस्य रखते हैं। उन्होंने कहा कि ये नौ संकल्प व्यक्तियों में नई ऊर्जा भरेंगे और युवा पीढ़ी को एक नई दिशा प्रदान करेंगे। इनके कार्यान्वयन से समाज में शांति, सद्भाव और करुणा को बढ़ावा मिलेगा।
जैन धर्म के सिद्धांत, जिनमें रत्नत्रय, दसलक्षण, सोलह करण और पर्युषण जैसे त्यौहार शामिल हैं, का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि विश्व नवकार मंत्र दिवस वैश्विक स्तर पर सुख, शांति और समृद्धि को निरंतर बढ़ाएगा। उन्होंने इस आयोजन के लिए सभी चार संप्रदायों के एक साथ आने पर संतोष व्यक्त करते हुए इसे एकता का प्रतीक बताते हुए, पूरे देश में एकता के संदेश को फैलाने के महत्व पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जो कोई भी "भारत माता की जय" का नारा लगाता है, उसे गले लगाना चाहिए और उससे जुड़ना चाहिए, क्योंकि यह ऊर्जा एक विकसित भारत की आधारशिला को मजबूत करती है।
प्रधानमंत्री ने देश भर में विभिन्न स्थानों पर प्राप्त हो रहे गुरु भगवंतों के आशीर्वाद के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस वैश्विक आयोजन के लिए पूरे जैन समुदाय को अपना सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने आचार्य भगवंतों, मुनि महाराजों, श्रावक-श्राविकाओं और देश-विदेश से इस आयोजन में भाग लेने वाले सभी लोगों को अपना नमन किया। उन्होंने इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए जेआईटीओ को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी और गुजरात के गृह मंत्री श्री हर्ष संघवी, जेआईटीओ के शीर्ष अध्यक्ष श्री पृथ्वीराज कोठारी, अध्यक्ष श्री विजय भंडारी, अन्य जेआईटीओ अधिकारियों एवं दुनिया भर से आए गणमान्य लोगों की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए इस उल्लेखनीय आयोजन की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं।
पृष्ठभूमि
नवकार महामंत्र दिवस आध्यात्मिक सद्भाव और नैतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण उत्सव है और यह जैन धर्म में सबसे अधिक पूजनीय और सार्वभौमिक मंत्र नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का प्रयास करता है। अहिंसा, विनम्रता और आध्यात्मिक उत्थान के सिद्धांतों पर आधारित यह मंत्र प्रबुद्ध व्यक्तियों के गुणों को श्रद्धांजलि देता है और आंतरिक परिवर्तन को प्रेरित करता है। यह दिवस सभी व्यक्तियों को आत्म-शुद्धि, सहिष्णुता और सामूहिक कल्याण के मूल्यों पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
शांति और एकजुटता के लिए वैश्विक मंत्रोच्चार में 108 से अधिक देशों के लोग शामिल हुए। उन्होंने पवित्र जैन मंत्र के माध्यम से शांति, आध्यात्मिक जागृति और सार्वभौमिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भाग लिया।
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एमजी/केसी/एसएस/एनजे
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