प्रधानमंत्री कार्यालय
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स्वच्छता ही सेवा 2024 कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

Posted On: 02 OCT 2024 7:20PM by PIB Delhi

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान मनोहर लाल जी, सी. आर. पाटिल जी, तोखन साहू जी, राज भूषण जी, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों! 

आज पूज्य बापू और लाल बहादुर शास्त्री जी की जन्म जयंती है। मैं मां भारती के सपूतों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। जिस भारत का सपना, गांधी जी औऱ देश की महान विभूतियों ने देखा था, वो सपना हम सब मिलकर के पूरा करें, आज का दिन हमें ये प्रेरणा देता है। 

साथियों, 

आज 2 अक्टूबर के दिन, मैं कर्तव्यबोध से भी भरा हुआ हूं और उतना ही भावुक भी हूं। आज स्वच्छ भारत मिशन को, उसकी यात्रा को 10 साल के मुकाम पर हम पहुंच चुके हैं। स्वच्छ भारत मिशन की ये यात्रा, करोड़ों भारतवासियों की अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। बीते 10 साल में कोटि-कोटि भारतीयों ने इस मिशन को अपनाया है, अपना मिशन बनाया है, इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाया है। मेरे आज के 10 साल की इस यात्रा के पड़ाव पर, मैं हर देशवासी, हमारे सफाई मित्र, हमारे धर्मगुरू, हमारे खिलाड़ी, हमारे सेलिब्रिटी, NGOs, मीडिया के साथी...सभी की सराहना करता हूं, भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूं। आप सभी ने मिलकर स्वच्छ भारत मिशन को इतना बड़ा जन-आंदोलन बना दिया। मैं राष्ट्रपति जी, उपराष्ट्रपति जी, पूर्व राष्ट्रपति जी, पूर्व उपराष्ट्रपति जी, उन्होंने भी स्वच्छता की ही सेवा इस कार्यक्रम में श्रमदान किया, देश को बहुत बड़ी प्रेरणा दी। मैं आज राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति महोदय का भी ह्दय से अभिनंदन करता हूं, धन्यवाद करता हूं। आज देशभर में स्वच्छता से जुड़े कार्यक्रम हो रहे हैं। लोग अपने गांवों को, शहरों को, मोहल्लों को चॉल हो, फ्लैट्स हो, सोसाइटी हो स्वयं बड़े आग्रह से साफ-सफाई कर रहे हैं। अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्रिगण और दूसरे जनप्रतिनिधि भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनें, इस कार्यक्रम का नेतृत्व किया। बीते पखवाड़े में, मैं इसी पखवाड़े की बात करता हूं, देश भर में करोड़ों लोगों ने स्वच्छता ही सेवा कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। मुझे जानकारी दी गई कि सेवा पखवाड़ा के 15 दिनों में, देशभर में 27 लाख से ज्यादा कार्यक्रम हुए, जिनमें 28 करोड़ से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। निरंतर प्रयास करके ही हम अपने भारत को स्वच्छ बना सकते हैं। मैं सभी का, प्रत्येक भारतीय का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। 

साथियों, 

आज के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर...आज स्वच्छता से जुड़े करीब 10 हज़ार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स की भी शुरुआत हुई है। मिशन अमृत के तहत देश के अनेक शहरों में वॉटर और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे। नमामि गंगे से जुड़ा काम हो या फिर कचरे से बायोगैस पैदा करने वाले गोबरधन प्लांट। ये काम स्वच्छ भारत मिशन को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा, और स्वच्छ भारत मिशन जितना सफल होगा उतना ही हमारा देश ज्यादा चमकेगा। 

साथियों, 

आज से एक हजार साल बाद भी, जब 21वीं सदी के भारत का अध्ययन होगा, तो उसमें स्वच्छ भारत अभियान को जरूर याद किया जाएगा। स्वच्छ भारत इस सदी में दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे सफल जन भागीदारी वाला, जन नेतृत्व वाला, जन-आंदोलन है। इस मिशन ने मुझे जनता-जनार्दन की, ईश्वर रूपी जनता-जनार्दन की साक्षात ऊर्जा के भी दर्शन कराए हैं। मेरे लिए स्वच्छता एक जनशक्ति के साक्षात्कार का पर्व बन गया है। आज मुझे कितना कुछ याद आ रहा है...जब ये अभियान शुरू हुआ...कैसे लाखों-लाख लोग एक साथ सफाई करने के लिए निकल पड़ते थे। शादी-ब्याह से लेकर सार्वजनिक कार्यक्रमों तक, हर जगह स्वच्छता का ही संदेश छा गया...कहीं कोई बूढ़ी मां अपनी बकरियां बेचकर शौचालय बनाने की मुहिम से जुड़ी...किसी ने अपना मंगलसूत्र बेच दिया...तो किसी ने शौचालय बनाने के लिए ज़मीन दान कर दी। कहीं किसी रिटायर्ड टीचर ने अपनी पेंशन दान दे दी...तो कहीं किसी फौजी ने रिटायरमेंट के बाद मिले पैसे स्वच्छता के लिए समर्पित कर दिए। अगर ये दान किसी मंदिर में दिया होता, किसी और समारोह में दिया होता तो शायद अखबारों की हेडलाइन बन जाता और सप्ताह भर उसकी चर्चा होती। लेकिन देश को पता होना चाहिए कि जिनका चेहरा कभी टीवी पर चमका नहीं हैं, जिनका नाम अखबारों की सुर्खियों पर कभी छपा नहीं है, ऐसे लक्ष्यावधि लोगों ने कुछ न कुछ दान करके चाहे वो समय का दान हो या संपत्ति का दान हो इस आंदोलन को एक नई ताकत दी है, ऊर्जा दी है। और ये, ये मेरे देश के उस चरित्र का परिचय करवाता है। 

जब मैंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को छोड़ने की बात की तो करोड़ों लोगों ने जूट के बैग औऱ कपड़े के थैले निकालकर के बाजार में खरीदी करने के लिए जाने की परंपरा शुरू की। अब मैं उन लोगों का भी आभारी हूं वरना मैं प्लास्टिक, सिंगल यूज़ प्लास्टिक बंद करने की बात करता तो हो सकता था, प्लास्टिक इंडस्ट्री वाले आंदोलन करते, भूख हड़ताल पर बैठते...नहीं बैठे, उन्होंने सहयोग किया, आर्थिक नुकसान भोगा। और मैं उन राजनीतिक दलों का भी आभार व्यक्त करता हूं, जो भी शायद निकल पड़ते कि देखिए मोदी ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक बंद की है, हजारों लोगों का रोज़गार खत्म कर दिया, पता नहीं क्या-क्या कर देते। मैं उनका भी आभार मानता हूं कि उनका इस बात पर ध्यान नही गया, हो सकता है इसके बाद चला जाए। 

साथियों, 

इस आंदोलन में हमारा फिल्म जगत भी पीछे नहीं रहा...कमर्शियल हित के बजाय, फिल्म जगत ने स्वच्छता के संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए फिल्में बनाईं। इन 10 सालों में और मुझे तो लगता है कि ये विषय कोई एक बार करने का नहीं है, ये पीढ़ी दर पीढ़ी, हर पल, हर दिन करने का काम है। और ये जब मैं कहता हूं, तो मैं इसको जीता हूं। अब जैसे मन की बात की याद करले आप, आप में से बहुत लोग मन की बात से परिचित हैं, देशवासी परिचित हैं। मन की बात में मैंने करीब-करीब 800 बार स्वच्छता के विषय का जिक्र किया है। लोग लाखों की संख्या में चिट्ठियां भेजते हैं, लोग स्वच्छता के प्रयासों को सामने लाते रहे। 

साथियों, 

आज जब मैं देश और देशवासियों की इस उपलब्धि को देख रहा हूं...तो मन में ये सवाल भी आ रहा है कि जो आज हो रहा है, वो पहले क्यों नहीं हुआ? स्वच्छता का रास्ता तो महात्मा गांधी जी ने हमें आजादी के आंदोलन में ही दिखाया था...दिखाया भी था, सिखाया भी था। फिर ऐसा क्या हुआ कि आजादी के बाद स्वच्छता पर बिल्कुल ध्यान ही नही दिया गया। जिन लोगों ने सालों-साल गांधी जी के नाम पर सत्ता के रास्ते ढूंढे, गांधी जी के नाम पर वोट बटोरे। उन्होंने गांधी जी के प्रिय विषय को भुला दिया। उन्होंने गंदगी को, शौचालय के अभाव को देश की समस्या माना ही नहीं, ऐसा लगा रहा है जैसे उन्होंने गंदगी को ही जिंदगी मान लिया। नतीजा ये हुआ कि मजबूरी में लोग गंदगी में ही रहने लगे...गंदगी रूटीन लाइफ का हिस्सा बन गई...समाज जीवन में इसकी चर्चा तक होनी बंद हो गई। इसलिए जब मैंने लालकिले की प्राचीर से इस विषय को उठाया, तो देश में जैसे तूफान खड़ा हो गया...कुछ लोगों ने तो मुझे ताना दिया कि शौचालय और साफ-सफाई की बात करना भारत के प्रधानमंत्री का काम नहीं है। ये लोग आज भी मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। 

लेकिन साथियों, 

भारत के प्रधानमंत्री का पहला काम वही है, जिससे मेरे देशवासियों का, सामान्य जन का जीवन आसान हो। मैंने भी अपना दायित्व समझकर, मैंने टॉयलेट्स की बात की, सैनिटेरी पैड्स की बात की। और आज हम इसका नतीजा देख रहे हैं। 

साथियों, 

10 साल पहले तक भारत की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर थी। ये मानव गरिमा के विरुद्ध था। इतना ही नहीं ये देश के गरीब का अपमान था, दलितों का, आदिवासियों का, पिछड़ों का, इनका अपमान था। जो पीढ़ी दर पीढ़ी निरंतर चला आ रहा था। शौचालय ना होने से सबसे ज्यादा परेशानी हमारी बहनों को, बेटियों को को होती थी। दर्द और पीड़ा सहन करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं था। अगर शौचालय जाना है तो अंधेरे का इंतजार करती थीं, दिन भर परेशानी झेलती थीं और रात में बाहर जाती थीं, तो उनकी सुरक्षा से जुड़े गंभीर खतरे होते थे, या तो सुबह सूर्योदय के पहले जाना पड़ता था, ठंड हो, वर्षा हो। मेरे देश की करोड़ों माताएं हर दिन इस मुसीबत से गुजरती थी। खुले में शौच के कारण जो गंदगी होती थी, उसने हमारे बच्चों के जीवन को भी संकट में डाल रखा था। बाल मृत्यु का एक बड़ा कारण, ये गंदगी भी थी। गंदगी की वजह से गांव में, शहर की अलग-अलग बस्तियों में बीमारियां फैलना आम बात थी। 

साथियों, 

कोई भी देश ऐसी परिस्थिति में कैसे आगे बढ़ सकता है? और इसलिए हमने तय किया कि ये जो जैसा चल रहा है, वैसे नहीं चलेगा। हमने इसे एक राष्ट्रीय और मानवीय चुनौती समझकर इसके समाधान का अभियान चलाया। यहीं से स्वच्छ भारत मिशन का बीज पड़ा। ये कार्यक्रम, ये मिशन, ये आंदोलन, ये अभियान, ये जन-जागरण का प्रयास पीड़ा की कोख से पैदा हुआ है। और जो मिशन पीड़ा की कोख से पैदा होता है वो कभी मरता नहीं है। और देखते ही देखते, करोड़ों भारतीयों ने कमाल करके दिखाया। देश में 12 करोड़ से अधिक टॉयलेट्स बनाए गए। टॉयलेट कवरेज का दायरा जो 40 परसेंट से भी कम था, वो शत-प्रतिशत पहुंच गया। 

साथियों, 

स्वच्छ भारत मिशन से देश के आम जन के जीवन पर जो प्रभाव पड़ा है, वो अनमोल है। हाल में एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय जरनल की स्टडी आई है। इस स्टडी को इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट वाशिंगटऩ, यूएसए, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया...और ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर के स्टडी किया है। इसमें सामने आया है कि स्वच्छ भारत मिशन से हर वर्ष 60 से 70 हज़ार बच्चों का जीवन बच रहा है। अगर कोई ब्लड डोनेशन करके किसी एक की जिंदगी बचा दे ना तो भी वो बहुत बड़ी घटना होती है। हम सफाई करके, कूड़ा-कचरा हटाकर के, गंदगी मिटाकर 60-70 हजार बच्चों की जिंदगी बचा पाए, इससे बड़ा परमात्मा का आशीर्वाद क्या होगा। WHO के मुताबिक 2014 और 2019 के बीच 3 लाख जीवन बचे हैं, जो डायरिया के कारण हम खो देते थे। मानव सेवा का ये धर्म बन गया साथियों। 

UNICEF की रिपोर्ट है कि घर में टॉयलेट्स बनने के कारण अब 90 परसेंट से ज्यादा महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर रही हैं। महिलाओं को इंफेक्शन से होनी वाली बीमारियों में भी स्वच्छ भारत मिशन की वजह से बहुत कमी आई है। और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है...लाखों स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट्स बनने से, ड्रॉप आउट रेट कम हुआ है। यूनिसेफ की एक और स्टडी है। इसके मुताबिक साफ-सफाई के कारण गांव के परिवार के हर साल औसतन 50 हज़ार रुपए बच रहे हैं। पहले आए दिन होने वाली बीमारियों के कारण ये पैसे इलाज पर खर्च होते थे या तो काम-धंधा ना करने के कारण आय खत्म हो जाती थी, बीमारी में जा नहीं पाते थे। 

साथियों, 

स्वच्छता पर बल देने से बच्चों का जीवन कैसे बचता है, मैं इसका एक और उदाहरण देता हूं। कुछ साल पहले तक मीडिया में लगातार ये ब्रेकिंग न्य़ूज चलती थी कि गोरखपुर में दिमागी बुखार से, उस पूरे इलाके में, दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत...ये खबरें हुआ करती थी। लेकिन अब गंदगी जाने से, स्वच्छता आने से ये खबरें भी चली गईं, गंद के साथ क्या-क्या जाता है ये दखिए। इसकी एक बहुत ही बड़ी वजह...स्वच्छ भारत मिशन से आई जन-जागृति, ये साफ सफाई है। 

साथियों, 

स्वच्छता की प्रतिष्ठा बढ़ने से देश में एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन भी हुआ है। आज मैं इसकी चर्चा भी आवश्यक समझता हूं। पहले साफ-सफाई के काम से जुड़े लोगों को किस नजर से देखा जाता था, हम सब जानते हैं। एक बहुत बड़ा वर्ग था जो गंदगी करना अपना अधिकार मानता था और कोई आकर के स्व्च्छता करे ये उसकी जिम्मेवारी मानकर के अपने आप को बड़े अहंकार में जीते थे, उनके सम्मान को भी चोट पहुंचाते थे। लेकिन जब हम सब स्वच्छता करने लग गए तो उसको भी लगने लगा कि मैं जो करता हूं वो भी बड़ा काम करता हूं और ये भी अब मेरे साथ जुड़ रहे हैं, बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन। और स्वच्छ भारत मिशन ने, ये बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन कर करके सामान्य परिवार, साफ-सफाई करने वालों को मान-सम्मान मिला, उनको गर्व को महसूस कराया, और वो आज अपने आप को सम्मान के साथ हमें देख रहा है। गर्व इस बात का कि वो भी अब मानने लगा है कि वो सिर्फ पेट भरने के लिए करता है, इतना ही नहीं है वो इस राष्ट्र को चमकाने के लिए भी कड़ी मेहनत कर रहा है। यानि स्वच्छ भारत अभियान ने लाखों सफाई मित्रों को गौरव दिलाया है। हमारी सरकार सफाई मित्रों के जीवन की सुरक्षा और उन्हें गरिमापूर्ण जीवन देने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा ये भी प्रयास है कि सेप्टिक टैंक्स में मैनुअल एंट्री से जो संकट आते हैं, उनको दूर किया जाए। इसके लिए सरकार, प्राइवेट सेक्टर और जनता के साथ मिलकर काम कर रही है, कई नए-नए Startup आ रहे हैं, नई-नई टेक्नोलॉजी लेकर आ रह हैं। 

साथियों, 

स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ साफ-सफाई का ही प्रोग्राम है, इतना भर नहीं है। इसका दायरा व्यापक रुप से बढ़ रहा है। अब स्वच्छता संपन्नता का नया रास्ता बन रहा है। स्वच्छ भारत अभियान से देश में बड़े पैमाने पर रोजगार भी बन रहे हैं। बीते सालों में करोड़ों टॉयलेट्स बनने से अनेक सेक्टर्स को फायदा हुआ...वहां लोगों को नौकरियां मिलीं...गांवों में राजमिस्त्री, प्लंबर, लेबर, ऐसे अनेक साथियों को नए अवसर मिले। यूनिसेफ का अनुमान है कि करीब-करीब सवा करोड़ लोगों को इस मिशन की वजह से कुछ ना कुछ आर्थिक लाभ हुआ, कुछ ना कुछ काम मिला है। विशेष रूप से महिला राजमिस्त्रियों की एक नई पीढ़ी इस अभियान की देन है। पहले महिला  राजमिस्त्री कभी नाम नहीं सुना था, इन दिनों महिला राजमिस्त्री आपको काम करती नज़र आ रही हैं। 

अब क्लीन टेक से और बेहतर नौकरियां, बेहतर अवसर हमारे नौजवानों को मिलने लगे हैं। आज क्लीन टेक से जुड़े करीब 5 हज़ार स्टार्ट अप्स रजिस्टर्ड हैं। वेस्ट टू वेल्थ में हो, वेस्ट के क्लेक्शन और ट्रांसपोर्टेशन में हो, पानी के रीयूज़ और रीसाइकलिंग में हों...ऐसे अनेक अवसर वॉटर एंड सेनीटेशन के सेक्टर में बन रहे हैं। एक अनुमान है कि इस दशक के अंत तक इस सेक्टर में 65 लाख नई जॉब्स बनेंगी। और इसमें निश्चित तौर पर स्वच्छ भारत मिशन की बहुत बड़ी भूमिका होगी। 

साथियों, 

स्वच्छ भारत मिशन ने सर्कुलर इकॉनॉमी को भी नई गति दी है। घर से निकले कचरे से आज, Compost, Biogas, बिजली और रोड पर बिछाने के लिए चारकोल जैसा सामान बना रहे हैं। आज गोबरधन योजना, गांव और शहरों में बड़ा परिवर्तन ला रही है। इस योजना के तहत गांवों में सैकड़ों बायोगैस प्लांट्स लगाए जा रहे हैं। जो पशुपालन करते हैं किसान कभी-कभी उनके लिए जो पशु वृद्ध हो जाता है, उसको संभालना एक बहुत बड़ी आर्थिक बोझ बन जाता है। अब गोबरधन योजना के कारण वो पशु जो दूध भी नहीं देता है या खेत पर काम भी नहीं कर सकता है, वो भी कमाई का साधन बन सके ऐसे संभावनाएं इस गोबरधन योजना में है। इसके अलावा देश में सैकड़ों CBG प्लांट भी लगाए जा चुके हैं। आज ही कई नए प्लांट्स का लोकार्पण हुआ है, नए प्लांट्स का शिलान्यास किया गया है। 

साथियों, 

तेजी से बदलते हुए इस समय में, आज हमें स्वच्छता से जुड़ी चुनौतियों को भी समझना, जानना जरूरी है। जैसे-जैसे हमारी economy बढ़ेगी, शहरीकरण बढ़ेगा, waste generation की संभावनाएं भी बढ़ेंगी, कूड़ा-कचरा ज्यादा निकलेगा। और आजकल जो economy का एक मॉडल है यूज एक थ्रो वो भी एक कारण बनने वाला है। नए-नए प्रकार के कूड़े कचरे आने वाले हैं, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट आने वाला है। इसलिए हमें फ्यूचर की अपनी स्ट्रैटजी को और बेहतर करना है। हमें आने वाले समय में construction में ऐसी टेक्नॉलॉजी डवलप करनी होंगी, जिससे रिसाइकिल के लिए सामान का ज्यादा उपयोग हो सके। हमारी जो कॉलोनियां हैं, हमारे जो हाउसिंग है, complexes हैं, उनको हमें ऐसे डिज़ाइन करना होगा कि कम से कम zero की तरफ हम कैसे पहुंचे, हम zero कर पाए तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन कम से कम अंतर बचे zero से। 

हमारा प्रयास होना चाहिए कि पानी का दुरुपयोग ना हो और waste पानी को treat करके इस्तेमाल करने के तरीके सहज बनने चाहिए। हमारे सामने नमामि गंगे अभियान का एक मॉडल है। इसके कारण आज गंगा जी कहीं अधिक साफ हुई हैं। अमृत मिशन और अमृत सरोवर अभियान से भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा है। ये सरकार और जनभागीदारी से परिवर्तन लाने के बहुत बड़े मॉडल हैं। लेकिन मैं मानता हूं सिर्फ इतना ही काफी नहीं है। वॉटर कंज़र्वेशन, वॉटर ट्रीटमेंट और नदियों की साफ-सफाई के लिए भी हमें निंरतर नई टेक्नॉलॉजी पर निवेश करना है। हम सब जानते हैं कि स्वच्छता का कितना बड़ा संबंध टूरिज्म से है। और इसलिए, अपने पर्यटक स्थलों, अपने आस्था के पवित्र स्थानों, हमारी धरोहरों को भी हमें साफ-सुथरा रखना है। 

साथियों, 

हमने स्वच्छता को लेकर इन 10 वर्षों में बहुत कुछ किया है, बहुत कुछ पाया है। लेकिन जैसे गंदगी करना ये रोज का काम है, वैसे स्वच्छता करना भी रोज का ही काम होना ही चाहिए। ऐसा कोई मनुष्य नहीं हो सकता है, प्राणी नहीं हो सकता है कि वो कहे कि मेरे से गंदगी होगी ही नहीं, अगर होनी है तो फिर स्वच्छता भी करनी ही होगी। और एक दिन, एक पल नहीं, एक पीढ़ी नहीं, हर पीढ़ी को करनी होगी युगों-युगों तक करने वाला काम है। जब हर देशवासी स्वच्छता को अपना दायित्व समझता है, कर्तव्य समझता है, तो साथियों मेरा इस देशवासियों पर इतना भरोसा है कि परिवर्तन सुनिश्चित है। देश का चमकना ये सुनिश्चित है। 

स्वच्छता का मिशन एक दिन का नहीं ये पूरे जीवन का संस्कार है। हमें इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना है। स्वच्छता हर नागरिक की सहज प्रवृत्ति होनी चाहिए। ये हमें हर रोज़ करना चाहिए, गंदगी के प्रति हमारे भीतर एक नफरत पैदा होनी चाहिए, हम गंदगी को टॉलरेट न करें, देख ना पाए ये स्वभाव हमने विकसित करना चाहिए। गंदगी के प्रति नफरत ही हमें स्वच्छता के लिए मजबूर कर सकती हैं और मजबूत भी कर सकती हैं।

हमने देखा है कि कैसे घरों में छोटे-छोटे बच्चे साफ-सफाई को लेकर बड़ों को मोटिवेट करते रहते हैं, मुझे कई लोग कहते हैं कि मेरा पोता, मेरा नाती ये टोकता रहता है कि देखो मोदी जी ने क्या कहा है, तुम क्यों कचरा डालते हो, कार में जा रहे हैं बोला बोतल क्यों बाहर फेकतें हो, रूकवा देता है। ये आंदोलन की सफलता उसमें भी बीज बो रही है। और इसलिए आज मैं देश के युवाओं को...हमारी अगली पीढ़ी के बच्चों को कहूंगा- आइए हम सब मिलकर के डटे रहें, आइए डटे रहिए। दूसरों को समझाते रहिए, दूसरों को जोड़ते रहिए। हमें देश को स्वच्छ बनाए बिना रूकना नहीं है। 10 साल की सफलता ने बताया है कि अब आसान हो सकता है, हम achieve कर सकते हैं, और गंदगी से भारत मां को हम बचा सकते हैं।   

साथियों, 

मैं आज राज्य सरकारों से भी आग्रह करुंगा कि वे भी इस अभियान को अब जिला, ब्लॉक, गांव, मोह्ल्ले और गलियों के लेवल पर ले जाएं। अलग-अलग जिलों में, ब्लॉक्स में स्वच्छ स्कूल की स्पर्धा हो, स्वच्छ अस्पताल की स्पर्धा हो, स्वच्छ ऑफिस की स्पर्धा हो, स्वच्छ मोहल्ले की स्पर्धा हो, स्वच्छ तालाब की स्पर्धा हो, स्वच्छ कुए के किनारे की स्पर्धा हो। तो एकदम से वातावरण और उसके कंपटिशन उसे हर महिने, तीने महिने ईनाम दिए जाए, सर्टिफिकेट देए जाए। भारत सरकार सिर्फ कंपटिशन करे और 2-4 शहरों को 

 

स्वच्छ शहर, 2-4 जिलों को स्वच्छ जिला इतने से बात बनने वाली नहीं है। हमने हर इलाके में ले जाना है। हमारी म्यूनिसिपैल्टीज भी लगातार देखें कि पब्लिक टॉयलेट्स की अच्छे से अच्छे मैंटेनेंस हो रही है, चलो उनको ईनाम दें। अगर किसी शहर में व्यवस्थाएं पुराने ढर्रे की तरफ वापस लौटीं तो इससे बुरा क्या हो सकता है। मैं सभी नगर निकायों से, लोकल बॉडीज़ से आग्रह करुंगा कि वे भी स्वच्छता को प्राथमिकता दें, स्वच्छता को सर्वोपरि माने। 

आइए...हम सब मिलके शपथ लें, मैं देशवासियों से अनुरोध करता हूं...आइए हम जहां भी रहेंगे, फिर चाहे वो घर हो, मोहल्ला हो या हमारा workplace हो, हम गंदगी ना करेंगे, ना गंदगी होने देंगे और स्वच्छता ये हम हमारा सहज स्वाभाव बनाकर के रहेंगे। जिस प्रकार हम अपने पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखते हैं, वही भाव हमें अपने आसपास के वातावरण के लिए जगाना है। विकसित भारत की यात्रा में हमारा हर प्रयास स्वच्छता से संपन्नता के मंत्र को मजबूत करेगा। मैं फिर एक बार देशवासियों से 10 साल के ही जैसे, यात्रा ने एक नया विश्वास पैदा किया है, अब हम अधिक सफलता के साथ, अधिक ताकत से परिणाम प्राप्त रह सकते हैं, और इसलिए आइए एक नए उमंग, नए विश्वास के साथ पूज्य बापू को सच्ची श्रद्धांजलि का एक काम लेकर के चल पड़े और हम इस देश को चमकाने के लिए गंदगी ना करने का शपथ लेते हुए, स्व्च्छता के लिए जो भी कर सकते हैं, पीछे ना हटे। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। 

बहुत-बहुत धन्यवाद

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MJPS/VJ/SKS



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