विधि एवं न्‍याय मंत्रालय

न्याय विभाग: वर्षांत समीक्षा -2020


तालुक स्तर की अदालतों समेत सभी कोर्ट काम्प्लेक्स को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग उपकरण प्रदान किये गए; 14,443न्यायालय कक्षोंहेतु अतिरिक्त वीसी उपकरण के लिए धनराशि मंजूर की गयी

नौ वर्चुअल न्यायालयों की स्थापना की गई है; इन अदालतों ने 35,02,896 मामलों की सुनवाई की और 08 दिसम्बर, 2020तक जुर्माने के रूप में 130.72 करोड़ रुपये का संग्रह किया

जरूरत के अनुरूप मामलों की स्मार्ट सूची बनाने में मदद करने के लिए कोविड -19 सॉफ्टवेयर पैच विकसित किया गया

टेली-लॉ के जरिये कमजोर वर्ग के लिए निःशुल्क कानूनी सलाह सेवाअब 285 जिलों में उपलब्ध है

Posted On: 31 DEC 2020 9:45AM by PIB Delhi

केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा वर्ष 2020 में कई महत्वपूर्ण पहलों की शुरुआत की गयी। विशेषकर कोविड-19 महामारी के कारण कठिन परिस्थिति को देखते हुए, उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने के अलावा,  विवादों व अदालती मामलों के तेजी से समाधान के लिए कई कदम उठाए गए। विभाग ने चुनौती का सामना किया और ई-कोर्ट, वर्चुअल लोक अदालत के कामकाज को सुनिश्चित करने के साथ ही न्यायलय में मामले के  दर्ज होने के पहले ही विवाद-समाधान के लिए एक तंत्र उपलब्ध कराया।

1. न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण

मुकदमे में तेजी लाने और न्याय प्रदान करने के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण महत्वपूर्ण हैं। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए न्याय विभाग (डीओजे) ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने का प्रयास किया है।

 

उच्च न्यायालयों में 66 नए न्यायाधीश नियुक्त किए गए बंबईउच्च न्यायालय (4), इलाहाबाद उच्च न्यायालय (4), गुजरात उच्च न्यायालय (7), कर्नाटकउच्च न्यायालय (10), आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (7), जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय (5), केरल उच्च न्यायालय (6) ), राजस्थानउच्च न्यायालय (6), पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (1), मणिपुर उच्च न्यायालय (1), कलकत्ता उच्च न्यायालय (1), उड़ीसा उच्च न्यायालय (2), त्रिपुराउच्च न्यायालय (1), तेलंगाना उच्च न्यायालय (1) और मद्रास उच्च न्यायालय (10)

उच्च न्यायालयों में 90 अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्थायी नियुक्ति की गयी - इलाहाबाद उच्च न्यायालय (31), कर्नाटक उच्च न्यायालय (10), कलकत्ता उच्च न्यायालय (16), मद्रास उच्च न्यायालय (9), छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (3), हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (1), पंजाब और हरियाणाउच्च न्यायालय (7) ), बॉम्बे उच्च न्यायालय (4), केरल उच्च न्यायालय (4), झारखंड उच्च न्यायालय (2) और गौहाटी उच्च न्यायालय (3)

• 03 अतिरिक्त न्यायाधीशों का कार्यकाल बढ़ाया गया - कलकत्ता उच्च न्यायालय (2) और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (1)

• 03 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई - बॉम्बे उच्च न्यायालय (2) और मेघालय उच्च न्यायालय (1)

• 01 मुख्य न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।

उच्च न्यायालयों के 07 न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे मेंउच्च न्यायालय स्थानांतरित किया गया।

2.-कोर्ट मिशन मोड परियोजना और डिजिटलीकरण पहल

i. परिचय:

राष्ट्रीय ई-शासन योजना के भाग के रूप में, -कोर्ट परियोजना भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने के लिए एक एकीकृत मिशन मोड परियोजना है, जिसका कार्यान्वयन2007से किया जा रहा है। यह भारतीय न्यायपालिका में आईसीटी के विकास के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना पर आधारितहै।ई-कोर्ट परियोजना को प्रौद्योगिकी का उपयोग करके न्याय तक पहुँच में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। इस परियोजना के तहत, देश भर में अब तक 16,845 अदालतों को सॉफ्टवेयर संगतता और अंतर-संचालन के साथ कम्प्यूटरीकृत किया गया है।

ii वाइड एरिया नेटवर्क (डब्लूएएन) कनेक्टिविटी:

-कोर्ट परियोजना के तहत वाइड एरिया नेटवर्क (डब्लूएएन) परियोजना का उद्देश्य ओएफसी, आरएफ, वीसैट जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हुए देश भर के सभी जिला और अधीनस्थ न्यायालय परिसरों को जोड़ना है। अब तक 2992परिसरोंमें से2931परिसरों (98 प्रतिशत) को 10 एमबीपीएस से 100 एमबीपीएस तक की बैंडविड्थ गति से चालू किया गया है। यह पूरे देश की अदालतों में डेटा कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने वाली ई-कोर्टपरियोजना का आधार है। कोविड -19 महामारी को देखते हुए निर्बाध डेटा संचरण सुनिश्चित करने के लिए न्याय विभाग डीओजे द्वारा एक समिति का गठन किया गया है, जो शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक एसओपी विकसित करेगा और डब्लूएएन बैंडविथ की क्षमता का उन्नयन करेगा।

iii राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड:

केस इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर (सीआईएस) ई कोर्ट सेवाओं का आधार है। यह फ्री एंड ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (एफओएसएस) पर आधारित है, जिसे एनआईसी द्वारा विकसित किया गया है। वर्तमान में सीआईएस नेशनल कोर वर्जन 3.2 को जिला न्यायालयों में और सीआईएस नेशनल कोर वर्जन 1.0 को उच्च न्यायालयों में लागू किया जा रहा है। प्रत्येक मुक़दमे को एक विशिष्ट पहचान कोड प्रदान किया जाता है, जिसे सीएनआर नंबर और क्यूआर कोड कहते हैं। इससे राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का विकास हुआ है, जो न्यायिक डेटा को भेजने-प्राप्त करनेके लिए एक नई संचार पद्धति है।

ई कोर्ट परियोजना के तहत विकसित एनजेडीजीके जरिये वकील और पक्षकार आज 17.55 करोड़ मामलों और 13.16 करोड़ से अधिक आदेशों / निर्णयों की जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। पोर्टल कोर्ट पंजीकरण, मामलों की सूची, दैनिक आदेश और अंतिम निर्णय से संबंधित जानकारी भी प्रदान करता है। अब देश के सभी उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों के डेटा तक पहुंच प्रदान की गई है। लंबित मामलों की पहचान करने,उन्हें प्रबंधित करने और उनकी संख्या कम करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है। हाल ही में मामले के निपटान में देरी का कारण दिखाने के लिए एक सुविधा जोड़ी गई है। भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय डेटा साझा और पहुँच नीति (एनडीएसएपी) के अनुरूप, केंद्र और राज्य सरकारों को ओपन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) प्रदान किया गया है, ताकि विभागीय आईडी के जरिये एनजेडीजी डेटा तक उनकी पहुंच आसान हो। इससे संस्थागत पक्षकारोंकी एनजेडीजीडेटा तक पहुंचआसान होगी, जिससे वे डेटा का मूल्यांकन और निगरानी कर पाएंगे।

iv वर्चुअल कोर्ट:

ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन से सम्बंधित मामलों की सुनवाई के लिए दिल्ली (2 अदालतें), फरीदाबाद (हरियाणा), पुणे तथा नागपुर (महाराष्ट्र), कोच्चि (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु), गौहाटी (असम) और बेंगलुरु (कर्नाटक) में नौ वर्चुअल कोर्ट स्थापित किए गए हैं। इस अवधारणा का उद्देश्य अदालत में उल्लंघनकर्ता या अधिवक्ता की उपस्थिति को समाप्त करके अदालत में होने वाली भीड़ को कम करना है। वर्चुअल कोर्ट कोवर्चुअल जज (जो व्यक्ति नहीं वरन एक एल्गोरिथ्म है) द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है, जिसका अधिकार क्षेत्र पूरे राज्य में बढ़ाया जा सकता है और काम के घंटे 24X7 हो सकते हैं। 08.12.2020 तक इन कोर्ट द्वारा 35,02,896 मामलों की सुनवाई की गयी और जुर्माना के रूप में 130.72 करोड़ रुपये वसूल किए गए। नवंबर 2020 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने "डिजिटल एनआई अधिनियम न्यायालय-परियोजना कार्यान्वयन दिशानिर्देश" जारी किए हैं और जल्द ही वर्चुअल कोर्ट में परक्राम्य लिखत अधिनियम (एन आई एक्ट)के मामलों की सुनवाई शुरू होने की उम्मीद है। पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ मामलों को पेपरलेस तरीके से निपटाया जाता है,इससे न्याय प्रक्रिया में कम लोगों की जरूरत होती है और नागरिकों की सुविधा में बढ़ोतरी होती है।

v. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग:

कोविड लॉकडाउन के दौरान न्यायालयों के काम-काज के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मुख्य आधार के रूप में उभरा, क्योंकि सुनवाई में व्यक्तिगत उपस्थिति और सामान्य अदालती कार्यवाही संभव नहीं थी। कोविड लॉकडाउन शुरू होने के बाद से लेकर 28.10.2020 तक, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये जिला अदालतों ने 35,93,831 मामलों तथा उच्च न्यायालय ने 13,74,048 मामलों (कुल 49.67 लाख) की सुनवाई की। लॉकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट में लगभग 30,000मामलों की सुनवाई हुई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के उपयोग में एकरूपता और मानकीकरण के लिए, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 6 अप्रैल,2020 को एक आदेश पारित किया गया, जिसने वीसी के माध्यम से की गई अदालतों की सुनवाई को कानूनी वैधता प्रदान की। इसके अलावा, न्यायाधीशों की 5 सदस्यीय समिति द्वारा वीसी के नियमतैयार किये गए, जिसे स्थानीय संदर्भ के साथअपनाने के लिए सभीके पास भेजा गया था। अब तक, 12 उच्च न्यायालयोंद्वारा वीसी नियमों को अपनाया गया है। एनआईसी द्वारा नवीनतम सुविधाओं और मजबूत सुरक्षा के साथ क्लाउड-आधारित उन्नतवीसी अवसंरचना भी विकसित की जा रही है। आत्मनिर्भर ऐप चैलेंजके तहत कुछ भारतीय निर्मित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप्स को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफ़ॉर्म के रूप में उपयोग करने के लिए चयनित किया गया है और इनका परीक्षण किया जा रहा है। तालुक स्तर की अदालतों सहित सभी कोर्ट कॉम्प्लेक्सों में प्रत्येक को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस उपकरण प्रदान किया गया है और इसके अलावा 14,443 कोर्ट रूम के वीसी उपकरणों के लिए धनराशि मंजूर की गई है। वीसी सुविधाएं पहले से ही 3240 कोर्ट कॉम्प्लेक्स और 1272 जेलमें उपलब्ध हैं।

केरल, बॉम्बे और दिल्ली में सुनवाई की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की लाइव स्ट्रीमिंग भी शुरू की गई है, इस प्रकार मीडिया और अन्य इच्छुक व्यक्तियों को अदालती काम-काज में शामिल होने का मौका मिला है। सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति ने लाइव स्ट्रीमिंग का एसओपी तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गुजरात उच्च न्यायलय में मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की गई है। न्यायालयों के डेटा की स्कैनिंग, भंडारण, पुनर्प्राप्ति और संरक्षण के लिए एक एसओपी तैयार किया जायेगा और इसके लिए न्यायाधीशों और डोमेन विशेषज्ञों के एक कार्य समूह भी गठन किया गया है।

vi. ई फाइलिंग:

ई फाइलिंग प्रणाली (संस्करण 1.0) को कानूनी कागजात के इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा करने के लिए शुरू किया गया है। यह वकीलों को किसी भी स्थान से 24X7मामलों से संबंधित दस्तावेजों तक पहुँचने और उन्हें अपलोड करने की सुविधा देता है।कागजात दाखिल करने के लिए अदालत में आना अब जरूरी नहीं रह गया है। ई-फाइलिंगआवेदन के विवरणसीआईएस सॉफ्टवेयर में दर्ज हो जाते हैं और इसलिए गलतियों की संभावना कम से कम हो जाती है। एक उन्नत संस्करण 2.0 और 3.0 भी तैयार किया गया है जो उपयोगकर्ता के अधिक अनुकूल है और एडवोकेट्स पोर्टफोलियो, एडवोकेट क्लर्क एंट्री मॉड्यूल, कैलेंडर और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ एकीकरण जैसी उन्नत सुविधायें देता है।वर्तमान में इसका परीक्षण चल रहा है।

ई फाइलिंग नियमों का मसौदा तैयार किया गया है और उच्च न्यायालयों के पास इसे अपनाने के लिए भेजा गया है। सर्वोच्च न्यायलय ने भी ई फाइलिंग संस्करण 3.0 विकसित किया है जिसे पायलट आधार पर शुरू किया गया है और यह सुरक्षा जांच के अंतिम चरण में है। कोविड-19 महामारी के दौरान ई फाइलिंग के लिए वकीलों और पक्षकारोंके पंजीयन में तेज वृद्धि हुई है। ई फाइलिंग को बढ़ावा देने के लिए, पीएसयू सहित सभी केंद्र और राज्य सरकार के विभागों से, वाणिज्यिक अदालतों में आने वाले सभी वाणिज्यिक विवादों में ई फाइलिंग का उपयोग करने का अनुरोध किया गया है।

वकीलों और पक्षकारों को ई फाइलिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए ई सेवा केंद्रोंकी शुरुआत की गयी है, ताकि डिजिटल अंतर को कम किया जा सके। वर्तमान में पायलट प्रोजेक्ट के तहत सभी उच्च न्यायालयों और एक जिला अदालत को यह सुविधा दी गयी है और सभी अदालत परिसरों को कवर करने के लिए इसका विस्तार किया जा रहा है। वकील या मुकदमे से जुड़े लोगों की सुविधा के उद्देश्य से अदालत परिसरों के प्रवेश स्थान पर ई सेवा केंद्रों को स्थापित किया गया है, जिससे वकीलों और पक्षकारों को सूचना प्राप्त करने से लेकर ई फाइलिंग तक की सुविधा मिली है।

Vii.ई भुगतान:

अदालती मामलों की ई-फाइलिंग में न्यायलय शुल्क(कोर्ट फीस) के भुगतानके लिए ई-पेमेंट सुविधा की आवश्यकता होती है।इसमें न्यायलय शुल्क, जुर्माना और आर्थिक दंड शामिल हैं और ये सीधे समेकित निधि को देय होते हैं। Https://pay.ecourts.gov.in के माध्यम से न्यायलय शुल्क, जुर्माना, दंड और न्यायिक जमा का ऑनलाइन भुगतान शुरू किया गया है। न्यायलय शुल्कऔर अन्य भुगतानों के इलेक्ट्रॉनिक संग्रह के लिए,विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लागू न्यायलय शुल्कअधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है। इसके अलावा राष्ट्रीयकृत बैंक या अन्य बैंक में खाता खोलने की भी जरूरत है, जो ऐसे भुगतानों को प्राप्त करने, जमा रखने व वापस करने

के लिए उपयुक्त हों। 21 राज्यों ने न्यायलय शुल्कअधिनियम में पहले ही संशोधन कर दिए हैं।

viii. ई कोर्ट सेवाएं:

-कोर्ट परियोजना के हिस्से के रूप में, मामलों की स्थिति, सुनवाई सूची, फैसले आदि के बारे में वकीलों / पक्षकारों को वास्तविक समय पर जानकारी प्रदान करने के लिए 7 प्लेटफार्म बनाए गए हैं - एसएमएस पुश एंड पुल (प्रतिदिन1,42,000 एसएमएस), ईमेल (प्रतिदिन2,00,000), बहुभाषी ई-सेवा पोर्टल (प्रतिदिन25 लाख हिट्स), जेएससी (न्यायिक सेवा केंद्र) और इन्फो कियोस्क। राष्ट्रीयई-ताल पर, -कोर्टसेवा पोर्टल में वर्ष के दौरान 224.41 करोड़ लेन-देन दर्ज हुए हैं, जिससे यह प्रमुख मिशन मोड परियोजना के रूप में उभरा है। इसके अलावा, वकीलों के लिए मोबाइल ऐप (अब तक 49.50 लाख डाउनलोड) और न्यायाधीशों के लिए जस्टिस ऐप (अब तक 14,000 डाउनलोड) के साथ इलेक्ट्रॉनिक केस मैनेजमेंट टूल (ईसीएमटी)तैयार किया गया है।

ix. राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियासेवा और निगरानी:

सम्मन जारी करने औरअन्य अदालती प्रक्रियाओं को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियासेवा और निगरानी (एनएसटीईपी) की शुरुआत की गई है। सम्मन संबंधी कार्यों के लिए बेलिफ़ (पदनाम) को एक जीपीएस सक्षम उपकरण दिया गया है, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी और प्रक्रियाओं को शीघ्रता सेपूरा किया जा सकेगा। यह सम्मन संबंधी कार्य का वास्तविक समय पर अपडेट की सुविधा देता है और इसके जरिये सम्मन देने वाले व्यक्ति की भौगोलिक स्थिति पर भी निगरानी रखी जा सकती है।

x.   कोविड -19 सॉफ्टवेयर पैच:

कोविड-19 प्रबंधन के लिए एक नया सॉफ्टवेयर पैच और एक उपयोगकर्ता पुस्तिका भी विकसित की गयी है। यह उपकरण, मामलों की सूची बनाने में मदद करेगा, जिससे न्यायिक अधिकारियों को जरूरीमामलों की पहले सुनवाई करने में सहायता मिलेगी तथा उन मामलों बाद के लिए रखा जा सकेगा जो बेहद जरूरी नहीं हैं। इस पैच से सम्बंधित एक उपयोगकर्ता पुस्तिका भी हितधारकों की सुविधाके लिए जारी की गई है।

xi न्याय घड़ी:

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजीडीजी) के माध्यम से बनाए गए डेटाबेस का प्रभावी उपयोग करने और जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए, 18 उच्च न्यायालयों में न्याय घड़ी नाम से एलईडी डिस्प्ले मैसेज साइन बोर्ड सिस्टम स्थापित किया गया है। न्याय घड़ी का उद्देश्य न्याय क्षेत्र के बारे में जनता में जागरूकता लाना, विभाग की विभिन्न योजनाओं का विज्ञापन करना और जनता को विभिन्न क्षेत्रों के बारे में जानकारी देना है।

xii. आईईसी अभियान:

-समिति के लिए एक विशेष वेबसाइट लॉन्च किया गया है। यह वेबसाइट सभी हितधारकों को ई-कोर्ट परियोजना से संबंधित जानकारी देती है। उच्च न्यायालयों के लिए यह प्रावधान किया गया है कि वे अपनी उपलब्धियों और सर्वोत्तम प्रथाओं को वेबसाइट पर अपलोड करें। ई समिति की वेबसाइट को न्याय विभाग की वेबसाइट से भी जोड़ा गया है।

वर्तमान में, जिला अदालत की वेबसाइटें ड्रुपल फ्रेमवर्क का उपयोग करके काम कर रही हैं, जिसे 5 साल पहले बनाया गया था। ड्रुपलअवसंरचना का नवीनतम एस 3 डब्लूएएएस फ्रेमवर्क के साथ उन्नयन किया जा रहा है, जिसे एनआईसी द्वारा एफओएसएस तकनीकका उपयोग करके तैयार किया गया है।

वकीलों के बीच ई-फाइलिंग के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जानकारी देने के लिए, जून 2020 के दौरानतमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र और दिल्ली बार काउंसिल में ई-फाइलिंग पर वेबिनार आयोजित किये गए, जिनमें 19000 से अधिक लोगों ने भाग लिया। अधिवक्ताओं औरपक्षकारों के उपयोग के लिए ई-फाइलिंग पर एक मैनुअल "स्टेप बाई स्टेप गाइड फॉर ई-फाइलिंग" भी तैयार किया गया है और इसे अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ में ई-फाइलिंग पोर्टल पर उपलब्ध कराया गया है। इसे 11 क्षेत्रीय भाषाओं में भी जारी किया गया है। अधिवक्ताओं के उपयोग के लिए ई-फाइलिंग पोर्टल पर -फाइलिंग के लिए पंजीकरण कैसे करेंनाम से एक ब्रोशर उपलब्ध कराया गया है, जो अंग्रेजी और हिंदी, दोनों भाषाओँ में है।

इसे 12 क्षेत्रीय भाषाओं में भी जारी किया गया है। जागरूकता अभियान के तहत, -कोर्ट सर्विस नाम से एक यूट्यूब चैनल भी बनाया गया है, जिसमें  हितधारकों की सुविधा के लिए ई-फाइलिंग पर वीडियो ट्यूटोरियल उपलब्ध कराए गए हैं। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा,7 क्षेत्रीय भाषाओं में ई-फाइलिंग पर 12 सहायता वीडियो तैयार किए गए और जागरूकता बढ़ाने के कार्यक्रम के तहत अधिवक्ताओं के लिए प्रसारित किये गए। ये वीडियो,-फाइलिंग पोर्टल के हेल्प डेस्क और सोशल मीडिया में ई-समिति यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं।

ईकोर्ट सर्विस के तहत ई-फाइलिंगऔर ईसीएमटी के बारे में अधिवक्ताओं को जागरूक बनाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति द्वारा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण पहले ही पूरा किया जा चुका गया है। प्रत्येक उच्च न्यायलय में 25 मास्टर ट्रेनरों को प्रशिक्षित किया गया है, जिन्होंने देश भर में 461 मास्टर ट्रेनरों को प्रशिक्षित किया है। अधिवक्ताओं के लिए इन461 मास्टर ट्रेनरों ने देश के प्रत्येक जिले में क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्ट सर्विस और ई-फाइलिंग पर प्रशिक्षण दिया है और मास्टर ट्रेनर अधिवक्ताओं की पहचान भी की है।

xiii-कोर्ट चरण- III के लिए विज़न दस्तावेज़:

-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण के विज़न डॉक्यूमेंट पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जिसमें न्यायपालिका और तकनीकी सदस्यों के अलावा डोमेन विशेषज्ञ भी शामिल हैं।

3. अनुबंध-नियमों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए सुधारों को लागू करना

निवेश और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल बनाने के क्रम में अनुबंधों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए विभिन्न सुधारों को लागू करने केनिरंतर प्रयास किए गए हैं। कारोबार सुगमता के लिए न्याय विभाग द्वारा विभिन्न सुधार किये गए हैं और इसके लिए सर्वोच्च न्यायलय की ई-समिति तथा दिल्ली और मुंबई के उच्च न्यायालयों के साथ समन्वय भी स्थापित किय गया है।

दिल्ली में 22 और मुंबई में 4 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालय पूरी तरह से संचालन में हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय में 22 वां वाणिज्यिक न्यायालय 07.09.2020 से शुरू हो गया है। बेंगलुरु और कोलकाता में एक-एक समर्पित वाणिज्यिक न्यायालय संचालन में हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बेंगलुरु में स्थापित किए जाने वाले 7 और समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों को अधिसूचित किया है और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कोलकाता में स्थापित किए जाने वाले 2 और समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों को अधिसूचित किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 500 करोड़रुपये से अधिक के उच्च मूल्य के वाणिज्यिक मामलों की सुनवाई के लिए वाणिज्यिक खंड (मूल पक्ष) और अपीलीय स्तर पर वाणिज्यिक खंडपीठ की स्थापना की है। 22 उच्च न्यायालयों में अवसंरचना परियोजनाओं के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किए गए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय, कलकत्ता उच्च न्यायालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विशिष्ट राहत अधिनियम मामलों की सुनवाई के लिए सप्ताह में एक दिन निर्धारित किया गया है।

दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों में ई-फाइलिंग शुरू किया गया है। कर्नाटक और दिल्ली सरकारों ने वाणिज्यिक मामलों में सरकारी मुकदमों के लिए ई-फाइलिंग को अनिवार्य कर दिया है। सभी केंद्र सरकार के विभागों को वाणिज्यिक मुकदमों के मामलों में ई-फाइलिंग का पालन करना है। ई-फाइलिंग संस्करण 3.0 को अंतिम रूप दिया गया है और पायलट प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के 5 जिलों में सफलतापूर्वक संचालित किया गया है। ई-फाइलिंग संस्करण 3.0 को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना 2021 में प्रस्तावित है।

न्याय विभाग के सहयोग से नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली द्वारा व्यापार और वाणिज्य विवाद पर 15.09.2020 को ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किया गया और पहला बैच 21 नवंबर 2020 से शुरू हुआ है।

न्यायाधीशों के लिए आठ (8) और अधिवक्ताओं के लिए सात (7) इलेक्ट्रॉनिक वाद प्रबंधन उपकरण एक ही प्लेटफार्म में एकीकृत किए गए हैं और ये ईकोर्ट सर्विसेज पोर्टल और मोबाइल ऐप पर उपलब्ध हैं। दिल्ली और मुंबई के समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों में मानवीय हस्तक्षेप के बिना वाणिज्यिक मामलों का स्वचालित और यादृच्छिक आवंटन लागू किया गया है।

मानक प्रारूप में नियमित प्रकाशन और डेटा प्रस्तुत करने के लिए क्रमशः वाणिज्यिक न्यायालय (सांख्यिकीय डेटा) संशोधन नियम, 2020 और वाणिज्यिक न्यायालय (दायर-पूर्व मध्यस्थता और समझौता) संशोधन नियम, 2020 पेश किये गए हैं।

अदालती कार्यवाही के साथ संपत्ति पंजीकरण को जोड़ने के लिए न्याय विभाग और सर्वोच्च न्यायलयकी ई-समिति की पहल पर, भूमि संसाधन विभाग ने इसके कार्यान्वयन हेतु मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का मसौदा तैयार करने और पायलट परियोजना शुरू करने के लिए एक समिति का गठन किया है। नियमों के सरलीकरण पर समिति का गठन किया गया है जो दायर-पूर्व मध्यस्थता और समझौता (पीआईएमएस) शुल्क को घटाने पर विचार कर रही है ताकि पक्षकारों और अधिवक्ताओं पर अनुपालन बोझ को कम किया जा सके। ई-सम्मन पर एक समिति का गठन किया गया है, जो कंपनियों से डेटाबेस प्राप्त करके ई-मेल और एसएमएस अलर्ट के माध्यम से सम्मनप्रक्रिया पूरा करेगी। वाणिज्यिक न्यायालयों के तहत नियमों और रूपों के सरलीकरण के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जिसमें सर्वोच्च न्यायलय ई-समिति, दिल्लीउच्च न्यायालय, बॉम्बेउच्च न्यायालय, बेंगलुरुउच्च न्यायालय, कलकत्ताउच्च न्यायालय, डीओएलए और डीओजे के प्रतिनिधियों को सदस्य बनाया गया है।

ईओडीबी के तहत अनुबंध क्रियान्वन व्यवस्था में सुधार के लिए कानून फर्म के साथ ऑनलाइन बैठकशुरू की जायेगी।तीन उप समितियों का गठन किया गया है, जो (I) समय मानक और विलम्ब (ii) दायर-पूर्व मध्यस्थता और समझौता तथा (iii) -कोर्ट सेवाओं पर सुझाव देगी। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और एसोचैम के सहयोग से न्याय विभाग ने अनुबंध क्रियान्वनपर 4 वेबिनार आयोजित किए। इसका उद्देश्य भारत केलिए कारोबार सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस)की रैंकिंग में सुधार करना तथाई-कोर्ट, अदालती प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण और वकीलों व कॉर्पोरेट फर्मोंके साथ एडीआर व्यवस्था कोबेहतर बनाना है।सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के सहयोग से दो वेबिनार आयोजित किए गए पहला वेबिनारई-कोर्ट पोर्टल में ई-फाइलिंग तथा इलेक्ट्रॉनिक केस मैनेजमेंट टूल विषय पर था, जबकि दूसरा दिल्ली और मुंबई के वकीलों के लिए -कोर्ट सर्विस ऐपविषय पर था।

4. टेली-कानून

यह अप्रैल, 2017 में शुरू की गई भारत सरकार की एक अनूठी डिजिटल पहल है, जिसका मुख्य उद्देश्य मुकदमा दायर किये जाने से पहले मामलों को निपटाना है। इसके तहत समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सलाह दी जाती है। सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग / टेलीफोन सुविधा के माध्यम सेपैनल वकीलों द्वारा कानूनी सलाह दी जाती है। लाभार्थियों को सीएससी से संपर्क करने व अपने मामले दर्ज करने की सुविधा प्रदान करने के लिए पारा-लीगल वोलंटियर कार्यरत हैं।

यह सुविधा वर्तमान में देश के 29 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के 285 जिलों को कवर करते हुए 29860 सीएससी में संचालित की जा रही है, जिनमें 115 आकांक्षी जिले भी शामिल हैं। एक टेली-लॉ डैशबोर्ड (http://www.tele-law.in/) पंजीकृत और सलाह सक्षम मामलों की संख्या के बारे में वास्तविक समय पर जानकारी प्रदान करता है। यह 22 भाषाओं में उपलब्ध है। 2017 के बाद से, 4,61,782 मामलों के लिए सलाह दी गई है। इस वर्ष, 2,66,089 मामलों के लिए सलाह दी गई है जिसमें 71,394 महिलाएं, 71,398 अनुसूचित जाति, 54,536 अनुसूचित जनजाति और 88,109 ओबीसी लाभार्थी शामिल हैं। कोविड -19 लॉकडाउन अवधि के दौरान इस कार्यक्रम ने नागरिकों के लिए अपनी अपार क्षमता, शक्ति और उपयोगिता साबित की है। देश भर के लाभार्थियों को कोविड -19 महामारी से संबंधित सलाह भी दी गई है।

कार्यक्रम के प्रचार के लिए विकसित रेडियो जिंगल को सितंबर 2020 के दौरान एक महीने के लिए सभी 285 जिलों में ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से प्रसारित किया गया था।रेडियो जिंगल को 22 भाषाओं मेंतैयार किया गया था।टेली-कानून पर एक ई-पुस्तिका, "लाभार्थियों की बातें" जारी की गयी है और इसे डीओजे और टेली-लॉ वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। इसमें वास्तविक जीवन की कहानियों और लाभों का वर्णन है। टेली-कानूनसे सम्बंधित जानकारी प्रयासडैशबोर्ड पर भी उपलब्ध है, जो भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों और अन्य महत्वपूर्ण पहलों की पीएमओ द्वारा निगरानी तथासमीक्षा की सुविधा प्रदान करता है।

5. न्याय बंधु (निःशुल्क कानूनी सेवाएँ)

इस कार्यक्रम का उद्देश्य कानूनी सेवा प्राधिकार अधिनियम, 1987 की धारा 12 के तहत पात्र व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता और परामर्श प्रदान करना है। यह सेवा उन अधिवक्ताओं द्वारा प्रदान की जाती है जो पंजीकृत आवेदकों / मुकदमों के मामलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपनी सेवायें निःशुल्क देने के लिए पंजीकृत हैं। 2243 वकीलों ने पंजीकरण कराया है और इस कार्यक्रम को अब तक 875 मामले सौंपे गए हैं। पंजीकृत न्याय बंधु अधिवक्ताओं की सूची https://probono-doj.in/list-of-advocates.html पर उपलब्ध है।

न्याय बंधु मोबाइल ऐप एनड्रोइड, आईओएसतथाइलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के प्लेटफ़ॉर्म उमंगपर उपलब्ध है इस प्रकार यह अपनी सेवायें 2.0करोड़ से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध करा रहा है। देश में निःशुल्क कानूनी ढांचे को संस्थागत रूप देने के लिए, विधि संस्थानों में प्रो बोनो क्लब योजना शुरू की गयी है। इस योजना का उद्देश्य युवाओं को निःशुल्क कानूनी सहायता की समझ और दर्शन से अवगत कराना है और पंजीकृत अधिवक्ताओं को शोध और कानूनी मसौदा तैयार करने में सहायता प्रदान करना है। 17 विधि संस्थानों ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। विवरण http://www.probono-doj.in/list-of-law-schools.html पर उपलब्ध हैं।राज्य स्तर पर न्याय बंधु पैनल के तहत अधिवक्ताओं को नियुक्त करने के लिए उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार से संपर्क किया गया है, ताकि निःशुल्क कानूनी सहायता हेतु वकीलों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।

इन नई पहलों को सुविधाजनक बनाने के लिए, विधि संस्थानों की प्रो बोनो क्लब योजना और उच्च न्यायालयों के न्याय बंधु पैनल के लिए न्याय बंधु वेब पोर्टल (www.probono-doj.in) के होम पेज में एक अलग मॉड्यूल बनाया गया है। इस मॉड्यूल में डैशबोर्ड, पंजीकरण फॉर्म, गतिविधि रिपोर्टिंग, रिपोर्ट और पूछ-ताछ, सफलता की कहानियां, विवरण आदि के प्रावधान हैं।

न्याय विभाग ने न्याय बंधु पहल के प्रचार-प्रसार के लिए उच्च न्यायालयों और राज्य बार काउंसिलों से सहयोग की मांग की है और प्रचार के लिएन्याय बंधु आईईसी सामग्री का वितरण भी किया है। देश भर के उच्च न्यायालयों और बार काउंसिलों को 18 क्षेत्रीय भाषाओं में लगभग 7.2 लाख न्यायबंधु पर्चे भेजे गए हैं।

6. पूर्वोत्तर तथा जम्मू और कश्मीर के लिए न्याय तक पहुंच

"न्याय तक पहुँच - पूर्वोत्तर राज्यतथा जम्मू और कश्मीर" कार्यक्रम,पूर्वोत्तर के आठ राज्यों (सिक्किम समेत) तथा जम्मू और कश्मीर यूटी में 2012 से लागू है। कार्यक्रम का उद्देश्य कानूनी जागरूकता पैदा करना, कानूनी साक्षरता को बेहतर बनाना और समाज के कमजोर वर्गों, जैसे महिलाओं, बच्चों, एससी और एसटी की कानूनी जरूरतों को पूरा करना है।

वर्ष के दौरान निम्नलिखित गतिविधियों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।

अरुणाचल प्रदेश:

अरुणाचल प्रदेश राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एपीएसएलएसए) के साथ साझेदारी में, 10 जिला मुख्यालयों में 10 कानूनी सहायता क्लीनिक (एलएसी) की स्थापना की गई है। एलएसी से जुड़े पैरा लीगल वालंटियर्स (पीएलवी) ने लोगों में कानूनी जागरूकता की कमी को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया। कानूनों और सरकारी योजनाओं के बारे में आईईसी सामग्री की एक लाख प्रतियां मुद्रित और वितरित की गईं। कानूनी जागरूकता अभियान के तहत 39 गांवों में घर-घर जाकर 6643 लोगों से संपर्क किया गया।

एपीएसएलएसए ने " सामाजिक प्रथाओं के नियम और औपचारिक कानूनों के बीच तालमेल" पर दो कानूनी साक्षरता-सह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। 225 ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया गया और जागरूक बनाया गया। 14 जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों और ग्रामीणों के लिए राज्य स्तरीय ऑनलाइन परामर्श बैठक का भी आयोजन किया गया।

मणिपुर:

राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (एसआईआरडी), मणिपुर ने पंचायती राज पदाधिकारियों के लिए अधिकारों और कानूनों पर 50 प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे किए, जिससे 1632 पदाधिकारी लाभान्वित हुए। एसआईआरडी ने छह स्थानीय बोलियों में आईईसी सामग्री का अनुवाद भी किया।

मेघालय:

मेघालय राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एमएसएलएसए ) ने मेघालय के पूर्वी खासी हिल्स जिले में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पीओसीएसओ) अधिनियम पर कानूनी जागरूकता अभियान का आयोजन किया। एक विश्वविद्यालय और 8 कॉलेजों समेत 3000 छात्रों ने इस अभियान में भाग लिया।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर:

जम्मू और कश्मीर राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (जेकेएसएलएसए) ने वर्ष के दौरान 27 कानूनी सहायता क्लीनिक (एलएसी) स्थापित किए हैं। इन एलएसीमें कार्यरत पैरा लीगल वालंटियर्स ने लगभग 6000 लोगों को लाभान्वित करने वाले कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों की श्रृंखला का आयोजन किया।

असम और सिक्किम:

राज्य संसाधन केंद्र (एसआरसी), असम ने असम के 4 जिलों और सिक्किम के पश्चिम सिक्किम जिले में 78 आपसी विचार-विमर्श जागरूकता बैठकों का आयोजन किया। इस परियोजना के तहत विभिन्न गतिविधियों से 46,321 लोग लाभान्वित हुए हैं।

7. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए)

एनएएलएसएने आम लोगों की कानूनी सहायता संस्थानों तक आसान पहुँचके लिए राष्ट्रीय कानूनी सहायता हेल्पलाइन (15100) और राज्य कानूनी सहायता हेल्पलाइन नंबर को सक्षम बनाया। लोगों को उनके अधिकारों और हक के बारे में शिक्षित करने के लिए रेडियो सहित सोशल मीडिया टूल का उपयोग करने के लिए भी कदम उठाए गए। विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा जून, 2020 में प्रारूपों की हैंडबुक तैयार की गई और लॉन्च की गई। इसका उद्देश्य दस्तावेज और डेटा संग्रह में एकरूपता लाने के माध्यम से कानूनी सेवाओं का बेहतरप्रबंधन करना है।

राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से एनएएलएसएने 15 अगस्त, 2020 को एक परियोजना, "कानूनी जागरूकता के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण"शुरू की। इस परियोजना के तहत आंध्र प्रदेश,असम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों के 285 जिलों में महिलाओं के लिए कानूनी साक्षरता कार्यक्रम आयोजित किये गए। महिलाओं से संबंधित कानूनों पर एक "हैंडबुक" भी जारी की गई जो कार्यक्रम से जुड़े व्यक्तियों के लिए टूलकिट का काम करेगी।

विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा आयोजित, लोक अदालत (राज्य स्तरीय तथा राष्ट्रीय) वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) का एक तरीका है, जिसमें मुकदमा दायर करने से पहले और न्यायालयों में लंबित मामलों को सौहार्दपूर्ण तरीके से  निपटाया जाता है और इसमें पक्षकारों को कोई खर्च भी नहीं करना पड़ता है। यह निःशुल्क है और पक्षकारों को मुकदमों की कठोरता से बचाता है,जिसे आमतौर पर समय लेने वाला, जटिल और महंगा माना जाता है। महामारी के कारण दौरान विधिक सेवा प्राधिकरण रचनात्मक रूप से नयी परिस्थिति के लिए अनुकूलित हुआ और इसनेलोक अदालत को वर्चुअल प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराया। ऑनलाइन लोक अदालत का लोकप्रिय नाम ई-लोक अदालत हो गया है और यह भी बहुत किफायती है, क्योंकि यह आयोजन संबंधी खर्चों की आवश्यकता को समाप्त करता है। 17 राज्यों में अब तक 33-लोक अदालत का आयोजन किया गया है, जिसमें 5.41 लाख मामलों पर विचार किया गया, 3.00 लाख मामलों को निपटाया गया, जिसके परिणामस्वरूप 2918.00 करोड़ रुपये के समझौते हुए।

8. फास्ट ट्रैक विशेष न्यायलय (एफटीएससी) की स्थापना

चूंकि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा चिंता का विषय है, न्याय विभाग देश भर में 1023 एफटीएससीकी स्थापना के लिए एक योजना लागू कर रहा है, ताकि दुष्कर्म और पॉस्को अधिनियम से संबंधित लंबित मामलों का त्वरित परीक्षण और निपटान हो सके। योजना के तहत स्थापित की जाने वाली 389 विशेष पॉस्को अदालतों सहित कुल 1023 एफटीएससीमें से, 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने 823 एफटीएससीकी पहचान की है, जिनमें 363 विशेष पॉस्कोअदालतें शामिल हैं। अभी321 विशेष पॉस्कोअदालतों के साथ 597 एफटीएससीपरिचालन में हैं।

9. न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन और ग्राम न्यायलय के संचालन की योजना:

न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) के कार्यान्वयन का उद्देश्य जिला, उप-जिला, तालुका,तहसील, ग्राम पंचायत और ग्राम स्तर सहित पूरे देश में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों / न्यायिक अधिकारियों के लिए उपयुक्त कोर्ट हॉल और आवासीय आवासों की उपलब्धता को बढ़ाना है।। यह देश भर में न्यायपालिका के कामकाज और प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करेगा ताकि हर नागरिक की कानून तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके।

ग्राम न्यायलय के संचालन की योजना का उद्देश्य समाज के कमजोर लोगों को  न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना है, जिससे न्याय प्रणाली से अलग किसी अन्य व्यवस्था पर उनकी निर्भरता कम हो और उच्च न्यायालयों के कार्यभार में कमी आये। ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 का उद्देश्य है - "नागरिकों को उनके घर पर ही न्याय प्रदान करने के लिए ग्राम न्यायालय की स्थापना करना और यह सुनिश्चित करना कि सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण कोई भी नागरिकन्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित ना हो।"

न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) की शुरुआत के बाद से 7975.81 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। कुल धनराशि में से 2014-15 के बाद 4531.50 करोड़ रुपये जारी किये गए हैं, जो मंजूर की गयी कुल धनराशि का 56.82 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष 2020-2021 के दौरान 754.00 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जिसमें से 243.56 करोड़ मंजूर किए गए हैं। वित्त वर्ष 2019-20 में, राज्यों को 982 करोड़ रुपये जारी किए गए थे।

उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 19,996 कोर्ट हॉल उपलब्ध हैं, जो 2014 में उपलब्ध 15,818 कोर्ट हॉल की तुलना में काफी ज्यादा हैं। जहां तक ​​आवासीय इकाइयों का संबंध है, 17,752 आवासीय इकाइयाँ उपलब्ध हैं, जबकि न्यायाधीशों / न्यायिक अधिकारियों की अधिकतम क्षमता 19,366 है। 2014 में 10,211 आवासीय इकाइयाँ उपलब्ध थीं। इसके अलावा, 2,836 कोर्ट हॉल और 1,858 आवासीय इकाइयाँ निर्माणाधीन हैं।

न्याय विकास 2.0 का शुभारंभ:कानून और न्याय मंत्री ने 11 जून, 2018 को न्याय विकास काशुभारंभकिया था, जो निर्माण परियोजनाओं की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन उपकरण है। उपयोगकर्ताओं के फीड बैक के आधार पर न्याय विकास वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप को उन्नत किया गया है और संस्करण 2.0 को 1 अप्रैल, 2020 सेलोगों के लिए उपलब्ध कराया गया है। इसे एनआरएससी, इसरो की सहायता से विकसित किया गया है।

ग्राम न्यालाय की स्थापना और संचालन की योजना के लिए वित्त वर्ष 2020-21 में 31 अक्टूबर, 2020तक 3.78 करोड़ रुपये (बीई 8.00 करोड़ रुपये) की धनराशि जारी की गई है। राज्यों को वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 8 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। 12 राज्यों ने 402 ग्राम न्यायलय अधिसूचित किए हैं, जिनमें से 30 नवंबर, 2020 तक 225 का संचालन किया जा रहा है।

10. नागरिकों के कर्तव्य पर जागरूकता कार्यक्रम

इस उद्देश्य के लिए, नोडल समन्वय विभाग के रूप में अपने उत्तरदायित्व के तहत न्याय विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय ने मौलिक कर्तव्यों सहित नागरिक कर्तव्यों पर जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन के लिए विशेष प्रयास किये हैं। 26 नवंबर 2019 को लॉन्च किये गएइस कार्यक्रम में अब तक 48.6 करोड़ से अधिक नागरिकों ने भाग लिया है। भारत सरकार के सभी विभागों / मंत्रालयों, राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों, न्यायपालिका, एनएसएस / एनवाईके स्वयंसेवकों के साथ-साथ भारत और विदेशों में भारतीय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं। इनमें ऑनलाइन प्रस्तावना पढ़ना (21.86 लाख), ऑनलाइन प्रतिज्ञा लेना (1.90 लाख), वेबिनार (10,600), विशेष ई-टिकट (14.5करोड़), सोशल मीडिया (10.95करोड़) आदि शामिल हैं।स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम नहीं चलाए गए हैं। सीडीएपी के तहत 86 से अधिक, मंत्रालयों / विभागों द्वारा पूरे साल भर गतिविधियों का आयोजन किया गया है।ग्राम पंचायतों के 31 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों ने प्रचार गतिविधियों में भाग लिया। भारतीय संविधान और मौलिक कर्तव्यों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए 14,500 विशेष ग्राम सभाएं आयोजित की गयीं।

नेशनल बुक ट्रस्ट के सहयोग से न्याय विभाग ने दिल्लीविश्व पुस्तक मेले में एक स्टाल लगाया, जिसमें प्रस्तावना पढ़ने, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं, प्रस्तावना वॉल पर हस्ताक्षर आदि के जरिये आम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की गयी।न्याय विभाग ने सीएससी नेटवर्क के तहत 16 राज्यों के 310 जिलों के अंतर्गत 1000 डिजिटल गांवों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये। अब तक सीडीएपी-डिजिटल विलेज कार्यक्रम में 4,84,000 से अधिक ग्रामीणों ने भाग लिया है।

देश में कोरोना वायरस से मुकाबला करने और इसके नियंत्रण से नागरिकों के कर्तव्यों को जोड़ने पर भी बहुत जोर दिया गया है। न्याय विभाग ने मायगॉव  के सहयोग से कोविड -19 के नियंत्रण सेनागरिकों के कर्तव्यों को जोड़ने पर एक लघु फिल्म जारी की। कोरोना से लड़ने के कर्तव्य को लेकर www.mygov.inपर 1 लाख से अधिक ऑनलाइन प्रतिज्ञाओं पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, 19 लाख से अधिक एनएसएस स्वयंसेवकों और 720 कार्यक्रम अधिकारियों ने कोविड -19 संबंधी स्वैच्छिक गतिविधियों में हिस्सा लिया। एसोचैम के सहयोग से न्याय विभाग द्वारा15 अगस्त, 2020 कोकोविड -19 के दौरान नागरिक कर्तव्यविषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें 500 से अधिक लोगों ने भाग लिया। कॉरपोरेट सेक्टर के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों और व्यवसायिक प्रतिनिधियों को कोविड -19 के दौरान कॉर्पोरेट क्षेत्र के कर्तव्य और उत्तरदायित्वविषय पर संबोधन के लिए वक्ताओं के रूप में आमंत्रित किया गया था।

न्याय विभागने छात्रों में वैज्ञानिक स्वभाव और नवाचार विकसित करने और जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने तथा उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन के साथ सहयोग किया। कार्यक्रम में 20 लाख से अधिक छात्र पंजीकृत हैं। मायगॉव के माध्यम से 29 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक भारत का संविधान और मौलिक कर्तव्यविषय पर एक ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित की गयी, जिसमें 49,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया। गांधी जयंती पर "एटीएल वेबिनार सीरीज" के हिस्से के रूप में नीति आयोग / अटल इनोवेशन मिशन के सहयोग से मौलिक कर्तव्यविषय पर एक वेबिनार आयोजित किया गया।

नागरिकों में संविधान और मौलिक कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए न्याय विभाग ने अपने डिजिटल उपकरणों की सहायता से ब्रोशर, पोस्टर, स्टैंड पोस्टर, क्विज़ बैंक, प्रस्तावना वॉल जैसी प्रचार सामग्री तैयार की।

11. मोरक्को के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू)

भारत के सर्वोच्च न्यायालय और मोरक्को के साम्राज्य की न्यायिक शक्ति की सर्वोच्च परिषद के बीच24 जुलाई, 2020 कोरबात में न्यायिक क्षेत्र में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर किये गए। इसका उद्देश्य दोनों पक्षों को कंप्यूटर और डिजिटल प्रौद्योगिकियों का क्षेत्र में अपने अनुभवों और विशेषज्ञता का आदान-प्रदान करने और लाभान्वित होने की अनुमति देना है।

12. दूसरा राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (एसएनजेपीसी)

सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिका संख्या सं. 643/2015, दिनांक 09.05.2017 परअपने आदेश में भारत में अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान, आय और सेवा शर्तों की समीक्षा करने के लिए एक न्यायिक वेतन आयोग नियुक्त करने का निर्देश दिया था। इसका उद्देश्य अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में सुधार करना है। तदनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पी.वीरेड्डी की अध्यक्षता में द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन किया गया। फरवरी, 2020 में एसएनजेपीसीने सर्वोच्च न्यायालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौपी और न्याय विभागको भी रिपोर्ट की एक प्रति दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने 28फरवरी, 2020 को रिपोर्ट पर विचार किया और न्याय विभाग समेत राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों को प्रत्येक सिफारिश के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने का निर्देश दिया। न्याय विभाग ने जून, 2020 में अपना पक्ष प्रस्तुत किया।

एमजी / एएम / एसके


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