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सरहदों का विस्तार करती 'लाला एंड पॉपी' : फिल्म की टीम ने सुनाई तय दायरों को तोड़ने वाली फिल्म की निर्माण कथा


वीर और सुरुज ने दमदार कहानी और विश्वसनीयता से दिल जीता

दायरों से आगे, पहचान और स्वीकृति को समेटती बातचीत

मुंबई की धड़कन में जन्मी कोमल ट्रांसजेंड प्रेम कथा ‘लाला एंड पॉपी’ की टीम ने आज इफी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस फिल्म की यात्रा, इसकी सामाजिक अनुगूंज और ईमानदार निरूपण के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर बेबाक बातचीत की। निर्देशक कैजाद गुस्ताद, निर्माता बॉबी बेदी तथा अदाकारों वीर सिंह और सुरुज राजखोवा ने चहारदीवारियों से प्रेम को, दोहरेपन से मानवता को और शोशेबाजी से प्रामाणिकता को ऊपर रखने का साहस दिखाने वाली अपनी इस फिल्म पर दिल खोल कर चर्चा की।

ईमानदार दास्तानगोईः इंसान पहले, लिंग भेद बाद में

बॉबी बेदी ने बातचीत की शुरुआत करते हुए बताया कि उन्होंने दशकों तक बड़ी फिल्में प्रोड्यूस करने के बाद इस प्रोजेक्ट से जुड़ने का फैसला क्यों किया। उन्होंने कहा कि हर बड़ी फिल्म दर्शकों के साथ से ही बड़ी बनती है। ईमानदारी और लगाव को अपने दिल में समेटे ‘लाला एंड पॉपी’ भी इसी दिशा में बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि भारत का समाज करवट ले रहा है। कानून ने ट्रांसजेंडर पहचानों को कबूल कर लिया है। लेकिन इन्हें आम सामाजिक मंजूरी अभी नहीं मिल सकी है। उनके अनुसार इस फिल्म का एक सीधासादा सा विश्वास है। इंसानियत पहले आती है, लिंग भेद बाद में। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर इंसान को आजाद रहने, प्रेम करने और भय के बिना जीने का हक है।

कैजाद गुस्ताद ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उनका इरादा एक ऐसी ईमानदार फिल्म बनाने का था जो सिर्फ एक एलजीबीटीक्यू प्लस कहानी होने के बजाय समूचे विश्व से संवाद कर सके। वह एक ऐसी प्रेम कथा कहना चाहते थे जिससे दर्शक खुद को जोड़ सकें। इसका दो ट्रांसजेंडर के बीच होना तो बस एक संयोग है। वह जिस दुनिया की बात कह रहे हैं उसे वह शुरुआत में बहुत कम जानते थे। इसलिए कहानी को कागज पर उतारने से पहले उन्हें बरसों के शोध, ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ आत्मीय बातचीत और बारीकियों को सही ढंग से समझने की प्रतिबद्धता की दरकार थी।

वीर और सूरज की सफरनामा चर्चा के केंद्र में

ट्रांसजेंडर कलाकारों, वीर सिंह और सुरुज राजखोवा ने चर्चा को एक अंतरंग निजी रंग दे दिया। वीर ने कहा कि वह जब बड़े हो रहे थे उस समय परदे पर उन जैसे लोगों की मौजूदगी नहीं थी। उनकी तमन्ना थी कि वह अपने जैसे लोगों का प्रतिनिधि बनें। उन्होंने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि मेरे जैसे लोग मुझे परदे पर देखें। वे सोचें कि अगर मैं यह सब कर सकता हूं तो उनके लिए भी ऐसा करना मुमकिन है। सूरज ने कहा कि बेशक, एलजीबीटीक्यू प्लस चरित्र भारतीय सिनेमा में लंबे समय से मौजूद रहे हैं। लेकिन उनका इस्तेमाल सिर्फ हास्य पैदा करने के लिए ही किया गया है। ‘लाला एंड पॉपी’ उन्हें परदे पर इंसानों की तरह जीने का मौका देती है जो अपनेआप में अभूतपूर्व है।

कहानी को मुख्यधारा में लाना

बॉबी बेदी से पूछा गया कि यह फिल्म एलजीबीटीक्यू प्लस दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाई गई है या मुख्यधारा को। इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘यह समारोहों के लिए नहीं बल्कि अवाम के वास्ते बनाई गई फिल्म है।’’ उन्होंने कहा कि यह आम लोगों की फिल्म है। इसलिए वह इसे मुख्यधारा के समारोहों, सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स तक ले जाएंगे।

कैजाद ने इस बात को दोहराया कि ‘लाला एंड पॉपी’ कोई उपदेश देने वाली फिल्म नहीं है। वह जरूरत से ज्यादा नैतिकता का पाठ पढ़ाने के बजाय उम्मीद करते हैं कि फिल्म की भावनात्मक सचाई अपनी बात खुद बयान करेगी। उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी फिल्म को अपने दर्शकों के साथ संवाद करना होता है। प्रेम लिंग भेद से पर है। इस सच के बारे में चीख कर बताने की नहीं, बल्कि इसे महसूस करने की जरूरत है।’’

दोनों अदाकारों, वीर सिंह और सुरुज राजखोवा के लिए यह फिल्म दुनिया के सामने गरिमामय मौजूदगी की उम्मीद है। यह एक ऐसी सिनेमाई यात्रा की शुरुआत है जिसमें ट्रांस लोग सिर्फ इंसान के तौर पर देखे जा सकते हैं। सूरज ने कहा, ‘‘यह इतिहास की तरह महसूस होता है।’’

बातचीत के अपने मुकाम तक पहुंचते-पहुंचते ‘लाला एंड पॉपी’ के संदेश की गूंज सुनी जा सकती थी। यह सिर्फ लिंग परिवर्तन के बारे में फिल्म नहीं है। यह प्रेम, साहस और जीने के हक के बारे में फिल्म है। मौजूदा समय में दुनिया बदलती पहचानों को कबूल करना सीख ही रही है। ऐसे में यह फिल्म याद दिलाती है कि प्रेम के सभी रूपों को खिलने के लिए मौके की दरकार होती है।

प्रेस वार्ता का लिंक:

इफ्फी के बारे में

1952 में शुरू हुआ, इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (इफ्फी) दक्षिण एशिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा फिल्म समारोह है। इसे राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार और एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ़ गोवा, गोवा सरकार द्वारा सयुंक्त रूप से आयोजित किया जाता है। यह समारोह सिनेमा के शक्तिशाली मंच के तौर पर उभरा है जिसमें साहसिक प्रयोग मिलते हैं और प्रसिद्ध फिल्मकार शामिल होते हैं। इफ्फी को वास्तव में आकर्षक बनाने वाली चीज़ है इसका रोमांचक मिश्रण जिसमें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शन, मास्टरक्लासेस, श्रद्धांजलियां  और ऊर्जा से भरपूर वेव्स का फिल्म बाज़ार शामिल हैं और विचारों और सहयोगों को उड़ान मिलती है। गोवा के लुभावने तटों  में 20 से 28 नवंबर तक आयोजित होने वाला 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवोन्मेष  और आवाज़ों का एक शानदार समारोह है। यह विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक गहन उत्सव है।

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