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 “हर फिल्ममेकर कहता है कि नाव पर शूट मत करो—लेकिन मैंने नहीं सुना”: डायरेक्टर हैरोल्ड रॉसी ने पेस्काडोर के बारे में कहा


समुद्र के सपनों से लेकर डेक पर चुनौतियों तक, पेस्काडोर इफ्फी के मंच पर वास्तविकता लेकर आये

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में फ़िल्मकार हेरॉल्ड डोमेनिको रोसी ने अपनी फ़िल्म पेस्काडोर के निर्माण की एक अंतरंग झलक साझा की—एक फिल्म जो उनके चिकित्सकीय रूप से प्रेरित कोमा के अनुभवों से जन्मा था। उन्होंने बताया “उस कठिन समय के दौरान मैं बार-बार समुद्र देखता था। अकेलापन बहुत गहरा था।” आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ निर्माता बारबरा ऐन राशील और सिनेमैटोग्राफर व निर्माता आइज़ैक जोसेफ बैंक्स भी मौजूद थे।

“पेस्काडोर मेरे लिए उस भावनात्मक दूरी और जुड़ाव की लालसा को पर्दे पर उतारने का तरीका बन गया,” श्री रोसी ने कहा। उन्होंने समुद्र में शूटिंग की चुनौतियों को हास्य और सहजता के साथ याद किया। “इतिहास का हर फ़िल्म निर्माता चेतावनी देता है: नाव पर फ़िल्म मत शूट करो। मैंने नहीं सुनी,” वे हँसे। “लेकिन जल्दी ही समझ गया कि वे क्यों यह कहते हैं। खुले समुद्र में असली मछुआरों की नावों पर—और जंगल की गहराइयों में—शूट करना बेहद कठिन था। लेकिन इसकी जो वास्तविकता मिली, वह हर संघर्ष के लायक थी।”

निर्देशक ने यह भी खुलासा किया कि फ़िल्म का केंद्रीय मछुआरा किरदार एक गैर-अभिनेता ने निभाया है। “हमने जोखिम लिया—और वह सफल रहा। उसकी सहज उपस्थिति ने फ़िल्म में जान डाल दी।”

निर्माता बारबरा ऐन राशील ने पेस्काडोर को एक “सच्चा अंतरराष्ट्रीय सहयोग” बताया। इसमें अमरिका और कोस्टा रिका के कलाकारों और तकनीकी टीम का बराबर योगदान है। उन्होंने कहा, “हम साथ रहे, साथ काम किया, संस्कृतियाँ साझा कीं, एक-दूसरे की भाषाएँ सीखीं—यह मेरे जीवन के सबसे अनोखे अनुभवों में से एक था।”

 

सिनेमैटोग्राफर और निर्माता आइज़ैक जोसेफ बैंक्स ने फ़िल्म की दृश्य भाषा के बारे में बताया: “हेरॉल्ड और मैंने दोनों मुख्य पात्रों के लिए दो बिल्कुल अलग दृश्य शैलियाँ तैयार कीं। इस विरोधाभास ने कहानी कहने के तरीके को गहराई से प्रभावित किया।”

अपनी रॉ भावनात्मक आत्मा, अंतरराष्ट्रीय दृष्टि और साहसिक समुद्री शूटिंग के साथ, पेस्काडोर इफ्फी 2025 की सबसे व्यक्तिगत और दृष्टिगत रूप से प्रभावशाली फ़िल्मों में से उभरती है।

फ़िल्म की सारांश

एक अमेरिकी बहन, उसका भाई और एक कोस्टा रिकन मछुआरे की जिंदगियाँ जीवन और मृत्यु के पानी में एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं। भाग एक में एक युवा अमरिकी वैज्ञानिक कोस्टा रिका के अद्भुत प्राकृतिक दृश्य और कठिन जंगलों से होकर एक पौराणिक मछली की खोज में यात्रा करती है और मानव संबंधों की सीमाओं को परखती है। एक निराशाजनक कदम उठाने के बाद वह बस में सो जाती है—और फ़िल्म फिर से शुरू होती है। भाग दो में एक जादुई लॉब्स्टर एक अकेले मछुआरे की सबसे बड़ी इच्छा पितृत्व को पूरी करता है। मछुआरा समुद्र में भटके वैज्ञानिक के भाई को पाता है और उसकी देखभाल करता है। भाई भागने के लिए बेचैन रहता है, लेकिन धीरे-धीरे मदद स्वीकार करता है, मछली पकड़ना सीखता है और मछुआरे के समुदाय का हिस्सा बन जाता है—तब तक, जब तक उनकी नाज़ुक दोस्ती टूट नहीं जाती। पेस्काडोर सवाल पूछती है: आप अकेलेपन के लिए क्या बलिदान करते हैं? जुड़ाव और वल्नरबिलिटी के लिए क्या जोखिम उठाते हैं?

 इफ्फी के बारे में

1952 में शुरू हुआ भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (इफ्फी) दक्षिण एशिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा फ़िल्म उत्सव है। नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह महोत्सव एक वैश्विक सिनेमाई मंच बन चुका है। यहाँ पुनर्स्थापित क्लासिक्स नए साहसिक प्रयोगों से मिलते हैं और महान दिग्गज उभरते नवप्रवर्तकों के साथ खड़े होते हैं। इसकी असली चमक इसके रोमांचक मिश्रण में है—अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, मास्टरक्लास, श्रद्धांजलियाँ और ऊर्जा से भरा वेव्स फ़िल्म बाज़ार। यहाँ विचार, सौदे और सहयोग जन्म लेते हैं। गोवा के खूबसूरत समुद्री तटों की पृष्ठभूमि पर 20–28 नवंबर तक आयोजित 56वां संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवाचारों और आवाज़ों का एक शानदार उत्सव प्रस्तुत करता है—दुनिया के मंच पर यह भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक गहरा अनुभव है।

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