प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के केवड़िया में राष्ट्रीय एकता दिवस कार्यक्रम को संबोधित किया
स्वतंत्रता के बाद, सरदार पटेल ने 550 से अधिक रियासतों को एकजुट करने का असंभव कार्य पूरा किया; उनके लिए, 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का स्वप्न सर्वोपरि था: प्रधानमंत्री
हमारे राष्ट्र की एकता को कमजोर करने वाले हर विचार या कार्य को प्रत्येक नागरिक द्वारा त्याग दिया जाना चाहिए, यह हमारे देश के लिए समय की आवश्यकता है: प्रधानमंत्री
यह लौह पुरुष सरदार पटेल का भारत है, यह अपनी सुरक्षा या अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करेगा: प्रधानमंत्री
वर्ष 2014 से, हमारी सरकार ने नक्सलवाद और माओवादी आतंकवाद पर एक निर्णायक और शक्तिशाली प्रहार किया है: प्रधानमंत्री
राष्ट्रीय एकता दिवस पर, हमारा संकल्प भारत में रहने वाले हर घुसपैठिए को निकालने का है: प्रधानमंत्री
आज, राष्ट्र औपनिवेशिक मानसिकता के हर निशान को मिटा रहा है: प्रधानमंत्री
राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों का सम्मान करके, हम 'राष्ट्र प्रथम' की भावना को मजबूत कर रहे हैं: प्रधानमंत्री
विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें राष्ट्र की एकता को कमजोर करने की हर साजिश को विफल करना होगा: प्रधानमंत्री
भारत की एकता के चार स्तंभ-सांस्कृतिक एकता, भाषाई एकता, समावेशी विकास और संपर्क के माध्यम से दिलों का जुड़ाव हैं: प्रधानमंत्री
मां भारती के प्रति समर्पण प्रत्येक भारतीय के लिए सर्वोच्च आराधना है: प्रधानमंत्री
Posted On:
31 OCT 2025 12:05PM by PIB Delhi
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज गुजरात के केवड़िया में राष्ट्रीय एकता दिवस कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार पटेल की 150वीं जयंती एक ऐतिहासिक अवसर है। एकता नगर की सुबह को दिव्य और मनोहारी बताया और श्री मोदी ने सरदार पटेल के चरणों में सामूहिक उपस्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्र एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण का साक्षी बन रहा है। उन्होंने राष्ट्रव्यापी एकता दौड़ और करोड़ों भारतीयों की उत्साहपूर्ण भागीदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि नए भारत का संकल्प स्पष्ट रूप से महसूस किया जा रहा है। इससे पहले आयोजित किए गए कार्यक्रमों और पिछली शाम की उल्लेखनीय प्रस्तुति पर बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इनमें अतीत की परंपराओं, वर्तमान के श्रम और पराक्रम एवं भविष्य की उपलब्धियों की झलक दिखाई देती है। उन्होंने बताया कि सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक स्मारक सिक्का और एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया है। प्रधानमंत्री ने सरदार पटेल की जयंती और राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर देश के सभी 140 करोड़ नागरिकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि सरदार पटेल का मानना था कि इतिहास लिखने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए; बल्कि इतिहास रचने के प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह दृढ़ विश्वास सरदार पटेल की जीवन-गाथा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल द्वारा अपनाई गई नीतियों और निर्णयों ने इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे सरदार पटेल ने स्वतंत्रता के बाद 550 से अधिक रियासतों के एकीकरण के असंभव से लगने वाले कार्य को पूरा किया। 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का विचार सरदार पटेल के लिए सर्वोपरि था। श्री मोदी ने कहा कि यही कारण है कि सरदार पटेल की जयंती स्वाभाविक रूप से राष्ट्रीय एकता का एक भव्य उत्सव बन चुकी है। जिस प्रकार 140 करोड़ भारतीय 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं, उसी प्रकार एकता दिवस का महत्व भी अब उसी स्तर पर पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि आज करोड़ों लोगों ने एकता की शपथ ली है और राष्ट्र की एकता को मजबूत करने वाले कार्यों को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि एकता नगर में ही, एकता मॉल और एकता गार्डन एकता के सूत्र को मजबूत बनाने वाले प्रतीक के रूप में खड़े हैं।
प्रधानमंत्री ने बल देते हुए कहा कि हर नागरिक को ऐसे हर काम से बचना चाहिए जो देश की एकता को कमज़ोर करता हो। उन्होंने कहा कि यही समय की मांग है और हर भारतीय के लिए एकता दिवस का मूल संदेश भी यही है। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने राष्ट्र की संप्रभुता को सर्वोपरि रखा। हालांकि, उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि सरदार पटेल के निधन के बाद के वर्षों में, आने वाली सरकारों ने राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रति उतनी गंभीरता नहीं दिखाई। उन्होंने कश्मीर में हुई गलतियों, पूर्वोत्तर की चुनौतियों और देश भर में नक्सल-माओवादी आतंकवाद के प्रसार को भारत की संप्रभुता के लिए सीधा ख़तरा बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार पटेल की नीतियों का पालन करने के बजाय, उस दौर की सरकारों ने एक रीढ़विहीन दृष्टिकोण अपनाया, जिसका परिणाम देश को हिंसा और रक्तपात के रूप में भुगतना पड़ा।
श्री मोदी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी में से बहुतों को शायद यह पता न हो कि सरदार पटेल कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की इच्छा रखते थे, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने अन्य रियासतों का सफलतापूर्वक विलय किया था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं होने दिया। श्री मोदी ने कहा कि कश्मीर को एक अलग संविधान और एक अलग प्रतीक द्वारा विभाजित किया गया था। उन्होंने कहा कि कश्मीर पर तत्कालीन सत्तारूढ़ दल की गलती ने देश को दशकों तक अशांति में डुबोए रखा। उनकी कमजोर नीतियों के कारण, कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया और पाकिस्तान ने आतंकवाद को और बढ़ावा दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि कश्मीर और देश, दोनों ने इन गलतियों की भारी कीमत चुकाई फिर भी, उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार आतंकवाद के आगे झुकती रही।
सरदार पटेल के विजन को भुला देने के लिए वर्तमान विपक्षी दल की आलोचना करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उनकी पार्टी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि 2014 के बाद, राष्ट्र ने एक बार फिर सरदार पटेल से प्रेरित दृढ़ संकल्प देखा। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज कश्मीर अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से मुक्त हो गया है और पूरी तरह से मुख्यधारा में शामिल हो गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और आतंकवाद के आकाओं को भी अब भारत की असली क्षमता का एहसास हो गया है। ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरी दुनिया ने देखा है कि अगर कोई भारत को चुनौती देने की हिम्मत करता है, तो देश दुश्मन की ज़मीन पर हमला करके जवाब देता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत की प्रतिक्रिया हमेशा मज़बूत और निर्णायक रही है। उन्होंने कहा कि यह भारत के दुश्मनों के लिए एक संदेश है— "यह लौह पुरुष सरदार पटेल का भारत है और यह अपनी सुरक्षा और सम्मान से कभी समझौता नहीं करेगा।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में, पिछले ग्यारह वर्षों में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि नक्सल-माओवादी आतंकवाद की रीढ़ तोड़ना रही है। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2014 से पहले देश में हालात ऐसे थे कि नक्सल-माओवादी समूह भारत के मध्य से ही अपना शासन चलाते थे। इन इलाकों में भारत का संविधान लागू नहीं होता था और पुलिस व प्रशासनिक व्यवस्थाएं काम नहीं कर पाती थीं। श्री मोदी ने कहा कि नक्सली खुलेआम हुक्म चलाते थे, सड़क निर्माण में बाधा डालते थे और स्कूलों, कॉलेजों और अस्पतालों पर बमबारी करते थे, जबकि प्रशासन उनके सामने बेबस नज़र आता था।
श्री मोदी ने कहा कि वर्ष 2014 के बाद, हमारी सरकार ने नक्सल-माओवादी आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक अभियान चलाया। उन्होंने कहा कि शहरी इलाकों में रहने वाले नक्सल समर्थकों—शहरी नक्सलियों—को भी दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैचारिक लड़ाई जीती गई और नक्सलियों के गढ़ों में सीधा मुकाबला किया गया। उन्होंने कहा कि इसके परिणाम अब पूरे देश के सामने हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2014 से पहले देश के लगभग 125 जिले माओवादी आतंकवाद से प्रभावित थे। आज यह संख्या घटकर केवल 11 रह गई है और केवल तीन जिले ही गंभीर नक्सल प्रभाव का सामना कर रहे हैं। एकता नगर की धरती से, सरदार पटेल की उपस्थिति में, प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को आश्वासन दिया कि सरकार तब तक नहीं रुकेगी जब तक भारत नक्सल-माओवादी खतरों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता।
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि आज देश की एकता और आंतरिक सुरक्षा घुसपैठियों के कारण गंभीर ख़तरे में है, प्रधानमंत्री ने कहा कि दशकों से विदेशी घुसपैठिए देश में घुस आए हैं, नागरिकों के संसाधनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं, जनसांख्यिकीय संतुलन बिगाड़ रहे हैं और राष्ट्रीय एकता को ख़तरे में डाल रहे हैं। उन्होंने पिछली सरकारों की इस गंभीर मुद्दे पर आंखें मूंद लेने के लिए आलोचना करते हुए उन पर वोट बैंक की राजनीति के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने का आरोप लगाया। श्री मोदी ने कहा कि पहली बार देश ने इस बड़े ख़तरे से निर्णायक रूप से लड़ने का संकल्प लिया है। उन्होंने इस चुनौती से निपटने के लिए लाल किले से जनसांख्यिकी मिशन की घोषणा को याद किया। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज भी, जब इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया जा रहा है, कुछ लोग राष्ट्रीय कल्याण पर निजी हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि ये लोग घुसपैठियों को अधिकार दिलाने के लिए राजनीतिक लड़ाई में लगे हुए हैं और राष्ट्रीय विघटन के परिणामों के प्रति उदासीन हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर राष्ट्र की सुरक्षा और पहचान ख़तरे में पड़ी, तो हर नागरिक ख़तरे में होगा। इसलिए, राष्ट्रीय एकता दिवस पर प्रधानमंत्री ने राष्ट्र से भारत में रह रहे प्रत्येक घुसपैठिये को बाहर निकालने के अपने संकल्प की पुनः पुष्टि करने का आह्वान किया।
लोकतंत्र में राष्ट्रीय एकता का अर्थ विचारों की विविधता का सम्मान करना भी है, इस पर ज़ोर देते हुए श्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र में मतभेद स्वीकार्य हैं, लेकिन व्यक्तिगत मतभेद नहीं होने चाहिए। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज़ादी के बाद, जिन लोगों को राष्ट्र का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, उन्होंने 'हम भारत के लोग' की भावना को कमज़ोर करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भिन्न विचारधाराओं वाले व्यक्तियों और संगठनों को बदनाम किया गया और राजनीतिक अस्पृश्यता को संस्थागत रूप दिया गया। उन्होंने बताया कि पिछली सरकारों ने सरदार पटेल और उनकी विरासत के साथ कैसा व्यवहार किया, और इसी तरह बाबा साहेब अंबेडकर को उनके जीवनकाल में और उनके निधन के बाद भी हाशिए पर रखा। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछली सरकारों ने डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं के प्रति भी यही रवैया अपनाया था। इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने का उल्लेख करते हुए, श्री मोदी ने संगठन पर हुए विभिन्न हमलों और षड्यंत्रों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक पार्टी और एक परिवार के बाहर हर व्यक्ति और विचार को अलग-थलग करने का जानबूझकर प्रयास किया गया।
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि देश को उस राजनीतिक अस्पृश्यता को समाप्त करने पर गर्व है जिसने कभी देश को विभाजित किया था, प्रधानमंत्री ने सरदार पटेल के सम्मान में स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के निर्माण और बाबा साहेब अंबेडकर को समर्पित पंचतीर्थ की स्थापना का ज़िक्र किया। उन्होंने स्मरण दिलाया कि दिल्ली में बाबा साहेब के निवास और महापरिनिर्वाण स्थल को पिछली सरकारों के शासनकाल में उपेक्षा का सामना करना पड़ा था, लेकिन अब इसे एक ऐतिहासिक स्मारक में बदल दिया गया है। प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछली सरकार के कार्यकाल में, केवल एक पूर्व प्रधानमंत्री के लिए एक समर्पित संग्रहालय था। इसके विपरीत, हमारी सरकार ने सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्रियों का संग्रहालय बनाया है। उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था, और यहां तक कि श्री प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन वर्तमान विपक्षी दल में बिताया, को भी भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। मुलायम सिंह यादव जैसे विरोधी विचारधाराओं के नेताओं को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये निर्णय राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठने और राष्ट्रीय एकता की भावना को मज़बूत करने के इरादे से लिए गए थे। उन्होंने कहा कि यह समावेशी दृष्टिकोण ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी परिलक्षित हुआ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय एकता पर हमला करने की मानसिकता औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान विपक्षी दल को न केवल अंग्रेजों से सत्ता और पार्टी संरचना विरासत में मिली है, बल्कि उन्होंने उनकी अधीनता की मानसिकता को भी आत्मसात कर लिया है। यह देखते हुए कि कुछ ही दिनों में राष्ट्र राष्ट्रीय गीत, वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाएगा, श्री मोदी ने याद दिलाया कि 1905 में, जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया तो वंदे मातरम प्रत्येक भारतीय के प्रतिरोध की सामूहिक आवाज और एकता एवं एकजुटता का प्रतीक बन गया। अंग्रेजों ने वंदे मातरम के उद्घोष पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रयास किया लेकिन असफल रहे। हालांकि, प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि जो काम अंग्रेज नहीं कर सके, वह पिछली सरकार ने अंततः कर दिखाया। उन्होंने कहा कि उन्होंने धार्मिक आधार पर वंदे मातरम के एक अंश को हटा दिया, जिससे समाज विभाजित हो गया और औपनिवेशिक एजेंडे को बढ़ावा मिला। प्रधानमंत्री ने पूरी ज़िम्मेदारी के साथ घोषणा की कि जिस दिन वर्तमान विपक्षी दल ने वंदे मातरम को खंडित और छोटा करने का फैसला किया, उसने भारत के विभाजन की नींव रख दी। प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों की आलोचना करते हुए कहा कि यदि उन्होंने वह गंभीर गलती न की होती तो आज भारत की छवि बहुत अलग होती।
श्री मोदी ने कहा कि तत्कालीन सत्ताधारियों की मानसिकता के कारण, देश दशकों तक औपनिवेशिक प्रतीकों को ढोता रहा। उन्होंने याद दिलाया कि हमारी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही भारतीय नौसेना के ध्वज से औपनिवेशिक शासन का प्रतीक चिह्न हटाया गया। उन्होंने बताया कि इस परिवर्तन के अंतर्गत राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बलिदान स्थल अंडमान स्थित सेलुलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मोरारजी देसाई की सरकार के कार्यकाल में ही दिया गया था। उन्होंने बताया कि हाल तक अंडमान के कई द्वीपों के नाम ब्रिटिश हस्तियों के नाम पर थे। अब इनका नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में कर दिया गया है और कई द्वीपों का नाम परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा गया है, साथ ही नई दिल्ली के इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के कारण, राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को भी उचित सम्मान नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की स्थापना ने उनकी स्मृतियों को अमर कर दिया है। उन्होंने कहा कि आंतरिक सुरक्षा के लिए 36,000 कर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, जिनमें पुलिस, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ और अन्य अर्धसैनिक बलों के सदस्य शामिल हैं, जिनके पराक्रम को लंबे समय से उचित सम्मान नहीं दिया गया था। श्री मोदी ने पुष्टि की कि यह उनकी सरकार ही है जिसने उन शहीदों के सम्मान में पुलिस स्मारक का निर्माण किया। श्री मोदी ने कहा कि देश अब औपनिवेशिक मानसिकता के हर प्रतीक को हटा रहा है और राष्ट्र के लिए बलिदान देने वालों का सम्मान करके 'राष्ट्र प्रथम' की भावना को मजबूत कर रहा है।
एकता को राष्ट्र और समाज के अस्तित्व का आधार बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि जब तक समाज में एकता बनी रहती है, राष्ट्र की अखंडता सुरक्षित रहती है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने वाली हर साजिश को विफल करना होगा। उन्होंने कहा कि देश राष्ट्रीय एकता के हर मोर्चे पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने भारत की एकता के चार आधारभूत स्तंभों को रेखांकित किया, जिनमें से प्रथम सांस्कृतिक एकता है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ने हज़ारों वर्षों से राष्ट्र को राजनीतिक परिस्थितियों से स्वतंत्र, एक एकीकृत इकाई के रूप में जीवित रखा है। उन्होंने बारह ज्योतिर्लिंगों, सात पवित्र नगरों, चार धामों, पचास से ज़्यादा शक्तिपीठों और तीर्थयात्राओं की परंपरा को वह प्राण ऊर्जा बताया जो भारत को एक जागरूक और जीवंत राष्ट्र बनाती है। उन्होंने कहा कि सौराष्ट्र तमिल संगमम और काशी तमिल संगमम जैसे आयोजनों के माध्यम से इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से, भारत के गहन योग विज्ञान को नई वैश्विक मान्यता मिल रही है और योग लोगों को जोड़ने का एक माध्यम बन रहा है।
भारत की एकता के दूसरे स्तंभ-भाषाई एकता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने कहा कि भारत की सैकड़ों भाषाएं और बोलियां राष्ट्र की खुली और रचनात्मक मानसिकता का प्रतिबिंब हैं। उन्होंने कहा कि भारत में, किसी भी समुदाय, सत्ता या संप्रदाय ने कभी भी भाषा को हथियार नहीं बनाया है या किसी एक भाषा को दूसरी भाषा पर थोपने का प्रयास नहीं किया है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि भारत भाषाई विविधता के मामले में सबसे समृद्ध देशों में से एक बन गया है। प्रधानमंत्री ने भारत की भाषाओं की तुलना संगीत के सुरों से की जो देश की पहचान को मज़बूत करते हैं। उन्होंने कहा कि हर भाषा को एक राष्ट्रीय भाषा माना जाता है और गर्व के साथ कहा कि भारत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक तमिल और ज्ञान की भंडार संस्कृत का घर है। उन्होंने प्रत्येक भारतीय भाषा की अद्वितीय साहित्यिक और सांस्कृतिक संपदा को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकार उन सभी को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है। श्री मोदी ने इच्छा व्यक्त की कि भारत के बच्चे अपनी मातृभाषा में अध्ययन करें और प्रगति करें तथा नागरिक अन्य भारतीय भाषाओं को सीखें और उनका सम्मान करें। उन्होंने कहा कि भाषाओं को एकता का सूत्र बनना चाहिए और यह एक दिन का काम नहीं बल्कि एक सतत प्रयास है जिसके लिए सामूहिक ज़िम्मेदारी की आवश्यकता है।
भारत की एकता के तीसरे स्तंभ को भेदभाव मुक्त विकास बताते हुए, श्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि गरीबी और असमानता सामाजिक ताने-बाने की सबसे बड़ी कमज़ोरियां हैं, जिनका अक्सर देश के विरोधियों द्वारा लाभ उठाया गया है। उन्होंने याद दिलाया कि सरदार पटेल गरीबी से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनाने के इच्छुक थे। सरदार पटेल का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर भारत को 1947 से दस वर्ष पहले आज़ादी मिल जाती, तो देश उस समय तक खाद्यान्न संकट से उबर चुका होता। सरदार पटेल का मानना था कि जिस तरह उन्होंने रियासतों के एकीकरण की चुनौती का समाधान किया, उसी तरह वे खाद्यान्न संकट से भी उतनी ही दृढ़ता से निपटते। श्री मोदी ने कहा कि सरदार पटेल का दृढ़ संकल्प ऐसा ही था और आज बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए भी यही भावना आवश्यक है। उन्होंने गर्व व्यक्त किया कि सरकार सरदार पटेल की अधूरी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए काम कर रही है। पिछले एक दशक में, 25 करोड़ नागरिकों को गरीबी से बाहर निकाला गया है। लाखों गरीब परिवारों को घर मिल रहे हैं, हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंच रहा है और निशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना राष्ट्र का मिशन और विज़न दोनों है। भेदभाव और भ्रष्टाचार से मुक्त ये नीतियां राष्ट्रीय एकता को मज़बूत कर रही हैं।
राष्ट्रीय एकता के चौथे स्तंभ-कनेक्टिविटी के माध्यम से दिलों को जोड़ने-को रेखांकित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि देश भर में रिकॉर्ड संख्या में राजमार्ग और एक्सप्रेसवे बनाए जा रहे हैं। वंदे भारत और नमो भारत जैसी रेल भारतीय रेलवे में बदलाव ला रही हैं। उन्होंने कहा कि छोटे शहर भी अब हवाई अड्डे की सुविधाओं तक पहुंच बना रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस आधुनिक बुनियादी ढांचे ने न केवल भारत के बारे में दुनिया की धारणा बदल दी है, बल्कि उत्तर और दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरियां भी कम कर दी हैं। उन्होंने कहा कि लोग अब पर्यटन और व्यापार के लिए आसानी से राज्यों के बीच यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह लोगों के बीच जुड़ाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के एक नए युग का प्रतीक है, जो राष्ट्रीय एकता को मज़बूत कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि डिजिटल कनेक्टिविटी भी लोगों के बीच जुड़ाव को और मज़बूत कर रही है।
सरदार पटेल के शब्दों का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें सबसे अधिक आनंद राष्ट्र की सेवा करने में मिलता है। प्रधानमंत्री ने इसी भावना को दोहराया और प्रत्येक नागरिक से इसी भावना को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि देश के लिए काम करने से बड़ा कोई सुख नहीं है और मां भारती के प्रति समर्पण प्रत्येक भारतीय के लिए सर्वोच्च आराधना है। श्री मोदी ने कहा कि जब 140 करोड़ भारतीय एक साथ खड़े होते हैं, तो पहाड़ भी मार्ग दे देते हैं और जब वे एक स्वर में बोलते हैं, तो उनके शब्द भारत की सफलता का उद्घोष बन जाते हैं। उन्होंने राष्ट्र से एकता को एक दृढ़ संकल्प के रूप में अपनाने, अविभाजित और अडिग रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यही सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि है। विश्वास व्यक्त करने के साथ प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए अपने संबोधन का समापन किया कि एकजुट होकर, राष्ट्र 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के संकल्प को मजबूत करेगा और एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करेगा। इसी भावना के साथ, उन्होंने एक बार फिर सरदार पटेल के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित की।
पृष्ठभूमि
प्रधान मंत्री ने राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह में भाग लेते हुए अपना संबोधन दिया और सरदार वल्लभभाई पटेल को पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने एकता दिवस की शपथ भी दिलाई और एकता दिवस परेड देखी।
परेड में बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी के साथ-साथ विभिन्न राज्य पुलिस बलों की टुकड़ियां शामिल थीं। इस वर्ष के मुख्य आकर्षणों में रामपुर हाउंड्स और मुधोल हाउंड्स जैसे विशेष रूप से भारतीय नस्ल के कुत्तों से युक्त बीएसएफ का मार्चिंग दस्ता, गुजरात पुलिस का घुड़सवार दस्ता, असम पुलिस का मोटरसाइकिल डेयरडेविल शो, और बीएसएफ का ऊंट दस्ता और ऊंट सवार बैंड शामिल थे।
परेड में सीआरपीएफ के पांच शौर्य चक्र विजेताओं और बीएसएफ के सोलह वीरता पदक विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, जिन्होंने झारखंड में नक्सल विरोधी अभियानों और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में असाधारण साहस का परिचय दिया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीएसएफ कर्मियों की वीरता के लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया।
इस वर्ष की राष्ट्रीय एकता दिवस परेड में एनएसजी, एनडीआरएफ, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मणिपुर, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और पुडुचेरी की दस झांकियां शामिल थीं, जिनका विषय था "अनेकता में एकता"। 900 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता को दर्शाते हुए भारत के शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किए गए। इस वर्ष राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह का विशेष महत्व है क्योंकि राष्ट्र सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है।
प्रधानमंत्री ने 'आरंभ 7.0' के समापन पर 100वें फाउंडेशन कोर्स के प्रशिक्षु अधिकारियों से वार्तालाप किया। 'आरंभ' का सातवां संस्करण "शासन की पुनर्कल्पना" विषय पर आयोजित किया जा रहा है। इस 100वें फाउंडेशन कोर्स में भारत की 16 सिविल सेवाओं और भूटान की 3 सिविल सेवाओं के 660 प्रशिक्षु अधिकारी शामिल हैं।
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पीके/केसी/एसएस/केके
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