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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुवाहाटी, असम में भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका के 100वें जन्म शताब्दी वर्ष(जयंती) समारोह को संबोधित किया


भूपेन दा के संगीत ने भारत को एकजुट किया और पीढ़ियों को प्रेरित कर रहा है: प्रधानमंत्री

भूपेन दा का जीवन 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की भावना को प्रतिबिम्बित करता था: प्रधानमंत्री

भूपेन दा ने हमेशा भारत की एकता को स्वर दिया: प्रधानमंत्री

भूपेन दा को भारत रत्न प्रदान करना पूर्वोत्तर के प्रति हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है: प्रधानमंत्री

सांस्कृतिक संपर्क राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण है: प्रधानमंत्री

नया भारत अपनी सुरक्षा या सम्मान से कभी समझौता नहीं करेगा: प्रधानमंत्री

आइए हम 'वोकल फॉर लोकल' के ब्रांड एंबेसडर बनें, आइए हम अपने स्वदेशी उत्पादों पर गर्व करें: प्रधानमंत्री

Posted On: 13 SEP 2025 8:35PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज असम के गुवाहाटी में भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका की 100वीं जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित किया। उपस्थित जनमानस को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का दिन अद्भुत है और यह पल वास्तव में अनमोल है। उन्होंने साझा किया कि जिन प्रस्तुतियों को उन्होंने देखा, जो उत्साह और जो सामंजस्य उन्होंने अनुभव किया, वह अत्यंत भावुक कर देने वाला था। उन्होंने भूपेन दा के संगीत की उस लय का उल्लेख किया जो पूरे समारोह में गूंजती रही। डॉ. भूपेन हजारिका को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके गीत के कुछ शब्द निरंतर उनके मन में गूंजते रहते हैं। उन्होंने कहा कि उनके हृदय की इच्छा है कि भूपेन दा के संगीत की लहरें निरंतर, अनवरत बहती रहें और हर ओर फैलती रहें। प्रधानमंत्री ने समारोह में भाग लेने वाले सभी कलाकारों की हार्दिक सराहना की। उन्होंने कहा कि असम की यही विशेषता है कि यहां का हर कार्यक्रम एक नया कीर्तिमान स्थापित करता है, और आज की प्रस्तुतियों में असाधारण तैयारी की झलक मिली। उन्होंने सभी कलाकारों को बधाई और शुभकामनाएं दीं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ ही दिन पहले, 8 सितंबर को, भूपेन हजारिका जी का जन्मदिवस बीता है। उन्होंने बताया कि उस दिन उन्होंने भूपेन दा को समर्पित एक लेख लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त की थीं। उन्होंने कहा कि भूपेन दा की जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का हिस्सा बनना उनके लिए सौभाग्य की बात है। श्री मोदी ने कहा कि भूपेन दा को सभी लोग प्यार से शुधा कॉन्ठो कहते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह उस शुधा कॉन्ठो का शताब्दी वर्ष है, जिसने भारत की भावनाओं को आवाज दिया, संगीत को संवेदनशीलता से जोड़ा, अपने संगीत के माध्यम से भारत के सपनों को संजोया और मां गंगा के माध्यम से मां भारती की करुणा का वर्णन किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भूपेन दा ने कई अमर रचनाएं रचीं, जिनके स्वरों ने भारत को जोड़ा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी भारतीयों के झकझोरती रही, श्री मोदी ने कहा कि भले ही भूपेन दा आज शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत और उनकी आवाज आज भी भारत की विकास यात्रा के साक्षी हैं और उसे ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार बहुत गर्व से भूपेन दा के जन्म शताब्दी वर्ष को मना रही है। प्रधानमंत्री ने यह भी रेखांकित किया कि भूपेन हजारिका जी के गीतों, उनके संदेशों और उनके जीवन की यात्रा को घर-घर तक पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर भूपेन हजारिका की जीवनी का भी लोकार्पण किया गया। डॉ. भूपेन हजारिका को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्री मोदी ने असम की जनता और हरेक भारतवासी को भूपेन दा की इस जन्म शताब्दी वर्ष पर बधाई दी।

प्रधानमंत्री ने कहा, “भूपेन हजारिका जी ने अपना संपूर्ण जीवन संगीत की सेवा को समर्पित किया।” उन्होंने कहा कि जब संगीत साधना का एक रूप बन जाता है, तो यह आत्मा को छू लेता है और जब संगीत संकल्प बन जाता है, तो यह समाज को नई दिशा दिखाने का माध्यम बन जाता है। उन्होंने कहा कि यही बात भूपेन दा के संगीत को इतना विशेष बनाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भूपेन दा ने जिन आदर्शों को जिया और जिन अनुभवों से गुजरे, उसकी झलक उनके गीतों में दिखाई देती है। उनके संगीत में मां भारती के प्रति गहरा प्रेम, उनके “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना के प्रति जीवंत प्रतिबद्धता से उपजा था। उन्होंने बताया कि भूपेन दा का जन्म पूर्वोत्तर में हुआ और ब्रह्मपुत्र की पावन लहरों ने उन्हें संगीत सिखाया। बाद में वे काशी पढ़ाई के लिए गए, जहां उनकी संगीत यात्रा, जो ब्रह्मपुत्र से आरंभ हुई थी, गंगा की बहती लहरों से निखरकर सिद्धि में बदल गई। प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी की ऊर्जा ने उनके जीवन को एक अविरल प्रवाह प्रदान किया। भूपेन दा को उन्होंने एक ऐसे यायावर के रूप में वर्णित किया, जिसने पूरे भारत का भ्रमण किया और पीएचडी के लिए अमेरिका भी गए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जीवन के हर पड़ाव पर भूपेन दा असम की मिट्टी से जुड़े रहे और एक सच्चे पुत्र बने रहे। उन्होंने कहा कि इसी कारण भूपेन दा भारत लौटे और सिनेमा के माध्यम से आम आदमी की आवाज बन गए। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भूपेन दा ने साधारण जन-जीवन की पीड़ा को स्वर दिया और उनकी वही आवाज आज भी राष्ट्र को झकझोरती है। भूपेन दा के एक गीत का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने उसका भाव समझाया—यदि मनुष्य एक-दूसरे के सुख-दुख, पीड़ा और तकलीफ के बारे में नहीं सोचेगा, तो इस दुनिया में आखिर कौन एक-दूसरे की चिंता करेगा? प्रधानमंत्री ने सभी से आग्रह किया कि इस विचार की गहन प्रेरणा पर चिंतन करें।श्री मोदी ने कहा कि यही विचार आज भारत का मार्गदर्शन कर रहा है, जब देश गरीबों, वंचितों, दलितों और आदिवासी समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने में लगा है।

भूपेन दा को भारत की एकता और अखंडता का महान नायक बताते हुए श्री मोदी ने स्मरण किया कि दशकों पहले जब पूर्वोत्तर की उपेक्षा होती थी और यहां हिंसा एवं अलगाववाद का माहौल था, तब भी भूपेन दा निरंतर भारत की एकता को आवाज देते रहे। उन्होंने कहा कि भूपेन दा ने एक समृद्ध पूर्वोत्तर का सपना देखा था और इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता का गान किया था। असम के लिए भूपेन दा के गीत की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम इस गीत को गुनगुनाते हैं, तो हमें असम की विविधता, सामर्थ्य और क्षमता पर गर्व की अनुभूति होती है।

प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि भूपेन दा को अरुणाचल प्रदेश से भी उतना ही प्रेम था। उन्होंने भूपेन दा के अरुणाचल प्रदेश पर आधारित गीत की कुछ पंक्तियां उद्धृत कीं और कहा कि सच्चे राष्ट्रभक्त के हृदय से निकली आवाज कभी निष्फल नहीं होती। उन्होंने विश्वास दिलाया कि सरकार भूपेन दा के पूर्वोत्तर के सपनों को साकार करने के लिए दिन-रात काम कर रही है। श्री मोदी ने कहा कि भूपेन दा को भारत रत्न प्रदान कर सरकार ने पूर्वोत्तर के सपनों और स्वाभिमान का सम्मान किया है और इस क्षेत्र को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है। उन्होंने बताया कि असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले देश के सबसे लंबे पुलों में से एक का नाम भूपेन हजारिका सेतु रखा गया है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि असम और पूरा पूर्वोत्तर तीव्र गति से प्रगति कर रहा है और विकास के हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये उपलब्धियां वास्तव में राष्ट्र की ओर से भूपेन दा को सच्ची श्रद्धांजलि है।

प्रधानमंत्री ने क्षेत्र के समृद्ध इतिहास, इसके त्योहारों, उत्सवों, कला और संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और दिव्य आभा का उल्लेख करते हुए कहा, “असम और पूर्वोत्तर ने हमेशा भारत की सांस्कृतिक विविधता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।” उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि इन सबके साथ-साथ भारत माता के सम्मान और रक्षा के लिए यहां के लोगों द्वारा दिए गए बलिदान अतुलनीय हैं। श्री मोदी ने कहा कि इन योगदानों के बिना हम अपने महान भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्होंने पूर्वोत्तर को देश की “नव प्रकाश और नए सवेरे की धरती” बताया और कहा कि भारत का पहला सूर्योदय यहीं से होता है। प्रधानमंत्री ने भूपेन दा के गीत की कुछ पंक्तियां भी उद्धृत कीं, जो इसी भावना को स्वर देती हैं। उन्होंने कहा कि जब हम असम के इतिहास का उत्सव मनाते हैं, तभी भारत का इतिहास पूरा होता है, तभी भारत उल्लास पूरा होता है और हमें इस गौरवशाली विरासत के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम कनेक्टिविटी की बात करते हैं, तो लोग अक्सर रेल, सड़क या हवाई संपर्क के बारे में सोचते हैं, लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए एक और प्रकार की कनेक्टिविटी उतनी ही आवश्यक है, और वह है सांस्कृतिक कनेक्टिविटी। उन्होंने बताया कि पिछले 11 वर्षों में पूर्वोत्तर के विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक कनेक्टिविटी को भी विशेष महत्व दिया गया है और यह एक अभियान है जो अनवरत जारी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का यह आयोजन उसी अभियान की एक झलक को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में वीर लसित बोरफुकन की 400वीं जयंती का राष्ट्रीय स्तर पर भव्य तरीके से मनाई गई। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान असम और पूर्वोत्तर के अनेक वीर सेनानियों ने अभूतपूर्व बलिदान दिए। श्री मोदी ने आगे कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान सरकार ने पूर्वोत्तर के इन स्वतंत्रता सेनानियों की गौरवशाली विरासत और इतिहास को जीवंत किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज पूरा राष्ट्र असम के इतिहास और उसके योगदान से परिचित हो रहा है। उन्होंने उल्लेख किया कि हाल ही में दिल्ली में अष्टलक्ष्मी महोत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें असम के सामर्थ्य और उसकी कौशल क्षमता देखने के मिली थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि परिस्थितियां कैसी भी रही हों, असम ने हमेशा देश के स्वाभिमान को स्वर दिया है, और यही भावना भूपेन दा के गीतों में भी दिखाई देती है। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान, असम ने संघर्ष को प्रत्यक्ष देखा था और उस समय भूपेन दा ने अपने संगीत के माध्यम से देश की प्रतिज्ञा को बुलंद किया था। श्री मोदी ने उस समय भूपेन दा द्वारा रचित गीत की कुछ पंक्तियां उद्धृत कीं, जिसने भारतवासियों में नया जोश भर दिया था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लोगों की भावना और जज्बा आज भी अडिग और अटल है, और यही भावना ऑपरेशन सिंदूर के दौरान स्पष्ट रूप से दिखाई दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत ने पाकिस्तान के आतंकवादी मंसूबों को करारा जवाब दिया और देश के ताकत की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी। श्री मोदी ने दृढ़ता से कहा कि भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत का कोई भी दुश्मन दुनिया के किसी कोने में सुरक्षित नहीं रहेगा। उन्होंने घोषणा की—“नया भारत अपनी सुरक्षा और अपने स्वाभिमान से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि असम की संस्कृति का हरेक आयाम अद्भुत और असाधारण है। उन्होंने बताया कि असम की संस्कृति, उसका सम्मान और उसका स्वाभिमान अपार संभावनाओं के स्रोत हैं। प्रधानमंत्री ने असम के पारंपरिक परिधान, खान-पान, पर्यटन और उत्पादों को समृद्ध धरोहर और अवसरों का क्षेत्र बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन तत्वों को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पहचान दिलाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने गर्व से कहा कि वे स्वयं असम के गमोशा(गमोछा) की ब्रांडिंग को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने आगे कहा कि असम के प्रत्येक उत्पाद को विश्व के हरेक कोने तक पहुंचाया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “भूपेन दा का संपूर्ण जीवन देश के लक्ष्यों को समर्पित था।” उन्होंने भूपेन दा के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर यह आह्वान किया कि हमें देश के लिए आत्मनिर्भरता का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने असम के अपने भाइयों और बहनों से “वोकल फॉर लोकल” आंदोलन के ब्रांड एंबेसडर बनने की अपील की। प्रधानमंत्री ने स्वदेशी उत्पादों पर गर्व करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सभी से सिर्फ स्थानीय सामान खरीदने और बेचने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम इन अभियानों को गति देंगे, उतनी ही तेजी से विकसित भारत का सपना साकार होगा।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भूपेन दा द्वारा मात्र 13 वर्ष की आयु में लिखे गए एक गीत का उल्लेख करते हुए कहा कि इस गीत में भूपेन दा ने स्वयं को आग की एक चिंगारी के रूप में देखा और एक नए भारत के निर्माण का संकल्प लिया। उन्होंने ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना की थी, जहां हर शोषित और वंचित व्यक्ति को उसका सही अधिकार मिले। प्रधानमंत्री ने कहा कि भूपेन दा ने जिस नए भारत का सपना तब देखा था, वह आज देश का सामूहिक संकल्प बन गया है। उन्होंने सभी से इस प्रतिबद्धता के साथ स्वयं को जोड़ने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य  को हर प्रयास और हर संकल्प के केंद्र में रखा जाए। उन्होंने कहा कि इस मिशन की प्रेरणा भूपेन दा के गीतों और उनके जीवन से मिलेगी। अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यही संकल्प भूपेन हजारिका जी के सपनों को साकार करेंगे और अंत में उन्होंने भूपेन दा के जन्म शताब्दी वर्ष पर सभी नागरिकों को पुनः शुभकामनाएं दीं।

इस अवसर पर असम के राज्यपाल श्री लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, असम के मुख्यमंत्री श्री हिमंत बिस्वा सरमा, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू, केंद्रीय मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री ने गुवाहाटी में भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका के 100वें जन्म शताब्दी वर्ष(जयंती) के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में भाग लिया। यह आयोजन डॉ. हजारिका के जीवन और उनकी विरासत को सम्मानित करता है, जिनका असमिया संगीत, साहित्य और संस्कृति में योगदान अद्वितीय है।

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पीके/केसी/पीकेपी)


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