स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
माताओं का जीवन बचाना, भविष्य को मजबूत बनाना है
मातृ मृत्यु दर कम करने में भारत की सफलता
Posted On:
21 MAR 2025 6:41PM by PIB Delhi
परिचय
भारत में मातृ मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। यह स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच के एक प्रमुख संकेतक के रूप में कार्य करता है, जो मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की प्रभावशीलता को दर्शाता है। मातृ मृत्यु तब होती है जब एक महिला गर्भवती होती है या गर्भपात के 42 दिनों के भीतर, गर्भावस्था की अवधि और स्थान की परवाह किए बिना, गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) से होती है। महिलाओं और नवजात शिशुओं की भलाई सुनिश्चित करने और वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मातृ मृत्यु दर पर ध्यान देना आवश्यक है।

मातृ मृत्यु (प्रसवकालीन मृत्यु) दर के प्रमुख संकेतकों में से एक मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) है, जिसे एक निश्चित समय अवधि के दौरान प्रति 100,000 जीवित बच्चों जन्म पर मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। भारत ने प्रसवकालीन मृत्यु दर को 2014-16 में प्रति 1,00,000 जन्म पर 130 से घटाकर 2018-20 में 97 तक लाने में सराहनीय प्रगति की है। इस गिरावट का श्रेय विभिन्न सरकारी प्रयासों, बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुंच और बेहतर चिकित्सा व्यवस्था को दिया जा सकता है।
भारत में मातृ मृत्यु दर की प्रवृत्ति
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 15 मई 2015 को भारत को मातृ एवं नवजात टिटनेस उन्मूलन के लिए प्रमाणित किया था। भारत में प्रसवकालीन मृत्यु दर में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट देखी गई है।

कुछ राज्यों ने सफलतापूर्वक अपने प्रसवकालीन मृत्यु को सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के लक्ष्य 70 प्रति 100,000 जीवित बच्चों के जन्म से नीचे के स्तर तक कम कर लिया है, वहीं अन्य राज्य अभी भी उच्च प्रसवकालीन मृत्यु दर से जूझ रहे हैं। आठ राज्य - केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, गुजरात और कर्नाटक - पहले ही इस सतत विकास लक्ष्य को हासिल कर चुके हैं।

नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) रिपोर्ट के अनुसार:
पहली तिमाही में प्रसवपूर्व देखभाल (एएनसी) कराने वाली गर्भवती महिलाओं का अनुपात एनएफएचएस-4 (2015-16) में 59% से बढ़कर एनएफएचएस-5 (2019-21) में 70% हो गया।
राष्ट्रीय स्तर पर, स्वास्थ्य प्रदाताओं से अनुशंसित चार या अधिक प्रसवपूर्व देखभाल (एएनसी) प्राप्त करने वाली महिलाओं की संख्या में 51% (2015-16) से 59% (2019-21) की वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत जन्म दर 79% (2015-16) से बढ़कर 89% (2019-21) हो गई है। केरल, गोवा, लक्षद्वीप, पुडुचेरी और तमिलनाडु में संस्थागत प्रसव 100% है और अन्य अठारह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में यह 90% से अधिक है। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगभग 87% प्रसव संस्थागत होते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 94% प्रसव संस्थागत होते हैं।
मातृ एवं गैर-मातृ मृत्यु का आयु वितरण, भारत, 2018-20
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आयु वर्ग
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मातृ मृत्यु
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गैर-मातृ मृत्यु
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15-19
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6%
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9%
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20-24
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32%
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11%
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25-29
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30%
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12%
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30-34
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20%
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13%
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35-39
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8%
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14%
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40-44
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3%
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18%
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45-49
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2%
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22%
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एमएमआर कम करने के लिए सरकारी पहल
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के तहत 2030 तक एमएमआर के लिए प्रति 1,00,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 70 का लक्ष्य और एनएचपी (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति) 2017 के तहत 2020 तक प्रति 1,00,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 100 से कम एमएमआर का लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत ने एमएमआर के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) लक्ष्य पूरा कर लिया है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) एमएमआर और नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत वार्षिक कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना (पीआईपी) के आधार पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल, किशोर स्वास्थ्य और पोषण (आरएमएनसीएएच+एन) रणनीति के कार्यान्वयन में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान करता है। मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए भारत सरकार ने मातृ स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों और योजनाओं को लागू किया है। ये कार्यक्रम संस्थागत प्रसव को बढ़ाने, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के लिए समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) और मातृ स्वास्थ्य
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) मातृ मृत्यु दर को कम करने के भारत के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल, किशोर स्वास्थ्य और पोषण (आरएमएनसीएएच+एन) रणनीति शामिल है, जिसमें मातृ स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए कई कार्यक्रम शामिल हैं। एनएचएम के तहत प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
1. जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई): मातृ एवं नवजात मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से 2005 में शुरू की गई, जेएसवाई गर्भवती महिलाओं, विशेषकर कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाली महिलाओं, अर्थात अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और बीपीएल परिवारों की महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देती है।
2. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है। महिला की पहली गर्भावस्था उसे नई तरह की चुनौतियों और तनावों से अवगत कराती है। इसलिए यह योजना मां को उसके पहले बच्चे के सुरक्षित प्रसव पर 5000/- रुपये का मातृत्व लाभ दिया जाता है। सभी गर्भवती महिलाएं जो 01.01.2017 को या उसके बाद परिवार में पहली बार गर्भवती हुई हैं, वे इस कार्यक्रम के तहत लाभ पाने के लिए पात्र हैं। मिशन शक्ति के तहत, 01.04.2022 से बालिकाओं के प्रति सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए लाभार्थियों को दूसरे बच्चे के लिए 6000 रुपये का मातृत्व लाभ भी प्रदान किया जाता है, बशर्ते कि दूसरा बच्चा लड़की हो।
3. जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके): वर्ष 2011 में शुरू की गई जेएसएसके का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं के लिए जेब से होने वाले खर्च को खत्म करना है और उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में सीजेरियन ऑपरेशन, मुफ्त परिवहन, उपचार, दवा, अन्य उपभोग्य वस्तुएं, आहार और रक्त सहित मुफ्त प्रसव की सुविधा प्रदान करना है।
4.सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन): 2019 में गर्भवती महिलाओं के लिए योजना शुरू की गई ताकि उन्हें सम्मान जनक और गुणवत्तापूर्ण नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाएं और इसमें किसी तरह की कोई कोताही नहीं बरती जाए। इस योजना में मातृत्व और नवजात शिशु संबंधी वर्तमान योजनाओं को शामिल किया गया है।
5. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए): 'प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान' (पीएमएसएमए) कार्यक्रम 2016 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य गर्भावस्था के दूसरी/तीसरी तिमाही में सभी गर्भवती महिलाओं को प्रसूति विशेषज्ञों/चिकित्सा अधिकारियों द्वारा नामित सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों पर हर महीने की 9 तारीख को निश्चित दिन, निःशुल्क, सुनिश्चित, व्यापक एवं गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सेवा प्रदान करना है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था (एचआरपी) वाली महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण एएनसी सुनिश्चित करने के लिए विस्तारित पीएमएसएमए (ई-पीएमएसएमए) रणनीति लागू की गई है और सुरक्षित प्रसव होने तक व्यक्तिगत एचआरपी ट्रैकिंग की जाती है। इसके लिए चिह्नित उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है और पीएमएसएमए विजिट के अलावा अतिरिक्त 3 विजिट के लिए आशा वर्कर्स को उनके साथ भेजा जाता है। 21 मार्च 2025 तक इस योजना के तहत 5.9 करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं की जांच की जा चुकी है।
6. लेबर रूम गुणवत्ता सुधार पहल (लक्ष्य): वर्ष 2017 में शुरू किए गए लक्ष्य का उद्देश्य प्रसव कक्ष और प्रसूति ऑपरेशन थियेटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और प्रसव के तुरंत बाद सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण देखभाल मिले।
7. विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इन विषयों में विशेषज्ञों की कमी को दूर करने के लिए सी-सेक्शन (ईएमओसी) कौशल सहित एनेस्थीसिया (एलएसएएस) और प्रसूति देखभाल में एमबीबीएस डॉक्टरों के लिए क्षमता निर्माण किया जाता है।
8. मातृ मृत्यु निगरानी समीक्षा (एमडीएसआर) सुविधाओं और सामुदायिक स्तर दोनों पर लागू की जाती है। इसका उद्देश्य उचित स्तर पर सुधारात्मक कार्रवाई करना और प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
9. मासिक ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) पोषण सहित मातृ एवं शिशु देखभाल के प्रावधान के लिए एक पहुंच (आउटरीच) गतिविधि है।
10. एएनसी के शीघ्र पंजीकरण, नियमित एएनसी, संस्थागत प्रसव, पोषण और गर्भावस्था के दौरान देखभाल आदि के लिए नियमित आईईसी/बीसीसी गतिविधियां संचालित की जाती हैं।
11. गर्भवती महिलाओं को आहार, आराम, गर्भावस्था के खतरे के संकेत, लाभ योजनाओं और संस्थागत प्रसव के बारे में शिक्षित करने के लिए एमसीपी कार्ड और सुरक्षित मातृत्व पुस्तिका वितरित की जाती है।
12. प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) पोर्टल गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए नाम-आधारित वेब-सक्षम ट्रैकिंग प्रणाली है, जो उन्हें प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव और प्रसव के बाद देखभाल सहित नियमित और पूर्ण सेवाओं का निर्बाध लाभ सुनिश्चित करती है।
13. पोषण अभियान के तहत एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) रणनीति का उद्देश्य एनीमिया (खून की कमी) से निपटने के लिए मौजूदा तंत्र को मजबूत करना और नई रणनीतियों को बढ़ावा देना है। इसमें स्कूल जाने वाले किशोरियों और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का परीक्षण और उपचार, एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों का समाधान और एक व्यापक संचार रणनीति शामिल है।
बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना
मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना एक प्रमुख रणनीति है। चिकित्सा सुविधाओं और कार्मिक प्रशिक्षण में निवेश से मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ती है। स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कई उपाय किए गए हैं:
- स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के प्रशिक्षण, दवाओं, उपकरणों की आपूर्ति, सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) आदि के माध्यम से व्यापक गर्भपात देखभाल (सीएसी) सेवाओं को मजबूत किया जाता है।
- प्रसव केंद्र (डिलिवरी पॉइंट्स) - व्यापक आरएमएनसीएएच+एन सेवाओं के प्रावधान के लिए बुनियादी ढांचे, उपकरण और प्रशिक्षित जनशक्ति के संदर्भ में ‘डिलिवरी पॉइंट्स’ को मजबूत किया गया है।
- मैनपावर, रक्त भंडारण इकाइयां, रेफरल लिंकेज आदि सुनिश्चित करके प्रथम रेफरल इकाइयों (एफआरयू) का संचालन।
- माताओं और बच्चों को प्रदान की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए उच्च केसलोड सुविधाओं पर मातृ एवं बाल स्वास्थ्य (एमसीएच) विंग की स्थापना।
- जटिल गर्भधारण को संभालने के लिए देश भर में उच्च केस लोड तृतीयक देखभाल सुविधाओं में प्रसूति आईसीयू/एचडीयू का संचालन।
मातृ स्वास्थ्य देखभाल में सफलता की कहानियां और नवाचार
भारत ने नवीन स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों और लक्षित प्रयासों के माध्यम से मातृ मृत्यु दर को कम करने में उल्लेखनीय सफलता देखी है। सफलता की ये कहानियां अन्य क्षेत्रों के लिए आगे की प्रगति और प्रेरणा का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
कई राज्यों ने अनूठी पहल की है, जिससे मातृ मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान मिला है, जिनमें शामिल हैं:
मध्य प्रदेश का 'दस्तक अभियान': यह एक समुदाय-संचालित अभियान है जो मातृ स्वास्थ्य जोखिमों का शीघ्र पता लगाने और समय पर चिकित्सा व्यवस्था सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
तमिलनाडु का आपातकालीन प्रसूति देखभाल मॉडल: एक मजबूत रेफरल प्रणाली जो यह सुनिश्चित करती है कि गर्भवती महिलाओं को समय पर आपातकालीन देखभाल मिले, जिससे मातृ जटिलताओं को कम किया जा सके।
सफलता की इन कहानियों को आगे बढ़ाते हुए और नवीन दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत मातृ मृत्यु दर में और कमी लाने और सभी महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भधारण सुनिश्चित करने के सही रास्ते पर है। मातृ मृत्यु दर को और कम करने के लिए भारत को स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मजबूत करना, नीतियों को बेहतर बनाना और गुणवत्तापूर्ण मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का विस्तार करना जारी रखना होगा।
निष्कर्ष
भारत ने 2020 तक 100 से नीचे एमएमआर के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करते हुए मातृ मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालांकि, 2030 तक मातृ मृत्यु दर को 70 से नीचे लाने के सतत विकास लक्ष्य तक पहुंचने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। देश में मातृ मृत्यु दर को और कम करने के लिए स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रमों का विस्तार करना और सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करना महत्वपूर्ण होगा।
संदर्भ:-
https://pmsma.mohfw.gov.in/
https://mohfw.gov.in/?q=hi/node/8491
https://tncea.dmrhs.tn.gov.in/program/CEmOC.pdf
https://censusindia.gov.in/nada/index.php/catalog/44379
https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1575157
https://sansad.in/getFile/annex/259/AU2341.pdf?source=pqars
https://mohfw.gov.in/sites/default/files/Final.pdf
https://prc.mohfw.gov.in/fileDownload?fileName=.pdf
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