प्रधानमंत्री कार्यालय
azadi ka amrit mahotsav

10 अगस्त 2023 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के जवाब का मूल पाठ

Posted On: 10 AUG 2023 11:12PM by PIB Delhi

आदरणीय अध्यक्ष जी,

पिछले तीन दिवस से अनेक वरिष्ठ महानुभाव आदरणीय सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। करीब सभी के विचार मुझ तक विस्तार से पहुंचे भी हैं। मैंने स्वंय भी कुछ भाषण सुने भी हैं। आदरणीय अध्यक्ष जी, देश की जनता ने हमारी सरकार के प्रति बार-बार जो विश्वास जताया है। मैं आज देश के कोटि-कोटि नागरिकों का आभार व्यक्त करने के लिए उपस्थित हुआ हूं। और अध्यक्ष जी कहते हैं, भगवान बहुत दयालु हैं और भगवान की मर्जी होती है कि वो किसी न किसी के माध्यम से अपनी इच्छा की पूर्ति करता है, किसी न किसी को माध्यम बनाता है। मैं इसे भगवान का आशीर्वाद मानता हूं कि ईश्वर ने विपक्ष को सुझाया और वो प्रस्ताव लेकर आए। 2018 में भी ये ईश्वर का ही आदेश था, जब विपक्ष के मेरे साथी अविश्वास प्रस्ताव लेकर के आए थे। उस समय भी मैंने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव हमारी सरकार को फ्लोर टेस्ट नहीं है, मैंने उस दिन कहा था। बल्कि ये उन्हीं का फ्लोर टेस्ट है, ये मैंने उस दिन भी कहा था। और हुआ भी वही जब मतदान हुआ, तो विपक्ष के पास जितने वोट थे, उतने वोट भी वो जमा नहीं कर पाए थे। और इतना ही नहीं जब हम सब जनता के पास गए तो जनता ने भी पूरी ताकत के साथ इनके लिए नो कॉन्फिडेंस घोषित कर दिया। और चुनाव में एनडीए को भी ज्यादा सीटें मिलीं और भाजपा को भी ज्यादा सीटें मिलीं। यानि एक तरह से विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव हमारे लिए शुभ होता है, और मैं आज देख रहा हूं कि आपने तय कर लिया है कि एनडीए और बीजेपी 2024 के चुनाव में पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़कर के भव्य विजय के साथ जनता के आशीर्वाद से वापस आएगी।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

विपक्ष के प्रस्ताव पर यहां तीन दिनों से अलग-अलग विषयों पर काफी चर्चा हुई है। अच्छा होता कि सत्र की शुरुआत के बाद से ही विपक्ष ने गंभीरता के साथ सदन की कार्यवाही में हिस्सा लिया होता। बीते दिनों इसी सदन ने और हमारे दोनों सदन ने जनविश्वास बिल, मेडिएशन बिल, डेन्टल कमीशन बिल, आदिवासियों के लिए जुड़े हुए बिल, डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल, कोस्टल एक्वा कल्चर से जुड़ा बिल, ऐसे कई महत्वपूर्ण बिल यहां पारित किए हैं। और ये ऐसे बिल थे जो हमारे फिशरमैन के हक के लिए थे, और उसका सबसे ज्यादा लाभ केरल को होना था और केरल के सांसदों से ज्यादा अपेक्षा थी। क्योंकि वो ऐसे बिल पर तो अच्छे ढंग से हिस्सा लेते हैं। लेकिन राजनीति उन पर ऐसी हावी हो चुकी है कि उनको फिशरमैन की चिंता नहीं है।

यहां नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का बिल था। देश की युवा शक्ति के आशा आकांक्षाओं के लिए एक नई दिशा देने वाला बिल था। हिन्दुस्तान को एक साइंस पावर के रूप में भारत कैसे उभरे, वैसे एक दीर्घ दृष्टि के साथ सोचा गया था, उससे भी आपका इतराज। डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल ये बिल अपने आप में देश के युवाओं के जज्बे में जो बात आज प्रमुखता से है, उससे जुड़ा हुआ था। आने वाला समय टेक्नोलॉजी ड्रिवेन है। आज डाटा को एक प्रकार से सेकंड ऑयल के रूप में, सेकंड गोल्ड के रूप में माना जाता है, उस पर कितनी गंभीर चर्चा की जरूरत थी। लेकिन राजनीति आपके लिए प्राथमिकता थी। कई ऐसे बिल थे, जो गांव के लिए, गरीब के लिए, दलित के लिए, पिछड़ों के लिए, आदिवासी के लिए उनके कल्याण की चर्चा करने के लिए थे। उनके भविष्य के साथ जुड़े हुए थे। लेकिन इसमें इन्हें कोई रूचि नहीं है। देश की जनता ने जिस काम के लिए उनको यहां भेजा है, उस जनता का भी विश्वासघात किया गया है। विपक्ष के कुछ दलों ने उनके आचरण से, उनके व्यवहार से उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि देश से ज्यादा उनके लिए दल है। देश से बड़ा दल है, देश से पहले प्राथमिकता दल है। मैं समझता हूं आपको गरीब की भूख की चिंता नहीं है, सत्ता की भूख यही आपके दिमाग पर सवार है। आपको देश के युवाओं के भविष्य की परवाह नहीं है। आपको अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता है।

और माननीय अध्यक्ष जी,

आप जुटे एक दिन सदन चलने भी दिया किस काम के लिए? आप जुटे तो अविश्वास प्रस्ताव पर जुटे? और अपने कट्टर भ्रष्ट साथी उनकी शर्त पर मजबूर होकर के और इस अविश्वास प्रस्ताव पर भी आपने कैसी चर्चा की? और तो मैं तो देख रहा हूं सोशल मीडिया में आपके दरबारी भी बहुत दुखी हैं, ये हाल है आपका।

और अध्यक्ष जी, देखिए मजा इस डिबेट का कि फिल्डिंग विपक्ष ने ऑर्गेनाइज की, लेकिन चौके छक्के यहीं से लगे। और विपक्ष नो कॉन्फिडेंस मोशन पर नो बॉल, नो बॉल पर ही आगे चलता जा रहा है। इधर से सेन्च्युरी हो रही है, उधर से नो बॉल हो रही है।

अध्यक्ष जी,

मैं हमारे विपक्ष के साथियों से यही कहूंगा कि आप तैयारी करके क्यों नहीं आते जी। थोड़ी मेहनत कीजिए और मैंने 5 साल दिए आपको मेहनत करने के लिए 18 में कहा था कि 23 में आप आना जरूर आना, 5 साल भी नहीं कर पाए आप लोग। क्या हाल है, आप लोगों का, क्या दारिद्र है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

विपक्ष के हमारे साथियों को दिखास की छपास की बहुत इच्छा रहती है और स्वाभाविक भी है। लेकिन आप ये मत भूलिए कि देश भी आपको देख रहा है। आपके एक-एक शब्द को देश गौर से सुन रहा है। लेकिन हर बार देश को आपने निराशा के सिवाय कुछ नहीं दिया है। और विपक्ष के रवैये पर भी मैं कहूंगा, जिनके, जिनके खुद के बही खाते बिगड़े हुए हैं। जिनके बही खाते खुद के बिगड़े हुए हैं। वो भी हमसे हमारा हिसाब लिए फिरते हैं।

माननीय अध्यक्ष जी,

इस अविश्वास प्रस्ताव में कुछ चीजें तो ऐसी विचित्र नजर आई जो न तो पहले कभी सुना है, न देखा है, न कभी कल्पना की है। सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का बोलने की सूची में नाम ही नहीं था। और पिछले उदाहरण देखिए आप। 1999 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया। शरद पवार साहब उस समय नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने डिबेट का नेतृत्व किया। 2003 में अटल जी की सरकार थी, सोनिया जी विपक्ष की नेता थी, उन्होंने लीड ली, उन्होंने विस्तार से अविश्वास प्रस्ताव रखा। 2018 में खड़गे जी थे, विपक्ष के नेता। उन्होंने प्रोमिनेंटली विषय को आगे बढ़ाया। लेकिन इस बार अधीर बाबू का क्या हाल हो गया, उनकी पार्टी ने उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया, ये तो कल अमित भाई ने बहुत-बहुत जिम्मेदारी के साथ कहा कि भाई अच्छा नहीं लग रहा है। और आपकी उदारता थी कि उनका समय समाप्त हो गया था, तो भी आपने उनको आज मौका दिया। लेकिन गुड़ का गोबर कैसे करना, उसमें ये माहिर हैं। मैं नहीं जानता हूं कि आखिर आपकी मजबूरी क्या है? क्यों अधीर बाबू को दरकिनार कर दिया गया। पता नहीं कलकत्ता से कोई फोन आया हो, और कांग्रेस बार-बार, कांग्रेस बार-बार उनका अपमान करती है। कभी चुनावों के नाम पर उन्हें अस्थायी रूप से फ्लोर लीडर से हटा देते हैं। हम अधीर बाबू के प्रति अपनी पूरी संवेदना व्यक्त करते हैं। सुरेश जी जरा जोर से हंस लीजिए।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

किसी भी देश के जीवन में, इतिहास में एक समय ऐसा आता है, जब वो पुरानी बंदिशों को तोड़कर के एक नई ऊर्जा के साथ, नई उमंग के साथ, नए सपनों के साथ, नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने के लिए कदम उठा लेता है। 21वीं सदी का ये कालखंड और मैं बड़ी गंभीरता से इस पवित्र लोकतंत्र के मंदिर में बोल रहा हूं, और लंबे अनुभव के बाद बोल रहा हूं कि ये कालखंड सदी का ये वो कालखंड है, जो भारत के लिए हर सपने सिद्ध करने का अवसर हमारे पास है। और हम सब ऐसे टाइम पीरियड में है, चाहे हम हैं, चाहे आप हैं, देश के कोटि-कोटि जन हैं। ये टाइम पीरियड बहुत अहम है, बड़ा महत्वपूर्ण है।

बदलते हुए विश्व में, और मैं इन शब्दों को भी बड़े विश्वास से कहना चाहता हूं कि ये कालखंड जो घटेगा, उसका प्रभाव इस देश पर आने वाले 1 हजार साल तक रहने वाला है।  140 करोड़ देशवासियों का पुरुषार्थ इस कालखंड में अपने पराक्रम से, अपने पुरुषार्थ से, अपनी शक्ति से, अपने सामर्थ्य से जो करेगा, वो आने वाले एक हजार साल की मजबूत नींव रखने वाला है। और इसलिए इस कालखंड में हम सबका बहुत बड़ा दायित्व है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और ऐसे समय में हम सबका एक ही फोकस होना चाहिए, देश का विकास। देश के लोगों के सपनों को पूरा करने का संकल्प और उस संकल्प को सिद्धि तक ले जाने के लिए जी-जान से जुट जाना, यही समय की मांग है। 140 करोड़ देशवासी इन भारतीय समुदाय की सामूहिक ताकत हमें उस ऊंचाई पर पहुंचा सकती है। हमारे देश की युवा पीढ़ी का सामर्थ्य आज विश्व ने उनका लोहा माना हुआ है, हम उन पर भरोसा करें। हमारी युवा पीढ़ी भी जो सपने देख रही है, वो सपनो को संकल्प के साथ सिद्धि तक पहुंचाने का सामर्थ्य रखती है। और इसलिए, माननीय अध्यक्ष जी,

2014 में 30 साल के बाद देश की जनता ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और 2019 में भी उस ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर के उनके सपनों को संजोने का सामर्थ्य कहां है, उनके संकल्पों को सिद्ध करने की ताकत कहां पड़ी है, वो देश भली-भांति पहचान गया है। और इसलिए 2019 में फिर एक बार हम सबको सेवा करने का मौका दिया और अधिक मजबूती के साथ दिया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इस सदन में बैठक प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वो भारत के युवाओं के सपनों को, उनकी महत्वाकांक्षाओं को, उनकी आशा अपेक्षा के मुताबिक, वो जो काम करना चाहता है, उसके लिए हम उसे अवसर दें। सरकार में रहते हुए हमने भी इस दायित्व को निभाने का भरपूर प्रयास किया है। हमने भारत के युवाओं को घोटालों से रहित सरकार दी है। हमने भारत के युवाओं को, आज के हमारे प्रोफेशनल्स को खुले आसमान में उड़ने के लिए हौसला दिया है, अवसर दिया है। हमने दुनिया में भारत की बिगड़ी हुई साख उसको भी संभाला है और उसे फिर एक बार नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। अभी भी कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया में हमारी साख को दाग लग जाए, लेकिन दुनिया अब देश को जान चुकी है, दुनिया के भविष्य में भारत की किस प्रकार से योगदान दे सकता है, ये विश्व का विश्वास बढ़ता चला जा रहा है, हमारे ऊपर।

और इस दौरान हमारे विपक्ष के साथियों ने क्या किया, जब इतना अनुकूल वातावरण, चारों तरफ संभावना ही संभावनाएं, इन्‍होंने अविश्वास के प्रस्ताव की आड़ में जनता के आत्‍मविश्‍वास को तोड़ने की विफल कोशिश की है। आज भारत के युवा रिकॉर्ड संख्या में नए स्टार्टअप ले करके दुनिया को चकित कर रहे हैं। आज भारत में रिकॉर्ड विदेशी निवेश आ रहा है। आज भारत का एक्‍सपोर्ट नई बुलंदी को छू रहा है। आज भारत की कोई भी अच्छी बात ये सुन नहीं सकते हैं...यही उनकी अवस्था है। आज गरीब के दिल में अपने सपने पूरे करने का भरोसा पैदा हुआ है। आज देश में गरीबी तेजी से घट रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में साढ़े 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आईएमएफ अपने एक वर्किंग पेपर में लिखता है कि भारत ने अति गरीबी को करीब-करीब खत्म कर दिया है। आईएमएफ ने भारत के डीबीटी और दूसरे हमारे सोशल वेलफेयर स्कीम के लिए, आईएमएफ ने इसे कहा है कि ये लॉजिस्टिक्स मार्बल है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि जल जीवन मिशन्‍स के जरिए भारत में चार लाख लोगों की जान बच रही है। चार लाख कौन हैं- मेरे गरीब, पीड़ित, शोषित, वंचित परिवारों के मेरे स्‍वजन हैं। हमारे परिवार के निचले तबके में ज़िंदगी गुजारने के लिए जो मजबूर हुए, ऐसे जन है, ऐसे चार लाख लोगों की जान बचने की बात डब्‍ल्‍यूएचओ कह रहा है। एनालिसेस करके कहता है कि स्वच्छ भारत अभियान से तीन लाख लोगों को मरने से बचाया गया है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

भारत स्वच्छ होता है, तीन लाख लोगों की जिंदगी बचती है, ये तीन लाख है कौन- वही झुग्‍गी–झोंपड़ी में जिंदगी जीने के लिए जो मजबूर है, जिनके लिए अनेक कठिनाइयों से गुजारा करना पड़ता है। मेरे गरीब परिवार के लोग, शहरों की बस्तियों में गुजारा करने वाले लोग, गांव में जीने वाले लोग हैं और वंचित तबके के लोग हैं, जिनकी जान बची है। यूनिसेफ ने क्‍या कहा है- यूनिसेफ ने कहा है कि स्वच्छ भारत अभियान के कारण हर साल गरीबों के 50 हजार रुपये बच रहे हैं। ये लेकिन, भारत की इन उपलब्धियों से कांग्रेस समेत विपक्ष के कुछ लोक दलों को अविश्‍वास है। जो सच्चाई दुनिया दूर से देख रही है, ये लोग यहां रहते हैं-दिखती नहीं है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

अविश्‍वास और घमंड इनकी रगों में रच-बस गया है। ये जनता के विश्वास को कभी देख नहीं पाते हैं। अब ये जो शुतुरमुर्ग एप्रोच है, इसके लिए तो देश क्या कर सकता है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जो पुरानी सोच वाले लोग रहते हैं, मैं उस सोच से सहमत नहीं हूं। लेकिन वो कहते हैं कि देखो भाई जब कुछ शुभ होता है, कुछ मंगल होता है, घर में भी कुछ अच्छा होता है, बच्चे भी कोई अच्छे कपड़े पहनता है, जरा साफ-सुथरा होता है तो काला टीका लगा देते हैं। आज देश का जो मंगल हो रहा है चारों तरफ, देश की जो चारों तरफ वाहवाही हो रही है, देश का जो जय-जयकार हो रहा है, तो मैं आपका धन्यवाद करता हूं कि काले टीके के रूप में काले कपड़े पहन करके सदन में आ करके आपने इस मंगल को भी सुरक्षित करने का काम किया है, इसके लिए भी मैं आपका धन्यवाद करता हूं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

पिछले तीन दिन से भी हमारे विपक्ष के साथियों ने जी भर करके, डिक्‍शनरी खोल-खोल करके जितने अपशब्‍द मिलते हैं ले आए हैं। जितने अपशब्‍दों का उपयोग कर सकते हैं  भरपूर, जाने कहां-कहां से ले आते हैं। लेकर आए उनका निकल गया होगा, थोड़ा मन हल्‍का हो गया होगा इतने अपशब्‍द बोल लिए हैं तो। और वैसे तो ये लोग मुझे दिन-रात कोसते रहते हैं। उनकी ये फितरत है। और उनके लिए तो सबसे प्रिय नारा क्‍या है- मोदी तेरी कब्र खुदेगी, मोदी तेरी कब्र खुदेगी। ये इनका पसंदीदा नारा है। लेकिन मेरे लिए, इनकी गालियां, ये अपशब्‍द, ये अलोकतांत्रिक भाषा- मैं उसका भी टॉनिक बना देता हूं। और ये ऐसा क्‍यों करते हैं और ये क्‍यों होता है। आज मैं सदन में कुछ सीक्रेट बताना चाहता हूं। मेरा पक्‍का विश्‍वास हो गया है कि विपक्ष के लोगों को एक सीक्रेट वरदान मिला हुआ है, हां, सीक्रेट वरदान मिला हुआ है जी। और वरदान ये कि ये लोग जिसका बुरा चाहेंगे, उसका भला ही होगा। एक उदाहरण तो आप देखिए-मौजूद है। 20 साल हो गए क्‍या कुछ नहीं हुआ, क्‍या कुछ नहीं किया गया, लेकिन भला ही होता गया। तो आपको बड़ा सीक्रेट वरदान है जी। और मैं तीन उदाहरण से ये सीक्रेट वरदान को सिद्ध कर सकता हूं।

आपको ज्ञात होगा कि इन लोगों ने कहा था बैंकिंग सेक्‍टर के लिए- बैंकिंग सेक्‍टर डूब जाएगा, बैकिंग सेक्‍टर तबाह हो जाएगा, देश खत्‍म हो जाएगा, देश बर्बाद हो जाएगा, न जाने क्‍या-क्‍या कहा था। और बड़े-बड़े विद्वानों को विदेशों से ले आते थे, उनसे कहलवाते थे, ताकि इनकी बात कोई न माने तो शायद उनकी मान ले। हमारे बैंकों के सेहत को ले करके भांति-भांति की निराशा, अफवाह फैलाने का काम इन्‍होंने पुरजोर किया। और जब इन्‍होंने बुरा चाहा बैंकों का तो हुआ क्‍या, हमारे पब्लिक सेक्‍टर्स बैंक, नेट प्रॉफिट दोगुने से ज्‍यादा हो गया। इन लोगों ने फोन बैंकिंग घोटाले के बात की- इसके कारण देश को एनपीए के गंभीर संकट में डुबो दिया था।

बीते दिनों की बात हो रही है, लेकिन आज जो उन्‍होंने एनपीए का अंबार लगाकर गए थे उसको भी पार कर-करके हम एक नई ताकत के साथ निकल चुके हैं। और आज श्रीमती निर्मला जी ने विस्‍तार से बताया है कितना प्रॉफिट हुआ है। दूसरा उदाहरण- हमारे डिफेंस के हेलिकॉप्‍टर बनाने वाली सरकारी कंपनी एचएएल। ये एचएएल को ले करके कितनी भली-बुरी बातें इन्‍होंने करी थीं, क्‍या कुछ नहीं कहा गया था, एचएएल के लिए। और इसका दुनिया पर बहुत नुकसान करने वाली भाषा का प्रयोग किया गया था। और एचएएल तबाह हो गया है, एचएएल खत्‍म हो गया है, भारत की डिफेंस इंडस्‍ट्री खत्‍म हो चुकी है। ऐसा न जाने क्‍या-क्‍या कहा गया था, एचएएल के लिए।

इतना ही नहीं, जैसे आजकल खेतों में जा करके वीडियो शूट होता है, मालूम है ना। खेतों में जाकर वीडियो शूट होता है, वैसा ही उस समय एचएएल फैक्‍टरी के दरवाजे पर मजदूरों की सभा करके वीडियो शूट करवाया गया था और वहां के कामगारों को भड़काया गया था, अब  तुम्‍हारा कोई भविष्‍य नहीं है, तुम्‍हारे बच्‍चे मरेंगे, भूखे मरेंगे, एचएएल डूब रहा है। देश के इतने महत्‍वपूर्ण इंस्‍टीट्यूट का इतना बुरा चाहा, इतना बुरा चाहा, इतना बुरा कहा, वो सीक्रेट- आज एचएएल सफलता की नई बुलंदियों को छू रहा है। एचएएल ने अपना highest ever revenue रजिस्‍टर किया है। इनके जी भर करके गंभीर आरोप के बावजूद भी वहां के कामगारों को, वहां के कर्मचारियों को उकसाने की भरपूर कोशिश के बावजूद भी आज एचएएल देश की आन-बान-शान बनकर उभरा है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

जिसका बुरा चाहते हैं, वो कैसे आगे बढ़ता है, मैं तीसरा उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं एलआईसी के लिए क्‍या-क्‍या कहा गया था। एलआईसी बर्बाद हो गई, गरीबों के पैसे डूब रहे हैं, गरीब कहां जाएगा, बेचारे ने बड़ी मेहनत से एलआईसी में पैसा डाला था, क्‍या-क्‍या- जितनी उनकी कल्‍पना शक्ति थी, जितने उनके दरबारियों ने कागज पकड़ा दिए थे, सारे बोले लेते थे। लेकिन आज एलआईसी लगातार मजबूत हो रही है। शेयर मार्केट में रुचि रखने वालों को भी ये गुरु मंत्र है कि जो सरकारी कंपनियों के लोग गाली दें ना, आप उसमें दांव लगा दीजिए, सब अच्‍छा ही होगा।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

ये लोग देश की जिन संस्‍थाओं की मृत्‍यु की घोषणा करते हैं, उन संस्‍थाओं का भाग्‍य चमक जाता है। और मुझे विश्‍वास है कि ये जैसे देश को कोसते हैं, लोकतंत्र को कोसते हैं, मेरा पक्‍का विश्‍वास है, देश भी मजबूत होने वाला है, लोकतंत्र भी मजबूत होने वाला है, और हम तो होने ही वाले हैं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

ये वो लोग हैं, जिन्‍हें देश के सामर्थ्‍य पर विश्‍वास नहीं। इन लोगों को देश के परिश्रम पर विश्‍वास नहीं है, देश के पराक्रम पर विश्‍वास नहीं है। कुछ दिन पहले मैंने कहा था कि हमारी सरकार के अगले टर्म में, तीसरे टर्म में भारत दुनिया की तीसरी टॉप अर्थव्‍यवस्‍था बनेगा।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

अब देश के भविष्य पर थोड़ा सा भी भरोसा होता, जब हम ये क्‍लेम करते हैं कि हम आने वाले पांच साल में यानी तीसरे टर्म में हम देश की इकोनॉमी को तीसरे पर लाएंगे तो एक जिम्‍मेदार विपक्ष क्‍या करता- वो सवाल पूछता अच्‍छा हमें बताओ, निर्मला जी बताओ कैसे करने वाले हो। अच्‍छा मोदी जी बताओ- कैसे करने वाले हो, आपका रोडमैप क्‍या है- ऐसा करते। अब ये भी मुझे सिखाना पड़ रहा है। लेकिन, या वो कुछ सुझाव दे सकते थे, ये कुछ सुझाव दे सकते थे। या फिर कहते हम चुनाव में जनता के बीच जा करके बताएंगे कि ये तीसरे की बात करते हैं हम तो एक नंबर पर लेकर आएंगे और ऐसे-ऐसे लेकर आएंगे- कुछ तो करते आप। लेकिन हमारे विपक्ष की त्रासदी ये है और उनके राजनीतिक विमर्श पर गौर कीजिए। कांग्रेस के लोग क्‍या कह रहे हैं, अब देखिए कितना कल्‍पना दारिद्रय है। कितने सालों तक सत्‍ता में रहने के बाद भी क्‍या अनुभवहीन बातें सुनने को मिल रही हैं।

क्‍या कहते हैं ये, ये कहते हैं इस लक्ष्‍य तक पहुंचने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है, ऐसे ही होने वाला है तीसरे नंबर पर। बताओ, मुझे लगता है कि इसी सोच के कारण वो सोते रहे इतने सालों तक कि अपने-आप होने वाला है। वो कहते हैं बिना कुछ किए तीसरे पर पहुंच जाएंगे। और कांग्रेस की मानें, अगर सब कुछ अपने-आप ही हो जाने वाला है, इसका मतलब है कांग्रेस के पास न नीति है, न नियत है, न विज़न है, न वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था की समझ है और न ही भारत के अर्थजगत की ताकत का पता है। और इसलिए सोए-सोए अगर हो जाएगा, यही एक.।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

ये वजह है कि कांग्रेस के शासन में गरीबी और गरीबी को बढ़ाता गया। 1991 में देश कंगाल होने की स्थिति में था। कांग्रेस के शासनकाल में अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया के क्रम में दस, ग्‍यारह, बारह- इसके बीच में झोले खाती थी, झूलती रही थी। लेकिन 2014 के बाद भारत ने टॉप पांच में अपनी जगह बना ली थी। कांग्रेस के लोगों को लगता होगा कि ये कोई जादू की लकड़ी से हुआ है। लेकिन मैं आज सदन को बताना चाहता हूं माननीय अध्‍यक्ष जी, Reform, Perform and Transform एक निश्चित आयोजन, प्‍लानिंग और कठोर परिश्रम, परिश्रम की पराकाष्‍ठा, और इसी की वजह से आज देश इस मुकाम पर पहुंचा है। और ये प्‍लानिंग और परिश्रम की निरंतरता बनी रहेगी। आवश्‍यकतानुसार उसमें नए Reform होंगे और Performance के लिए पूरी ताकत को लगाया जाएगा और परिणाम ये होगा कि हम तीसरे नंबर पर पहुंच कर रहेंगे।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

देश का विश्‍वास मैं शब्‍दों में भी प्रकट करना चाहता हूं। और देश का विश्वास है कि 2028 में, आप जब अविश्‍वास प्रस्‍ताव लेकर के आएंगे तब ये देश पहले तीन में होगा, ये देश का विश्वास है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हमारे विपक्ष के मित्रों की फितरत में ही अविश्‍वास भरा पडा है। हमने लाल किले से स्वच्छ भारत अभियान का आह्वान किया। लेकिन उन्होंने हमेशा अविश्‍वास जताया। कैसे हो सकता है? जो गांधी जी भी आकर गए, कह करके गए क्या हुआ? अभी स्वच्छता कैसे हो सकती है? अविश्‍वास भरी हुई इनकी सोच है। हमने मां-बेटी को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए, उस मजबूरी से मुक्त होने के लिए शौचालय जैसी जरूरत पर जोर दिया और तब ये कह रहे हैं, क्या लाल किले से ऐसे विषय बोले जाते हैं? क्‍या ये देश की प्राथमिकता होती है क्‍या? हमने जब जन-धन खाते खोलने की बात की, तब भी यही बात निराशा की। क्‍या होता है जन-धन खाता? उनके हाथ में पैसे कहां है? उनका जेब में क्‍या पड़ा है? क्‍या लेके आएंगे, क्‍या करेंगे? हमने योग की बात की, हमने आयुर्वेद की बात की, हमने उसको बढ़ावा देने की बात की तो उसका भी माखौल उड़ाया गया। हमने र्स्‍टाट-अप इंडिया की चर्चा की, तो उन्होंने उसके लिए भी निराशा फैलाई। र्स्‍टाट-अप तो कोई हो ही नही सकता है। हमने डिजिटल इंडिया की बात कही, तो बड़े–बड़े विद्वान लोगों ने क्या भाषण दिए। हिन्‍दुस्‍तान के लोग तो अनपढ़ हैं, हिन्‍दुस्‍तान के लोगों को तो मोबाइल चलाना भी नहीं आता है। हिन्‍दुस्‍तान के लोग कहां से डिजिटल करेंगे? आज डिजिटल इंडिया में देश आगे है। हमने मेक इन इंडिया की बात कही। जहां गए वहां मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया। जहां गए वहां मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया।

आदरणीय अध्यक्ष जी

कांग्रेस पार्टी और उनके दोस्‍तों का इतिहास रहा है कि उन्हें भारत पर भारत के सामर्थ्य पर कभी भी भरोसा नही रहा है।

माननीय अध्यक्ष जी,

और ये विश्वास किस पर करते थे। मैं जरा आज सदन को याद दिलाना चाहता हूँ। पाकिस्तान सीमा पर हमले करता था। हमारे यहां आए दिन आतंकवादी भेजता था और उसके बाद पाकिस्तान हाथ ऊपर करके मुकर जाता था, भाग जाता था बोले कि हमारी तो कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। कोई जिम्मा लेने को तैयार नही होता था। और इन‍का पाकिस्तान से इतना प्रेम था, वो तुरंत पाकिस्तान की बातों पर विश्वास कर लेते थे। पाकिस्तान कहता था कि आतंकी हमले तो होते रहेंगे और बातचीत भी होती रहेगी। इन्‍हें, यहां तक कहते थे कि पाकिस्तान कह रहा है तो सही ही कहता होगा। ये इनकी सोच रही है। कश्मीर आतंकवाद की आग में दिन-रात सुलग रहा था। जलता था, लेकिन कांग्रेस सरकार का काम कश्मीर और कश्मीर के आम नागरिक पर विश्वास नही था। वे विश्वास करते थे हुर्रियत पर, वे विश्वास करते थे अलगाववादियों पर, वे विश्वास उन लोगों पर करते थे जो पाकिस्तान का झंडा लेकर चलते थे। भारत ने आतंकवाद पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। भारत ने एयर स्ट्राइक किया, इनको भारत की सेना पर भरोसा नही था। उनको दुश्मन के दावों पर भरोसा था। ये इनकी प्रवृत्ति थी।

अध्यक्ष महोदय,

आज दुनिया में कोई भी भारत के लिए अपशब्द बोलता है तो इन्‍हें उस पर तुरंत विश्वास हो जाता है, तुरंत उसको catch कर लेते हैं। ऐसा मैग्नेटिक पावर है कि भारत के खिलाफ हर चीजें वो तुरंत पकड़ लेते हैं। जैसे कोई विदेशी एजेंसी कहती है कि भूखमरी का सामना कर रहे कई देश भारत से बेहतर हैं, ऐसा झूठी बात आएगी तो भी पकड़ लेते हैं और हिन्‍दुस्‍तान में प्रचार करना शुरू कर देते हैं। press conference कर देते हैं। भारत को बदनाम करने में क्‍या मजा आता है। दुनिया में कोई भी ऐसी बेतुकी बातों को मिट्टी के ढेले जैसे जिसकी कोई कीमत न हो ऐसी बातों को तवज्जो देना ये कांग्रेस की फितरत रही है और तुरंत उसका भारत में amplify करना, प्रचार करना, पूरी कोशिश उसी में लग जाती है। कोरोना की महामारी आई, भारत के वैज्ञानिकों ने मेड इन इंडिया वैक्सीन बनाया, उन्‍हें भारत के वैक्सीन पर भरोसा नहीं, विदेशी वैक्सीन पर भरोसा ये इनकी सोच रही।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

देश के कोटि-कोटि नागरिकों ने भारत के वैक्सीन पर विश्वास जताया। इनको भारत के सामर्थ्य पर विश्वास नहीं है। इनको भारत के लोगों पर विश्वास नहीं है। लेकिन इस सदन को मैं बताना चाहता हूं। इस देश का भी भारत के लोगों का कांग्रेस के प्रति No Confidence का भाव बहुत गहरा है। कांग्रेस अपने घमंड में इतनी चूर हो गई है, इतनी भर गई है कि उसको जमीन दिखाई तक देती नहीं है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

देश के कई हिस्सों में कांग्रेस को जीत दर्ज करने में अनेक दशक लग गए हैं। तमिलनाडु में कांग्रेस की आखिरी बार 1962 में जीत हुई थी। 61 वर्षों से तमिलनाडु के लोग कह रहे हैं। कांग्रेस No Confidence, तमिलनाडु के लोग कह रहे हैं कांग्रेस No Confidence, पश्चिम बंगाल में उन्हें आखिरी बार जीत 1972 में मिली थी। पश्चिम बंगाल के लोग 51 सालों से कह रहे हैं कांग्रेस No Confidence, कांग्रेस No Confidence. उत्तर प्रदेश और बिहार और गुजरात कांग्रेस आखिरी 1985 में जीती थी, पिछले 38 वर्षों से वहां के लोगों ने कांग्रेस को कहा है No Confidence, वहां के लोगों ने कांग्रेस को कहा है No Confidence. त्रिपुरा में उन्‍होंने आखिरी बार 1988 में जीत मिली थी, 35 वर्षों से त्रिपुरा के लोग कांग्रेस को कह रहे हैं No Confidence. कांग्रेस No Confidence, कांग्रेस No Confidence. उड़ीसा में कांग्रेस को आखिरी बार 1995 में जीत नसीब हुई थी, यानी उड़ीसा में भी 28 वर्षों से कांग्रेस को एक ही जवाब दे रहा है उड़ीसा कह रहा है No Confidence. कांग्रेस No Confidence.

आदरणीय अध्यक्ष जी,

नागालैंड में कांग्रेस की आखिरी जीत 1988 में हुई थी। यहां के लोग भी 25 वर्षों से कह रहे हैं कांग्रेस No Confidence. कांग्रेस No Confidence. दिल्‍ली, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तो एक भी विधायक खाते में नहीं है। जनता ने कांग्रेस के प्रति बार-बार No Confidence घोषित किया है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं आज इस मौके पर ये आपके काम की बात बताता हूँ। आपकी भलाई के लिए बोल रहा हूँ। आप थक जाएंगे, आप बहुत थक जाएंगे। मैं आपकी भलाई की बात बताता हूँ। मैं आज इस मौके पर हमारे विपक्ष के साथियों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त करना चाहता हूँ। कुछ ही दिन पहले बेंगलुरु में आपने मिलजुल कर करीब-करीब डेढ़-दो दशक पुराने यूपीए का क्रियाकर्म किया है। उसका अंतिम संस्कार किया है। लोकतांत्रिक व्यवहार के मुताबिक मुझे तभी आपको सहानुभूति जरूर व्यक्त करनी चाहिए थी। संवेदना व्यक्त करनी चाहिए थी। लेकिन देरी में मेरा कसूर नहीं है क्योंकि आप खुद ही एक ओर यूपीए का क्रिया कर्म कर रहे थे और दूसरी ओर जश्न भी मना रहे थे और जश्न भी किस बात का खंडहर पर नया प्लास्टर लगाने का, आप जश्न मना रहे थे खंडहर पर नया प्लास्टर लगाने का। आप जश्न मना रहे थे वेल मशीन पर नया पेंट लगाने का। दशकों पुरानी खटारा गाड़ी को इलेक्ट्रिक व्हीकल दिखाने के लिए आपने इतना बड़ा मजमा लगाया था और मजेदार ये कि मजमा खत्म होने पहले ही उसका क्रेडिट लेने के लिए आपस में सिर फुटौवल शुरू हो गई। मैं हैरान था कि ये गठबंधन लेकर आप जनता के बीच जाएंगे, मैं विपक्ष के साथियों को कहना चाहता हूं, आप जिसके पीछे चल रहे हो, उसको तो इस देश की जवान, इस देश के संस्कार की समझ ही नहीं बची है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये लोग लाल मिर्च और हरी मिर्च का फर्क नहीं समझ पाए। लेकिन आप में से कई साथियों को मैं जानता हूं, आप सब तो भारतीय मानस को जानने वाले लोग हैं, आप लोग भारत के मिजाज को पहचानने वाले लोग हैं। भेष बदल कर धोखा देने की कोशिश करने वालों की हकीकत सामने आ ही जाती है। जिन्‍हें सिर्फ नाम का सहारा है, उन्‍हीं के लिए कहा गया है

“दूर युद्ध से भागते, दूर युद्ध से भागते

नाम रखा रणधीर,

भाग्यचंद की आज तक, सोई है तकदीर,

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इनकी मुसीबत ऐसी है कि खुद को जिंदा रखने के लिए, इनको NDA का ही सहारा लेना पड़ा है। लेकिन आदत के मुताबिक घमंड का जो I है ना I वो उनको छोड़ता नहीं है। और इसलिए एनडीए में दो I पिरो दिये। दो घमंड के I पिरो दिये। पहला I छब्‍बीस दलों का घमंड और दूसरा I एक परिवार का घमंड। एनडीए भी चुरा लिया, कुछ बचने के लिए और इंडिया के भी टुकड़े कर दिये I.N.D.I.A.

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जरा हमारे डीएमके के भाई सुन लें, जरा कांग्रेस के लोग भी सुन लें। अध्यक्ष महोदय, यूपीए को लगता है कि देश के नाम का इस्तेमाल करके अपनी विश्वसनीयता बढ़ाई जा सकती है। लेकिन कांग्रेस के सहयोगी दल कांग्रेस के अटूट साथी तमिलनाडु सरकार में एक मंत्री, दो दिन पहले ही ये कहा है, तमिलनाडु सरकार के एक मंत्री ने कहा है I.N.D.I.A. उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। I.N.D.I.A. उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनके मुताबिक तमिलनाडु तो भारत में है ही नहीं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आज मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं तमिलनाडु वो प्रदेश है, जहां हमेशा देशभक्ति की धाराएं निकली हैं। जिस राज्य ने हमें राजा जी दिये। जिस राज्य ने हमें कामराज दिये। जिस राज्य ने हमें एनटीआर दिये। जिस राज्य ने हमें अब्दुल कलाम दिये। आज उस तमिलनाडु से ये स्वर सुनाई दे रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जब आपके alliance में अंदर ही अंदर ऐसे लोग हों, जो अपने देश के अस्तित्व को नकारते हों, तो आपकी गाड़ी कहां जाकर के रुकेगी, जरा आत्म चिंतन करने का मौका मिले और आत्मा बची हो तो जरूर करिएगा।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

नाम को लेकर उनका एक चश्मा आज का नहीं है, नाम को लेकर ये जो मोह है ना वो उनका आज का नहीं है। ये दशकों पुराना चश्‍मा है। इन्‍हें लगता है कि नाम बदलकर देश पर राज कर लेंगे। गरीब को चारों तरफ उनका नाम तो नजर आता है, लेकिन उनका काम कहीं नजर नहीं आता है। अस्पतालों में नाम उनके हैं इलाज नहीं है। शैक्षणिक संस्थाओं पर उनके नाम लटक रहे हैं, सड़क हों, पार्क हों उनका नाम, गरीब कल्‍याण की योजनाओं पर उनका नाम, खेल पुरस्कारों पर उनका नाम, एयरपोर्ट पर उनका नाम, म्‍यूजियम पर उनका नाम, अपने नाम से योजनाएं चलाईं और फिर उन योजनाओं में हजारों-करोड़ के भ्रष्टाचार किए। समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति काम होते हुए देखना चाहता था, लेकिन उसे मिला क्या सिर्फ-सिर्फ परिवार का नाम।

अध्यक्ष महोदय,

कांग्रेस की पहचान से जुड़ी कोई चीज उनकी अपनी नहीं है। कोई चीज उनकी अपनी नहीं है। चुनाव चिह्न से लेकर विचारों तक सब कुछ कांग्रेस अपना होने का दावा करती है वो किसी और से लिया हुआ है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

अपनी कमियों को ढकने के लिए चुनाव चिन्ह और विचारों को भी चुरा लिया, फिर भी जो बदलाव हुए हैं, उसमें पार्टी का घमंड ही दिखता है। ये भी दिखता है कि 2014 से वो किस तरह Denial के Mode में है। पार्टी के संस्थापक कौन ऐ.ओ. ह्यूम एक विदेशी थे, जिन्‍होंने पार्टी बनाई। आप जानते हैं 1920 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊर्जा मिली। 1920 में एक नया ध्‍वज मिला और देश ने उस ध्‍वज को अपना लिया तो रातों-रात कांग्रेस ने उस ध्‍वज की ताकत को देखकर के उसे भी छीन लिया और प्रतीक को देखा कि ये गाड़ी चलाने के लिए ठीक रहेगा, 1920 से ये खेल चल रहा है जी। और उनको लगा कि वो तिरंगा झंडा देखेंगे तो लोग देखेंगे कि उनकी ही बात हो रही है। ये उन्होंने खेल किया। वोटरों को भुनाने के लिए गांधी नाम भी। हर बार वो भी चुरा लिया। कांग्रेस के चुनाव चिह्न देखिए दो बैल, गाय बछड़ा और फिर हाथ का पंजा, ये सारे उनके कारनामे उनके हर प्रकार के मनोवृत्ति का प्रतिबिंब करता है, उसको प्रकट करते हैं और ये साफ दिखाता है कि सब कुछ एक परिवार के हाथों में सब केंद्रित हो चुका है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये I.N.D.I.A. गठबंधन नहीं है, ये I.N.D.I.A. गठबंधन नहीं है, एक घमंडिया गठबंधन है। और इसकी बारात में हर कोई दूल्हा बनना चाहता है। सबको प्रधानमंत्री बनना है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

इस गठबंधन ने ये भी नहीं सोचा है कि किस राज्य में आपके साथ आप किसके साथ कहां पहुंचे हैं? पश्चिम बंगाल में आप टीएमसी और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ हैं। और दिल्‍ली में एक साथ हैं। और अधीर बाबू 1991 पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव इन्हीं कम्युनिस्ट पार्टी ने अधीर बाबू के साथ क्या व्यवहार किया था, वो आज भी इतिहास में दर्ज है। खैर 1991 की बात तो अब पुरानी है, पिछले साल केरल के वायनाड में जिन लोगों ने कांग्रेस के कार्यालय में तोड़फोड़ की, ये लोग उनके साथ दोस्ती करके बैठे हैं। बाहर से तो ये अपना, बाहर से तो अपना लेबल बदल सकते हैं, लेकिन पुराने पापों का क्या होगा? ये ही पाप आपको लेके डूबेंगे। आप जनता जनार्दन से ये पाप कैसे छुपा पाओगे? आप नहीं छुपा सकते हो और इनको आज जो हालत है, इसलिए मैं कहना चाहता हूं,

अभी हालात ऐसे हैं, अभी हालात ऐसे हैं

इसलिए हाथों में हाथ,

जहां हालात तो बदले, फिर छुरियां भी निकलेंगी।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये घमंडिया गठबंधन देश में परिवारवाद की राजनीति का सबसे बड़ा प्रतिबिंब है। देश के स्वाधीनता सेनानियों ने, हमारे संविधान निर्माताओं ने हमेशा परिवारवादी राजनीति का विरोध किया था। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, बाबा साहब अंबेडकर, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, गोपीनाथ बोरदोलोई, लोकनाथ जयप्रकाश, डॉक्टर लोहिया, आप जितने भी नाम देखेंगे सबने परिवारवाद की खुलकर आलोचना की है, क्योंकि परिवारवाद का नुकसान देश के सामान्य नागरिक को उठाना पड़ता है। परिवारवाद सामान्‍य नागरिक के, उसके हकों, उसके अधिकारों से वंचित हैं, इसलिए इन विभूतियों ने हमेशा इस बात पर बहुत जोर दिया था कि देश को परिवार, नाम और पैसे पर आधारित व्‍यवस्‍था से हटना ही होगा, लेकिन कांग्रेस को हमेशा ये बात पसंद नहीं आई।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

हमने हमेशा परिवारवाद का विरोध करने वालों का हमने बराबर देखा है कि उसके प्रति कैसे नफरत के भाव थे। कांग्रेस को परिवारवाद पसंद है। कांग्रेस को दरबारवाद पसंद है। जहां बड़े लोग, उनके बेटे-बेटियां भी बड़े पदों पर काबिज हों, जो परिवार से बाहर हैं, उनके लिए भी यही है कि जब तक आप इस महफिल में दरबारी नहीं बनोगे तो आपका भी कोई भविष्य नहीं है। यहीं उनकी कार्यशैली रही है। इस दरबार सिस्‍टम ने कई wicket लिए हैं। कितनों का हक मारा है, इन लोगों ने। बाबा साहब अंबेडकर- कांग्रेस ने जी-जान लगाकर दो बार उनको हरवाया। कांग्रेस के लोग बाबा साहब अंबेडकर के कपड़ों का मजाक उड़ाते थे, ये वो लोग हैं। बाबू जगजीवन राम, उन्होंने इमरजेंसी पर सवाल उठाए तो बाबू जगजीवन बाबू को भी उन्होंने नहीं छोड़ा, उनको प्रताड़ित किया। मोरारजी भाई देसाई, चरण सिंह, चंद्रशेखर जी, आप कितने ही नाम लीजिए, दरबारवाद के कारण देश के महान लोगों के अधिकारों को इन्‍होंने हमेशा-हमेशा के लिए तबाह कर दिया। यहां तब कि जो दरबारी नहीं थे, जाे दरबारवाद से जुड़े नहीं थे उनके portrait तक parliament में लगाने से इनको झिझक होती थी। 1990 में उनको portrait central hall में तब लगे जब बीजेपी समर्पित गैर-कांग्रेसी सरकार सामने आई। लोहिया जी का portrait भी संसद में तब लगा जब 1991 में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। नेताजी का portrait 1978 में central hall लगाई, जब जनता पार्टी की सरकार थी। लाल बहादुर शास्त्री और चरण सिंह, उनका portrait भी 1993 में गैर-कांग्रेसी सरकार ने लगाया। सरदार पटेल के योगदान को भी कांग्रेस ने हमेशा नकारा। सरदार साहब को समर्पित विश्व की सबसे ऊंची Statue of Unity प्रतिमा बनाने का गौरव भी हमें प्राप्त हुआ। हमारी सरकार ने दिल्‍ली में पीएम म्यूजियम बनाया। सारे पूर्व प्रधानमंत्रियों को सम्मान दिया। पीएम म्यूजियम, दल और पार्टी से ऊपर उठकर सभी प्रधानमंत्रियों को समर्पित है। उनको ये भी नहीं पता है क्योंकि उनके परिवार के बाहर का कोई भी प्रधानमंत्री बना हो, वो उनको मंजूर नहीं है, वो उनको स्वीकार नहीं है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

बहुत बार कुछ बुरा बोलने के इरादे से भी जब कोशिश होती है तो कुछ न कुछ सच भी निकल जाता है। और सच में ऐसे अनुभव हम सबको हैं कभी-कभी सच निकल जाता है। लंका हनुमान ने नहीं जलाई, उनके घमंड ने जलाई और ये बिल्‍कुल सच है। आप देखिए, जनता-जनार्दन भी भगवान राम का ही रूप है। और इसलिए 400 से 40 हो गए। हनुमान ने लंका नहीं जलाई, घमंड ने जलाई और इसलिए 400 से 40 हो गए।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

सच्‍चाई तो ये है देश की जनता ने दो-दो बार तीस साल के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार चुनी है। लेकिन गरीब का बेटा यहां कैसे बैठा है। आपको जो हक था, आप अपनी पारिवारिक पीढ़ी मानते थे, वो यहां कैसे बैठ गया, ये चुभन अभी भी आपको परेशान कर रही है, आपको सोने नहीं देती है। और देश की जनता भी आपको सोने नहीं देगी, 2024 में भी सोने नहीं देगी।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

कभी इनके जन्‍मदिन पर हवाई जहाज में केक काटे जाते थे। आज उस हवाई जहाज में गरीब के लिए वैक्‍सीन जाता है, ये फर्क है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

एक जमाना था, कभी ड्राईक्‍लीन के लिए कपड़े हवाई जहाज से आते थे, आज गरीब, हवाई चप्‍पल वाला हवाई जहाज में उड़ रहा है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,  

कभी छुट्टी मनाने के लिए, मौज-मस्‍ती करने के लिए नौसेना के युद्धपोत मंगवा लेते थे, नौसेना के युद्धपोत मंगवाते थे, मौज-मस्‍ती के लिए। आज उसी नौसेना के जहाज दूर देशों में फंसे भारतीयों को अपने घर लाने के लिए, गरीबों को अपने घर लाने के लिए उपयोग में आते हैं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

जो लोग आचार-व्‍यवहार, चाल-चरित्र से राजा बन गए हों, आधुनिक राजा के रूप में ही जिनका दिमाग काम करता हो, उन्‍हें गरीब का बेटा यहां होने से परेशानी होगी ही होगी। आखिर ये नामदार लोग हैं और ये कामदार लोग हैं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

कुछ बातें बहुत ही अवसर पर मुझे कहने का समय मिलता है। बहुत सी बातें ऐसी होती हैं, इत्तेफाक देखिए, ईवन मैं तो तय करके बैठता नहीं हूं  लेकिन इत्तेफाक देखिए- देखिए कल, कल यहां दिल से बात करने की बात भी कही गई थी। उनके दिमाग के हाल को तो देश लंबे समय से जानता है, लेकिन अब उनके दिल का भी पता चल गया।

और अध्यक्ष जी,

इनका मोदी प्रेम तो इतना जबरदस्त है जी, चौबीसों घंटे सपने में भी उनको मोदी आता है। मोदी अगर भाषण करते समय बीच में पानी पिएं तो वे कहते हैं अगर पानी भी पिया तो सीना तानकर इधर देखिए- मोदी को पानी पिला दिया। अगर मैं गर्मी में, कड़ी धूप में भी जनता-जनार्दन के दर्शन के लिए चल पड़ता हूं, कभी पसीना पोंछता हूं तो कहते हैं देखिए, मोदी को पसीना ला दिया। देखिए, इनका जीने का सहारा देखिए। एक गीत की पंक्ति हैं-

डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत,

दिल बहल जाए फकत, इतना इशारा ही बहुत।

इतने पर भी आसमां वाला गिरा दे बिजलियां,

कोई बतला दे जरा डूबता फिर क्‍या करे।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं कांग्रेस की मुसीबत समझता हूं। बरसों से एक ही फेल प्रोडक्ट उसको बार-बार लॉन्च करते हैं। हर बार लॉन्चिंग फेल हो जाती है। और अब उसका नतीजा ये हुआ है, मतदाताओं के प्रति उनकी नफरत भी सातवें आसमान पर पहुंच गई है। उनका लॉन्चिंग फेल होता है, नफरत जनता पर करते हैं। लेकिन पीआर वाले प्रचार क्या करते हैं? मोहब्बत की दुकान का प्रचार करते हैं, इकोसिस्टम लग पड़ती है। इसलिए देश की जनता भी कह रही है ये है लूट की दुकान, झूठ का बाजार। ये है लूट की दुकान, झूठ का बाजार। इसमें नफरत है, घोटाले हैं, तुष्टीकरण हैं, मन काले हैं। परिवारवाद की आग के दशकों से देश हवाले हैं। और तुम्हारी दुकान ने और तुम्हारी दुकान ने इमरजेंसी बेची है, बंटवारा बेचा है, सिखों पर अत्याचार बेचा है, झूठ कितना सारा बेचा है, इतिहास बेचा है, उरी के सच के प्रमाण बेचा है, शर्म करो नफरत की दुकान वालों तुमने सेना का स्वाभिमान बेचा है।  

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम तो यहां बैठे हुए काफी लोग गांव गरीब वाली पृष्ठभूमि से हैं। यहां सदन में बड़ी संख्या में लोग गांव और छोटे कस्बों से आते हैं और गांव का कोई व्यक्ति विदेश जाए, सालों तक वो उसके गीत गाता रहता है। एकाध बार भी कभी विदेश जाए, देखकर के आया हो, सालों तक बताता रहता है कि मैं ये देख के आया, मैं ये देख के आया, मैंने ये सुना, मैंने ये मुझे देखा, स्वाभाविक है गांव का व्यक्ति जिसने बिचारे ने दिल्‍ली-मुंबई भी न देखा हो और अमेरिका जा के आ जाए। यूरोप जा के आ जाए तो वो वर्णन करता रहता है। जिन लोगों ने, कभी गमले में मूली नहीं उगाई, जिन लोगों ने कभी गमले में मूली नहीं उगाई, वो खेतों को देखकर हैरान होने ही होने हैं।

अध्यक्ष जी,

ये लोग तो जो कभी जमीन पर उतरे ही नहीं, जिन्‍होंने हमेशा गाड़ी का शीशा डाउन करके दूसरों की गरीबी देखी है, उन्‍हें सब हैरान करने वाला लग रहा है। जब ऐसे लोग भारत की स्थिति का वर्णन करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि ये भारत में 50 साल तक उनके परिवार ने राज किया था। एक प्रकार से जब भारत के इस रूप का वर्णन करते हैं तब वो अपने पूर्वजों की विफलताओं का जिक्र करते हैं, ये इतिहास गवाह है। और इनकी दाल गलने वाली नहीं है। इसलिए नई-नई दुकानें खोलकर के बैठ जाते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इन लोगों को पता है कि इनकी नई दुकान पर भी कुछ दिनों में ताला लग जाएगा। और आज इस चर्चा के बीच देश के लोगों को मैं बड़ी गंभीरता के साथ इस घमंडिया गठबंधन की आर्थिक नीति से भी सावधान करना चाहता हूं। ये देश में ये घमंडिया गठबंधन ऐसी अर्थव्यवस्था चाहता है, जिससे देश कमजोर हो और उसको सामर्थ्‍य बन न पाए। हम अपने आस-पास के देशों में देखते हैं जिन आर्थिक नीतियों को लेकर के कांग्रेस के और उसके साथी आगे बढ़ना चाहते हैं, जिस प्रकार से खजाने से पैसे लुटाकर वोट पाने का खेल खेल रहे हैं, हमारे आस-पास के देश के हालात देख लीजिए। दुनिया के उन देशों की स्थिति देख लीजिए। और मैं देश को कहना चाहता हूं, इनसे सुधरने की मुझे कोई अपेक्षा नहीं है, वो जनता इनको सुधार देगी।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इस प्रकार की चीजों का दुष्परिणाम हमारे देश पर भी हो रहा है, हमारे राज्यों पर भी हो रहा है। चुनाव जीतने के लिए अनाब-शनाब वादों के कारण अब इन राज्यों में जनता के ऊपर नए-नए दण्ड डाले जा रहे हैं। नए-नए बोझ डाले जा रहे हैं और विकास के प्रोजेक्‍ट्स बंद करने की घोषणा की जा रही है, विधिवत रूप से घोषणा की जा रही है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये घमंडिया गठबंधन की जो आर्थिक नीति है, उस आर्थिक नीतियों का मैं परिणाम साफ देख रहा हूं। और इसलिए मैं देशवासियों को चेतावनी, देशवासियों को ये सत्य समझाना चाहता हूं। ये लोग ये घमंडिया गठबंधन ये लोग भारत के दिवालिया होने की गारंटी है, भारत के दिवालिया होने की गारंटी है। ये इकोनॉमी को डूबाने की गारंटी है, ये इकोनॉमी को डूबाने की गारंटी है। ये डबल डिजिट महंगाई की गारंटी है, ये डबल डिजिट महंगाई की गारंटी है। ये पॉलिसी पैरालिसिस की गारंटी है, ये पॉलिसी पैरालिसिस की गारंटी है। ये अस्थिरता की गारंटी है, ये अस्थिरता की गारंटी है। ये करप्‍शन की गारंटी है, ये करप्‍शन की गारंटी है। ये तुष्टीकरण की गारंटी है, ये तुष्टीकरण की गारंटी है। ये परिवारवाद की गारंटी है, ये परिवारवाद की गारंटी है। ये भारी बेरोजगारी की गारंटी है, ये भारी बेरोजगारी की गारंटी है। ये आतंक और हिंसा की गारंटी है, ये आतंक और हिंसा की गारंटी है। ये भारत को दो शताब्‍दी पीछे पहुंचाने की गारंटी है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

ये कभी भारत को टॉप 3 अर्थव्यवस्था बनाने की गारंटी नहीं दे सकते। ये मोदी देश को गारंटी देता है कि मेरे तीसरे कार्यकाल में मैं हिन्‍दुस्‍तान को टॉप 3 की पोजीशन में ला के रखूंगा, ये मेरी देश को गारंटी है। ये कभी भी देश को विकसित बनाने का सोच भी नहीं सकते हैं। उस दिशा में ये लोग कुछ कर भी नहीं सकते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आदरणीय लोकतंत्र में जिनका भरोसा नहीं होता है वो सुनाने के लिए तो तैयार होते हैं लेकिन सुनने का धैर्य नहीं होता है। अपशब्द बोलो भाग जाओ, कूड़ा कचरा फैंकों भाग जाओ, झूठ फैलाओ भाग जाओ, यही जिनका खेल है। ये देश इनसे अपेक्षा ज्यादा नहीं कर सकता है। अगर इन्होंने गृह मंत्री जी की मणिपुर की चर्चा पर सहमति दिखाई होती तो अकेले मणिपुर विषय पर विस्तार से चर्चा हो सकती थी। हर पहलू पर चर्चा हो सकती थी। और उनको भी बहुत कुछ कहने का मौका मिल सकता था। लेकिन उनको चर्चा में रस नहीं था और कल अमित भाई ने विस्तार से इस विषय की चीजें जब रखी तो देश को भी आश्चर्य हुआ है कि ये लोग इतना झूठ फैला सकते हैं। ऐसे-ऐसे पाप करके गए हैं लोग और वे आज जब अविश्वास का प्रस्ताव लाए और अविश्वास पर सारे विषय पर वो बोले तो ट्रेजरी बेंच का भी दायित्व बनता है कि देश के विश्वास को प्रकट करे, देश के विश्वास को नई ताकत दें, देश के प्रति अविश्वास करने वालों के लिए करारा जवाब दें, ये हमारा भी दायित्व बनता है। हमने कहा था, अकेले मणिपुर के लिए आओ चर्चा करो, गृहमंत्री जी ने चिट्ठी लिखकर के कहा था। उनके विभाग से जुड़ा विषय था। लेकिन साहस नहीं था, इरादा नहीं था और पेट में पाप था, दर्द पेट में हो रहा था और फोड़ रहे थे सर, इसका ये परिणाम था।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मणिपुर की स्थिति पर देश के गृह मंत्री श्रीमान अमित शाह ने कल दो घंटे तक विस्तार से और बड़े धैर्य से रत्ती भर भी राजनीति के बिना सारे विषय को विस्तार से समझाया, सरकार की और देश की चिंता को प्रकट किया और उसमें देश की जनता को जागरूक करने का भी प्रयास था। उसमे इस पूरे सदन की तरफ से एक विश्वास का संदेश मणिपुर को पहुंचाने का इरादा था। उसमें जन सामान्य को शिक्षित करने का भी प्रयास था। एक नेक ईमानदारी से देश की भलाई के लिए और मणिपुर की समस्या के लिए रास्ते खोजना एक प्रयास था। लेकिन सिवाय राजनीति के कुछ करना नहीं है, इसलिए इन्होंने यही खेल किए , यही स्थिरता की।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

कल वैसे तो विस्तार से अमित भाई ने बताया है। मणिपुर में अदालत का एक फैसला आया। अब अदालतों में क्या हो रहा है वो हम जानते हैं। और उसके पक्ष विपक्ष में जो परिस्थितियों बनीं, हिंसा का दौर शुरू हो गया और उसमें बहुत परिवारों को मुश्किल हुई। अनेकों ने अपने स्वजन भी खोएं। महिलाओं के साथ गंभीर अपराध हुआ और ये अपराध अक्षम्य है और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार मिलकर के भरपूर प्रयास कर रही है। और मैं देश के सभी नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जिस प्रकार से प्रयास चल रहे हैं निकट भविष्य में शांति का सूरज जरूर उगेगा। मणिपुर फिर एक बार नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेगा। मैं मणिपुर के लोगों से भी आग्रह पूर्वक कहना चाहता हूं, वहां की माताओं-बहनों, बेटियों से कहना चाहता हूं देश आपके साथ है, ये सदन आपके साथ है। हम सब मिलकर के कोई यहां हो या ना हो, हम सब मिलकर के इस चुनौती का समाधान निकालेंगे, वहां फिर से शांति की स्थापना होगी। मैं मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि मणिपुर फिर विकास की राह पर तेज गति से आगे बढ़े उसमें कोई प्रयासों में कोई कसर नहीं रहेगी।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

यहां सदन में मां भारती के बारे में जो कहा गया है, उसने हर भारतीय की भावना को गहरी ठेस पहुंचाई है। अध्यक्ष जी पता नहीं मुझे क्या हो गया है। सत्ता के बिना ऐसा हाल किसी का हो जाता है क्या? सत्ता सुख के बिना जी नहीं सकते हैं क्या? और क्या क्या भाषा बोल रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

पता नहीं क्यों कुछ लोग भारत मां की मृत्यु की कामना करते नजर आ रहे हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। ये वो लोग हैं जो कभी लोकतंत्र की हत्या की बात करते हैं, कभी संविधान की हत्या की बात करते हैं। दरअसल जो इनके मन में है, वही उनके कृतित्व में सामने आ जाता है। मैं हैरान हूं और ये बोलने वाले कौन लोग हैं? क्या ये देश भूल गया है ये 14 अगस्त विभाजन विभीषिका, पीड़ा दायक दिवस आज भी हमारे सामने उन चीख को लेकर के, उन दर्द को लेकर के आता है। ये वो लोग जिन्होंने मां भारती के तीन-तीन टुकड़े कर दिए। जब मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना था, जब मां भारती की जंजीरों को तोड़ना था, बेड़ियों को काटना था, तब इन लोगों ने मां भारती की भुजाएं काट दीं। मां भारती के तीन-तीन टुकड़े कर दिए और ये लोग किस मुंह से ऐसा बोलने की हिम्मत करते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये वो लोग हैं जिस वंदे मातरम गीत ने देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा दी थी। हिन्दुस्तान के हर कोने में वंदे मातरम चेतना का स्वर बन गया था। तुष्टिकरण की राजनीति के चलते उन्होंने मां भारती के ही टुकड़े किए इतना नहीं, वंदे मातरम गीत के भी टुकड़े कर दिए इन लोगों ने। ये वो लोग हैं माननीय अध्यक्ष जी जो भारत तेरे टुकड़े होंगे ये गैंग ये नारा लगाने वाले लोग, इनको बढ़ावा देने के लिए, उनका प्रोत्साहन करने के लिए पहुंच जाते हैं। भारत तेरे टुकड़े होंगे उनको बढ़ावा दे रहे हैं। ये उन लोगों की मदद कर रहे हैं जो ये कहते हैं कि सिलीगुड़ी के पास जो छोटा सा नॉर्थ ईस्ट को जोड़ने वाला कॉरिडोर है, उसको काट दें तो बिल्कुल नॉर्थ ईस्ट अलग हो जाएगा। ये सपना देखने वालों का जो लोग समर्थन करते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं जरा इनको जहां भी हो जरा मेरा सवाल अगल बगल में बैठे हुए कोई जवाब दे ये जो बाहर गए हैं न उनको जरा पूछिए कि कच्चातिवु क्या है? कोई पूछो इनको कच्चातिवु क्या है? इतनी बड़ी बाते करते हैं आज मैं बताना चाहता हूं ये कच्चातिवु क्या है और ये कच्चातिवु कहां आया जरा उनको पूछिए, इतनी बड़ी बातें लिखकर के देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। और ये डीएमके वाले उनकी सरकार उनके मुख्यमंत्री मुझे चिट्ठी लिखते हैं, अभी भी लिखते हैं और कहते हैं मोदी जी कच्चातिवु वापस ले आइए। ये कच्चातिवु है क्या? किसने किया? तमिलनाडु से आगे श्रीलंका के पहले एक टापू किसी ने किसी दूसरे देश को दे दिया था। कब दिया था, कहां गई थी, क्या ये भारत माता नहीं थी वहां? क्या वो मां भारती का अंग नहीं था? और इसको भी आपने तोड़ा। कौन था उस समय, श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ था। कांग्रेस का इतिहास मां भारती को छिन्न-भिन्न करने का रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

और कांग्रेस का मां भारती के प्रति प्रेम क्‍या रहा है? भारत के वासियों के प्रति प्रेम क्या रहा है? एक सच्चाई बड़े दुख के साथ मैं इस सदन के सामने रखना चाहता हूं। ये पीड़ा वो नहीं समझ पाएंगे। मैं दावणगेरे के चप्पेे-चप्पे पर घुमा हुआ व्यक्ति हूं और राजनीति में कुछ नहीं था तब भी अपने पैर वहां घिसता था। मेरा एक इमोशनल अटैचमेंट है उस क्षेत्र के प्रति। इनको अंदाज नही है।

माननीय अध्यक्ष जी,

मैं तीन प्रसंग आपके सामने रखना चाहता हूं सदन के सामने। और बड़े गर्व के साथ कहना चाहता हूं, देशवासी भी सुन रहे हैं। पहली घटना 5 मार्च, 1966- इस दिन कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय नागरिकों पर अपनी वायुसेना के माध्यम से हमला करवाया था। और वहां गंभीर विवाद हुआ था। कांग्रेस वाले जवाब दें क्या  वो किसी दूसरे देश की वायुसेना थी क्या। क्या मिजोरम के लोग मेरे देश के नागरिक नहीं थे क्या। क्या उनकी सुरक्षा ये भारत सरकार की जिम्मेदारी थी कि नहीं थी। 5 मार्च, 1966- वायुसेना से हमला करवाया गया, निर्दोष नागरिकों पर हमला करवाया गया।

और माननीय अध्यक्ष जी,

आज भी मिजोरम में 5 मार्च को आज भी पूरा मिजोरम शोक मनाता है। उस दर्द को मिजोरम भूल नहीं पा रहा है। कभी इन्होंने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की, घाव भरने का प्रयास तक नहीं किया है। कभी उनको इसका दुख नहीं हुआ है। और कांग्रेस ने इस सच को देश के सामने छुपाया है दोस्तों। ये सत्य देश से इन्होंने छिपाया है। क्या अपने ही देश में वायुसेना से हमला करवाना, कौन था उस समय- इंदिरा गांधी। अकाल तख्त‍ पर हमला हुआ, ये तो अभी भी हमारी स्मृति में है, उनको मिजोरम में उससे पहले ये आदत लग गई थी। और इसलिए अकाल तख्त पर हमला करने तक वो पहुंचे थे मेरे ही देश में, और यहां हमें उपदेश दे रहे हैं।

आदरणीय अध्य‍क्ष जी,

नॉर्थ-ईस्ट में वहां के लोगों के विश्वास की इन्होंने हत्या की है। वो घाव किसी न किसी समस्या के रूप में उभर करके आते हैं, उन्हीं के कारनामे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं दूसरी घटना का वर्णन करना चाहता हूं और वो घटना है 1962 का वो खौफनाक रेडियो प्रसारण आज भी शूल की तरह नार्थ ईस्ट के लोगों को चुभ रहा है। पंडित नेहरू ने 1962 में जब देश के ऊपर चाइना का हमला चल रहा था, देश के हर कोने में लोग अपनी रक्षा के लिए भारत से अपेक्षा करके बैठे थे, उनको कोई मदद मिलेगी, उनकी जान-माल की रक्षा होगी, देश बच जाएगा। लोग अपने हाथों से लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे हुए थे, ऐसी विक‍ट घड़ी में दिल्लीे के शासन पर बैठे हुए और उस समय पर एकमात्र जो नेता हुआ करते थे, पंडित नेहरू ने रेडियो पर क्या कहा था- उन्होंने कहा था... My heart goes out to the people of Assam. ये हाल करके रखा था उन्होंने। वो प्रसारण आज भी असम के लोगों के लिए एक नश्तर की तरह चुभता रहता है। और किस प्रकार से उस समय नेहरू जी ने उन्हें अपने भाग्य पर छोड़ जीने के लिए मजबूर कर दिया था। ये हमसे हिसाब मांग रहे हैं।

आदरणीय अध्य‍क्ष जी,

यहां से चले गए लोहियावादी। उन्हें भी मैं सुनाना चाहता था, जो लोग अपने-आप को लोहिया जी का वारिस कहते हैं और जो कल सदन में बड़े उछल-उछल करके बोल रहे थे, हाथ लंबे-चौड़े करने की कोशिश कर रहे थे। लोहिया जी ने नेहरू जी पर गंभीर आरोप लगाया था। और लोहिया जी ने कहा था और वो आरोप था कि जान-बूझकर नेहरू जी नॉर्थ-ईस्ट का विकास नहीं कर रहे थे, जान-बूझ करके नहीं कर रहे थे। और लोहिया जी के शब्द थे- ये कितनी लापरवाही वाली और कितनी खतरनाक बात है- लोहिया जी के शब्द- हैं, ये कितनी लापरवाही वाली और कितनी खतरनाक बात है 30 हजार स्क्वॉयर मील से बड़े क्षेत्र को एक कोल्ड स्टोरेज में बंद करके उसे हर तरह के विकास से वंचित कर दिया गया है। ये लोहिया जी ने नेहरू पर आरोप लगाया था कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए तुम्हारा रवैया क्या है, ये कहा था। नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के हृदय को, उनकी भावनाओं को आपने कभी समझने की कोशिश नहीं की है। मेरे मं‍त्री परिषद के 400 मंत्री रात्रि निवास करके वो अकेले स्टेट हेड क्वार्टर में नहीं, डिस्ट्रिक हेड क्वार्टर और मैं स्वयं 50 बार गया हूँ। ये आंकड़ा नहीं है सिर्फ, ये साधना है। ये नॉर्थ-ईस्ट के प्रति समर्पण है।

आदरणीय,

और कांग्रेस का हर कामकाज राजनीति और चुनाव और सरकार के आसपास ही घूमता रहता है। जहां ज्यादा सीटें मिलती हों राजनीति की अपनी खिचड़ी पकती है तो वहां तो मजबूरन से ही कुछ कर लेते हैं, लेकिन नॉर्थ-ईस्ट में, देश सुन रहा है, नॉर्थ-ईस्ट में उनकी कोशिश रही कि जहां पर इक्का-दुक्का सीटें होती थीं वो इलाके उनके लिए स्वीकार्य नहीं थे। वो इलाके उनको मंजूर नहीं थे, उनकी तरफ उनका ध्यान नहीं था। उनको देश के नागरिक के हितों की कोई संवेदना नहीं थी।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

और इसलिए जहां इक्का-दुक्का सीटें हुआ करती थीं, उसके प्रति सौतेला व्यवहार, ये कांग्रेस के डीएनए में रहा है, पिछले कई वर्षों का इतिहास देख लीजिए। नॉर्थ-ईस्ट में उनका ये रवैया था, लेकिन अब देखिए मैं पिछले 9 साल के मेरे प्रयासों से कहता हूं कि हमारे लिए नॉर्थ-ईस्ट हमारे जिगर का टुकड़ा है। आज मणिपुर की समस्‍याओं को ऐसे प्रस्‍तुत किया जा रहा है, जैसे बीते कुछ समय में ही वहां यह परिस्थिति पैदा हुई हो। कल अमित भाई ने विस्‍तार से बताया है समस्‍या क्‍या है, कैसे हुआ है। लेकिन मैं आज बड़ी गंभीरता से कहना चाहता हूं नॉर्थ ईस्‍ट की इन समस्‍याओं की कोई जननी है तो जननी एकमात्र कांग्रेस है। नॉर्थ ईस्‍ट के लोग इसके लिए जिम्‍मेदार नहीं है, इनकी यह राजनीति जिम्‍मेदार है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

भारतीय संस्‍कारों से ओत-प्रोत मणिपुर, भाव भक्ति की स्‍मृद्धि की विरासत वाला मणिपुर, स्‍वतंत्रता संग्राम और आजाद हिंद फौज, अनगिनत बलिदान देने वाला मणिपुर। कांग्रेस के शासन में ऐसा महान हमारा भूभाग अलगाव की आग में बलि चढ़ गया था। आखिर क्‍यों?

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

आप सबको भी मैं याद दिलाना चाहता हूं साथियों, यहां जो मेरे नॉर्थ-ईस्‍ट के भाई हैं उनको हर चीज का पता है। जब मणिपुर में, वो एक समय था हर व्‍यवस्‍था उग्रवादी संगठनों की मर्जी से चलती थी, वो जो कहे वो होता था, और उस समय सरकार किसकी थी मणिपुर में? कांग्रेस की, किसकी सरकार थी – कांग्रेस। जब सरकारी दफ्तरों में महात्‍मा गांधी की फोटो नहीं लगाने दी जाती थी, तब सरकार किसकी थी? कांग्रेस। जब मोरांग  में आजाद हिंद फौज के संग्रहालय पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर बम फेंका गया, तब मणिपुर में सरकार किसकी थी? कांग्रेस। तब मणिपुर में सरकार किसकी थी? कांग्रेस।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

जब मणिपुर में स्‍कूलों में राष्‍ट्रगान नहीं होने देंगे, यह निर्णय किये जाते थे, तब मणिपुर में सरकार किसकी थी? कांग्रेस। जब अभियान एक अभियान चला था, अभियान चला करके लाइब्रेरी में रखी गई किताबों को जलाने का इस देश की अमूल्‍य ज्ञान की विरासत को जलाते समय सरकार किसकी थी? कांग्रेस। जब मणिपुर में मंदिर की घंटी शाम को चार बजे बंद हो जाती थी, ताले लग जाते थे, पूजा-अर्चना करना बड़ा मुश्किल हो जाता था, सेना का पहरा लगाना पड़ता था, तब मणिपुर में सरकार किसकी थी? कांग्रेस।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

जब इम्‍फाल के इस्कॉन मंदिर पर बम फेंक कर श्रद्धालुओं की जान ले ली गई थी तब मणिपुर में सरकार किसकी थी? कांग्रेस। जब अफसर, हाल देखिए, आईएएस, आईपीएस अफसर उनको अगर वहां काम करना है तो उनकी तनख्‍वाह का एक हिस्‍सा उनको इन उग्रवादी लोगों को देना पड़ता था। तब जा करके वो रह पाते थे, तब सरकार किसकी थी? कांग्रेस।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

इनकी पीड़ा सिलेक्टिव है, इनकी संवेदना सिलेक्टिव है। इनका दायरा राजनीति से शुरू होता है और राजनीति से आगे बढ़ता है। वे राजनीति के दायरे से बाहर थे, न मानवता के लिए सोच सकते हैं, न देश के लिए सोच सकते हैं, न ही देश की इन कठिनाइयों के लिए सोच सकते हैं। उनको सिर्फ राजनीति के सिवा कुछ सूझता नहीं है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

मणिपुर में जो सरकार है और पिछले छह साल से इन समस्‍याओं का समाधान ढूंढने के लिए लगातार समर्पित भाव से कोशिश कर रही है। बंद और ब्‍लॉकेट का जमाना कोई भूल नहीं सकता है। मणिपुर में आये दिन बंद और ब्‍लॉकेट होता था। वो आज बीते दिन की बात हो चुकी है। शांति स्‍थापना के लिए हरेक को साथ लेकर चलने के लिए एक विश्‍वास जगाने का प्रयास निरंतर हो रहा है, आगे भी होगा। और जितना ज्‍यादा हम राजनीति को दूर रखेंगे, उतनी शांति निकट आएगी। यह मैं देशवासियों को विश्‍वास दिलाना चाहता हूं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

हमारे लिए नॉर्थ-ईस्‍ट आज भले हमें दूर लगता हो, लेकिन जिस प्रकार से साउथ ईस्ट एशिया का विकास हो रहा है, जिस प्रकार आसियान देशों का महत्व बढ़ रहा है, वो दिन दूर नहीं होगा, हमारे ईस्‍ट की प्रगति के साथ-साथ नॉर्थ-ईस्‍ट वैश्विक दृष्टि से सेंटर प्वाइंट बनने वाला है। और मैं यह देख रहा हूं, और इसलिए मैं पूरी ताकत से आज नॉर्थ-ईस्‍ट की प्रगति के लिए कर रहा हूं, वोट के लिए नहीं कर रहा हूं जी। मुझे मालूम है कि करवट लेते हुए विश्‍व की नई संरचना किस प्रकार से साउथ ईस्ट एशिया और आसियान की कंट्री के लिए प्रभाव पैदा करने वाली है और नॉर्थ-ईस्‍ट का क्या महत्‍व बढ़ने वाला है और न नॉर्थ-ईस्‍ट का गौरव गान फिर से कैसे शुरू होने वाला है, वो मैं देख सकता हूं और इसलिए मैं लगा हुआ हूँ।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

और इसलिए हमारी सरकार ने नॉर्थ-ईस्‍ट के विकास को पहली प्राथमिकता दी है। पिछले नौ वर्षों में लाखों करोड़ रुपये नॉर्थ-ईस्‍ट की इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पर हमने लगाये हैं। आज आधुनिक हाईवे, आधुनिक रेलवे, आधुनिक नए एयरपोर्ट यह नॉर्थ-ईस्‍ट की पहचान बन रहे हैं। आज पहली बार अगरतला रेल कनेक्टिविटी से जुड़ा है। पहली बार मणिपुर में गुड्स ट्रेन पहुंची है। पहली बार नॉर्थ-ईस्‍ट में वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेन चली है। पहली बार अरुणाचल प्रदेश में ग्रीन फील्‍ड एयरपोर्ट बना है। पहली बार अरुणाचल में सिक्किम जैसे राज्‍य एयर कनेक्टिविटी से जुड़ा है। पहली बार वाटर वे के जरिये पूर्वोत्तर इंटरनेशनल ट्रेड का गेटवे बना है। पहली बार नॉर्थ-ईस्‍ट में एम्स जैसा मेडिकल संस्थान खुला है। पहली बार मणिपुर में देश की पहली स्‍पोर्ट यूनिवर्सिटी खुल रही है। पहली बार मिजोरम में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन जैसे संस्‍था खुल रहे हैं। पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में नॉर्थ-ईस्‍ट की इतनी भागीदारी बढ़ी है। पहली बार नागालैंड से एक महिला सांसद राज्‍यसभा में पहुंची है। पहली बार इतनी बड़ी संख्‍या में नॉर्थ-ईस्‍ट के लोगों को  पद्म पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। पहली बार पूर्वोत्‍तर से लचित बोरफुकन जैसे  नायक की झांकी गणतंत्र दिवस में शामिल हुई है। पहली बार मणिपुर में रानी गाइदिन्ल्यू  के नाम पर पूर्वोत्‍तर का पहला ट्राइबल फ्रीडम फाइटर म्यूजियम बना है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

हम जब सबका साथ, सबका विकास कहते हैं, यह हमारे लिए नारा नहीं, यह हमारे शब्‍द नहीं है। यह हमारे लिए आर्टिकल ऑफ फेथ है। हमारे लिए कमिटमेंट है और हम देश के लिए निकले हुए लोग हैं। हमने तो कभी जीवन में सोचा ही नहीं था कि कभी ऐसी जगह आ करके बैठने का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन यह देश की जनता की कृपा है कि उसने हमें अवसर दिया है तो मैं देश की जनता को विश्वास दिलाता हूं –

शरीर का कण-कण,

समय का पल-पल सिर्फ और सिर्फ देशवासियों के लिए है,

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं अपने विपक्ष के साथियों की एक बात के लिए आज तारीफ करना चाहता हूं। क्योंकि वैसे तो वो सदन के नेता को नेता मानने के लिए तैयार नहीं है। मेरे किसी भाषण को उन्होंने होने नहीं दिया है, लेकिन मुझमें धैर्य भी है, सहनशक्ति भी है और झेल भी लेता हूं और वो थक भी जाते हैं। लेकिन एक बात के लिए मैं तारीफ करता हूं, सदन के नेता के नाते मैंने 2018 में उनको काम दिया था कि 2023 में आप अविश्वास पत्र ले करके आए और मेरी बात मानी उन्‍होंने। लेकिन मुझे दु:ख इस बात का है कि 18 के बाद 23 में पांच साल मिले, थोड़ा अच्‍छा करते, अच्‍छे ढंग से करते, लेकिन तैयारी बिल्‍कुल नहीं थी। कोई इनोवेशन नहीं था, कोई क्रिएटिविटी नहीं थी। न मुद्दे खोज पा रहे थे, पता नहीं यह देश को इन्‍होंने बहुत निराश किया है अध्‍यक्ष जी,  चलिए कोई बात नहीं 2028 में हम फिर से मौका देंगे। लेकिन मैं इस बार उनसे आग्रह करता हूं कि जब 2028 में आप अविश्‍वास प्रस्‍ताव ले करके आएं हमारी सरकार के खिलाफ,  थोड़ी तैयारी करके आइये। कुछ मुद्दे ढूंढ करके आइये, ऐसे क्‍या घिसी-पिटी बातें ले करके घूमते रहते हो और देश की जनता को थोड़ा विश्वास इतना मिल जाए कि चलो आप विपक्ष के भी योग्‍य हो। इतना तो करो। आपने वो योग्‍यता भी खो दी है। मैं आशा करता हूं कि वो थोड़ा होमवर्क करेंगे। तू-तू, मैं-मैं और चिल्‍लाना-चीखना, और नारेबाजी के लिए तो दस लोग मिल जाएंगे, लेकिन थोड़ा दिमाग वाला भी काम भी कीजिए ना।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

राजनीति अपनी जगह पर है, संसद ये दल के लिए प्‍लेटफॉर्म नहीं है। संसद देश के लिए सम्‍मानीय सर्वोच्‍च संस्‍थान है। और इसलिए सांसदों को भी इसके लिए गंभीर होना जरूरी है। देश इतने संसाधन लगा रहा है। देश के गरीब के हक का यहां खर्च किया जाता है। यहां का पल-पल का उपयोग देश के लिए होना चाहिए। लेकिन यह गंभीरता विपक्ष के पास नजर नहीं आ रही है। इसलिए अध्‍यक्ष जी, यह राजनीति ऐसे तो नहीं हो सकती। चलो खाली है जरा संसद घूम आते हैं, इसलिए संसद है क्‍या? यह तरीका होता है क्‍या?

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

यह चलो संसद घूम आते हैं, इस भावना से राजनीति तो चल सकती है, देश नहीं चल सकता है। यहां देश चलाने के लिए हमें काम दिया गया है और इसलिए वो अगर जिम्‍मेदारी को पूरा नहीं करते हैं, तो वे जनता-जर्नादन अपने मतदाताओं का विश्‍वासघात करते हैं और इन्‍होंने विश्‍वासघात किया है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

मेरा इस देश की जनता पर अटूट विश्‍वास है, अपार विश्‍वास है और मैं अध्‍यक्ष जी, विश्‍वास से कहता हूं कि हमारे देश के लोग एक प्रकार से अखंड विश्वासी लोग हैं। हजार साल की गुलामी के कालखंड में भी, उनके भीतर के विश्‍वास को कभी उन्‍होंने हिलने नहीं दिया था। यह अखंड विश्‍वासी समाज है, अखंड चैतन्य से भरा हुआ समाज है। यह संकल्‍प के लिए समर्पण की परंपरा को ले करके चलने वाला समाज है। वयम् राष्ट्रांग भूता कह करके देश के लिए उसी संवेदना के साथ काम करने वाला ये समाज है।

और इसलिए माननीय अध्‍यक्ष जी,

यह ठीक है गुलामी के कालखंड में हम पर बहुत हमले हुए, बहुत कुछ झेलना पड़ा हमें लेकिन हमारे देश के वीरों, हमारे देश के महापुरुषों ने, हमारे देश के चिंतकों ने, हमारे देश के सामान्य नागरिक ने विश्‍वास की उस लौ को कभी बुझने नहीं दिया है। कभी भी वो लौ कभी बुझी नहीं थी और जब लौ कभी बुझी नहीं तब प्रकाश पुंज के सांये में हम उस आनंद को ले रहे हैं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

बीते नौ वर्षों में देश के सामान्‍य मानवी का विश्‍वास नई बुलंदियों को छू रहा है, नये अरमानों को छू रहा है। मेरे देश के नौजवान विश्‍व की बराबरी करने के सपने देखने लगे हैं। और इससे बड़ा सौभाग्‍य क्‍या हो सकता है। हर भारतीय विश्‍वास से भरा हुआ है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

आज का भारत न दबाव में आता है, न दबाव को मानता है। आज का भारत न झुकता है, आज का भारत न थकता है, आज का भारत न रुकता है। समृद्ध विरासत विश्‍वास ले करके, संकल्‍प ले करके चलिए और यही कारण है जब देश का सामान्‍य मानवी देश पर विश्‍वास करने लगता है तो दुनिया को भी हिन्‍दुस्‍तान पर विश्‍वास करने के लिए प्रेरित करता है। आज चूं‍कि दुनिया का विश्‍वास भारत के प्रति बना है उसका एक कारण भारत के लोगों का खुद पर विश्‍वास बढ़ा है। यह सामर्थ्‍य है, कृपा करके इस विश्‍वास को तोड़ने की कोशिश मत कीजिए। मौका आया है देश को आगे ले जाने का, समझ नहीं सकते हो तो चुप रहो। इंतजार करो, लेकिन देश के विश्वास को विश्वासघात करके तोड़ने की कोशिश मत करो।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

बीते वर्षों में विकसित भारत की मजबूत नींव रखने में हम सफल हुए और सपना लिया है 2047 जब देश आजादी के 100 वर्ष मनाएगा, आजादी के 75 वर्ष पूरे होते ही अमृतकाल शुरू हुआ है। और अमृतकाल के प्रारंभिक वर्षों में है तब इस विश्‍वास के साथ मैं कहता हूं जो नींव आज मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है, उस नींव की ताकत है कि 2047 में हिन्‍दुस्‍तान विकसित हिन्‍दुस्‍तान होगा, भारत विकसित भारत होगा साथियों। और यह देशवासियों के परिश्रम से होगा, देशवासियों के विश्‍वास से होगा, देशवासियों के संकल्‍प से होगा, देशवासियों की सामूहिक शक्ति से होगा, देशवासियों की अखंड पुरुषार्थ से होने वाला है यह मेरा विश्‍वास है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

हो सकता है, यहां जो बोला जाता है वो रिकॉर्ड के लिए तो शब्‍द चले जाएंगे, लेकिन इतिहास हमारे कर्मों को देखने वाला है, जिन कर्मों से एक समृद्ध भारत का सपना साकार करने के लिए एक मजबूत नींव का कालखंड रहा है, उस रूप में देखा जाएगा। इस विश्‍वास के साथ आदरणीय अध्‍यक्ष जी, आज सदन के सामने मैं कुछ बातें स्‍पष्‍टता पूर्वक करने के लिए आया था और मैंने बहुत मन पर संयम रख करके उनके हर अपशब्‍दों पर हंसते हुए, अपने मन को खराब न करते हुए 140 करोड़ देशवासियों को उनके सपनों और संकल्पों को अपनी नजर के सामने रख करके मैं चल रहा हूं, मेरे मन में यही है। और मैं सदन के साथियों से आग्रह करूंगा, आप समय को पहचानिए, साथ मिल करके चलिए। इस देश में मणिपुर से गंभीर समस्या पहले भी आई हैं, लेकिन हमने मिलकर के रास्‍ते निकाले हैं, आओ मिल करके चलें, मणिपुर के लोगों को विश्‍वास दे करके चलें, राजनीति का खेल करने के लिए मणिपुर की भूमिका का कम से कम दुरूपयोग न करे। वहां जो हुआ है, वो दु:खपूर्ण है। लेकिन उस दर्द को समझ करके दर्द की दवाई बन करके काम करे यही हमारा रास्‍ता  होना चाहिए।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

इस चर्चा में बहुत समृद्ध चर्चा इस तरफ तो हुई है। एक-एक, डेढ़-डेढ़ घंटा विस्‍तार से सरकार के काम का हिसाब देने का हमें अवसर मिला है। और मैं अगर यह प्रस्ताव न आया होता तो शायद हमें भी इतना कुछ कहने का मौका न मिलता तो फिर एक बार प्रस्ताव लाने वालों का तो मैं आभार व्‍यक्‍त करता हूं, लेकिन यह प्रस्ताव देश के विश्‍वासघात का प्रस्ताव है, यह देश की जनता अस्‍वीकार करे ऐसा प्रस्‍ताव है और इसके साथ मैं फिर एक बार आदरणीय अध्‍यक्ष जी आपका हृदय से आभार व्यक्त करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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DS/ST/DK/NS/Tara


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