सूचना और प्रसारण मंत्रालय
इफ्फी क्यों?
हम बात कर रहे हैं इफ्फी की। जी हां, इफ्फी! आशा है आपने इस फिल्म महोत्सव के बारे में सुना होगा, जो अब हमारे और आपके दिलों के दरवाजे पर दस्तक देने जा रहा है।
इफ्फी यानी भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 70 से भी ज्यादा साल पहले 1952 में स्थापित किया गया था, और तब से ये सालाना, नवंबर के महीने में आयोजित किया जा रहा है। 2004 में पहली बार गोवा में आयोजित हुए इस फ़िल्म महोत्सव को तब से इस सुरम्य पर्यटन वाले राज्य में अपना घर मिल गया है, और ये महोत्सव हर साल यहां वापस लौटता है। और 2014 में गोवा को इफ्फी के लिए स्थायी जगह घोषित कर दिया गया था।
उम्मीद है आप जानते होंगे कि इफ्फी का संचालन भारत सरकार द्वारा किया जाता है। जी हां, भारत सरकार द्वारा मेजबान राज्य गोवा की सरकार के सहयोग से हर साल ये महोत्सव आयोजित किया जाता है।
तो, स्वाभाविक रूप से ये सवाल उठता है जो आपके दिमाग में भी अब तक उठ चुका होगा कि: #इफ्फी क्यों? इसमें ऐसा क्या ख़ास है।
# इफ्फी क्यों?
तो, हम इफ्फी का आयोजन क्यों करते हैं? या हम कोई भी फिल्म महोत्सव क्यों आयोजित करते हैं? खासकर सरकार खुद फिल्म महोत्सव क्यों आयोजित करती है? और इसमें भी विशेष बात ये कि सरकार इफ्फी का आयोजन क्यों करती है?
बेशक, हम इन सवालों को अलंकारपूर्ण ढंग से नहीं पूछ रहे हैं। कुछ लोगों को लग सकता है लेकिन हम ये भी नहीं सुझा रहे कि हमें इफ्फी का आयोजन नहीं करना चाहिए। बल्कि, हम ये सवाल इसलिए पूछ रहे हैं ताकि इस बात की जड़ में पहुंच सकें कि हम ये क्यों करते हैं। ताकि हम जान सकें, सीख सकें, खोज सकें कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार द्वारा आयोजित इस महान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के पीछे का मिशन क्या है।
और सवाल सिर्फ इफ्फी आयोजित करने का नहीं है। यकीनन, ये महोत्सव आयोजित करना अपने आप कोई अंतिम चीज नहीं है।
इसलिए ये हमें स्वाभाविक रूप से जन भागीदारी, जुड़ाव और योगदान से जुड़े सवालों की ओर ले जाता है। इफ्फी में जनता क्यों भाग लेती है? वे किस चीज की उम्मीद करते हैं, और इस महोत्सव से उन्हें क्या अर्थ प्राप्त होता है?
इफ्फी के फिल्म समारोह के दर्शक कौन हैं? ये दर्शक किन्हें होना चाहिए? क्या ये दर्शक फिल्मकार, फिल्म बिरादरी, फिल्म प्रेमी और फिल्म पारखी हैं? या अन्य लोग भी हैं? क्या ये आम आदमी के लिए है, "सड़क पर चलते स्त्री और पुरुष" के लिए है? या ये सिर्फ कुछ विशेष दर्शकों के लिए है?
आइए हम इफ्फी-1 पर जाते हैं: जहां से ये सब शुरू हुआ था
इन विशिष्ट प्रश्नों पर विचार करते हुए आइए हम शुरुआत में चलते हैं। आइए जानते हैं इफ्फी के पहले संस्करण की आयोजन समिति के अध्यक्ष सी. एम. अग्रवाल का क्या कहना रहा है।
"जब भारत में एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित करने का प्रस्ताव पहली बार रखा गया था तो एक प्रश्न जो अक्सर पूछा जाता था वो था: इस तरह के महोत्सव का उद्देश्य क्या है, इससे किस उद्देश्य की पूर्ति होगी? इसका उत्तर दो-तरफा था: पहला तो ये कि, कोई भी फिल्म महोत्सव मेजबान देश के दर्शकों को सक्षम बनाता है कि महोत्सव में हिस्सा लेने वाले देशों में बनाई गई सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को देख सकें। दूसरा, एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव इसमें हिस्सा लेने वाले मुल्कों के फिल्म उद्योगों से जुड़े लोगों को आपस में मिलने और समान चिंताओं वाले विषयों पर चर्चा करने, कला के इस रूप की प्रगति पर तुलना करने और इसके भविष्य के विकास के कार्यक्रमों की योजना बनाने का अवसर प्रदान करता है।”
जी हां, ये शब्द हैं एशिया के सबसे पुराने फिल्म समारोहों में से एक के पहले संस्करण के आयोजक के। इस महोत्सव को 1952 में पहली बार मुंबई में आयोजित किया गया था। उन्होंने ये शब्द 24 जनवरी 1952 को अपने स्वागत भाषण के दौरान कहे थे।
श्री अग्रवाल ने आगे विचार व्यक्त किए कि इस सिनेमाई माध्यम का मानव के रूप में हमारे संबंधों पर, हमारे सांस्कृतिक, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्रों पर कितना व्यापक असर है।
उन्होंने कहा था - "इस महोत्सव में जो फ़िल्में दिखाई जाएंगी, उनमें कुछ ऐसी हैं जो प्रदर्शित करेंगी कि जिस मोशन-पिक्चर को मनोरंजन के एक नए रूप में शुरू किया गया था उसने मानवीय संबंधों, सांस्कृतिक, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कितनी दूर तक पहुंच बनाई है। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में इसने नए रास्ते खोले हैं, जिसका महत्व अभी जरा सा ही समझा जा सकता है। सांस्कृतिक क्षेत्र की बात करें तो ये 'अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति की नींव रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। लेकिन मानवीय संबंधों के तमाम क्षेत्रों की बात करें तो मोशन पिक्चर का सबसे अधिक महत्व अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में है। राष्ट्रों के सांस्कृतिक और व्यावसायिक रिश्तों के संबंध में अच्छाई या बुराई के लिए इसकी ताकत सबको पता है। यहां किसी देश की फिल्म के प्रति दूसरे राष्ट्रों के लोगों के राष्ट्रीय रवैये के बीच का रिश्ता भी कम स्पष्ट नहीं है।”
इफ्फी के इन अध्यक्ष ने विभिन्न देशों के लोगों के बीच आपसी सद्भावना और समझ को बढ़ावा देने में सिनेमा की ताकत को रेखांकित किया और ये कि कैसे ये "एक विश्वव्यापी साहित्य का आगाज़ करता है"।
“लोगों और विचारों के आदान-प्रदान सहित फ़िल्मों के निर्माण और वितरण में वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का नतीजा पारस्परिक सद्भावना और समझ के रूप में सामने आ सकता है। हर मोशन पिक्चर जो विदेशों में अन्य देशों के लोगों के देखने के लिए भेजी जाती हैं, वो निर्माता देश के लोगों द्वारा दुनिया की जनता के लिए भेजा गया एक राजदूत होता है। ये फिल्म सार्वभौमिक भाषा बोलती है जिसे सभी समझ सकते हैं। जो लोग भाषा से अलग होते हैं, वे सिने परदे से सीखने के लिए उत्सुक होते हैं। ये चीज वो रेडियो या मीडिया के अन्य देशों में अपने साथियों से नहीं सीख सकते हैं। और वे सिने परदे से जो सीखते हैं वो अंतर-नस्लीय अविश्वास और घृणा को दूर करने में मदद करता है।
क्योंकि फ़िल्में एक सार्वभौमिक भाषा बोलती हैं। चलचित्र एक ऐसे विश्वव्यापी साहित्य का आगाज करते हैं, एक ऐसा साहित्य जो लगातार मानव जाति की तमाम या लगभग तमाम गतिविधियों को रिकॉर्ड कर रहा है। हमारे मनोरंजन और जानकारी के लिए ये अतीत को पुन: पेश करता है, वर्तमान को जीवंत करता है, और जहां तक भविष्य का प्रश्न है तो ये हमें सक्षम करता है कि हम "भविष्य में गोता लगा सकें, उतना आगे तक जितना कि इंसानी आंख देख सकती है। हम दुनिया के विजन को देख सकें, और वे सभी चमत्कार जो आगे होंगे।"
इस सबसे पहले भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में लोगों का स्वागत करते हुए आयोजक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान की योजनाओं को विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए, ताकि एक देश अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को जो फिल्में भेजता है, वे फिल्में अपने ही लोगों के जीवन जीने के तरीके और सभ्यता के सामने मौजूद बड़ी समस्याओं के प्रति उनके दृष्टिकोण को गलत तरीके से प्रस्तुत न करें।
अध्यक्ष ने अपने संबोधन का समापन कुछ यूं किया। जहां वे उस महान उद्देश्य पर वापस लौटे जो इस महान देश के इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव को प्रेरित करता है।
उन्होंने कहा - "अंत में, मैं आपको याद दिलाता हूं कि ये मौजूदा महोत्सव जो भारत में पहला है या एशिया में अपनी तरह का पहला है, वो प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि प्रतिनिधि है। यहां हम प्रतिद्वंद्विता में नहीं, बल्कि एक-दूसरे की कला, कौशल और प्रगति को देखने और उसकी सराहना करने के लिए मिलते हैं। एक दूसरे की समस्याओं को समझने के लिए मिलते हैं। एक दूसरे के जीवन जीने के तरीकों के बारे में कुछ सीखने के लिए मिलते हैं। और दुनिया के लोगों के बीच एक समृद्ध सांस्कृतिक जीवन को बढ़ावा देने के लिए।"
हमें बताइएगा कि अतीत की इन स्मृतियों में जाते हुए, प्रेरणा की इन गहराइयों को छूते हुए आपको कैसा महसूस होता है। क्या ये आपके मन के तार को छेड़ता है? क्या ये आपको इफ्फी और फिल्मों तथा जीवन के साथ फिर से प्यार में पड़ने में मदद करता है? हमें जरूर बताएं कि हम इफ्फी को और बेहतर तरीके से कैसे सेलिब्रेट कर सकते हैं।
और निश्चित रूप से हमें जरूर बताएं कि - #इफ्फी क्यों? आप अपनी प्रतिक्रिया हमें iffi-pib[at]nic[dot]in पर भेज सकते हैं। और भी बेहतर होगा कि उन्हें ट्वीट करके दुनिया के साथ साझा करें (हैशटैग #WhyIFFI का इस्तेमाल करना न भूलें, ताकि हम आपका उत्तर चूक न जाएं)।
53वें इफ्फी महोत्सव की तमाम जरूरी अपडेट्स इस महोत्सव की वेबसाइट www.iffigoa.org, पीआईबी की वेबसाइट (pib.gov.in), इफ्फी के सोशल मीडिया अकाउंट्स, ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर और पीआईबी गोवा के सोशल मीडिया पर भी प्राप्त की जा सकती हैं। तो जुड़े रहें। आएं और सिनेमाई उत्सव के इस प्याले से भरपूर अमृत पिएं और इसकी खुशी साझा करें।
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