प्रधानमंत्री कार्यालय
28वें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के स्थापना दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
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12 OCT 2021 2:00PM by PIB Delhi
नमस्कार !
आप सभी को नवरात्री पावन पर्व की बहुत – बहुत शुभकामनाएं ! कार्यक्रम में मेरे साथ उपस्थित देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह जी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरपर्सन जस्टिस श्री अरुण कुमार मिश्रा जी, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री नित्यानंद राय जी, मानवाधिकार आयोग के अन्य सम्मानित सदस्यगण, राज्य मानवाधिकार आयोगों के सभी अध्यक्षगण, उपस्थित सुप्रीम कोर्ट के सभी मान्य आदरणीय जज महोदय, सदस्यगण, यूएन एजेंसीज़ के सभी प्रतिनिधि, सिविल सोसाइटी से जुड़े साथियों, अन्य सभी महानुभाव, भाइयों और बहनों !
आप सभी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 28वें स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई। ये आयोजन आज एक ऐसे समय में हो रहा है, जब हमारा देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। भारत के लिए मानवाधिकारों की प्रेरणा का, मानवाधिकार के मूल्यों का बहुत बड़ा स्रोत आज़ादी के लिए हमारा आंदोलन, हमारा इतिहास है। हमने सदियों तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया। एक राष्ट्र के रूप में, एक समाज के रूप में अन्याय-अत्याचार का प्रतिरोध किया! एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया विश्व युद्ध की हिंसा में झुलस रही थी, भारत ने पूरे विश्व को 'अधिकार और अहिंसा' का मार्ग सुझाया। हमारे पूज्य बापू को देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व मानवाधिकारों और मानवीय मूल्यों के प्रतीक के रूप में देखता है। ये हम सबका सौभाग्य है कि आज अमृत महोत्सव के जरिए हम महात्मा गांधी के उन मूल्यों और आदर्शों को जीने का संकल्प ले रहे हैं। मुझे संतोष है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत के इन नैतिक संकल्पों को ताकत दे रहा है, अपना सहयोग कर रहा है।
साथियों,
भारत 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' के महान आदर्शो को, संस्कारों को लेकर, विचारों को लेकर चलने वाला देश है। 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' यानी, जैसा मैं हूँ, वैसे ही सभी मनुष्य हैं। मानव-मानव में, जीव-जीव में भेद नहीं है। जब हम इस विचार को स्वीकार करते हैं तो हर तरह की खाई भर जाती है। तमाम विविधताओं के बावजूद भारत के जनमानस ने इस विचार को हजारों सालों से जीवंत बनाए रखा। इसीलिए, सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद भारत जब आज़ाद हुआ, तो हमारे संविधान द्वारा की गई समानता और मौलिक अधिकारों की घोषणा, उतनी ही सहजता से स्वीकार हुई!
साथियों,
आजादी के बाद भी भारत ने लगातार विश्व को समानता और मानवाधिकारों से जुड़े विषयों पर नया perspective दिया है, नया vision दिया है। बीते दशकों में ऐसे कितने ही अवसर विश्व के सामने आए हैं, जब दुनिया भ्रमित हुई है, भटकी है। लेकिन भारत मानवाधिकारों के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहा है, संवेदनशील रहा है। तमाम चुनौतियों के बाद भी हमारी ये आस्था हमें आश्वस्त करती है कि भारत, मानवाधिकारों को सर्वोपरि रखते हुए एक आदर्श समाज के निर्माण का कार्य इसी तरह करता रहेगा।
साथियों,
आज देश सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के मूल मंत्र पर चल रहा है। ये एक तरह से मानवाधिकार को सुनिश्चित करने की ही मूल भावना है। अगर सरकार कोई योजना शुरू करे और उसका लाभ कुछ को मिले, कुछ को ना मिले तो अधिकार का विषय खड़ा होगा ही। और इसलिए हम, हर योजना का लाभ, सभी तक पहुंचे, इस लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं। जब भेदभाव नहीं होता, जब पक्षपात नहीं होता, पारदर्शिता के साथ काम होता है, तो सामान्य मानवी के अधिकार भी सुनिश्चित होते हैं। इस 15 अगस्त को देश से बात करते हुए, मैंने इस बात पर बल दिया है कि अब हमें मूलभूत सुविधाओं को शत-प्रतिशत सैचुरेशन तक लेकर जाना है। ये शत-प्रतिशत सैचुरेशन का अभियान, समाज की आखिरी पंक्ति में, जिसका अभी हमारे अरुण मिश्रा जी ने उल्लेख किया। आखिरी पंक्ति में खड़े उस व्यक्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए है, जिसे पता तक नहीं है कि ये उसका अधिकार है। वो कहीं शिकायत करने नहीं जाता, किसी आयोग में नहीं जाता। अब सरकार गरीब के घर जाकर, गरीब को सुविधाओं से जोड़ रही है।
साथियों,
जब देश का एक बड़ा वर्ग, अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में ही संघर्षरत रहेगा, तो उसके पास अपने अधिकारों और अपनी आकांक्षाओं के लिए कुछ करने का ना तो समय बचेगा, ना ऊर्जा और ना ही इच्छा-शक्ति। और हम सब जानते हैं गरीब की जिंदगी में हम अगर बारिकी से देखें तो जरूरत ही उसकी जिंदगी होती है और जरूरत की पूर्ति के लिए वो अपना जीवन का पल – पल, शरीर का कण-कण खपाता रहता है। और जब जरूरतें पूरी न हो तब तक तो अधिकार के विषय तक वो पहुंच ही नहीं पाता है। जब गरीब अपनी मूलभूत सुविधाओं, और जिसका अभी अमित भाई ने बड़े विस्तार से वर्णन किया। जैसे शौचालय, बिजली, स्वास्थ्य की चिंता, इलाज की चिंता, इन सबसे जूझ रहा हो, और कोई उसके सामने जाकर उसके अधिकारों की लिस्ट गिनाने लगे तो गरीब सबसे पहले यही पूछेगा कि क्या ये अधिकार उसकी आवश्यकताएं पूरी कर पाएंगे। कागज में दर्ज अधिकारों को गरीब तक पहुंचाने के लिए पहले उसकी आवश्यकता की पूर्ति किया जाना बहुत जरूरी है। जब आवश्यकताएं पूरी होने लगती हैं तो गरीब अपनी ऊर्जा अधिकारों की तरफ लगा सकता है, अपने अधिकार मांग सकता है। और हम सब इस बात से भी परिचित हैं कि जब आवश्यकता पूरी होती है, अधिकारों के प्रति सतर्कता आती है, तो फिर आकांक्षाए भी उतनी ही तेजी से बढ़ती है। ये आकांक्षाए जितनी प्रबल होती है, उतना ही गरीब को, गरीबी से बाहर निकलने की ताकत मिलती है। गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकलकर वो अपने सपने पूरे करने की ओर बढ़ चलता है। इसलिए, जब गरीब के घर शौचालय बनता है, उसके घर बिजली पहुंचती है, उसे गैस कनेक्शन मिलता है, तो ये सिर्फ एक योजना का उस तक पहुंचना ही नहीं होता। ये योजनाएं उसकी आवश्यकता पूरी कर रही हैं, उसे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही हैं, उसमें आकांक्षा जगा रही हैं।
साथियों,
गरीब को मिलने वाली ये सुविधाएं, उसके जीवन में Dignity ला रही हैं, उसकी गरिमा बढ़ा रही हैं। जो गरीब कभी शौच के लिए खुले में जाने को मजबूर था, अब गरीब को जब शौचालय मिलता है, तो उसे Dignity भी मिलती है। जो गरीब कभी बैंक के भीतर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था उस गरीब का जब जनधन अकाउंट खुलता है, तो उसमें हौसला आता है, उसकी Dignity बढ़ती है। जो गरीब कभी डेबिट कार्ड के बारे में सोच भी नहीं पाता था, उस गरीब को जब Rupay कार्ड मिलता है, जेब में जब Rupay कार्ड होता है तो उसकी Dignity बढ़ती है। जो गरीब कभी गैस कनेक्शन के लिए सिफारिशों पर आश्रित था, उसे जब घर बैठे उज्जवला कनेक्शन मिलता है, तो उसकी Dignity बढ़ती है। जिन महिलाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी, प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक नहीं मिलता था, जब सरकारी आवास योजना का घर उनके नाम पर होता है, तो उन माताओं- बहनों की Dignity बढ़ती है।
साथियों,
बीते वर्षों में देश ने अलग-अलग वर्गों में, अलग-अलग स्तर पर हो रहे Injustice को भी दूर करने का प्रयास किया है। दशकों से मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ कानून की मांग कर रही थीं। हमने ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाकर, मुस्लिम महिलाओं को नया अधिकार दिया है। मुस्लिम महिलाओं को हज के दौरान महरम की बाध्यता से मुक्त करने का काम भी हमारी ही सरकार ने किया है।
साथियों,
भारत की नारीशक्ति के सामने आज़ादी के इतने दशकों बाद भी अनेक रुकावटें बनी हुई थीं। बहुत से sectors में उनकी एंट्री पर पाबंदी थी, महिलाओं के साथ Injustice हो रहा था। आज महिलाओं के लिए काम के अनेक sectors को खोला गया है, वो 24 घंटे सुरक्षा के साथ काम कर सकें, इसे सुनिश्चित किया जा रहा है। दुनिया के बड़े-बड़े देश ऐसा नहीं कर पा रहे हैं लेकिन भारत आज करियर वूमेन को 26 हफ्ते की Paid मैटर्निटी Leave दे रहा है।
साथियों,
जब उस महिला को 26 सप्ताह की छुट्टी मिलती है ना, वो एक प्रकार से नवजात बच्चे के अधिकार की रक्षा करता है। उसका अधिकार है उसकी मां के साथ जिंदगी बिताने का, वो अधिकार उसको मिलता है। शायद अभी तक तो हमारे कानून की किताबों में ये सारे उल्लेख नहीं आए होंगे।
साथियों,
बेटियों की सुरक्षा से जुड़े भी अनेक कानूनी कदम बीते सालों में उठाए गए हैं। देश के 700 से अधिक जिलों में वन स्टॉप सेंटर्स चल रहे हैं, जहां एक ही जगह पर महिलाओं को मेडिकल सहायता, पुलिस सुरक्षा, साइको सोशल काउंसलिंग, कानूनी मदद और अस्थायी आश्रय दिया जाता है। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की जल्द से जल्द सुनवाई हो, इसके लिए देशभर में साढ़े छह सौ से ज्यादा Fast Track Courts बनाई गई हैं। रेप जैसे जघन्य अपराध के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान भी किया गया है। Medical Termination of Pregnancy Act इसमे संशोधन करके महिलाओं को अबॉर्शन से जुड़ी स्वतंत्रता दी गई है। सुरक्षित और कानूनी अबॉर्शन का रास्ता मिलने से महिलाओं के जीवन पर संकट भी कम हुआ है और प्रताड़ना से भी मुक्ति मिली है। बच्चों से जुड़े अपराधों पर लगाम लगाने के लिए भी कानूनों को कड़ा किया गया है, नई Fast Track Courts बनाई गई हैं।
साथियों,
हमारे दिव्यांग भाई-बहनों की क्या शक्ति है, ये हमने हाल के पैरालंपिक में फिर अनुभव किया है। बीते वर्षों में दिव्यांगों को सशक्त करने के लिए भी कानून बनाए गए हैं, उनको नई सुविधाओं से जोड़ा गया है। देशभर में हजारों भवनों को, सार्वजनिक बसों को, रेलवे को दिव्यांगों के लिए सुगम हो, लगभग 700 वैबसाइट्स को दिव्यांगों के अनुकूल तैयार करना हो, दिव्यांगों की सुविधा के लिए विशेष सिक्के जारी करना हो, करेंसी नोट भी आपको शायद कई लोगों को मालूम नहीं होगा, अब जो हमारी नई करेंसी है उसमें दिव्यांग यानि जो प्रज्ञाचक्षु हमारे भाई-बहन हैं। वे उसको स्पर्श करके ये करेंसी नोट कितने कीमत की है वो तय कर सकते हैं। ये व्यवस्था की गई है। शिक्षा से लेकर स्किल्स, स्किल्स से लेकर अनेक संस्थान और विशेष पाठयक्रम बनाना हो। इस पर बीते वर्षों में बहुत जोर दिया गया है। हमारे देश की अनेक भाषाएं हैं, अनेक बोलियां हैं और वैसा ही स्वभाव हमारे signages में था। मूक बधिर हमारे दिव्यांगजन जो हैं। अगर वो गुजरात में जो signages देखता है। महाराष्ट्र में अलग, गोवा में अलग, तमिलनाडू में अलग। भारत ने इस समस्या का समाधान करने के लिए पूरे देश के लिए एक signages की व्यवस्था की, कानूनन की और उसकी पूरी ट्रेनिंग का ये उनके अधिकारों की चिंता और एक संवेदनशील अभिगम का परिणाम है। हाल में ही देश की पहली साइन लैंग्वेज डिक्शनरी और ऑडियो बुक की सुविधा देश के लाखों दिव्यांग बच्चों को दी गई है, जिससे वे ई-लर्निंग से जुड़ सकें। इस बार जो नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी आई उसमे भी इस बात को विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। इसी तरह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी बेहतर सुविधाएं और समान अवसर देने के लिए Transgender Persons (Protection of Rights) कानून बनाया गया है। घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदायों के लिए भी डेवलपमेंट एंड वेलफेयर बोर्ड की स्थापना की गई है। लोक अदालतों के माध्यम से, लाखों पुराने केसेस का निपटारा होने से अदालतों का बोझ भी कम हुआ है, और देशवासियों को भी बहुत मदद मिली है। ये सारे प्रयास, समाज में हो रहे Injustice को दूर करने करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
साथियों,
हमारे देश ने कोरोना की इतनी बड़ी महामारी का सामना किया। सदी की इतनी बड़ी आपदा, जिसके आगे दुनिया के बड़े बड़े देश भी डगमगा गए। पहले की महामारियों का अनुभव है कि, जब इतनी बड़ी त्रासदी आती है, इतनी बड़ी आबादी हो तो उसके साथ समाज में अस्थिरता भी जन्म लेती है। लेकिन देश के सामान्य मानवी के अधिकारों के लिए, भारत ने जो किया, उसने तमाम आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। ऐसे कठिन समय में भी भारत ने इस बात का प्रयास किया कि एक भी गरीब को भूखा नहीं रहना पड़े। दुनिया के बड़े-बड़े देश नहीं कर पा रहे,
लेकिन आज भी भारत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया करा रहा है। भारत ने इसी कोरोना काल में गरीबों, असहायों, बुजुर्गों को सीधे उनके खाते में आर्थिक सहायता दी है। प्रवासी श्रमिकों के लिए 'वन नेशन वन राशन कार्ड' की सुविधा भी शुरू की गई है, ताकि वो देश में कहीं भी जाएँ, उन्हें राशन के लिए भटकना न पड़े।
भाइयों और बहनों,
मानवीय संवेदना और संवेदनशीलता को सर्वोपरि रखते हुए, सबको साथ लेकर चलने के ऐसे प्रयासों ने देश के छोटे किसानों को बहुत बल दिया है। आज देश के किसान किसी तीसरे से कर्ज लेने के लिए मजबूर नहीं हैं, उनके पास किसान सम्मान निधि की ताकत है, फसल बीमा योजना है, उन्हें बाज़ार से जोड़ने वाली नीतियाँ हैं। इसका परिणाम ये है कि संकट के समय भी देश के किसान रिकॉर्ड फसल उत्पादन कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट का उदाहरण भी हमारे सामने है। इन क्षेत्रों में आज विकास पहुँच रहा है, यहां के लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने का गंभीरता से प्रयास हो रहा है। ये प्रयास, मानवाधिकारों को भी उतना ही सशक्त कर रहे हैं।
साथियों,
मानवाधिकारों से जुड़ा एक और पक्ष है, जिसकी चर्चा मैं आज करना चाहता हूं। हाल के वर्षों में मानवाधिकार की व्याख्या कुछ लोग अपने-अपने तरीके से, अपने-अपने हितों को देखकर करने लगे हैं। एक ही प्रकार की किसी घटना में कुछ लोगों को मानवाधिकार का हनन दिखता है और वैसी ही किसी दूसरी घटना में इन्हीं लोगों को मानवाधिकार का हनन नहीं दिखता। इस प्रकार की मानसिकता भी मानवाधिकार को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। मानवाधिकार का बहुत ज्यादा हनन तब होता है जब उसे राजनीतिक रंग से देखा जाता है, राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, राजनीतिक नफा-नुकसान के तराजू से तौला जाता है। इस तरह का सलेक्टिव व्यवहार, लोकतंत्र के लिए भी उतना ही नुकसान-दायक है। हम देखते हैं कि ऐसे ही सलेक्टिव व्यवहार करते हुए कुछ लोग मानवाधिकारों के हनन के नाम पर देश की छवि को भी नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों से भी देश को सतर्क रहना है।
साथियों,
आज जब विश्व में मानवाधिकारों की बात होती है, तो उसका केंद्र individual rights होते हैं, व्यक्तिगत अधिकार होते हैं। ये होना भी चाहिए। क्योंकि व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है, और समाज से ही राष्ट्र बनते हैं। लेकिन भारत और भारत की परंपरा ने सदियों से इस विचार को एक नई ऊंचाई दी है। हमारे यहाँ सदियों से शास्त्रों में बार – बार इस बात का जिक्र किया जाता है। आत्मनः प्रति-कूलानि परेषाम् न समाचारेत्। यानी, जो अपने लिए प्रतिकूल हो, वो व्यवहार दूसरे किसी भी व्यक्ति के साथ नहीं करें। इसका अर्थ ये है कि मानवाधिकार केवल अधिकारों से नहीं जुड़ा हुआ बल्कि ये हमारे कर्तव्यों का विषय भी है। हम अपने साथ साथ दूसरों के भी अधिकारों की चिंता करें, दूसरों के अधिकारों को अपना कर्तव्य बनाएँ, हम हर मानव के साथ 'सम भाव' और 'मम भाव' रखें! जब समाज में ये सहजता आ जाती है तो मानवाधिकार हमारे समाज का जीवन मूल्य बन जाते हैं। अधिकार और कर्तव्य, ये दो ऐसी पटरियां हैं, जिन पर मानव विकास और मानव गरिमा की यात्रा आगे बढ़ती है। अधिकार जितना आवश्यक हैं, कर्तव्य भी उतने ही आवश्यक हैं। अधिकार और कर्तव्य की बात अलग-अलग नहीं होनी चाहिए, एक साथ ही की जानी चाहिए। ये हम सभी का अनुभव है कि हम जितना कर्तव्य पर बल देते हैं, उतना ही अधिकार सुनिश्चित होता है। इसलिए, प्रत्येक भारतवासी, अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने के साथ ही, अपने कर्तव्यों को उतनी ही गंभीरता से निभाए, इसके लिए भी हम सबने मिलकर के निरंतर प्रयास करना पड़ेगा, निरंतर प्रेरित करते रहना होगा।
साथियों,
ये भारत ही है जिसकी संस्कृति हमें प्रकृति और पर्यावरण की चिंता करना भी सिखाती है। पौधे में परमात्मा ये हमारे संस्कार हैं। इसलिए, हम केवल वर्तमान की चिंता नहीं कर रहे हैं, हम भविष्य को भी साथ लेकर चल रहे हैं। हम लगातार विश्व को आने वाली पीढ़ियों के मानवाधिकारों के प्रति भी आगाह कर रहे हैं। इंटरनेशनल सोलर अलायंस हो, Renewable energy के लिए भारत के लक्ष्य हों, हाइड्रोजन मिशन हो, आज भारत sustainable life और eco-friendly growth की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। मैं चाहूँगा कि, मानवाधिकारों की दिशा में काम कर रहे हमारे सभी प्रबुद्धगण, सिविल सोसाइटी के लोग, इस दिशा में अपने प्रयासों को बढ़ाएँ। आप सबके प्रयास लोगों को अधिकारों के साथ ही, कर्तव्य भाव की ओर प्रेरित करेंगे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !
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DS/AKJ/DK
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