उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्ट्रपति को यूनाइटेड किंगडम और दक्षिण अफ्रीका में पाए गए कोविड -19 वायरस के नए प्रकार के बारे में जानकारी दी गई


सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्युलर बायोलॉजी - सीसीएमबी के निदेशक ने उपराष्ट्रपति को बताया कि, कोरोना वायरस के नए प्रकार से मौजूदा समय में तैयार किये जा रहे टीकों की क्षमता पर कोई भी प्रतिकूल असर होने के आसार बहुत कम हैं

मरीजों के कोविड के इस नए स्वरूप के ज्यादा प्रभावित होने के प्रमाण सामने नहीं आए हैं, हालांकि यह अधिक संक्रामक है


Posted On: 24 DEC 2020 5:31PM by PIB Delhi

सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्युलर बायोलॉजी‘ (सीसीएमबी) के निदेशक डॉक्टर राकेश मिश्रा ने आज हैदराबाद में उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू से मुलाकात की और उन्हें यूनाइटेड किंगडम तथा दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में पाए गए सार्स-कोव-2 वायरस के नए प्रकार (स्वरुप) के बारे में जानकारी दी।

श्री मिश्रा ने उपराष्ट्रपति को अवगत कराया कि, कोरोना वायरस के स्वरुप में परिवर्तन के बाद सामने आये नए प्रकार से मौजूदा समय में तैयार हो रहे टीकों की क्षमता प्रभावित होने के आसार बहुत कम हैं। इसके अलावा ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं, जिनसे यह साबित हो कि, मरीजों को कोविड का नया स्वरूप अधिक प्रभावित करेगा, हालांकि यह ज़्यादा संक्रामक हैं। उन्होंने कहा कि, वायरस के इस नए प्रकार से निपटने में पहले वाले प्रबंधन एवं रणनीति के कारगर होने की उम्मीद है।

उपराष्ट्रपति ने वायरस के इस नए प्रकार से भारत में संभावित प्रभाव और सीसीएमबी में नोवेल कोरोना वायरस के विभिन्न पहलुओं पर किए जा रहे अध्ययन कार्यों के बारे में जानकारी मांगी। सीसीएमबी की वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ के लक्ष्मी राव भी इस दौरान उपस्थित थीं।

डॉ. मिश्रा ने उपराष्ट्रपति को जानकारी दी कि, भारत में नए प्रकार का कोरोना वायरस अभी पंहुचा है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए जांच की जा रही है।

सार्स-कोव-2 वायरस पर सीसीएमबी में किए जा रहे कार्यों पर उपराष्ट्रपति के समक्ष एक प्रस्तुतिकरण देते हुए उन्होंने बताया कि, वायरस के अन्य प्रकारों की तुलना में नया स्वरुप 71% अधिक संक्रामक पाया गया है। डॉ मिश्रा ने जानकारी दी कि, दक्षिण अफ्रीका में पाए गए एक समानांतर वायरस से पता चला है कि, यह युवा लोगों को अधिक प्रभावित करता है, हालांकि इस बारे में अभी अधिक गहन शोध की आवश्यकता है।

डॉ. मिश्रा ने बताया कि, सीसीएमबी और देश के अन्य शोधकर्ताओं द्वारा अनुक्रमित जीनोम के विश्लेषण से पता चला है कि, भारत में वायरस का प्रारंभिक प्रसार मुख्य रूप से नोवेल इंडिया स्पेसिफिक क्लैड के कारण हुआ था, जिसका नाम आई / ए3आई क्लैड था। ऐसी संभावना है कि, भारत में आई / ए3आई क्लैड का प्रवेश दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से हुआ था। सीसीएमबी द्वारा किए गए विश्लेषण से यह भी पता चला है कि, समय के साथ ए3आई क्लैड कमज़ोर होकर अंततः ए2ए क्लैड में परिवर्तित हो गया था, जो कि वैश्विक रूप से मौजूद वायरस का प्रकार भी है।

डॉ. मिश्रा ने जानकारी दी, सीसीएमबी नोवेल कोरोना वायरस सार्स-कोव-2 के लिए नमूनों की जांच शुरू करने वाली पहली गैर-आईसीएमआर प्रयोगशाला थी। इसने अन्य शोध संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों को परीक्षण के लिए मानक संचालन प्रक्रिया भी जारी की थी। सीसीएमबी ने परीक्षण प्रोटोकॉल पर चिकित्सा अस्पतालों और अन्य परीक्षण केंद्रों के 200 से अधिक कर्मियों को प्रशिक्षित किया है। सीसीएमबी ने स्वयं आरटी-पीसीआर विधि द्वारा अब तक 50,000 से अधिक नमूनों की जांच है। सीएसआईआर के साथ सभी प्रयोगशालाओं में अब तक 7,00,000 से अधिक नमूनों की जांच हो चुकी है।

डॉ. मिश्रा ने यह भी बताया कि, आईसीएमआर द्वारा सीसीएमबी के ड्राई स्वैब डायरेक्ट आरटी-पीसीआर जांच विधि को मंजूरी दी गई है। उन्होंने कहा कि, इसके लिए अपोलो हॉस्पिटल्स जैसे भागीदारों के साथ बड़ी संख्या में किट निर्मित किए जाएंगे और वे स्पाइस हेल्थ के मोबाइल परीक्षण प्रयोगशालाओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचेंगे।
 

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