विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
स्वर्ण जयंती फेलो थैलेसीमिया, ड्यूशनिन, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, हीमोफिलिया का नया आनुवांशिक इलाज प्रदान कर सकते हैं
Posted On:
18 NOV 2020 2:03PM by PIB Delhi
मांसपेशियों की गंभीर कमजोरी की बीमारी ड्यूशनिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जो सामान्य रूप से कम आयु में प्रारंभ होती है और बहुत तेजी से गंभीर रूप ले लेती है। आनुवांशिक नियंत्रण के माध्यम से इस बीमारी के इलाज की रणनीति शीघ्र बन सकती है।
इस बीमारी का कोई ज्ञात इलाज नहीं है। सामान्यत: जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के इस वर्ष के स्वर्ण जयंती फेलोशिप प्राप्त करने वाले 21 लोगों में एक भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू के सहायक प्राध्यापक संदीप ईश्वरप्पा ने बीमारी के प्रारम्भिक कारणों को नियंत्रित करने का प्रस्ताव रखा है। प्रारम्भिक कारणों में वंशानुगत प्रक्रिया है जो इस बीमारी को जन्म देती है। प्रोफेसर ईश्वरप्पा आनुवांशिक नियामक सिद्धान्तों के माध्यम से इस बीमारी के प्रारम्भिक कारणों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। आनुवांशिक नियंत्रण सिद्धांत मानव शरीर, यीस्ट, बैक्टीरिया तथा ड्रोसोफिला में पाये जाते है।
प्रोफेसर संदीप ईश्वरप्पा का समूह रणनीति विकसित कर रहा है। समूह डीएनए में परिवर्तन से होने वाली विभिन्न आनुवांशिक बीमारियों पर नियंत्रण की रणनीति बना रहा है। यह समूह थैलेसीमिया के मामले में विट्रो में इसे प्राप्त करने में सफल हुआ है और अन्य बीमारियों के मॉडल पर काम कर रहा है। यह शोध कार्य शोध पत्रिका बायोकेमिस्ट्री में अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है। स्वर्ण जयंती फेलोशिप के साथ प्रोफेसर संदीप का समूह इस रणनीति का विस्तार ड्यूशनिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी तक करेगा, यदि यह प्रयास सफल होता है तो यह परियोजना थैलेसीमिया ड्यूशनिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, हीमोफिलिया जैसी आनुवांशिक बीमारियों के इलाज के लिए नई चिकित्सा प्रणाली विकसित करेगी।
प्रोटीन बनने के मामले में आनुवांशिक सूचना जीनोम में मौजूद होती है और यह आनुवांशिक जानकारी एमआरएनए में स्थानांतरित होती है, जो अंतत: प्रोटीन में बदलती है। प्रोटीन संश्लेषण का काम मैक्रोमोलेक्यूलर मशीनरी द्वारा किया जाता है। इसे रिबोसोम कहते है। रिबोसोम इस प्रक्रिया को एमआरएनए पर एक विशेष स्थान पर प्रारंभ करता है। इसे स्टार्ट कोडोन कहते है और यह प्रक्रिया स्टॉप कोडोन (स्टॉप सिग्नल) पर रूकती है। बीमारियों के मामले में निरर्थक परिवर्तन का परिणाम एमआरएनए में स्टॉप सिग्नल में होता है। अक्सर यह काम नहीं करने वाले प्रोटीन में दिखता है।
आईआईएससी स्थित प्रोफेसर संदीप ईश्वरप्पा की प्रयोगशाला में यह बात सामने आई है कि कुछ निश्चित एमआरएनए में निश्चित परिस्थितियों में स्टॉप सिग्नल का पठन रिबोसोम ठीक से नहीं कर पाता और यह तब तक जारी रहता है, जब तक दूसरा स्टॉप सिग्नल नहीं मिलता।
प्रोफसर संदीप ने कहा कि अपने प्रयोग से प्राप्त जानकारी से आनुवांशिक बीमारियों के इलाज का रास्ता खुला है। ये बीमारियां ड्यूशनिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, हीमोफिलिया जैसे निरर्थक परिवर्तनों से होती है।
[Publication link: DOI: 10.1021/acs.biochem.9b00761
विस्तृत जानकारी के लिए प्रोफेसर संदीप ईश्वरप्पा (sandeep[at]iisc[dot]ac[dot]in) से सम्पर्क करें।
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