पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय

भारतीय मौसम विभाग ने दक्षिण एशिया के लिए अचानक आनेवाली बाढ़ से जुड़ी मार्गदर्शन सेवाएं शुरू की

Posted On: 23 OCT 2020 4:28PM by PIB Delhi

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. राजीवन ने 22 अक्टूबर 2020 को भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों के लिए अचानक आनेवाली बाढ़ से जुड़ी अपनी तरह की पहली मार्गदर्शन सेवाओं की शुरुआत की। इस प्रणाली का आभासी माध्यम से शुभारंभ किया गया और इस कार्यक्रम में डॉ. हिरिन किम (जल विज्ञान और जल संसाधन सेवा विभाग, विश्व मौसम विज्ञान संगठन के प्रमुख), डॉ. कॉन्स्टेंटाइन पी. जॉर्जकाकोस (निदेशक, हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च सेंटर, यूएसए), श्री जी.वी.वी. सरमा, आईएएस (सदस्य सचिव, एनडीएमए, भारत), डॉ. राजेंद्र कुमार जैन (अध्यक्ष, केंद्रीय जल आयोग, भारत) और भाग लेने वाले देशों के मौसम विज्ञान के महानिदेशक एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन में स्थायी प्रतिनिधि सर्वश्री कर्मा दुपचू (भूटान), श्री सरजू कुमार बैद्य (नेपाल), श्री अथुला करुणानायके (श्रीलंका) और श्री बिद्युत कुमार साहा (विश्व मौसम विज्ञान संगठन में बांग्लादेश के स्थायी प्रतिनिधि के जल विज्ञान सलाहकार) सहित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई गणमान्य लोगों ने भाग लिया।

 

 

इस समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. एम. राजीवन ने अपने उद्घाटन भाषण में,  जल–विज्ञान से जुड़ी व्यवस्था के प्रदर्शन को सुधारने के लिए वर्षा और मिट्टी की नमी के अवलोकन संबंधी नेटवर्क को उन्नत करने की जरूरत पर जोर दिया। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए डॉ. राजीवन ने कहा कि सोशल मीडिया के उपयोग के साथ-साथ सभी हितधारकों के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक स्वचालित तरीका स्थापित किया जाना चाहिए ताकि सूचनाएं संबंधित आपदा अधिकारियों तक समयबद्ध तरीके से पहुंचें। आंकड़ों, विशेषज्ञता, विकास और इस इलाके में सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने के लिए सदस्य देशों, हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च सेंटर और विश्व मौसम विज्ञान संगठन के साथ क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय को मजबूत किया जाना चाहिए।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक और विश्व मौसम विज्ञान संगठन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि डॉ. एम. महापात्रा ने शुरुआती वक्तव्य देते हुए,  इस प्रणाली की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला और जल-मौसम संबंधी खतरों का पूर्वानुमान लगाने के लिए क्षमता निर्माण के क्षेत्र में किए गए सहयोगात्मक कार्यों की सराहना की। उन्होंने सदस्य देशों को आश्वस्त किया कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र के देशों में जानमाल के नुकसान को कम करने के उद्देश्य से आवश्यक राहत उपाय करने के लिए अचानक आनेवाली बाढ़ के बारे में मार्गदर्शन खतरे (6 घंटे पहले) और जोखिम (24 घंटे पहले) के रूप में क्षेत्रीय केंद्र द्वारा राष्ट्रीय मौसम विज्ञान एवं जल विज्ञान संबंधी सेवाओं, राष्ट्रीय एवं राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों और अन्य सभी हितधारकों को प्रदान किया जाएगा। इन देशों में भारत के अलावा, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। यह मार्गदर्शन सभी सदस्य देशों को एकदम अचानक आनेवाली और छोटी अवधि की बाढ़ के बारे में जल-विभाजक और शहर स्तर पर प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान जारी करने में सक्षम बनायेगा।

अचानक आने वाली बाढ़ बहुत अधिक उफान के साथ छोटी अवधि वाली अत्यधिक स्थानीयकृत घटनाएं होती हैं। आमतौर पर वर्षा और चरम उफान वाली बाढ़ की घटना के बीच की अवधि छह घंटे से कम होती हैं। दुनिया भर के देशों में अचानक आने वाली बाढ़ की चेतावनी संबंधी सामर्थ्य और क्षमताओं का आम तौर पर अभाव है। अचानक आनेवाली बाढ़ से प्रभावित आबादी के जीवन और संपत्तियों पर विशेष रूप से विनाशकारी प्रभाव को देखते हुए, विश्व मौसम विज्ञान संगठन की पंद्रहवीं कांग्रेस ने वैश्विक कवरेज के साथ एक फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम (एफएफजीएस) परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी, जोकि डब्ल्यूएमओ कमीशन फॉर हाइड्रोलॉजी द्वारा डब्ल्यूएमओ कमीशन फॉर बेसिक सिस्टम के साथ संयुक्त रूप से और यूएस नेशनल वेदर सर्विस, यूएस हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च सेंटर (एचआरसी) एवं यूएसऐड/ओएफडीए के सहयोग से विकसित की गई थी।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग कंप्यूटिंग पावर, न्यूमेरिकल वेदर प्रेडिक्शन, अवलोकन संबंधी विशाल नेटवर्क (जमीन, वायु और अंतरिक्ष पर आधारित) और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित मौसम पूर्वानुमान प्रणाली के संदर्भ में अत्यधिक उन्नत क्षमताओं से लैस है। इसलिए, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बेहतर समन्वय, विकास और कार्यान्वयन के लिए दक्षिण एशिया फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम के क्षेत्रीय केंद्र की जिम्मेदारी भारत को सौंपी है।

अचानक आने वाली बाढ़ संबंधी मार्गदर्शन (फ्लैश फ्लड गाइडेंस) एक मजबूत प्रणाली है, जो अचानक आने वाली बाढ़ भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों के लिए 4किमी x 4 किमी के वियोजन के साथ जल – विभाजक स्तर पर लगभग 6 -12 घंटे पहले ही अचानक आने वाली बाढ़ की चेतावनी प्रणाली के विकास की प्रक्रिया में सहयोग की दृष्टि से वास्तविक समय में आवश्यक उत्पाद मुहैया कराने के लिए डिज़ाइन की गई है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने प्री-ऑपरेशनल मोड में हाल के मानसून के मौसम के दौरान इस प्रणाली का परीक्षण किया है और इसके सत्यापन के लिए इस इलाके के राष्ट्रीय जल विज्ञान और मौसम विज्ञान सेवाओं को अचानक आनेवाली बाढ़ से संबंधित बुलेटिन जारी किए गए थे। स्थानीय स्तर पर अचानक आनेवाली बाढ़ की संभावित घटनाओं के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए इस प्रणाली में विज्ञान, गतिशीलता और निदान से जुड़ी गहरी जानकारियां मौजूद हैं।

 

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