Security
लाल कब्जे का अंत
वामपंथी उग्रवाद पर भारत की जीत
Posted On: 17 MAY 2025 4:13PM
“यह सच है कि माओवादी हिंसा ने मध्य एवं पूर्वी भारत के कई जिलों की प्रगति को रोक दिया था। इसीलिए 2015 में हमारी सरकार ने माओवादी हिंसा को खत्म करने के लिए एक व्यापक ‘राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना’ तैयार की। हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता (जीरो टॉलरेंस) के साथ-साथ, हमने इन क्षेत्रों में गरीब लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से बुनियादी ढांचे और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है।”
-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
भूमिका
हाल ही में, देश के इतिहास के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियानों में से एक के तहत, सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध लड़ाई में एक बड़ी सफलता हासिल की। 21 अप्रैल से 11 मई, 2025 के दौरान, नक्सली समूहों के गढ़ माने जाने वाले कर्रेगुट्टालु पहाड़ी (केजीएच) क्षेत्र में एक व्यापक अभियान चलाया गया। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष कार्य बल (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और राज्य पुलिस बलों के समन्वित प्रयासों के परिणामस्वरूप 16 महिलाओं सहित 31 माओवादियों को मार गिराया गया तथा किसी भी सुरक्षाकर्मी के हताहत होने की सूचना नहीं मिली। इस अभियान की सफलता के बाद, मुक्त कराए गए क्षेत्रों में कई नए सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए। इससे उन क्षेत्रों पर राज्य का नियंत्रण फिर से स्थापित हो गया, जो लंबे समय से विद्रोहियों के कब्जे में थे।
छत्तीसगढ़ के उग्रवाद प्रभावित जिलों में हमारे सुरक्षा बलों ने एक और बड़ी सफलता हासिल की है। बीजापुर में कोबरा कमांडो और छत्तीसगढ़ पुलिस के समन्वित अभियान में 22 कुख्यात नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और साथ ही आधुनिक हथियार एवं विस्फोटक भी जब्त किए गए। उधर, सुकमा जिले में 33 नक्सलियों ने सरकार की आत्मसमर्पण नीति पर भरोसा जताते हुए आत्मसमर्पण किया। खास बात यह है कि इनमें से 11 आत्मसमर्पण बड़ेसेट्टी पंचायत में हुए, जिससे यह नक्सल मुक्त घोषित की जाने वाली इस क्षेत्र की पहली पंचायत बन गई।
वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई), जिसे अक्सर नक्सलवाद के रूप में जाना जाता है, देश की आंतरिक सुरक्षा की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं में निहित और माओवादी विचारधारा से प्रेरित, वामपंथी उग्रवाद ने ऐतिहासिक रूप से देश के कुछ सबसे सुदूरवर्ती, अविकसित और जनजातीय-बहुल क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इस आंदोलन का उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह और विशेष रूप से सुरक्षा बलों, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और लोकतांत्रिक संस्थानों को निशाना बनाते हुए समानांतर शासन संरचनाओं के जरिए भारतीय राज्य को कमजोर करना है। पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से उत्पन्न, यह आंदोलन मुख्य रूप से “लाल गलियारे” में फैल गया और इसने छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों तथा आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया। माओवादी विद्रोही हाशिए पर पड़े लोगों, विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन उनके तरीकों में सशस्त्र हिंसा, जबरन वसूली, बुनियादी ढांचे को नष्ट करना और बच्चों व आम नागरिकों की भर्ती शामिल है।
हालांकि, हाल के वर्षों में, भारत की बहुआयामी वामपंथी उग्रवाद विरोधी रणनीति - सुरक्षा प्रवर्तन, समावेशी विकास और सामुदायिक सहभागिता के सम्मिलित रूप - ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। इस आंदोलन को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया गया है, हिंसा में भारी कमी आई है और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कई जिलों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में फिर से शामिल किया जा रहा है। भारत सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि नक्सलवाद को सुदूरवर्ती इलाकों एवं जनजातीय गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है और यह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कनेक्टिविटी, बैंकिंग और डाक सेवाओं को इन गांवों तक पहुंचने से रोकता है।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल 2018 में 126 से घटकर 90, जुलाई 2021 में 70 और अप्रैल-2024 में 38 रह गई। कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से, सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले (बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा), झारखंड का एक जिला (पश्चिमी सिंहभूम) और महाराष्ट्र का एक जिला (गढ़चिरौली) शामिल है। इसी तरह, कुल 38 प्रभावित जिलों में से, चिंता वाले जिलों की संख्या, जहां गंभीर रूप से प्रभावित जिलों से परे अतिरिक्त संसाधनों को पुरजोर तरीके से प्रदान करने की आवश्यकता है, 9 से घटकर 6 हो गई है। ये 6 जिले हैं: आंध्र प्रदेश (अल्लूरी सीताराम राजू), मध्य प्रदेश (बालाघाट), ओडिशा (कालाहांडी, कंधमाल और मलकानगिरी) और तेलंगाना (भद्राद्री-कोठागुडेम)। नक्सलवाद के विरुद्ध निरंतर कार्रवाई के कारण, अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या भी 17 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ (दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी), झारखंड (लातेहार), ओडिशा (नुआपाड़ा) और तेलंगाना (मुलुगु) के जिले शामिल हैं। पिछले 10 वर्षों के दौरान, 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता त्याग दिया है और इसके परिणामस्वरूप, नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 20 से भी कम रह गई है।
भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में कमी को पूरा करने के लिए एक विशेष योजना, विशेष केन्द्रीय सहायता (एससीए) के तहत सबसे अधिक प्रभावित जिलों और चिंता वाले जिलों को क्रमशः 30 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा, आवश्यकता के अनुरूप इन जिलों के लिए विशेष परियोजनाएं भी प्रदान की जाती हैं।
वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसा की घटनाएं, जो 2010 में अपने उच्चतम स्तर 1936 पर पहुंच गई थीं, 2024 में घटकर 374 रह गई हैं, यानी 81 प्रतिशत की कमी आई है। इस अवधि के दौरान, कुल मौतों की संख्या (नागरिकों + सुरक्षा बलों) भी 85 प्रतिशत घट गई और यह 2010 में 1005 से घटकर 2024 में 150 रह गई है।


पिछले तीन वर्षों के दौरान वामपंथी उग्रवाद द्वारा की गई हिंसा (दर्ज मौतों की संख्या) का राज्यवार ब्योरा निम्नानुसार है:
राज्य
|
2022
|
2023
|
2024
|
आंध्र प्रदेश
|
3
|
3
|
1
|
बिहार
|
11
|
4
|
2
|
छत्तीसगढ़
|
246
|
305
|
267
|
झारखंड
|
96
|
129
|
69
|
केरल
|
0
|
4
|
0
|
मध्य प्रदेश
|
16
|
7
|
11
|
महाराष्ट्र
|
16
|
19
|
10
|
ओडिशा
|
16
|
12
|
6
|
तेलंगाना
|
9
|
3
|
8
|
पश्चिम बंगाल
|
0
|
0
|
0
|
कुल
|
413
|
485
|
374
|
सरकार की रणनीति: राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना (2015) और अन्य प्रमुख पहल
भारत सरकार ने वामपंथी उग्रवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस का दृष्टिकोण अपनाया है और सरकारी योजनाओं के शत-प्रतिशत कार्यान्वयन के साथ वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों का पूर्ण विकास करना चाहती है। वामपंथी उग्रवाद से लड़ने के लिए सरकार ने दो कानून बनाए हैं। सबसे पहले नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में कानून का राज स्थापित करना और हिंसक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगाना। दूसरा, उन क्षेत्रों में नुकसान की शीघ्र भरपाई करना जो लंबे नक्सली हिंसा के कारण विकास से वंचित रह गए थे।
वामपंथी उग्रवाद के खतरे से समग्र रूप से निपटने के लिए 2015 में एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना को मंजूरी दी गई थी। इसमें एक बहुआयामी रणनीति की परिकल्पना की गई है जिसमें सुरक्षा संबंधी उपाय, विकास कार्यों में तेजी, स्थानीय समुदायों के अधिकारों और अधिकारों को सुनिश्चित करना आदि शामिल है।
केंद्र सरकार स्थिति पर बारीकी से नजर रखती है और कई तरीकों से उनके प्रयासों को सहयोग और समन्वय प्रदान करती है। इनमें केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) उपलब्ध कराना, इंडिया रिजर्व (आईआर) बटालियनों की मंजूरी, उग्रवाद-रोधी और आतंकवाद-रोधी (सीआईएटी) स्कूलों की स्थापना, राज्य पुलिस और उनके खुफिया तंत्र का आधुनिकीकरण और अपग्रेडेशन, सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना के तहत सुरक्षा संबंधी व्यय की प्रतिपूर्ति, वामपंथी उग्रवाद विरोधी अभियानों के लिए हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराना, रक्षा मंत्रालय, केन्द्रीय पुलिस संगठन और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के माध्यम से राज्य पुलिस के प्रशिक्षण में सहायता, खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान, अंतर-राज्यीय समन्वय की सुविधा, सामुदायिक पुलिसिंग और नागरिक कार्रवाई कार्यक्रमों में सहायता आदि शामिल हैं। विकास के मोर्चे पर, प्रमुख योजनाओं के अलावा, भारत सरकार ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में कई विशिष्ट पहल की हैं, जिनमें सड़क नेटवर्क के विस्तार, दूरसंचार संपर्क में सुधार, कौशल विकास और वित्तीय समावेशन पर विशेष जोर दिया गया है।
सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना: इस योजना को पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की व्यापक योजना की उप-योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। एसआरई योजना के तहत केंद्र सरकार वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों और निगरानी के लिए निर्धारित जिलों के लिए सुरक्षा संबंधी व्यय की प्रतिपूर्ति करती है। प्रतिपूर्ति में सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और परिचालन संबंधी आवश्यकताओं से संबंधित व्यय, वामपंथी उग्रवाद हिंसा में मारे गए/घायल हुए नागरिकों/सुरक्षा बलों के परिवारों को अनुग्रह राशि का भुगतान, आत्मसमर्पण करने वाले वामपंथी उग्रवादियों का पुनर्वास, सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, ग्राम रक्षा समितियां और प्रचार सामग्री शामिल हैं। एसआरई योजना का उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों की क्षमता को मजबूत करना है ताकि वे वामपंथी उग्रवाद के खतरे से प्रभावी ढंग से लड़ सकें। वर्ष 2014-15 से 2024-25 के दौरान इस योजना के अंतर्गत 3260.37 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित जिलों के लिए विशेष केन्द्रीय सहायता (एससीए): इस योजना को 2017 में मंजूरी दी गई थी और इसे ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण’ की व्यापक योजना की उप-योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित अधिकांश जिलों में सार्वजनिक अवसंरचना और सेवाओं में महत्वपूर्ण अंतराल को कम है, जो उभरती प्रकृति के हैं। 2017 में योजना की शुरुआत से अब तक 3,563 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
विशेष अवसंरचना योजना (एसआईएस): इस योजना को पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की व्यापक योजना की उप-योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। विशेष अवसंरचना योजना के अंतर्गत राज्य खुफिया शाखाओं (एसआईबी), विशेष बलों, जिला पुलिस और फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशनों (एफपीएस) को मजबूत करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जाती है। एसआईएस के अंतर्गत 1741 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। इस योजना के तहत 221 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन बनाए गए हैं।
फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशनों की योजना: इस योजना के अंतर्गत वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 10 राज्यों में 400 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन बनाए गए हैं। पिछले 10 वर्षों में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में 612 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन बनाए गए हैं। यह स्थिति 2014 के विपरीत है जब केवल 66 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन थे।
वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को सहायता: इस योजना को पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की व्यापक योजना की उप-योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत, केन्द्रीय एजेंसियों (सीएपीएफ/आईएएफ आदि) को बुनियादी ढांचे को मजबूत करने तथा हेलीकॉप्टरों के किराये के लिए सहायता प्रदान की जाती है। 2014-15 से 2024-25 की अवधि के दौरान केंद्रीय एजेंसियों को 1120.32 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
सिविक एक्शन प्रोग्राम (सीएपी): इस योजना को ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण’ की व्यापक योजना की उप-योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच की खाई को पाटना और स्थानीय लोगों के सामने सुरक्षा बलों का मानवीय चेहरा लाना है। यह योजना अपने लक्ष्य को हासिल करने में खासी सफल रही है। इस योजना के तहत, वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित क्षेत्रों में तैनात सीएपीएफ को स्थानीय लोगों के कल्याण के उद्देश्य से विभिन्न नागरिक गतिविधियों के संचालन के लिए धनराशि जारी की जाती है। 2014-15 से सीएपीएफ को 196.23 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
मीडिया योजना: माओवादी वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में भोले-भाले आदिवासियों/स्थानीय लोगों को तथाकथित गरीब-हितैषी क्रांति के माध्यम से छोटे-मोटे प्रलोभनों या अपनी बलपूर्वक रणनीति के माध्यम से गुमराह कर रहे हैं और लुभा रहे हैं। उनका झूठा प्रचार सुरक्षा बलों और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ लक्षित है। इसलिए, सरकार वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में इस योजना को लागू कर रही है। इस योजना के तहत आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम, रेडियो जिंगल्स, वृत्तचित्रों, पर्चे आदि जैसी गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। 2017-18 से इस योजना के तहत 52.52 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क आवश्यकता योजना-I (आरआरपी-I) और एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना (आरसीपीएलडब्ल्यूई): आरआरपी-I योजना आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में सड़क संपर्क में सुधार के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। आरसीपीएलडब्ल्यूई योजना वर्ष 2016 में 9 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के 44 सबसे अधिक एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों और कुछ निकटवर्ती जिलों में सड़क संपर्क में सुधार के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के दोहरे उद्देश्य हैं-सुरक्षा बलों द्वारा एलडब्ल्यूई विरोधी अभियानों को सुचारू और निर्बाध रूप से चलाने में सक्षम बनाना और क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना। इन दोनों योजनाओं के तहत 17,589 किलोमीटर सड़कें मंजूर की गई हैं। इनमें से 14,618 किलोमीटर का निर्माण हो चुका है।
दूरसंचार संपर्क: एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में दूरसंचार संपर्क में सुधार के लिए 3 दूरसंचार परियोजनाएं-मोबाइल संपर्क परियोजना चरण-I और चरण-II, आकांक्षी जिलों के वंचित गांवों में 4 जी मोबाइल सेवाओं का प्रावधान और 4 जी मोबाइल सेवाओं को परिपूर्ण बनाना, कार्यान्वित की जा रही हैं। कुल 10,505 मोबाइल टावरों की योजना बनाई गई है, जिनमें से 7,768 टावर चालू हो चुके हैं। 1 दिसंबर, 2025 तक पूरा नक्सल प्रभावित क्षेत्र मोबाइल संपर्क से युक्त हो जाएगा।
आकांक्षी जिला: गृह मंत्रालय को 35 एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों में आकांक्षी जिला कार्यक्रम की निगरानी का काम सौंपा गया है।
वित्तीय समावेशन: इन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के वित्तीय समावेशन के लिए, अप्रैल 2015 से एलडब्ल्यूई से सबसे ज्यादा प्रभावित 30 जिलों में 1,007 बैंक शाखाएं और 937 एटीएम तथा एलडब्ल्यूई से प्रभावित जिलों में 5,731 नए डाकघर खोले गए हैं। एलडब्ल्यूई से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में 37,850 बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट (बीसी) चालू किए गए हैं।
कौशल विकास और शिक्षा: कौशल विकास के लिए एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों में 48 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) और 61 कौशल विकास केंद्र (एसडीसी) क्रियाशील किए गए हैं। एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों के आदिवासी ब्लॉकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों में 178 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (ईएमआरएस) क्रियाशील किए गए हैं। कौशल विकास योजना सभी 48 जिलों तक पहुंच गई है और इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का एक मजबूत वर्टिकल बनाया गया है। 1,143 आदिवासी युवाओं को सुरक्षा बलों में भर्ती किया गया।
2019 से सुरक्षा से जुड़े खालीपान को भरने के लिए 280 नए शिविर स्थापित किए गए हैं, 15 नए संयुक्त कार्य बल बनाए गए हैं, तथा विभिन्न राज्यों में राज्य पुलिस की सहायता के लिए 6 सीआरपीएफ बटालियनों को तैनात किया गया है। इसके साथ ही, नक्सलियों के वित्तपोषण को रोकने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सक्रिय करके एक आक्रामक रणनीति अपनाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप उनके लिए वित्तीय संसाधनों की कमी हो गई है। नक्सलियों को घेरने के लिए कई लंबी अवधि के अभियान चलाए गए, ताकि उन्हें भागने का कोई मौका न मिले।

2 अक्टूबर, 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झारखंड से ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ की शुरुआत की। यह अभियान 15,000 से अधिक गांवों में ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण संतृप्ति हासिल करने के लिए व्यक्तिगत सुविधाएं प्रदान करने में एक मील का पत्थर साबित होगा, जिससे एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 1.5 करोड़ लोगों को लाभ होगा। सरकार एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में 3-सी (कनेक्टिविटी यानी संपर्क) यानी सड़क संपर्क, मोबाइल संपर्क और वित्तीय संपर्क को मजबूत कर रही है।
सफलता की कहानियां
2014 में 330 पुलिस थाने ऐसे थे जहां नक्सली घटनाएं हुईं, लेकिन अब ये संख्या घटकर 104 रह गई है। पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र 18,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा में फैला था, जो अब सिर्फ 4,200 वर्ग किलोमीटर में फैला है। 2004 से 2014 के बीच नक्सल हिंसा की कुल 16,463 घटनाएं हुईं। हालांकि 2014 से 2024 के दौरान हिंसक घटनाओं की संख्या 53 प्रतिशत घटकर 7,744 रह गई है। इसी तरह सुरक्षा बलों के हताहतों की संख्या भी 73 प्रतिशत घटकर 1,851 से 509 रह गई है। 2014 तक कुल 66 फोर्टिफाइड थाने थे, लेकिन पिछले 10 सालों में इनकी संख्या बढ़कर 612 हो गई है। पिछले 5 सालों में कुल 302 नए सुरक्षा शिविर और 68 नाइट लैंडिंग हेलीपैड स्थापित किए गए हैं।
नक्सलियों पर आर्थिक रूप से शिकंजा कसने और उनकी आर्थिक कमर तोड़ने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल किया गया, जिससे नक्सलियों से कई करोड़ रुपये जब्त किए गए। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामले दर्ज किए गए और नक्सलियों को फंड देने वालों को सलाखों के पीछे भेजा गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास लाने के लिए इन क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 300% की वृद्धि की गई।
दिसंबर 2023 में, एक साल के भीतर 380 नक्सली मारे गए, 1,194 गिरफ्तार किए गए और 1,045 ने आत्मसमर्पण कर दिया।
निष्कर्ष
वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ भारत की बहुआयामी रणनीति ने उग्रवाद को क्षेत्रीय और परिचालन दोनों के लिहाज से काफी कमजोर कर दिया है। सरकार के सुरक्षा, विकास और अधिकार-आधारित सशक्तिकरण के मिश्रण पर जोर से पहले से प्रभावित क्षेत्रों में परिदृश्य बदल गया है। मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक प्रतिबद्धता और लोगों की भागीदारी के साथ, एलडब्ल्यूई मुक्त भारत का सपना पहले से कहीं अधिक करीब दिख रहा है।
संदर्भ
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https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2122749
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