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एक दशक में भारत की जैव अर्थव्यवस्था का 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 165.75 बिलियन डॉलर की हुई
Posted On: 27 MAR 2025 6:45PM
मुख्य बातें
- भारत की जैव अर्थव्यवस्था 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के लक्ष्य के साथ, 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 165.7 बिलियन डॉलर हो गई है।
- यह क्षेत्र पिछले चार वर्षों में 17.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ सकल घरेलू उत्पाद में 4.25% का योगदान देता है।
- सरकार का लक्ष्य भारत को नवाचार, स्थिरता और समावेशी विकास पर आधारित वैश्विक जैव-विनिर्माण केंद्र बनाना है।
- बायोई3 रिजेनरेटिव जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देता है और भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्यों के साथ संरेखित एक चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है।
- विश्व बैंक ($250 मिलियन) के साथ सह-वित्तपोषित राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन 100 से अधिक परियोजनाओं और 30 एमएसएमई का समर्थन करता है।
- भारत वैश्विक स्तर पर टीकों के शीर्ष उत्पादकों में से एक है और इसने दुनिया की पहली डीएनए कोविड-19 वैक्सीन विकसित की है।
- इथेनॉल सम्मिश्रण 2014 के 1.53% से बढ़कर 2024 में 15% हो गया, तथा 2025 तक 20% का लक्ष्य है।
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परिचय
पिछले दशक में भारत की जैव अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है, जो 2014 के 10 बिलियन डॉलर से सोलह गुना बढ़कर 2024 में 165.7 बिलियन डॉलर हो गई है। यह असाधारण विस्तार जैव प्रौद्योगिकी को स्थायी आर्थिक विकास और नवाचार की आधारशिला के रूप में स्थापित करने के लिए देश के केंद्रित प्रयासों को दर्शाता है। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 4.25% का योगदान करते हुए, इस क्षेत्र ने पिछले चार वर्षों में 17.9% की मजबूत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) का प्रदर्शन किया है, जिसने जैव प्रौद्योगिकी में एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में भारत को मजबूत किया है। 2030 तक 300 बिलियन डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ, जैव अर्थव्यवस्था ज्ञान-आधारित, जैव-सक्षम अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
जैव अर्थव्यवस्था खाद्य, ऊर्जा और औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए नवीकरणीय जैविक संसाधनों का उपयोग है, जो स्थिरता और आर्थिक विकास का समर्थन करता है। जीन एडिटिंग और बायोप्रिंटिंग जैसे नवाचार प्रगति को गति दे रहे हैं, जबकि विभिन्न क्षेत्रों में एकीकरण दीर्घकालिक प्रभाव को मजबूत करता है। जैव प्रौद्योगिकी को डिजिटल उपकरणों और चक्रीय अर्थव्यवस्था सिद्धांतों के साथ जोड़कर, जैव अर्थव्यवस्था पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए स्थायी समाधान प्रदान करती है और समग्र सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देती है।

एक समृद्ध जैव अर्थव्यवस्था के लिए भारत का विजन
जैव अर्थव्यवस्था के लिए भारत का विजन नवाचार-आधारित विकास, सतत विकास और समावेशी आर्थिक प्रगति में निहित है। देश का लक्ष्य जैव-विनिर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र बनना है, जो मजबूत आरएंडडी बुनियादी ढांचे, अत्याधुनिक तकनीकों और एक कुशल वैज्ञानिक कार्यबल द्वारा समर्थित है। इसका मुख्य जोर एक लचीला औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने पर है जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अवसरों को अनलॉक करते हुए नए जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देता है। 2030 तक 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था हासिल करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ, भारत टीके, डायग्नोस्टिक्स और चिकित्सा सहित जैव-फार्मा में भी वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करना चाहता है। यह रणनीति सीधे भारत@2047 के व्यापक लक्ष्यों में योगदान देती है, जो स्थिरता, आर्थिक आत्मनिर्भरता और हरित विकास पर जोर देती है।
सरकारी पहल और प्रमुख कार्यक्रम
1. बायोई3 नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी)
बायोई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल है। 24 अगस्त 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत नीति का उद्देश्य अच्छे प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देकर और अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के प्रमुख स्तंभों को संबोधित करके भारत को एक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी शक्ति में बदलना है।
यह रिजेनरेटिव जैव विनिर्माण को बढ़ावा देकर और रासायन-आधारित उद्योगों से स्थायी जैव-आधारित मॉडल में बदलाव करके एक स्वच्छ, हरित और अधिक समृद्ध भविष्य की दृष्टि के साथ संरेखित है। यह एक चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है और शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ जुड़ा हुआ है। यह दृष्टिकोण पर्यावरणीय स्थिरता का समर्थन करता है और न्यूनतम कार्बन पदचिह्नों के साथ जैव-आधारित उत्पादों के विकास को बढ़ावा देकर 'मेक इन इंडिया' पहल में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
रणनीतिक क्षेत्र और प्रमुख पहल
बायोई3 नीति में जैव-आधारित उत्पाद विकास और व्यावसायीकरण को समर्थन देने के लिए, उन्नत जैव विनिर्माण सुविधाएं, जैव-फाउंड्री क्लस्टर और जैव-एआई हब जैसी प्रमुख पहलों की शुरुआत की गई है। ये केंद्र प्रयोगशाला से बाजार तक के अंतर को पाटेंगे और स्टार्टअप, एसएमई और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देंगे। रोजगार पर विशेष ध्यान देने के साथ, नीति का उद्देश्य स्थानीय बायोमास का लाभ उठाकर टियर-II और टियर-III शहरों में रोजगार पैदा करना है। यह भारत की वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए नैतिक जैव सुरक्षा और वैश्विक नियामक मानकों के साथ संरेखण पर भी जोर देता है।

मुख्य विशेषताएं
- अनुसंधान एवं विकास तथा उद्यमिता के लिए नवाचार-संचालित समर्थन
- जैव विनिर्माण और बायो-एआई हब तथा बायोफाउंड्री की स्थापना
- हरित विकास के लिए रिजेनरेटिव जैव-अर्थव्यवस्था मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना
- भारत के कुशल कार्यबल का विस्तार
- ‘शुद्ध शून्य’ (नेट जीरो) कार्बन अर्थव्यवस्था और ‘पर्यावरण के लिए जीवनशैली’ (लाइफ) पहलों के साथ संरेखण
राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन
राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम)-भारत में नवाचार (आई3), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के नेतृत्व में सरकार द्वारा अनुमोदित पहल है और बीआईआरएसी द्वारा कार्यान्वित की जाती है। इसका उद्देश्य उद्योग और शिक्षा जगत के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर बायोफार्मास्युटिकल्स, वैक्सीन, बायोसिमिलर, चिकित्सा उपकरण और डायग्नोस्टिक्स में भारत की क्षमताओं को बढ़ावा देना है। 250 मिलियन डॉलर के बजट के साथ, विश्व बैंक द्वारा 50% सह-वित्तपोषित, मिशन 101 परियोजनाओं का समर्थन करता है, जिसमें 150 से अधिक संगठन और 30 एमएसएमई शामिल हैं। इसने परीक्षण, सत्यापन और विनिर्माण के लिए 11 साझा सुविधाएं स्थापित करने में मदद की है - जिससे स्टार्ट-अप और एमएसएमई को लाभ हुआ है। इनमें वैक्सीन परीक्षण के लिए जीसीएलपी लैब, बायोसिमिलर विश्लेषण के लिए जीएलपी लैब और विनिर्माण के लिए सीजीएमपी सुविधाएं शामिल हैं। मिशन ने 304 वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं सहित 1,000 से अधिक नौकरियां भी पैदा की हैं। इसके अतिरिक्त, जीनोम इंडिया कार्यक्रम, जिसमें 10,000 जीनोमों का अनुक्रमण शामिल है, से उपचार और रोकथाम दोनों में भविष्य की वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों को आकार मिलने की उम्मीद है।
भारत के फार्मा क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियां:
- भारत किफायती, उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है, जो मात्रा के हिसाब से फार्मास्यूटिकल उत्पादन में तीसरे स्थान पर और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है।
- कोविड-19 के लिए दुनिया का पहला डीएनए टीका विकसित किया, जो वैश्विक स्वास्थ्य में नवाचार को दर्शाता है।
- दुनिया के 65% टीकों का उत्पादन करता है, जिससे निम्न और मध्यम आय वाले देशों को काफी लाभ हुआ है।
- "मेक इन इंडिया" पहल मजबूत घरेलू विनिर्माण के माध्यम से आयातित सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) पर निर्भरता को कम कर रही है।
- फार्मा उद्योग ने जेनेरिक-केंद्रित मॉडल से बायोफार्मास्युटिकल्स और बायोसिमिलर विकसित करने की ओर कदम बढ़ाया है।
- भारत किशोर लड़कियों में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर (सर्वाइकल कैंसर) को रोकने के लिए पहले स्वदेशी एचपीवी वैक्सीन पर काम कर रहा है।
- दुनिया भर में खपत होने वाली हर तीसरी गोली भारत में निर्मित होती है, जो भारतीय फार्मा में वैश्विक विश्वास को प्रदर्शित करती है।
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3. जैव कृषि (बायो एग्रीकल्चर)
भारत में कृषि जैव प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के कृषि जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के तहत जीनोमिक्स, ट्रांसजेनिक और जीन संपादन में नवाचारों के माध्यम से तेजी से आगे बढ़ रही है।
- जलवायु-स्मार्ट फसलें: सूखा-सहिष्णु, उच्च उपज देने वाली चने की किस्म सात्विक (एनसी 9) को खेती के लिए मंजूरी दी गई है।
- जीनोम-एडिटेड चावल: उपज-सीमित करने वाले जीन में हानि-कार्य उत्परिवर्तन (लॉस ऑफ फंक्शन म्यूटेशन) से ऊंची उपज देने वाली डीईपी1-एडिटेड एमटीयू-1010 जैसी बेहतर चावल की प्रजातियां सामने आई हैं।
- जीनोटाइपिंग एरे: भारत की पहली 90के एसएनपी एरे - चावल के लिए इंडआरए और चने के लिए इंडसीए - डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और किस्म की पहचान को सक्षम बनाती है।
- ऐमारैंथ संसाधन: एक जीनोमिक डेटाबेस, एनआईआरएस तकनीक और एक 64के एसएनपी चिप पोषण संबंधी जांच और मोटापा-रोधी ऐमारैंथ किस्मों के विकास में सहायता करती है।
- बायोकंट्रोल: मायरोथेसियम वेरुकेरिया से बना नैनो-फॉर्मूलेशन टमाटर और अंगूर में पाउडरी फफूंद का पर्यावरण-अनुकूल नियंत्रण प्रदान करता है।
- किसान-कवच: कीटनाशक-रोधी सुरक्षात्मक सूट किसानों को विषाक्त जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है।
4. बायोटेक-किसान (बायोटेक-कृषि नवाचार विज्ञान अनुप्रयोग नेटवर्क)
बायोटेक-किसान एक वैज्ञानिक-किसान साझेदारी कार्यक्रम है जिसे कृषि नवाचार और वैज्ञानिक हस्तक्षेपों के माध्यम से किसानों, विशेष रूप से महिलाओं और ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को सशक्त बनाने के लिए शुरू किया गया है। यह हब-एंड-स्पोक मॉडल का अनुसरण करता है और भारत के 115 आकांक्षी जिलों में सक्रिय है।

राज्य-वार प्रभाव:
- छत्तीसगढ़ (बस्तर क्षेत्र): उन्नत जैव-फोर्टिफाइड चावल के माध्यम से आय में 40-50% की वृद्धि हुई; 2173 किसान लाभान्वित हुए।
- पश्चिम बंगाल: 14 वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों से 37,552 किसान (जिनमें 28,756 महिलाएं शामिल हैं) प्रशिक्षित हुए; 14 एफपीओ और 134 एफआईजी का गठन किया गया।
- मध्य प्रदेश: 8 आकांक्षी जिलों में प्रौद्योगिकी अपनाने से 67,630 किसान लाभान्वित हुए।
- झारखंड (देवघर): कोकून और खाद उत्पादन में 69-100% की वृद्धि; 2100 परिवार शामिल हुए।
- मेघालय और सिक्किम: मक्का, हल्दी, टमाटर की उपज में 18-20% की वृद्धि; कीटों में 50% की कमी।
जैव ऊर्जा (बायो एनर्जी)
भारत का जैव ऊर्जा क्षेत्र देश की जैव अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा रहा है। इथेनॉल मिश्रण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो 2014 में 1.53% से 2024 में 15% हो गई है और इसे 2025 तक 20% मिश्रण तक ले जाने का लक्ष्य है। इस बदलाव ने न केवल कच्चे तेल के आयात को 173 लाख मीट्रिक टन कम किया है, बल्कि विदेशी मुद्रा में 99,014 करोड़ रुपये की बचत भी की है और 519 लाख मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जन में कटौती की है।
इसका आर्थिक प्रभाव काफी बड़ा है, जिसमें डिस्टिलर्स को 1,45,930 करोड़ रुपये और किसानों को 87,558 करोड़ रुपये वितरित किए गए, जिससे ग्रामीण आय और कृषि-उद्योग संबंध मजबूत हुए। 400 से अधिक आउटलेट्स पर E100 ईंधन की शुरुआत और 15,600 से अधिक खुदरा स्टेशनों पर E20 ईंधन की उपलब्धता के माध्यम से ईंधन विविधीकरण गति पकड़ रहा है।
जैव ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का एक रूप है जो हाल ही में जीवित जैविक पदार्थों से प्राप्त होती है, जिसका उपयोग परिवहन ईंधन, ऊष्मा, बिजली और उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। जैव ऊर्जा को बायोमास के रूप में भी जाना जाता है।
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सहायक नीतियों ने संरचित प्रोत्साहनों द्वारा समर्थित मक्का, क्षतिग्रस्त चावल और गन्ने के उपोत्पादों सहित विभिन्न फीडस्टॉक्स के उपयोग को प्रोत्साहित किया है। दूसरी पीढ़ी की इथेनॉल रिफाइनरियां पराली और बांस जैसे कृषि अवशेषों को ईंधन में परिवर्तित कर रही हैं, जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है और प्रदूषण कम हो रहा है। ये विकास इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि जैव ऊर्जा किस तरह ऊर्जा सुरक्षा, स्थिरता और ग्रामीण विकास में योगदान देती है - जो भारत की विस्तारित जैव अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभ हैं।
बीआईआरएसी पहलों के माध्यम से बायोटेक नवाचार को बढ़ावा देना
2012 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), भारत के बायोटेक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश भर में स्थापित 95 बायो-इन्क्यूबेशन केंद्रों के साथ, बीआईआरएसी फंडिंग, बुनियादी ढांचे और मेंटरशिप के माध्यम से स्टार्टअप का समर्थन करता है।
प्रमुख योजनाएं शामिल हैं:
- बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट (बीआईजी): शुरुआती चरण के स्टार्टअप को समर्थन देने के लिए 18 महीने के लिए ₹50 लाख तक; लगभग 1,000 इनोवेटर्स को समर्थन दिया गया।
- सीड फंड: प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट चरण के स्टार्टअप के लिए ₹30 लाख इक्विटी सहायता।
- लीप फंड: व्यावसायीकरण के उद्देश्य से तैयार नवाचारों के लिए ₹100 लाख इक्विटी सहायता।
- जनकेयर - अमृत ग्रैंड चैलेंज: एआई, एमएएल, टेलीमेडिसिन और ब्लॉकचेन में 89 डिजिटल स्वास्थ्य तकनीक नवाचारों का समर्थन किया, जिसमें टियर-II, टियर-III शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

जैव-सक्षम भविष्य की ओर
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था एक निर्णायक मोड़ पर है, जहां नवाचार, स्थिरता और समावेशी विकास के लिए इसका एकीकृत दृष्टिकोण वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है। मजबूत नीतिगत ढांचों, अत्याधुनिक अनुसंधान और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर जोर देते हुए, राष्ट्र अपने औद्योगिक और पर्यावरणीय परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। जैव-विनिर्माण, जैव-कृषि और जैव-ऊर्जा का अभिसरण न केवल राष्ट्रीय लचीलापन को मज़बूत करता है, बल्कि उभरती वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था में भारत की अगुआई करने की रणनीतिक मंशा को भी दर्शाता है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ता है, यह सुसंगत और भविष्योन्मुखी दृष्टि एक अधिक टिकाऊ, आत्मनिर्भर और जैव-सक्षम अर्थव्यवस्था की नींव रखती है, जो भारत@2047 की आकांक्षाओं के साथ मजबूती से जुड़ी हुई है।
संदर्भ
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