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भारत की हाई-टेक क्रांति: उन्‍नत विनिर्माण में वैश्विक नेतृत्‍व का संचालन

“भारत के पास त्रि-आयामी शक्ति है, अर्थात् वर्तमान सुधारवादी सरकार, देश का बढ़ता विनिर्माण आधार और देश का आकांक्षी बाजार जो तकनीकी रुझानों से अवगत है।'' -प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी

Posted On: 03 OCT 2024 6:46PM

भारत बड़े पैमाने पर तकनीकी और औद्योगिक परिवर्तन के कगार पर है। प्रौद्योगिकी ने रचनात्मकता को प्रोत्साहित किया है, साथ ही इस तेजी से प्रतिस्पर्धी उद्योग में लाभ हासिल करने के लिए डिजिटल परिवर्तन महत्वपूर्ण तत्व है। भारतीय विनिर्माण क्षेत्र लगातार अधिक स्वचालित और प्रक्रिया-संचालित विनिर्माण की ओर बढ़ रहा है, जिससे दक्षता में सुधार और उत्पादकता में वृद्धि होने का अनुमान है।

भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिकी और सेमीकंडक्टर हब में बदलने के सरकार के प्रयासों को उत्पादन-से जुड़ी  प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं, विशाल औद्योगिक गलियारों और प्रमुख निवेश जैसे प्रयासों का समर्थन प्राप्त है। इनके साथ मिलकर, भारत का नवीकरणीय ऊर्जा प्रोत्साहन, विशेष रूप से सौर ऊर्जा और ईवी अपनाने में, देश को स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में सबसे आगे रखता है।

सेमिकॉन इंडिया 2024 ऐतिहासिक कार्यक्रम है जो 11-13 सितंबर, 2024 को ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्सपोज़िशन मार्ट में आयोजित किया गया। यह न केवल सेमीकंडक्टर क्षेत्र में वैश्विक नेताओं बल्कि विभिन्न उच्च-तकनीकी उद्योगों के हितधारकों को भी एक साथ ला रहा है। भारत के नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के केंद्र बिंदु के रूप में उभरने के साथ, यह आयोजन विनिर्माण, स्थिरता, कार्यबल विकास और नवाचार को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों पर चर्चा पर बल देने का वादा करता है।

भारत सेमीकंडक्टर मिशन

 

सेमीकंडक्‍टरों का परिचय –

सेमीकंडक्टर को एकीकृत सर्किट (आईसी) या माइक्रोचिप के रूप में भी जाना जाता है। फोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल, विमानों, चिकित्सा उपकरण, सैन्य हथियार, रसोई के उपकरणों, सौर सेल आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिकी  के निर्माण में सेमीकंडक्टर की अभिन्न भूमिका के कारण हमारे दैनिक जीवन के आवश्यक घटक हैं।

सेमीकंडक्टर चिप का उपयोग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सर्वव्यापी है, जो संचार, कंप्यूटिंग, स्वास्थ्य देखभाल, सैन्य प्रणालियों, परिवहन और स्वच्छ ऊर्जा जैसे असंख्य अनुप्रयोगों में सुधार और विकास में सहायता करते हैं। सेमीकंडक्टर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), 5जी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), स्मार्ट कारों और कारखानों, रोबोटिक्स जैसी नई प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ इसके और भी बेहतर भूमिका निभाने का अनुमान है।

मजबूत और व्यापक नीति ढांचे की आवश्यकता को पहचानते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2021 में स्थायी सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए 76,000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ व्यापक सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम को मंजूरी दी थी। सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य पूंजी समर्थन और तकनीकी सहयोग की सुविधा प्रदान करके सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण को प्रोत्साहन प्रदान करना है।  भारत ने सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के हर खंड का समर्थन करने के लिए नीतियां विकसित की हैं। इसने न केवल फैब पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि पैकेजिंग, डिस्प्ले वायर, ओएसएटी, सेंसर जैसे बहुत कुछ को भी शामिल किया है।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत चार योजनाएँ हैं:

 

  1. भारत में सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना के लिए संशोधित योजना
  2. भारत में डिस्प्ले फैब्स की स्थापना के लिए संशोधित योजना
  3. भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर / सिलिकॉन फोटोनिक्स / सेंसर फैब / डिस्क्रीट सेमीकंडक्टर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग (एटीएमपी) / ओएसएटी सुविधाओं की स्थापना के लिए संशोधित योजना।
  4. डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (डीएलआई) योजना

 

कई ऐतिहासिक परियोजनाओं को मंजूरी मिलने के साथ भारत के सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण गति देखी गई है। माइक्रोन के साथ पहली बड़ी परियोजना को लगभग 22,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई, और धोलेरा में ताइवान के पावरचिप के साथ टाटा का संयुक्त उद्यम एक और चमकदार उदाहरण है। वर्तमान में ऐसे पांच प्रस्ताव हैं, जिनका कुल संयुक्त निवेश 1.52 लाख करोड़ रुपये के करीब है।

हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुजरात के साणंद में सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करने के कायन्स सेमीकॉन प्राइवेट लिमिटेड के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। प्रस्तावित इकाई 3,300 करोड़ रुपये के निवेश से स्थापित की जाएगी। इसकी क्षमता 60 लाख चिप प्रतिदिन की होगी। इस इकाई में निर्मित चिप औद्योगिक, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रिक वाहन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, मोबाइल फोन आदि सहित विभिन्न प्रकार के एप्लिकेशन्स की मांग की पूर्ति करेंगे।

इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 फरवरी, 2024 को भारत में 'सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास' के तहत तीन सेमीकंडक्टर इकाइयों की स्थापना को मंजूरी दी थी।

 

1. 50,000 wfsm क्षमता वाला सेमीकंडक्टर फैब:

 

  • टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड ("टीईपीएल") ताइवान के पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प (पीएसएमसी) के साथ साझेदारी में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करेगी।
  • निवेश: इस फैब का निर्माण गुजरात के धोलेरा में किया जाएगा और इस पर 91,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
  • क्षमता: प्रति माह 50,000 वेफर स्टार्ट (डब्ल्यूएसपीएम)

 

2. असम में सेमीकंडक्टर एटीएमपी इकाई:

 

  • टाटा सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट प्राइवेट लिमिटेड ("TSAT") असम के मोरीगांव में सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करेगी।
  • निवेश: यह इकाई 27,000 करोड़ रु. के निवेश से स्थापित की जाएगी।
  • क्षमता: 48 मिलियन प्रति दिन
  • इससे 15,000 प्रत्यक्ष और 11,000-13,000 अप्रत्यक्ष नौकरियाँ मिलने की उम्मीद है।

 

3. विशेष चिप के लिए सेमीकंडक्टर एटीएमपी इकाई:

 

  • सीजी पावर, रेनेसास इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन, जापान और स्टार्स माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, थाईलैंड के साथ साझेदारी में गुजरात के साणंद में सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करेगी।
  • निवेश: यह इकाई 7,600 करोड़ रुपये के निवेश से स्थापित की जाएगी।
  • क्षमता: 15 मिलियन प्रति दिनCG Power, in partnership with Renesas Electronics

 

 

4.     माइक्रोन सेमीकंडक्टर सुविधा - मेमोरी और स्टोरेज उत्पाद - साणंद, गुजरात

 

  • निवेश: भारत सरकार से समान आधार पर 50 प्रतिशत राजकोषीय सहायता के साथ 22,516 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश।
  • रोजगार: अगले पांच वर्षों में 5,000 प्रत्यक्ष और 15,000 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उपलब्‍ध होने की आशा है।

 

इन इकाइयों के साथ भारत सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम की स्थापना कर रहा है। भारत के पास चिप डिजाइन में पहले से ही प्रगाढ़ क्षमताएं हैं और इन इकाइयों के साथ भारत चिप निर्माण क्षमताओं को विकसित करेगा। इनसे डाउनस्ट्रीम ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिकी, टेलीकॉम, औद्योगिक और अन्य सेमीकंडक्टर-उपभोक्ता उद्योगों में रोजगार सृजन में तेजी आएगी।

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन



 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 4 जनवरी, 2023 को 19,744 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी। इस मिशन का व्यापक उद्देश्य 2030 तक 5 एमएमटी प्रति वर्ष हरित  हाइड्रोजन के उत्पादन के लक्ष्य के साथ भारत को हरित हाइड्रोजन और उसके डेरिवेटिव के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए वैश्विक केंद्र बनाना है।

 

वर्ष 2030 तक परिकल्पित हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता से हरित हाइड्रोजन उद्योग में कुल निवेश में 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक का लाभ होने की संभावना है। इस निवेश से 2030 तक 6,00,000 नौकरियाँ मिलने  का अनुमान है। हरित हाइड्रोजन में उर्वरक उत्पादन, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, मोबिलिटी क्षेत्र, इस्पात उत्पादन और शिपिंग प्रणोदन अनुप्रयोगों सहित विभिन्न क्षेत्रों में आयातित जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बदलने की क्षमता है। इस मिशन से 2030 तक संचयी रूप से  1 लाख करोड़ मूल्य के जीवाश्म ईंधन आयात में कमी आने की संभावना है।

मंत्रिमंडल ने राष्‍ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के तहत 12 औद्योगिक नोड्स/ शहरों को स्‍वीकृति दी

भारत जल्द ही औद्योगिक स्मार्ट शहरों का भव्य हार पहनेगा। कैबिनेट ने हाल ही में राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (एनआईसीडीपी) के तहत 28,602 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 12 नए परियोजना प्रस्तावों को मंजूरी दी। यह कदम देश के औद्योगिक परिदृश्य को बदलने, औद्योगिक नोड्स और शहरों का मजबूत नेटवर्क बनाने के लिए तैयार है जो आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देगा।

 

दस राज्यों में फैली और छह प्रमुख गलियारों के साथ रणनीतिक रूप से योजनाबद्ध, ये परियोजनाएं भारत की विनिर्माण क्षमताओं और आर्थिक विकास को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण छलांग का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये औद्योगिक क्षेत्र उत्तराखंड के खुरपिया, पंजाब के राजपुरा-पटियाला, महाराष्ट्र के दिघी, केरल के पलक्कड़, उत्‍तर प्रदेश के आगरा और प्रयागराज, बिहार के गया, तेलंगाना के जहीराबाद, आंध्र प्रदेश के ओरवाकल और कोप्पर्थी और राजस्थान के जोधपुर-पाली में स्थित होंगे।

 

आर्थिक प्रभाव और रोजगार सृजन: एनआईसीडीपी से रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर उपलब्‍ध होने की आशा है, जिसमें नियोजित औद्योगीकरण के माध्यम से 1 मिलियन प्रत्यक्ष नौकरियां और 3 मिलियन तक अप्रत्यक्ष नौकरियां सृजित होने का अनुमान है। यह न केवल आजीविका के अवसर प्रदान करेगा बल्कि उन क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में भी योगदान देगा जहां ये परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं।

 

इलेक्ट्रिक वाहन

भारत को पर्यावरण प्रदूषण, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की आवश्यकता है। ईवी को व्यापक रूप से अपनाने से वायु प्रदूषण में काफी कमी आ सकती है, जो कई भारतीय शहरों में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्‍या है। जीवाश्म ईंधन से विद्युत ऊर्जा की ओर रुख करके, भारत तेल आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा बढ़ा सकता है और वैश्विक तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता कम कर सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना भारत के स्वच्छ, स्वस्थ और अधिक टिकाऊ भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

 

भारी उद्योग मंत्रालय वर्तमान में देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित योजनाएं लागू कर रहा है:

 

  • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 (ईएमपीएस) 6 महीने की अवधि के लिए 778 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 1 अप्रैल 2024 से 30 सितंबर 2024 तक प्रभावी रहेगी जिसके तहत ई-2डब्ल्यू और ई-3डब्ल्यू के खरीदारों को प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है।
  • 25,938 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट उद्योग (पीएलआई-एएटी) के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना। यह योजना ई-2डब्ल्यू, ई-3डब्ल्यू, ई-4डब्ल्यू, ई-बसों और ई-ट्रकों सहित विभिन्न श्रेणियों के इलेक्ट्रिक वाहनों को भी प्रोत्साहित करती है।
  • 18,100 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ देश में एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (पीएलआई-एसीसी) के निर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना।
  • वैश्विक ईवी विनिर्माताओं से निवेश आकर्षित करने और भारत को ई-वाहनों के लिए विनिर्माण गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रिक यात्री कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना।

 

भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई) ने एक योजना तैयार की है; इसका नाम 2015 में भारत में (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण (फेम इंडिया) योजना है। यह भारत में इलेक्ट्रिक/हाइब्रिड वाहनों (एक्सईवी) को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए है। योजना का चरण- I , 895 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ 31 मार्च, 2019 तक उपलब्ध था। फेम इंडिया योजना के इस चरण में चार फोकस क्षेत्र थे यानी तकनीकी विकास, मांग सर्जन, पायलट परियोजना और चार्जिंग बुनियादी ढांचा घटक।

 

योजना के पहले चरण में लगभग 2.8 लाख xEV को लगभग 359 करोड़ रुपये की कुल मांग प्रोत्साहन के साथ समर्थन दिया गया था। इसके अलावा, लगभग 280 करोड़ रुपए के सरकारी प्रोत्साहन के साथ योजना के पहले चरण के तहत स्वीकृत 425 इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड बसों को देश के विभिन्न शहरों में तैनात किया गया। भारी उद्योग मंत्रालय ने फेम इंडिया योजना के चरण- के तहत लगभग 43 करोड़ रुपए के साथ  लगभग 520 चार्जिंग स्टेशन/बुनियादी ढांचे को मंजूरी दी। फेम इंडिया योजना के चरण- के दौरान प्राप्त परिणाम और अनुभव के आधार पर और उद्योग और उद्योग संघों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद, सरकार ने 11,500 करोड़ रुपए की कुल बजटीय सहायता के साथ 1 अप्रैल, 2019 से आरंभ पांच साल की अवधि के लिए फेम इंडिया योजना के चरण- II को अधिसूचित किया।

 

यह चरण-II मुख्य रूप से सार्वजनिक और साझा परिवहन के विद्युतीकरण का समर्थन करने पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य मांग प्रोत्साहन के माध्यम से 7,262 ई-बसें, 1,55,536 ई-3 व्हीलर, 30,461 ई-4 व्हीलर यात्री कारों और 15,50,225 ई-2 व्हीलर का समर्थन करना है। इसके अलावा, योजना के तहत चार्जिंग बुनियादी ढांचे के निर्माण का भी समर्थन किया जाता है। फेम इंडिया योजना के चरण- II के तहत, 31/07/2024 तक, 16,71,606 इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए  ओईएम (ईवी निर्माताओं) द्वारा सब्सिडी की प्रतिपूर्ति के लिए 6,825 करोड़ रुपये दावे के रूप में जमा किए गए हैं। इसके अलावा, FAME-II योजना के तहत इंट्रा-सिटी संचालन के लिए विभिन्न शहरों/एसटीयू/राज्य सरकार के निकायों के लिए 6862 इलेक्ट्रिक बसें स्वीकृत की गईं।  31 जुलाई, 2024 तक 6,862 ई-बसों में से 4,853 ई-बसों की आपूर्ति की जा चुकी है।

 

एमएचआई ने 7,432 इलेक्ट्रिक वाहन सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) की तीन तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को पूंजीगत सब्सिडी के रूप में 800 करोड़ रुपए भी स्वीकृत किये हैं। ओएमसी को 560 करोड़ रुपये की सब्सिडी पहले ही जारी की जा चुकी है। इसके अलावा, मार्च 2024 में, एमएचआई ने देश भर में नए चार्जर स्थापित करने के जरिए 980 सार्वजनिक फास्ट चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना/उन्नयन के लिए ओएमसी को FAME II के तहत अतिरिक्त 73.50 करोड़ रुपये मंजूर किए। ओएमसी को 51.45 करोड़ रुपये की सब्सिडी पहले ही जारी की जा चुकी है।

 

नवीकरणीय ऊर्जा

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावॉट स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता के लक्ष्य की दिशा में काम कर रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को प्रस्तुत अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) में, भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।

देश में 2014-15 से 2023-24 के बीच नवीकरणीय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

 

  1. स्थापित क्षमता मार्च 2014 में 2,48,554 मेगावाट थी जो जून 2024 में बढ़कर 4,46,190 मेगावाट हो गई है। नवीकरणीय क्षेत्र की स्थापित क्षमता मार्च 2014 में 75,519 मेगावाट से बढ़कर जून 2024 में 1,95,013 मेगावाट हो गई है।
  2. भारत 2031-32 तक गैर जीवाश्म ईंधन आधारित स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता को 5,00,000 मेगावाट से अधिक बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। 5,00,000 मेगावाट आरई क्षमता के एकीकरण के लिए ट्रांसमिशन योजना को आरई क्षमता वृद्धि के अनुरूप चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जा रहा है।
  3. सरकार ने हरित ऊर्जा गलियारों का निर्माण किया है और 13 नवीकरणीय ऊर्जा प्रबंधन केंद्र स्थापित किए हैं।
  4. सौर, पवन, पंप भंडारण संयंत्रों और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों से उत्पन्न बिजली के संचरण पर आईएसटीएस शुल्क की छूट।
  5. वर्ष 2019 में, सरकार ने हाइड्रो पावर सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए उपायों की घोषणा की, जैसे बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स (>25 मेगावाट) को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में घोषित करना, हाइड्रोपावर टैरिफ को कम करने के लिए टैरिफ युक्तिकरण उपाय, बाढ़ मॉडरेशन / स्टोरेज हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (एचईपी) के लिए बजटीय सहायता, बुनियादी ढांचे यानी, सड़क/पुल, आदि को सक्षम करने की लागत के लिए बजटीय सहायता।
  6. बड़े पैमाने पर आरई परियोजनाओं की स्थापना के लिए आरई डेवलपर्स को भूमि और ट्रांसमिशन प्रदान करने के लिए अल्ट्रा मेगा नवीकरणीय ऊर्जा पार्क की स्थापना।

 

सौर ऊर्जा

सौर ऊर्जा पृथ्वी पर सबसे प्रचुर और स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है। भारत के अपशिष्ट भूमि एटलस 2010 के आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) ने भारत की कुल सौर ऊर्जा क्षमता 748 GWp (गीगा वाट पीक) होने का अनुमान लगाया है। भारत सरकार ने सौर ऊर्जा क्षमता को मान्यता दी है और पहचान की है और पिछले दस वर्षों के दौरान सौर ऊर्जा क्षमता में 3000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ग्लासगो में आयोजित सीओपी-26 में प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुरूप, सरकार ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावॉट स्थापित क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

 

सरकार ने देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें शामिल हैं:

  1. स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देना,
  2. 30 जून 2025 तक चालू होने वाली परियोजनाओं के लिए सौर और पवन ऊर्जा की अंतर-राज्य बिक्री के लिए अंतर राज्य ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क की छूट,
  3. वर्ष 2029-30 तक नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ) के लिए प्रक्षेपवक्र की घोषणा,
  4. सौर फोटोवोल्टिक प्रणाली/उपकरणों की तैनाती के लिए मानकों की अधिसूचना,
  5. निवेश को आकर्षित करने और सुविधा प्रदान करने के लिए परियोजना विकास सेल की स्थापना,
  6. ग्रिड कनेक्टेड सोलर पीवी और पवन परियोजनाओं से बिजली की खरीद के लिए टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के लिए मानक बोली दिशानिर्देश।
  7. सरकार ने आदेश जारी किए हैं कि आरई जनरेटरों को वितरण लाइसेंसधारियों द्वारा समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) या अग्रिम भुगतान पर बिजली भेजी जाएगी।
  8. हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस नियमावली 2022 के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की अधिसूचना।
  9. विद्युत (विलंबित भुगतान अधिभार और संबंधित मामले) नियम 2002 (एलपीएस नियमावली)” की अधिसूचना।
  10. एक्सचेंजों के माध्यम से सौर ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा बिजली की बिक्री की सुविधा के लिए ग्रीन टर्म अहेड मार्केट (जीटीएएम) का शुभारंभ।

 

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा सभी की पहुंच में लाने और टिकाऊ दुनिया बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण का हिस्सा है। आईएसए को पेरिस में सीओपी21 के बाद भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था। आईएसए भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय और अंतर-सरकारी संगठन है जिसका मुख्यालय भारत में है।

 

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन 109 सदस्य देशों का अंतरराष्ट्रीय संगठन है। यह दुनिया भर में ऊर्जा पहुंच और सुरक्षा में सुधार करने और कार्बन-तटस्थ भविष्य में संक्रमण के स्थायी तरीके के रूप में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकारों के साथ काम करता है। आईएसए का मिशन प्रौद्योगिकी और इसके वित्तपोषण की लागत को कम करते हुए 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हासिल करना है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की छठी बैठक 30 अक्टूबर - 2 नवंबर, 2023 तक नई दिल्ली में आयोजित हुई। 

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएँ

भारत के 'आत्मनिर्भर' बनने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, 14 प्रमुख क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं की घोषणा की गई है। भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ाने के लिए इन योजनाओं के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय (26 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक)का प्रावधान किया गया है।

 

14 क्षेत्र हैं: (i) मोबाइल विनिर्माण और निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटक, (ii) महत्वपूर्ण प्रारंभिक सामग्री/दवा मध्यस्थ और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री, (iii) चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण (iv) ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक, (v) फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स , (vi) विशेष इस्पात, (vii) दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद, (viii) इलेक्ट्रॉनिक/प्रौद्योगिकी उत्पाद, (ix) व्हाइट गुड्स (एसी और एलईडी), (x) खाद्य उत्पाद, (xi) कपड़ा उत्पाद: एमएमएफ खंड और तकनीकी वस्त्र, (xii) ) उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल, (xiii) उन्नत रसायन सेल (एसीसी) बैटरी, और (xiv) ड्रोन एवं ड्रोन घटक।

पीएलआई योजनाओं का उद्देश्य प्रमुख क्षेत्रों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षित करना; दक्षता सुनिश्चित करना और विनिर्माण क्षेत्र में व्यापक पैमाने की अर्थव्यवस्था लाना और भारतीय कंपनियों और विनिर्माताओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना। इन योजनाओं में उत्पादन को उल्लेखनीय रूप से बढ़ावा देने, विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ाने और अगले पांच वर्षों में आर्थिक विकास में योगदान करने की क्षमता है। 30 जुलाई 2024 तक, 14 क्षेत्रों में 755 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं। मार्च 2024 तक 1.23 लाख करोड़ रुपए का निवेश हुआ है जिसके परिणामस्वरूप लगभग 8 लाख रोजगार उपलब्ध हुए हैं।

 

पीएलआई योजनाओं के तहत लाभार्थियों के चयन में नियोजित मानदंडों में आवश्यक निवेश करने की इच्छा, संबंधित योजना के तहत अनुमोदित उत्पाद श्रेणियों का उत्पादन, पात्र निवल मूल्य, घरेलू मूल्यवर्धन आदि शामिल हैं, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है, जैसा कि कार्यान्वयन मंत्रालय/विभाग द्वारा जारी योजना दिशानिर्देशों में उल्लिखित है।

 

ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों के लिए पीएलआई योजना (पीएलआई-ऑटो) और; उन्नत रसायन विज्ञान सेल (पीएलआई-एसीसी) बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम से संबंधित पीएलआई योजना भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। दोनों योजनाओं के तहत, लाभार्थी फर्मों द्वारा अनुसंधान और विकास पर किए गए व्यय को योग्य निवेश माना जाता है, ताकि वे अपनी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में नवीनतम तकनीक को अपना सकें।

 

सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और सॉफ्टवेयर सेवाएं

 

पिछले एक दशक में, सूचना और कंप्यूटर से संबंधित सेवाएं तेजी से महत्वपूर्ण हो गई हैं, कुल जीवीए में उनकी हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2013 में 3.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 5.9 प्रतिशत हो गई है। महामारी से प्रेरित आर्थिक मंदी के बावजूद, इस क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2011 में 10.4 प्रतिशत की वास्तविक विकास दर हासिल की। कोविड-19 महामारी ने प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों की प्रगति और आगे बढ़ने में तेजी ला दी, जिससे इस क्षेत्र के विकास को बढ़ावा मिला।

 

आईटी सेवाओं की समृद्ध वृद्धि ने भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) और तकनीकी स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार का भी समर्थन किया है।

 

प्रतिभा के अंतर को पाटने के लिए कई पहल की जा रही हैं। अपनी तरह की पहली पहल, 'फ्यूचर स्किल्स प्राइम' के रूप में कल्पना की गई, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) और नैसकॉम की संयुक्त पहल है। इसका उद्देश्य आईटी पेशेवरों को उनकी आकांक्षाओं और योग्यता के अनुरूप कौशल में निरंतर वृद्धि की सुविधा प्रदान करने के लिए फोकस क्षेत्रों में अप-स्किलिंग और री-स्किलिंग इकोसिस्टम बनाना है।

 

सरकार ने उभरती और भविष्य की प्रौद्योगिकियों में डिजिटल कौशल कार्यक्रम शुरू किया, जिसका लक्ष्य इंटर्नशिप, प्रशिक्षुता और रोजगार के अवसरों के माध्यम से एक करोड़ छात्रों को कौशल, पुन: कौशल और कौशल प्रदान करना है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई 4.0) युवाओं के बीच कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करती है, जो उद्योग 4.037, एआई, रोबोटिक्स, मेक्ट्रोनिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और ड्रोन जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करती है।

सरकार ने सामाजिक प्रभाव के लिए समावेशन, नवाचार और अपनाने को बढ़ावा देने हेतु परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए मिशन-केंद्रित दृष्टिकोण के रूप में भारत एआई कार्यक्रम की कल्पना की है। भारत के एआई के स्तंभों में गवर्नेंस में एआई, एआई आईपी और इनोवेशन, एआई कंप्यूट और सिस्टम, एआई के लिए डेटा, एआई में कौशल और एआई एथिक्स एवं गवर्नेंस शामिल हैं। 'भारत में एआई और भारत के लिए एआई' के निर्माण के हिस्से के रूप में, इंडियाएआई का पहला संस्करण अक्टूबर 2023 में जारी किया गया था।

 

भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ग्लोबल पार्टनरशिप (GPAI) का संस्थापक सदस्य है, जो जून 2020 में बहु-हितधारक पहल में शामिल हुआ है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एआई नवाचार स्तंभों तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने और भारत के एआई पारिस्थितिकी तंत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए व्यापक इंडिया एआई मिशन के लिए ₹10,300 करोड़ से अधिक के आवंटन को मंजूरी दी है।

 

भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए जुलाई 2015 में शुरू किए गए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत, नागरिक-केंद्रित सेवाओं की डिलीवरी के लिए विभिन्न डिजिटल पहल की गई हैं। वित्त वर्ष 2023 में, प्रौद्योगिकी उद्योग में 5.4 मिलियन कर्मचारी होने और भारत के सेवा निर्यात में 53% का योगदान होने का अनुमान है। भारत सरकार ने भारत में आईटी/आईटीईएस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रमुख पहल की हैं। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने नागरिक सेवाओं को डिजिटल रूप से सक्षम करने के लिए प्रौद्योगिकी समाधान विकसित करने की दिशा में कदम उठाए हैं। सरकार ने साइबर सुरक्षा, हाइपर-स्केल कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बनाई है। 10 रुपये/जीबी ($0.12/जीबी) की डेटा लागत के साथ, भारत दुनिया में सबसे कम डेटा लागतों वाले देशों में से एक है और दुनिया में इंटरनेट ग्राहकों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या वाला देश भी है।

 

फार्मा और हेल्थकेयर उद्योग

जुलाई 2023 में ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स निर्यात 8.36 प्रतिशत बढ़कर 2.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर जुलाई 2024 में 2.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।6 भारत सरकार ने प्रमुख 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के लिए चिकित्सा उपकरणों को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना है और विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा चिकित्सा उपकरण बाजार है। वर्तमान में, भारतीय बाजार आयात पर बहुत अधिक निर्भर है लेकिन हाल के दिनों में निर्यात में वृद्धि देखी गई है। 'आत्मनिर्भर' भारत मिशन चिकित्सा उपकरणों के लिए वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के भारत के दृष्टिकोण को गति प्रदान कर रहा है। उदाहरण के लिए, हाल की पहल, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) और चिकित्सा उपकरण पार्क संवर्धन योजना, इसका प्रमाण हैं। इन योजनाओं का निर्माण बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और भारत के भीतर विनिर्माण क्लस्टर विकसित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया गया है।

 

आयात निर्भरता को कम करने और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए हाई एंड चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने कई उपाय किए हैं जो इस प्रकार हैं:

 

  1. 3,420 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्ययऔर वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2027-28 तक की अवधि के साथ चिकित्सा उपकरणों (पीएलआई एमडी) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना। चयनित कंपनियों को भारत में विनिर्मित और योजना के चार लक्ष्य खंडों के अंतर्गत आने वाले चिकित्सा उपकरणों की वृद्धिशील बिक्री पर पांच (5) वर्ष की अवधि के लिए 5% की दर से वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है। चार लक्ष्य खंड हैं - (I) रेडियोथेरेपी, (II) इमेजिंग डिवाइस, (III) एनेस्थीसिया, कार्डियो-श्वसन और क्रिटिकल केयर, (IV) प्रत्यारोपण। योजना के तहत 26 प्रतिभागियों को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 11 एमएसएमई हैं।
  2. 15,000 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय और वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2028-29 तक की अवधि के साथ फार्मास्यूटिकल्स के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना। इस योजना में 55 चयनित आवेदकों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। उनमें इन-विट्रो डायग्नोस्टिक्स (आईवीडी) उपकरणों के पांच चयनित आवेदक शामिल हैं, जिनमें से चार एमएसएमई हैं। योजना के तहत प्रोत्साहन अवधि छह साल के लिए है।

 

  1. 400 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय और वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक की अवधि के साथ चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने की योजना। आगामी चिकित्सा उपकरण पार्कों में सामान्य बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए 4 चयनित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से प्रत्येक को 100 करोड़ रुपए की अधिकतम वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। योजना के तहत हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश प्रत्येक राज्य को 100 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता हेतु अंतिम स्वीकृति दी गई है।

 

  1. सामान्य सुविधाओं के लिए चिकित्सा उपकरण समूहों को सहायता योजना (एएमडी-सीएफ) का उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों की परीक्षण प्रयोगशालाओं, ई-कचरा उपचार सुविधा, लॉजिस्टिक सेंटर जैसी सामान्य बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने के लिए चिकित्सा उपकरण समूहों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना है।

 

  1. केंद्रीय रसायन और उर्वरक और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने 2 मार्च 2024 को 27 ग्रीनफील्ड बल्क ड्रग पार्क परियोजनाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए 13 ग्रीनफील्ड विनिर्माण संयंत्रों का वर्चुअल माध्‍यम से उद्घाटन किया।

 

  1. योजना की अवधि के दौरान 2020-21 से 2029-30 तक पीएलआई योजना में कुल 6,940 करोड़ रु. के परिव्यय के साथ 41 बल्क ड्रग के विनिर्माण की परिकल्पना की गई है।

 

ई-कॉमर्स और फिनटेक उद्योग

 

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने 10 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली में ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफ़ॉर्म लॉन्च किया। ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफ़ॉर्म (https://trade.gov.in), नई डिजिटल पहल है जिसका उद्देश्य भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से एमएसएमई (मध्यम, लघु और मध्यम उद्यमों) के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के परिदृश्य को बदलना है। एमएसएमई मंत्रालय, एक्जिम बैंक, वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) और विदेश मंत्रालय (एमईए) सहित प्रमुख भागीदारों के सहयोग से विकसित यह मंच निर्यातकों को व्यापक समर्थन और संसाधन प्रदान करके सूचना विषमता को दूर करने के लिए तैयार है।

 

ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफ़ॉर्म वन-स्टॉप समाधान के रूप में कार्य करता है, जो निर्यातकों को व्यापार से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी तक वास्तविक समय में पहुंच प्रदान करता है, जबकि उन्हें विदेश में भारतीय मिशन, वाणिज्य विभाग, निर्यात संवर्धन परिषदें, और अन्य व्यापार विशेषज्ञों जैसी प्रमुख सरकारी संस्थाओं से जोड़ता है। चाहे अनुभवी निर्यातक हो या नया प्रवेशी, इस प्लेटफ़ॉर्म को उनकी निर्यात यात्रा के हर चरण में व्यवसायों की सहायता के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह ई-प्लेटफॉर्म 6 लाख से अधिक आईईसी धारकों, 180 से अधिक भारतीय मिशन अधिकारियों, 600 से अधिक निर्यात संवर्धन परिषद के अधिकारियों के अलावा डीजीएफटी, डीओसी, बैंकों आदि के अधिकारियों को जोड़ेगा।

 

Government e-Marketplace (GeM)

 

वित्त वर्ष 2024-25 में सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) पर खरीद 08 अगस्त 2024 तक लगभग 1,92,433 करोड़ रुपए तक पहुंच है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 136 प्रतिशत की वृद्धि हुई  और वित्त वर्ष 2024-25 में नए रिकॉर्ड स्थापित करने के लिए तैयार है। GeM पर सेवाओं की खरीद में तेजी आई है और इसकी स्थापना के बाद से सेवाओं का सकल मूल्य माल (GMV) 3.91 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2024-25 में, GeM पर सेवा खरीद पहले ही 80,493 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। प्लेटफ़ॉर्म ने पिछले 3 वित्त वर्ष में 100 प्रतिशत साल-दर-साल वृद्धि दर्ज करने के साथ वित्त वर्ष 2023-24 में GeM GMV में लगभग 4.03 लाख करोड़ रुपए के 62.86 लाख ऑर्डरों की पूर्ति की है।

 

अब तक, 1.5 लाख से अधिक सरकारी खरीदार मध्यस्थों के बिना पूरे भारत में 11,523 उत्पाद और 327 सेवा श्रेणियों में 23 लाख विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से बातचीत कर रहे हैं और सामान एवं सेवाएं खरीद रहे हैं।

 

9 अगस्त 2016 को लॉन्च होने के बाद से, GeM ने विभिन्न केंद्रीय/राज्य, मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSU), स्वायत्त निकायों, पंचायतों और सहकारी समितियों द्वारा आम उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान की है। कैशलेस, संपर्क रहित और कागज रहित एकीकृत राष्ट्रीय खरीद पोर्टल की शुरुआत के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी दृष्टिकोण से GeM की उत्पत्ति हुई है।

 

डिजिटल इंडिया विजन के प्रति वर्तमान प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने अपनी क्षमता निर्माण पहल का तीसरा चरण शुरू किया है। ये पहल डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, अनुबंध और खरीद प्रबंधन, एआई और एमएल के एप्लिकेशन, बड़ी डिजिटल कायाकल्‍प परियोजनाओं के प्रबंधन, डिजिटल प्रशासन और डेटा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर अधिकारियों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए, देश भर में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित की जा रही है।

 

G20 डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों की बैठक बेंगलुरु में आयोजित की गई, जिसे भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है। विशेष संदेश में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाचार, डीपीआई के त्वरित कार्यान्वयन, समावेशन की भावना से प्रेरित- भारत के अटूट विश्वास के बारे में बात की और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने की बात कही। उन्होंने भारत में डिजिटल परिवर्तन की यात्रा को साझा किया और जी20 डिजिटल अर्थव्यवस्था क्षेत्र में उत्पादक परिणामों के लिए 4सी - दृढ़ विश्वास, प्रतिबद्धता, समन्वय और सहयोग पर जोर दिया है।

 

ऐतिहासिक कदम के रूप में भारत की अध्यक्षता में जी20 डिजिटल इकोनॉमी मंत्रिस्तरीय बैठक में भविष्य के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) को प्रभावी ढंग से आकार देने के तरीके पर अभूतपूर्व सहमति बनी। DPI को G20 द्वारा सामूहिक रूप से अपनाया गया है। वे डीपीआई के लिए जी20 फ्रेमवर्क पर भी सहमत हुए जिसमें डीपीआई के विभिन्न घटकों के साथ-साथ डीपीआई के विकास और तैनाती के लिए सुझाए गए सिद्धांत शामिल हैं। G20 के सभी सदस्यों ने ग्लोबल साउथ के देशों के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता के लिए बहुहितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार किया। इस संबंध में, जी20 ने सर्वसम्मति से वन फ्यूचर एलायंस की भारतीय अध्यक्षता की स्वैच्छिक पहल का स्वागत किया जो डीपीआई के लिए विकासशील देशों की जरूरतों का समर्थन करना चाहता है।

 

केंद्र सरकार उन्नत प्रौद्योगिकियों और नियामक ढांचे के साथ वित्तीय बाजारों को मजबूत करने के लिए मजबूत, पारदर्शी और कुशल प्रणाली बना रही है। भारत की फिनटेक क्रांति व्यापक है, जिसे हवाई अड्डे पर पहुंचने से लेकर स्ट्रीट फूड और खरीदारी के अनुभव तक देखा जा सकता है। “पिछले 10 वर्ष में, 500 प्रतिशत की स्टार्टअप वृद्धि के साथ-साथ उद्योग को 31 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का रिकॉर्ड निवेश प्राप्त हुआ है।

 

जन धन, आधार और मोबाइल की त्रिमूर्ति ने 'कैश इज किंग' की मानसिकता को तोड़ दिया है और दुनिया में होने वाले लगभग आधे डिजिटल लेनदेन का रास्ता भारत में बना दिया है। भारत का यूपीआई दुनिया में फिनटेक का प्रमुख उदाहरण बन गया है” प्रधानमंत्री ने कहा कि इसने हर गांव और शहर में हर मौसम में 27x7 बैंकिंग सेवाएं सक्षम की हैं।

फिनटेक ने ऐसी प्रणाली में सेंध लगाने में प्रभावशाली भूमिका निभाई है और पारदर्शिता के उद्भव का श्रेय दिया है। उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकी ने भारत में पारदर्शिता लायी है। उन्‍होंने सैकड़ों सरकारी योजनाओं में इस्तेमाल होने वाले प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के कार्यान्वयन का उदाहरण दिया, जिससे सिस्टम में लीकेज को रोका गया है। "आज, लोग औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के साथ जुड़ने के लाभ देख सकते हैं"।

 

फिनटेक ने ऋण तक पहुंच को आसान और समावेशी बना दिया है। उदाहरण के लिए, पीएम स्वनिधि योजना ने स्ट्रीट वेंडरों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्राप्त करने और डिजिटल लेनदेन की मदद से अपने व्यवसाय का और विस्तार करने में सक्षम बनाया है। अब, लोग शेयर बाजारों और म्यूचुअल फंड, निवेश रिपोर्ट और डीमैट खाते खोलने तक आसान पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।

 

दूरसंचार उद्योग

 

भारत को 'आत्मनिर्भर' बनाने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक्स के बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना से देश में उत्पादन, रोजगार सृजन, आर्थिक विकास और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

 

टेलीकॉम पीएलआई योजना के तीन वर्षों के भीतर, इस योजना ने 3,400 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, दूरसंचार उपकरण उत्पादन 50,000 करोड़ रुपये के मील के पत्थर को पार कर गया है। इसमें लगभग 10,500 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ है, जिससे 17,800 से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियाँ और अनेक अप्रत्यक्ष नौकरियां उपलब्‍ध हुई हैं। यह उपलब्धि भारत के दूरसंचार विनिर्माण उद्योग की मजबूत वृद्धि और प्रतिस्पर्धात्मकता को रेखांकित करती है, जो स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात निर्भरता को कम करने की सरकारी पहल से प्रेरित है। पीएलआई योजना का लक्ष्य घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना और भारत को दूरसंचार उपकरण उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है। यह योजना भारत में निर्मित उत्पादों की बढ़ती बिक्री के आधार पर निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान करती है।

 

इलेक्ट्रॉनिक्स के बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना मोबाइल फोन और उसके घटकों के निर्माण को कवर करती है।  इस पीएलआई योजना के परिणामस्वरूप भारत से मोबाइल फोन के उत्पादन और निर्यात दोनों में काफी तेजी आई है। भारत 2014-15 में मोबाइल फोन का बड़ा आयातक था, जब देश में केवल 5.8 करोड़ यूनिट का उत्पादन होता था जबकि 21 करोड़ यूनिट का आयात किया जाता था, 2023-24 में भारत में 33 करोड़ यूनिट का उत्पादन हुआ और केवल 0.3 करोड़ यूनिट का आयात किया गया और लगभग 5 करोड़ इकाइयाँ निर्यात की गईं। मोबाइल फोन के निर्यात का मूल्य 2014-15 में 1,556 करोड़ रुपए और 2017-18 में सिर्फ 1,367 करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में 1,28,982 करोड़ रुपए हो गया है। 2014-15 में मोबाइल फोन का आयात मूल्‍य 48,609 करोड़ रुपए था और 2023-24 में घटकर सिर्फ 7,665 करोड़ रुपए रह गया है। भारत कई वर्षों से टेलीकॉम गियर का आयात कर रहा है, लेकिन मेक-इन-इंडिया और पीएलआई योजना के कारण संतुलन बदल गया है, जिससे देश में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के उपकरणों का उत्पादन हो रहा है।

 

मुख्य विशेषताएं टेलीकॉम (मोबाइल को छोड़कर):

 

उद्योग विकास: दूरसंचार उपकरण विनिर्माण क्षेत्र ने असाधारण वृद्धि का प्रदर्शन किया है, जिसमें पीएलआई कंपनियों द्वारा कुल बिक्री 50,000 करोड़ रुपए से अधिक है। वित्त वर्ष 2023-24 में पीएलआई लाभार्थी कंपनियों द्वारा दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों की बिक्री में आधार वर्ष (वित्त वर्ष 2019-20) की तुलना में 370 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

 

नौकरी के अवसर: इस पहल ने न केवल आर्थिक विकास में योगदान दिया है, बल्कि विनिर्माण से लेकर अनुसंधान और विकास तक मूल्य श्रृंखला में पर्याप्त रोजगार के अवसर उपलब्‍ध कराए हैं, जिससे 17,800 से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां और अनेक अप्रत्यक्ष नौकरियां उपलब्‍ध हुई हैं।

 

आयात निर्भरता में कमी: स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करके, पीएलआई योजना ने आयातित दूरसंचार उपकरणों पर देश की निर्भरता को काफी कम कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 60 प्रतिशत का आयात प्रतिस्थापन हुआ है और भारत एंटीना, जीपीओएन (गीगाबिट पैसिव ऑप्टिकल नेटवर्क) और सीपीई (ग्राहक परिसर उपकरण) में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। आयात निर्भरता कम करने से राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ी है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला है।

 

वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता: भारतीय विनिर्माता वैश्विक स्तर पर तेजी से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद पेश कर रहे हैं।

 

दूरसंचार उपकरणों में रेडियो, राउटर और नेटवर्क उपकरण जैसी जटिल वस्तुएं शामिल हैं। इसके अलावा, सरकार ने कंपनियों को 5G उपकरणों के उत्पादन के लिए लाभ उठाने की अनुमति दी है। भारत में विनिर्मित 5G टेलीकॉम उपकरण वर्तमान में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में निर्यात किए जा रहे हैं।

 

दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के लिए पीएलआई योजना और डीओटी और MeitY दोनों द्वारा संचालित अन्य संबंधित पहलों के परिणामस्वरूप दूरसंचार आयात और निर्यात के बीच का अंतर काफी कम हो गया है, सामान (दूरसंचार उपकरण और मोबाइल दोनों को मिलाकर) के कुल मूल्य के साथ वित्त वर्ष 2023-24 में 1.53 लाख करोड़ रुपए से अधिक के आयात के मुकाबले 1.49 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात हुआ।

 

वास्तव में, पिछले पांच वर्षों में, दूरसंचार (दूरसंचार उपकरण और मोबाइल दोनों को मिलाकर) में व्यापार घाटा 68,000 करोड़ रुपए से कम होकर 4,000 करोड़ रुपए हो गया है और दोनों पीएलआई योजनाएं भारतीय निर्माताओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने, मुख्य योग्यता और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र निवेश आकर्षित करने; दक्षता सुनिश्चित करने; पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं का स्‍तर ऊंचा उठाने; निर्यात बढ़ाने और भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला का अभिन्न अंग बनाने के लिए के लिए शुरू की गई हैं। इसने भारत के निर्यात बास्‍केट को पारंपरिक वस्तुओं से उच्च मूल्य वर्धित उत्पादों में बदल दिया है।

 

आईटी हार्डवेयर विनिर्माण

नए समझौता ज्ञापन ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र को बढ़ावा देते हुए एचपी लैपटॉप, डेस्कटॉप और ऑल-इन-वन पीसी के स्थानीय विनिर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। पैडगेट जनवरी 2025 से चेन्नई में अपनी 3 लाख वर्ग फुट की इकाई में सालाना 20 लाख एचपी लैपटॉप, डेस्कटॉप और पीसी का निर्माण करेगा जिससे 1,500 प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्‍ध होंगे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मई 2023 में 17,000 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ आईटी हार्डवेयर के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना 2.0 को मंजूरी दी। योजनाओं की मुख्य विशेषताएं हैं:

 

  • आईटी हार्डवेयर के लिए पीएलआई योजना 2.0 में लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पीसी, सर्वर और अल्ट्रा स्मॉल फॉर्म फैक्टर डिवाइस शामिल हैं
  • योजना का बजटीय परिव्यय 17,000 करोड़ रुपए है
  • इस योजना की अवधि 6 वर्ष है
  • अपेक्षित वृद्धिशील उत्पादन 3.35 लाख करोड़ रुपए है
  • अपेक्षित वृद्धिशील निवेश 2,430 करोड़ रुपए है
  • प्रत्याशित वृद्धिशील प्रत्यक्ष रोजगार 75,000 है

 

भारत सभी वैश्विक बड़ी कंपनियों के लिए विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला भागीदार के रूप में उभर रहा है। बड़ी आईटी हार्डवेयर कंपनियों ने भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने में गहरी रुचि दिखाई है। इसे देश के भीतर अच्छी मांग वाले मजबूत आईटी सेवा उद्योग द्वारा भी समर्थन प्राप्त है। अधिकांश बड़ी कंपनियां भारत में स्थित इकाइयों से भारत के भीतर घरेलू बाजारों में आपूर्ति करना चाहती हैं और साथ ही भारत को निर्यात केंद्र बनाना चाहती हैं।

 

27 आईटी हार्डवेयर विनिर्माताओं के आवेदन को भी मंजूरी दे दी गई है। भारत में एसर, आसुस, डेल, एचपी, लेनोवो आदि प्रसिद्ध ब्रांडों के आईटी हार्डवेयर का विनिर्माण किया जा रहा है। योजना की अवधि के दौरान इस अनुमोदन के अपेक्षित परिणाम इस प्रकार हैं:

 

    • रोज़गार: कुल लगभग 02 लाख
    • लगभग 50,000 (प्रत्यक्ष) और लगभग 1.5 लाख (अप्रत्यक्ष)
    • आईटी हार्डवेयर उत्पादन का मूल्य: 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपए (42 बिलियन अमेरिकी डॉलर)
    • कंपनियों द्वारा निवेश: 3,000 करोड़ रुपए (360 मिलियन अमेरिकी डॉलर)

 

केंद्रीय बजट 2024-25

 

केंद्रीय बजट 2024-25 "ऊर्जा सुरक्षा" विषय पर केंद्रित है। वित्त मंत्री ने कहा, अंतरिम बजट में घोषणा के अनुरूप, 1 करोड़ घरों को हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए छत पर सौर संयंत्र स्थापित करने के लिए पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना शुरू की गई है। इस योजना ने 1.28 करोड़ से अधिक पंजीकरणों के साथ उल्लेखनीय प्रतिक्रिया उत्पन्न की है और 14 लाख आवदेनों से विकसित भारत के लिए ऊर्जा मिश्रण का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की उम्मीद है। बजट के तहत ऊर्जा सुरक्षा संबंधी की गई अन्‍य घोषणाएं हैं:-

  • रोजगार, विकास और पर्यावरणीय स्थिरता की अनिवार्यताओं को संतुलित करने के लिए 'ऊर्जा संक्रमण पथ' पर नीति दस्तावेज़ लाया जाएगा
  • बिजली भंडारण के लिए पंप भंडारण परियोजनाओं को बढ़ावा देने की नीति लाई जाएगी
  • सरकार भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर के अनुसंधान एवं विकास और परमाणु ऊर्जा के लिए नई प्रौद्योगिकियों के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करेगी और भारत लघु रिएक्टर स्थापित करेगी
  • उन्नत अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल (एयूएससी) तकनीक का उपयोग करके पूर्ण पैमाने पर 800 मेगावाट का वाणिज्यिक संयंत्र स्थापित करने के लिए एनटीपीसी और बीएचईएल के बीच संयुक्त उद्यम प्रस्तावित है
  • वर्तमान 'परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड' मोड से 'इंडियन कार्बन मार्केट' मोड में 'हार्ड टू एबेट' उद्योगों के संक्रमण के लिए उचित नियम लागू किए जाएंगे
  • सौर सेल और पैनल के निर्माण में उपयोग के लिए पूंजीगत वस्तुओं को सीमा शुल्क से छूट दी गई है

उद्योग 4.0

उद्योग 4.0 साइबर-भौतिक प्रणालियों, एआई और आईओटी प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करके विनिर्माण क्षेत्र में परिवर्तनकारी चरण को चिह्नित करता है। इसका लक्ष्य स्मार्ट फ़ैक्टरियाँ बनाना है जहाँ मशीनें, सिस्टम और मनुष्य वास्तविक समय में निर्बाध रूप से बातचीत करते हैं, जिससे उच्च दक्षता, न्यूनतम अपशिष्ट और अनुकूलित संसाधन उपयोग होता है।

उद्योग 4.0 के तहत भारत का दृष्टिकोण विशेष रूप से समर्थ उद्योग भारत 4.0 पहल के माध्यम से भारतीय उद्योगों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने पर केंद्रित है। इसके लिए लागत-कुशल, मानव-सशक्त स्मार्ट प्रौद्योगिकियों के साथ उच्च स्वचालन को संतुलित बनाया जाएगा।  C4i4 लैब पुणे जैसे केंद्रों की स्थापना भारतीय विनिर्माण की वैश्विक स्थिति को बढ़ावा देने के लिए नवाचार और इन उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने का समर्थन करती है।

 

निष्कर्ष

 

सरकार के मजबूत समर्थन, अंतरराष्ट्रीय भागीदारी और इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा, सेमीकंडक्टर मिशन जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक निवेश का संयोजन भारत को टिकाऊ और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए शक्तिशाली केंद्र में बदल रहा है। जैसे-जैसे देश अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत कर रहा है और नवाचार-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे रहा है, यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। आयात पर निर्भरता कम करके, घरेलू प्रतिभा का पोषण करके और नए जमाने की प्रौद्योगिकियों में आगे बढ़कर, भारत दीर्घकालिक विकास, निर्यात में वृद्धि और रोजगार सृजन के लिए मंच तैयार कर रहा है। इससे प्रौद्योगिकी और विनिर्माण के भविष्य में अपना नेतृत्व सुनिश्चित हो रहा है।

 

संदर्भ

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Economic Survey 2023-2024

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संतोष कुमार / सरला मीणा / ऋतु कटारिया / अश्वथी नायर

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