‘खोया पाया’: 56वें आईएफएफआई में प्रदर्शित परित्याग और प्रेम की एक हृदय विदारक कहानी
बड़ों के सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जाएगा : मुख्य अभिनेत्री सीमा बिस्वास
चुनौती और रोमांच का अनूठा मिश्रण: खोया-पाया फिल्म की टीम ने कुंभ मेले में फिल्मांकन के बारे में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं
कुंभ मेले की भारी भीड़ में बेसहारा छोड़ दी गई एक मां पर केन्द्रित निर्देशक आशुतोष सिंह की पहली फिल्म “खोया पाया” आज 56वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में विशेष रूप से प्रदर्शित की गई। यह फिल्म एक ऐसे बुजुर्ग मां की कहानी है, जिसे उसका बेटा छोड़ देता है और अप्रत्याशित रूप से अजनबी लोग उसके साथी बन जाते हैं। अंत में, वह पछतावे से भरे उस बच्चे को पहचानने से इनकार कर देती है जिसने उसे धोखा दिया था।
खचाखच भरे थिएटर में इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद, इसके निर्माता, निर्देशक और मुख्य कलाकारों ने महोत्सव स्थल पर आयोजित पीआईबी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया से बातचीत की।
मां की भूमिका निभाने वाली प्रसिद्ध अभिनेत्री सीमा बिस्वास ने इस फिल्म में वृद्ध माता-पिता के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के विषय पर भावपूर्ण तरीके से बात की। इस मुद्दे को बेहद व्यापक बताते हुए, उन्होंने कहा, “मैंने कई ऐसे परिवार देखे हैं जहां वृद्ध माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। सिनेमा एक सशक्त माध्यम है जो समाज को प्रभावित कर सकता है। वृद्ध माता-पिता के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता के बारे में बात करना ज़रूरी है।” उनका मानना है कि भारत जैसे समाज में, जहां पारंपरिक रूप से तीन पीढ़ियां एक साथ रहती हैं, बच्चों द्वारा वृद्ध माता-पिता को अकेला छोड़ने की घटनाएं अधिक नहीं होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इस फिल्म की पटकथा ने उन्हें तुरंत प्रभावित किया और कहा, “अगर मैं उस मां की जगह होती जिसे छोड़ दिया गया था, तो मैं वापस नहीं आती। आत्मसम्मान जरूरी है; सम्मान के बिना, पारिवारिक बंधन अर्थहीन हो जाते हैं।” प्रसिद्ध अभिनेत्री ने यह भी कहा कि शूटिंग से पहले आयोजित किए गए विभिन्न कार्यशालाओं ने टीम को किरदारों को बेहतर ढंग से समझने और फिल्मांकन के दौरान “पात्रों को जीने” में मदद की।
बेटे की भूमिका निभाने वाले अभिनेता चंदन रॉय सान्याल ने कहा कि अभिनेताओं को अक्सर ऐसे किरदार निभाने पड़ते हैं, जो सामाजिक रूप से अस्वीकार्य होते हैं। उन्हें लगता है कि यह फिल्म बेहद प्रासंगिक है क्योंकि कुछ लोग वृद्ध माता-पिता को बोझ समझते हैं, जबकि भारत में माताओं की पूजा की जाती है। उन्होंने इस बात को समझते हुए खलनायकी वाले अंदाज के बिना इस भूमिका को निभाया कि दोषपूर्ण व्यक्तियों के भी अपने आंतरिक औचित्य होते हैं। उनके किरदार का अपराधबोध का दर्दनाक एहसास इस फिल्म का एक अहम भावनात्मक पहलू है।
अभिनेत्री अंजलि पाटिल ने कहा कि उन्होंने कहानी की सरलता के कारण इस फिल्म में यह भूमिका स्वीकार की, जोकि समकालीन सिनेमा में दुर्लभ है और उन्हें महान अभिनेत्री सीमा बिस्वास के साथ काम करने एवं उनसे सीखने का मौका मिला।
इस फिल्म के निर्माता हेमांशु राय ने इस बात को याद किया कि एक वर्ष पहले उन्होंने गोवा में इसकी पटकथा सुनी थी और वे तुरंत इसकी ताकत से प्रभावित हो गए थे। उन्होंने कहा कि कहानी का सार उनके दिल को छू गया क्योंकि यह एक मां और बेटे के सबसे मजबूत रिश्ते के बारे में है, हालांकि इसका एक स्याह पक्ष भी है। उनका मानना है कि यह एक बेहद सशक्त कहानी है।
नवोदित निर्देशक आशुतोष सिंह ने महाकुंभ में उमड़ी भीड़ के बीच शूटिंग की। यह इलाका उनका गांव भी है! करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच, महाकुंभ में 10-12 दिनों में शूटिंग पूरी की गई। उन्होंने कहा, “इस फिल्म का रंग महाकुंभ में ही देखने को मिला।” उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण को भी रेखांकित किया - डिजिटल उपकरणों से लैस श्रद्धालु, जीवंत लोक परिवेश और दृश्यात्मक अराजकता जिसने फिल्म की बनावट को आकार दिया। इन सबकी झलक इस फिल्म में दिखाई दी।
उन्होंने बताया कि कुंभ में शूटिंग करना सबसे कठिन काम था। हालांकि, अपने गांव में शूटिंग करना मजेदार रहा। उन्होंने यह भी कहा, “इस फिल्म की शूटिंग एक फिल्म स्कूल के प्रशिक्षण जैसी थी, जहां इतने दमदार कलाकार मौजूद थे। किसी भी फिल्म के लिए अच्छी कास्ट का होना जरूरी है।”
कुंभ जैसे वास्तविक स्थान पर शूटिंग के दौरान भीड़ से निपटने के बारे में और जानकारी देते हुए, आशुतोष ने बताया कि पूरी कास्ट और क्रू ने स्थानीय लोगों की तरह ही कपड़े पहने थे और किसी ने भी कोई भड़कीला “बम्बईया कपड़ा” नहीं पहना था। इस तरह, वे आसानी से भीड़ का हिस्सा बन गए! उन्होंने संगम में डुबकी भी लगाई। निर्देशक ने बताया कि चूंकि कई लोग वीडियो कैमरे साथ रखते हैं, इसलिए शूटिंग उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए वे एकदम अलग नहीं दिख पाए। उन्होंने आगे कहा कि बस यही चिंता थी कि किरदार भीड़ में अलग दिखें।

मुख्य कलाकारों ने यह भी बताया कि कुंभ में शूटिंग करना जितना अनूठा और चुनौतीपूर्ण था, उतना ही रोमांचक और रोचक भी। अंजलि पाटिल को कुंभ में शूटिंग न कर पाने का मलाल था क्योंकि उनके दृश्यों में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं था। सीमा बिस्वास ने कहा, “भीड़ ने शूटिंग की प्रक्रिया में ज्यादा बाधा नहीं डाली और लोग बेहद मित्रवत और सहयोगी थे। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि चारों ओर आध्यात्मिक भावनाएं व्याप्त थीं।”

आईएफएफआई के बारे में
वर्ष 1952 में शुरू किया गया, भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) दक्षिण एशिया में सिनेमा के सबसे पुराने और सबसे बड़े उत्सव के रूप में प्रतिष्ठित है। भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) और गोवा सरकार के एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा (ईएसजी), द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, यह महोत्सव एक ऐसे वैश्विक सिनेमाई महाशक्ति के रूप में विकसित हुआ है – जहां जीर्णोद्धार की प्रक्रिया के बाद वापस हासिल गई पुरानी फिल्मों (क्लासिक्स) और साहसिक प्रयोगों का संगम होता है और दिग्गज हस्तियां तथा निडर नवोदित प्रतिभाएं एक साथ मंच साझा करती हैं। आईएफएफआई को वास्तव में चमकदार बनाने वाला अद्भुत मिश्रण है – अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं, सांस्कृतिक प्रदर्शन, मास्टरक्लास, श्रद्धांजलि और उच्च ऊर्जा वाला वेव्स फिल्म बाजार, जहां विचार, सौदे और सहयोग उड़ान भरते हैं। 20 से 28 नवंबर तक गोवा की मनोरम तटीय पृष्ठभूमि में आयोजित, आईएफएफआई 56वां संस्करण विभिन्न भाषाओं, शैलियों, नवाचारों और आवाजों की एक चमकदार श्रृंखला का वादा करता है – जोकि वैश्विक मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक मनमोहक उत्सव है।
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आईएफएफआई वेबसाइट: https://www.iffigoa.org/
पीआईबी की आईएफएफआई माइक्रोसाइट: https://www.pib.gov.in/iffi/56/
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