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देह की गुप्‍त भाषा का रहस्य: श्‍वास-भावना यात्रा से इफ़्फी में विनय कुमार ने किया दर्शकों को मंत्रमुग्ध


एक मास्टरक्लास जहाँ प्राचीन ज्ञान का संगम आधुनिक वास्तविकताओं से होता है

दिलचस्‍प अभ्यास और प्रस्तुतियाँ दर्शकों को इस अनुभव के भीतर खींच ले जाती हैं

‘ब्रैथ एण्‍ड इमोशन: अ मास्‍टरक्‍लास ऑन पर्फौर्मेंसिस’, जिसका नेतृत्व आदिशक्ति के थिएटर कलाकार विनय कुमार के.जे. ने किया, इस वर्ष इफ़्फी के सबसे अधिक बौद्धिक रूप से उत्‍प्रेरक और बांधे रखने वाले सत्रों में से एक बनकर उभरा। दिवंगत थिएटर गुरु वीणापाणि चावला के शिष्य और आदिशक्ति लेबोरेटरी फॉर थिएटर आर्ट्स रिसर्च के कलात्मक निदेशक विनय ने मंच पर दृढ़ता, परंपरा और सन्निहित ज्ञान का एक अनोखा संगम प्रस्तुत किया।

सत्र शुरू होने से पहले, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव श्री प्रभात ने वक्ता का सम्मान किया। इसके बाद जो हुआ, वह मंच और दर्शकों की सीमाओं से कहीं आगे निकल आने वाली एक मास्टरक्लास थी। विनय बार-बार मंच से उतरकर सीधे दर्शकों के बीच गए—प्रश्न पूछे, ध्यान से सुना और पूरे सभागार को एक साझा अन्वेषण-स्थल में बदल दिया।

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विनय ने सत्र की शुरुआत दर्शकों को भावना की मूल अवधारणा पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करके की। उन्होंने कहा कि लोग अक्सर एक ही छत के नीचे रहते हैं, लेकिन एक-दूसरे की भावनात्मक दुनिया से अनजान बने रहते हैं। दशकों पहले जो चीज़ें भावनाएँ उत्पन्न करती थीं, हो सकता है आज वे प्रासंगिक भी न हों — विशेषकर इसलिए, क्योंकि भावनाएँ समय, संदर्भ और सांस्कृतिक संरचना के साथ विकसित होती रहती हैं।

इसके बाद उन्होंने भावनाओं को महसूस और व्यक्त करने में देह की भूमिका पर बात की, यह बताते हुए कि हमारी कोई भी शारीरिक गतिविधि पूरी तरह से सहज नहीं होती। सामाजिक परिवेश से लेकर सार्वजनिक स्थानों तक, हमारी मुद्राएँ सीखे हुए व्यवहारों से आकार लेती हैं। इसलिए, भावना केवल भीतर महसूस नहीं की जाती बल्कि बाहर प्रदर्शित भी होती है — अक्सर बिना किसी सचेत जागरूकता के।

मास्टरक्लास के सबसे प्रभावशाली हिस्सों में से एक में, विनय ने तर्क दिया कि मानव कार्यप्रणाली का मुख्य नियंत्रक मस्तिष्क नहीं, बल्कि श्वास है। हर श्वास दबाव उत्पन्न करती है; दबाव में हर परिवर्तन मांसपेशियों को बदल देता है। उन्होंने स्‍पष्‍ट किया कि यही देहधर्म वह आधार बनाता है जिसे हम भावना कहते हैं। 72 बीपीएम की हृदय गति संतुलन का संकेत हो सकती है, जबकि इससे कम या अधिक गति अवसाद, भय या उत्तेजना को दर्शा सकती है। इस दृष्टिकोण से, भावना पहले एक शारीरिक प्रतिक्रिया बनती है — और उसके बाद एक मानसिक व्याख्या।

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विनय ने इन विचारों को प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराओं से जोड़ते हुए दर्शकों को याद दिलाया कि पहले समय में वैद्य, विशेषकर आयुर्वेद में, भावनाओं का अध्ययन प्रवाह और आंतरिक लय के माध्यम से करते थे। जबकि आज मनुष्य अभूतपूर्व भावनात्मक जटिलताओं के बीच जी रहा है — एक ऐसा भार जिसे वहन करने के लिए मानव शरीर स्वाभाविक रूप से निर्मित नहीं है।

इसी आधार पर आगे बढ़ते हुए, विनय दर्शकों को नवरस की ओर ले गए, और दिखाया कि प्रत्येक रस की एक विशिष्ट शारीरिक प्रतिक्रिया, श्वास की धुन और मांसपेशीय संरचना होती है। उन्होंने उन सूक्ष्म लयों पर भी प्रकाश डाला जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं — जैसे श्रोता की सिर हिलाने की क्रिया, वक्ता की हस्‍त-मुद्राएँ, और श्वास-आधारित संकेत जो भावनात्मक संप्रेषण को निर्देशित करते हैं।

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प्रदर्शनों, अभ्यासों और निरंतर संवाद के माध्यम से विनय कुमार ने ऐसी मास्टरक्लास प्रस्तुत की जो बौद्धिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ अनुभवजन्य रूप से सुदृढ़ भी थी। प्रतिभागी इस बात की गहरी समझ के साथ लौटे कि श्वास, देह और भावनाएँ कैसे एक साथ कार्य करती हैं — ऐसा ज्ञान, जो केवल कलाकारों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो मानव अस्तित्व को अधिक गहराई से समझना चाहते हैं।

इफ़्फी के बारे में

1952 में स्थापित, अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव भारत (IFFI) दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े सिनेमा उत्सव के रूप में प्रतिष्ठित है। राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम (NFDC), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार तथा एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा (ESG), गोवा सरकार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह महोत्सव अब एक वैश्विक सिनेमाई शक्ति में परिवर्तित हो चुका है—जहाँ बहाल की गई क्लासिक फ़िल्में साहसिक प्रयोगात्मक सिनेमा से मिलती हैं, और दिग्गज कलाकार निर्भीक नवोदित सृजकों के साथ मंच साझा करते हैं। IFFI की असली चमक इसकी विविधता में है—अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, मास्टरक्लास, श्रद्धांजलियाँ और ऊर्जावान WAVES फ़िल्म बाज़ार, जहाँ विचार, सौदे और सहयोग उड़ान भरते हैं। गोवा के मनमोहक समुद्री तटों की पृष्ठभूमि में 20–28 नवंबर तक आयोजित इस महोत्सव का 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवाचारों और आवाज़ों के एक शानदार संगम का वादा करता है— जो विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक शानदार उत्सव होगा।

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पीके/केसी/पीके


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