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55वें आईएफएफआई में आयोजित पहली पैनल चर्चा में महिला सुरक्षा और सिनेमा पर चर्चा की गई


फिल्म उद्योग पर्दे पर और पर्दे के पीछे महिलाओं का बेहतर तरीके से समर्थन कर सकता है और सशक्त बना सकता है: पैनलिस्ट

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) की पहली पैनल चर्चा आज महिला सुरक्षा और सिनेमा पर बातचीत के साथ शुरू हुई। प्रसिद्ध अभिनेत्री और निर्माता वाणी त्रिपाठी टिक्कू द्वारा संचालित इस सत्र में फिल्म निर्माता इम्तियाज अली, अभिनेत्री सुहासिनी मणिरत्नम, खुशबू सुंदर और भूमि पेडनेकर सहित पैनलिस्ट एक साथ आए। उन्होंने फिल्म उद्योग में महिलाओं की सुरक्षा, लैंगिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक मूल्यों को आकार देने में सिनेमा की भूमिका से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।

पैनलिस्टों ने व्यक्तिगत अनुभव और सोच साझा की कि कैसे फिल्म उद्योग महिलाओं को पर्दे पर और पर्दे के पीछे बेहतर तरीके से समर्थन कर सकता है और सशक्त बना सकता है। उन्होंने एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया जहां सिनेमा में महिलाएं उत्पीड़न या शोषण की चिंता किए बिना स्वतंत्र रूप से काम कर सके।

चर्चा का एक महत्वपूर्ण भाग इस बात पर केंद्रित था कि अगर कोई अपराधी पहचाना जाता है तो फिल्म सेट को किस तरह से पेश आना चाहिए। पैनलिस्ट इस बात पर सहमत हुए कि कार्यस्थल पर लैंगिक अन्याय के प्रति सहनशीलता अब स्वीकार्य नहीं है। सुहासिनी मणिरत्नम ने अपना अनुभव साझा किया कि कैसे पुरुष अभिनेता अक्सर सेट पर आते हैं और दृश्यों में बदलाव का सुझाव देते हैं ऐसा महिलाओं के साथ शायद ही कभी होता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को भी अपने दृश्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अपने प्रतिनिधित्व में निष्क्रिय भागीदार बनने के बजाय बातचीत शुरू करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि उद्योग के पेशेवरों के लिए क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले कार्य संबंधी नैतिकता को समझना आवश्यक है।

इम्तियाज अली ने एक ऐसा कार्य संस्कृति बनाने के महत्व पर जोर दिया जहां सेट पर महिलाएं केवल कला पर ध्यान केंद्रित कर सकें बिना इस बात की चिंता किए कि उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माता सेट पर लैंगिक अन्याय के प्रति सहनशील नहीं हो सकते हैं।

इस बातचीत में फिल्मों में महिलाओं के चित्रण और यह कैसे उनके लिए एक सुरक्षित स्थान के निर्माण को सीधे प्रभावित करता है इस पर भी चर्चा हुई। भूमि पेडनेकर ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं की गरिमा और उन्हें पर्दे पर जिस तरह से दिखाया जाता है वह एक सम्मानजनक और सशक्त वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

खुशबू सुंदर ने कहा कि उनका ध्यान मनोरंजक फिल्में बनाने पर है, लेकिन वह ऐसा जिम्मेदारी से करती हैं यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके काम में समानता और सम्मान के सिद्धांतों से समझौता न हो। पैनलिस्ट सामूहिक रूप से इस बात पर सहमत हुए कि महिलाओं को गरिमा के साथ चित्रित करना केवल चरित्र के बारे में नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर उद्योग के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करने के बारे में है।

चर्चा में दर्शकों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। दर्शकों ने सिनेमा में महिलाओं की उभरती भूमिका और कैसे उद्योग उनकी सुरक्षा या गरिमा से समझौता किए बिना उन्हें सफल होने के लिए जगह बनाना जारी रख सकता है इस बारे में सवाल पूछे।

आईएफएफआई 2024 के पहले पैनल के रूप में, इस बातचीत ने एक ऐसे उत्सव की शुरुआत की, जो न केवल सिनेमा की कला का उत्सव मनाता है बल्कि सभी के लिए एक सुरक्षित, अधिक समावेशी भविष्य को आकार देने में उद्योग की जिम्मेदारी की भी आलोचनात्मक जांच करता है।

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एमजी/केसी/पीपी/आर

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