ग्रामीण विकास मंत्रालय
वित्तीय वर्ष 2006-07 से लेकर वित्तीय वर्ष 2013-14 तक कुल 1660 करोड़ मानवदिवस सृजित किए गए थे, जबकि वित्तीय वर्ष 2014-15 से लेकर वित्तीय वर्ष 2024-25 तक कुल 2923 करोड़ मानवदिवस सृजित किए गए हैं
13.10 करोड़ सक्रिय श्रमिकों की आधार सीडिंग की जा चुकी है, जो कुल सक्रिय श्रमिकों (13.18 करोड़) की 99.3% है
APBS के तहत अस्वीकृत मामलों के भुगतान हेतु मनरेगासॉफ्ट में पहले से ही NACH भुगतान माध्यम (यानी खाता आधारित) के रूप में वैकल्पिक समाधान मौजूद है
वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान बजट आवंटन केवल बजट अनुमान चरण में 33,000 करोड़ रुपये था, जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपये है, जो योजना प्रारम्भ से लेकर अबतक सबसे अधिक है
वित्तीय वर्ष 2024-25 में न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर में 7% की वृद्धि हुई है
Posted On:
27 OCT 2024 2:04PM by PIB Delhi
ग्रामीण विकास मंत्रालय के संज्ञान में आया है कि मीडिया के कुछ वर्ग ने उद्धृत किया है कि चालू वर्ष की पहली छमाही में मनरेगा के तहत ग्रामीण रोजगार में 16% की गिरावट आई है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (महात्मा गांधी नरेगा) का उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे ऐसे प्रत्येक परिवार, जिसके 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के सदस्य, अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हों, उन्हें 100 दिन के रोजगार की गारंटी प्रदान करता है । यह ध्यान देने योग्य है कि वित्तीय वर्ष 2006-07 से लेकर वित्तीय वर्ष 2013-14 तक कुल 1660 करोड़ मानवदिवस सृजित किए गए थे, जबकि वित्तीय वर्ष 2014-15 से लेकर वित्तीय वर्ष 2024-25 तक कुल 2923 करोड़ मानवदिवस सृजित किए गए हैं। चूंकि मनरेगा एक मांग आधारित योजना है और वर्तमान वित्तीय वर्ष अभी भी चल रहा है, इसलिए मानवदिवस सृजन का सटीक लक्ष्य तय करना संभव नहीं है। हालांकि, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्थानीय जरूरतों के अनुसार श्रम बजट संशोधन के लिए प्रस्ताव भेज सकते हैं।
डीबीटी और आधार सीडिंग
महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के तहत श्रमिकों को मजदूरी भुगतान उनके खातों में किया जाता है। मजदूरों को मजदूरी भुगतान उनके आधार नंबर से जुड़ा हुआ बैंक खाता में होता है।
APBS एक प्रमुख सुधार प्रक्रिया है जिसके तहत महात्मा गांधी नरेगा के श्रमिकों को मजदूरी भुगतान सीधे बैंक खातों में किया जाता है। आधार आधारित भुगतान कई स्तरों में होने वाले भुगतान प्रक्रिया को कम करता है। APBS बेहतर लक्ष्यीकरण, भुगतान प्रणाली को बेहतर करने और भुगतान प्रक्रिया में होने वाले विलंब को कम करने, राशि के दुरुपयोग को रोकने, व्यय को नियंत्रित करने तथा जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देने को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
महात्मा गांधी नरेगा में APBS का प्रमुख लाभ मजदूरों द्वारा बैंक खातों को बार-बार बदलने के कारण भुगतान प्रक्रिया में होने वाले Rejection को कम करता है। दिनांक 26.10.2024 तक, 13.10 करोड़ सक्रिय श्रमिकों का आधार सीडिंग की जा चुकी है, जो कुल सक्रिय श्रमिकों (13.18 करोड़) का 99.3% है।
यह एक भ्रामक तर्क है कि यदि श्रमिकों के APBS खाता नहीं हैं, तो उनके काम की मांग दर्ज नहीं की जाती है और इस कारण से उनका मजदूरी भुगतान नहीं किया जाता है। वैसे सभी श्रमिक जिनके खाता APBS में नहीं है, उसके लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया है कि वे सभी बैंकों को मनरेगा मजदूरों के आधार नंबरों को NPCI पर जोड़ने के लिए जागरूक करें। इस संबंध में, यह भी सूचित किया जाता है कि यदि APBS के तहत किसी वैध कारण से भुगतान अस्वीकृत होता है तो वैसे मामले को NACH (नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस) के माध्यम से भुगतान किया जा सकता है। इसलिए APBS के तहत अस्वीकृत मामलों के भुगतान हेतु मनरेगासॉफ्ट में पहले से ही NACH भुगतान माध्यम (यानी खाता आधारित) के रूप में वैकल्पिक समाधान मौजूद है। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को इस बारे में लगातार जागरूक किया जा रहा है।
जॉब कार्डों का निरस्तीकरण
महात्मा गांधी नरेगा के तहत जॉब कार्ड सत्यापन एक सतत प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा आधार संख्या की सहायता से किया जाता है। जॉब कार्डों का उचित सत्यापन के बाद केवल तभी रद्द/हटाया जा सकता है, जब यह फर्जी जॉब कार्ड (गलत जॉब कार्ड)/डुप्लीकेट जॉब कार्ड/काम करने के लिए इच्छुक न होने वाला परिवार/ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया हो/जॉब कार्ड में एक ही व्यक्ति हो और उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो।
मनरेगासॉफ्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा हटाए गए जॉब कार्डों की कुल संख्या 102.20 लाख थी, जबकि चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 26.10.24 तक यह 32.28 लाख है। उसी दस्तावेज जिसका हवाला दिया गया है, उससे यह स्पष्ट है कि अप्रैल से सितंबर 2024 के बीच आंध्र प्रदेश राज्य में कुल 3.43 लाख नए श्रमिक जोड़े गए, जबकि 2.85 लाख श्रमिक हटाए गए, जिसके परिणामस्वरूप 58 हजार नए मजदूरों की वृद्धि हुई।
राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (एनएमएमएस) का महत्व
यह एक भ्रामक तर्क है कि जिन गांवों में मेट के पास NMMS ऐप को सपोर्ट करने वाले स्मार्टफोन नहीं हैं, वहां मनरेगा का काम नहीं किया जाता है। NMMS के माध्यम से मजदूरों की उपस्थिति ग्राम रोजगार सेवक या मेट द्वारा ली जा सकती है, जो कार्यस्थल पर आसानी से उपलब्ध हों। NMMS को लागू करने से राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में महात्मा गांधी नरेगा के कार्यान्वयन में पारदर्शिता बढ़ी है, इसमें सभी कार्यों (व्यक्तिगत लाभार्थी कार्यों को छोड़कर) के लिए NMMS ऐप के माध्यम से जियो-टैग की गई दो टाइम-स्टैम्प वाली तस्वीरों के साथ मजदूरों की वास्तविक समय की उपस्थिति दर्ज की जाती है, जिसे 1 जनवरी, 2023 से अनिवार्य कर दिया गया था। दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, सर्वर या तकनीकी समस्याओं के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए, जियो-स्टैम्प और टाइम-स्टैम्प वाली उपस्थिति तस्वीरों को ऑफ़लाइन मोड में कैप्चर किया जा सकता है और उसी दिन मोबाइल के नेटवर्क क्षेत्र में आने पर सर्वर पर अपलोड किया जा सकता है। ऐसे मामले जिसके कारण मजदूरों की उपस्थिति अपलोड नहीं की जा सकी, जिला कार्यक्रम समन्वयक (डीपीसी) को मैन्युअल उपस्थिति अपलोड करने हेतु मंजूरी देने के लिए अधिकृत किया गया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, 20.35 लाख कार्यस्थलों (95.66%) की मजदूरों की उपस्थिति दर्ज की गई है और पोर्टल पर अपलोड की गई है।
महात्मा गांधी नरेगा का बजट लेआउट
यह कहना गलत है कि मनरेगा के बजट और श्रमिकों के मजदूरी में लगातार कटौती की जा रही है। योजना के लिए बजट अनुमान में लगातार वृद्धि हो रही है। वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान बजट आवंटन केवल बजट अनुमान चरण में 33,000 करोड़ रुपये था, जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपये है, जो योजना प्रारम्भ से लेकर अबतक सबसे अधिक है। इसके अलावा, वित्तीय वर्ष 2024-25 में न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर में 7% की वृद्धि हुई है।
महात्मा गांधी नरेगा के कार्यान्वयन के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय, वित्त मंत्रालय से अतिरिक्त धनराशि की मांग किया जाता है, ताकि जमीनी स्तर पर काम की मांग को पूरा किया जा सके। महात्मा गांधी नरेगा के तहत, राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा भारत सरकार को निधि जारी करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। राज्यों को निधि जारी करना एक सतत प्रक्रिया है और केंद्र सरकार जमीनी स्तर पर काम की मांग के अनुसार योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्यों को धन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
श्रमिकों की मजदूरी
यह कहना कि श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान 15 दिनों की वैधानिक रूप से अनिवार्य अवधि (विलंब के लिए किसी भी मुआवजे के बिना) के भीतर नहीं किया जाता है, जो सही नहीं है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में 97% फंड ट्रांसफर ऑर्डर (FTO) समय पर जेनरेट किया गया है। इसके अतिरिक्त, 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अब तक विलंबित मजदूरी भुगतान भत्ता के नियम अधिसूचित किए गए हैं, जिसमें वित्तीय वर्ष 2024-25 में विलंबित मजदूरी भुगतान भत्ता के रूप में ₹5.27 लाख का भुगतान किया गया है।
2008 तक, महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित "न्यूनतम मजदूरी" के बराबर भुगतान किया जाता था। जनवरी 2009 में, केंद्र सरकार ने धारा 6(1) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को मनरेगा अधिनियम से अलग कर दिया तथा विभिन्न राज्यों में मनरेगा मजदूरों के लिए मजदूरी दरों को स्थिर कर दिया। तदनुसार, मंत्रालय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हर साल महात्मा गांधी नरेगा मजदूरी दर अधिसूचित करता है। महात्मा गांधी नरेगा मजदूरों को मुद्रास्फीति के विरुद्ध क्षतिपूर्ति देने के लिए, ग्रामीण विकास मंत्रालय कृषि श्रम के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) में परिवर्तन के आधार पर हर साल मजदूरी दर में संशोधन करता है। मजदूरी दर हर वित्तीय वर्ष की पहली अप्रैल से लागू होती है। केंद्र सरकार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अधिसूचित कृषि न्यूनतम मजदूरी दरों के आधार पर मजदूरी दर निर्धारित नहीं करती है। हालाँकि, प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मजदूरी दर से अधिक मजदूरी प्रदान कर सकता है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में महात्मा गांधी नरेगा के लिए न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर ₹155 थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2024-25 में न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर ₹279 है।
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सु. सि.
(Release ID: 2068647)
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