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ट्रांसमिशन परियोजनाओं पर फाइनेंशियल एक्सप्रेस के लेख का जवाब (18 जुलाई, 2024)

ट्रांसमिशन विलंब के बारे में गलत जानकारी का खंडन

Posted On: 18 JUL 2024 5:45PM by PIB Bhopal

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के लेख "44,000 करोड़ रुपये की बिजली परियोजनाओं में देरी, आपूर्ति बढ़ाने की योजना पर पड़ सकता है असर" (18 जुलाई, 2024) में पावरग्रिड की ट्रांसमिशन परियोजनाओं के बारे में गलत जानकारी दी गई है।

रिकॉर्ड को स्पष्ट करना

पावरग्रिड द्वारा कार्यान्वित की जा रही 60,439 करोड़ रुपये की 50 परियोजनाओं में से लेख में गलत दावा किया गया है कि 29,300 करोड़ रुपये की 18 परियोजनाओं में औसतन 32 महीने का विलंब हो रहा है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) क्षेत्रों में ट्रांसमिशन लाइनों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के कारण केवल 6 परियोजनाओं (कुल मूल्य: 6,500 करोड़ रुपये) में देरी हो रही है। समस्या के समाधान के साथ ये परियोजनाएँ वर्ष के अंत तक पूरी होने की राह पर हैं। लेख में गलती से सिस्टम सुदृढ़ीकरण योजनाओं और परामर्श कार्यों को बिजली उत्पादन निकासी परियोजनाओं के रूप में शामिल किया गया है, जिससे देरी के आंकड़े बढ़ गए हैं।

परियोजनाओं पर स्पष्टीकरण

  1. एनईआर सिस्टम सुदृढ़ीकरण: उत्तर पूर्वी क्षेत्र और सिक्किम (15,829 करोड़ रुपये) में परियोजनाएँ बिजली उत्पादन निकासी के लिए नहीं, बल्कि सिस्टम सुदृढ़ीकरण के लिए हैं। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में 62 प्रतिशत से अधिक कार्य और शेष उत्तर पूर्वी राज्यों में 98 प्रतिशत से अधिक कार्य पहले ही चालू हो चुके हैं।
  2. रायगढ़-पुगलुर परियोजना: यह परियोजना 2020 से पूरी तरह चालू है।
  3. अन्य सिस्टम सुदृढ़ीकरण परियोजनाएँ: चार परियोजनाएँ (5,700 करोड़ रुपये) राइट ऑफ़ वे मुद्दों और सिस्टम शटडाउन के कारण विलंब हो रहा है।
  4. फाइबर ऑप्टिक केबल संस्थापन: यह परियोजना बिजली निकासी के लिए नहीं है। यद्पि यह लगभग पूरी हो चुकी है (99 प्रतिशत से अधिक)।
  • पावरग्रिड की ट्रांसमिशन परियोजनाओं में देरी से कोई नई उत्पादन क्षमता बाधित नहीं हुई है। पिछले पाँच वर्षों में लागू की गई सभी परियोजनाएँ बिजली उत्पादन शुरू होने से पहले ही पूरी हो गई थीं। ट्रांसमिशन योजनाओं की योजना भविष्य में मांग परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती है और हो सकता है कि कमीशनिंग के वर्ष से लाइनों को उनकी पूरी क्षमता तक लोड न किया जाए। अंतिम ट्रांसमिशन सिस्टम तैयार होने तक आवश्यकतानुसार बिजली की निकासी के लिए अंतरिम व्यवस्था भी की जाती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि आरई बिजली की निकासी में कोई बाधा न आए।
  • भारत में हम 24-36 महीनों के भीतर हाई वोल्टेज एसी ट्रांसमिशन सिस्टम और पांच वर्षों के भीतर एचवीडीसी सिस्टम को पूरा करने का लक्ष्य बना रहे हैं, जो अन्य देशों में ट्रांसमिशन योजनाओं के कार्यान्वयन में लगने वाले समय से बहुत कम है, जो सामान्य तौर पर 8-9 वर्षों से अधिक है।
  • परियोजनाओं को निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरा करना ट्रांसमिशन योजना को लागू करने वाले ट्रांसमिशन सिस्टम प्रदाता (टीएसपी) की एकमात्र जिम्मेदारी है। परियोजनाओं की प्रगति में बाधा डालने वाले टीएसपी द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों को हल करने के लिए समय-समय पर सभी प्रयास किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, शुल्क आधारित प्रतिस्पर्धी बोली (टीबीसीबी) परियोजनाओं के मामले में परियोजनाओं के पूरा होने में देरी के लिए टीएसपी पर उपयुक्त जुर्माना लगाया जाता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा खपत और पीक डिमांड दोनों में लगातार उच्च वृद्धि के बावजूद भारत ने अपनी बिजली की जरूरतों को सफलतापूर्वक पूरा किया है। राज्यों के परामर्श से विकसित की गई योजनाएं यह सुनिश्चित करने के लिए चल रही हैं कि वर्ष 2032 तक मांग को सफलतापूर्वक पूरा किया जाए।

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