पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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वर्षांत समीक्षा : पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मिशन लाइफ-लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट का शुभारम्भ किया

भारत ने सीओपी-27 में दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास रणनीति पेश की

यूएनएफसीसीसी सीओपी27 का ‘शर्म अल शेख इम्प्लीमेंटेशन प्लान’ शीर्षक वाले आवरण के फैसले से ‘जलवायु परिवर्तन के समाधान निकालने के प्रयासों के लिए टिकाऊ जीवन शैली और उपभोग एवं उत्पादन की एक टिकाऊ व्यवस्था की दिशा में बदलाव के महत्व’ का पता चलता है

भारत में फिर से आए चीता, यह नामीबिया से भारत के लिए आठ चीतों का पहला ऐतिहासिक जंगल से जंगल के लिए अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण है

भारत ने आजादी के 75वें वर्ष में एशिया का सबसे बड़ा रामसर स्थल नेटवर्क स्थापित किया

Posted On: 23 DEC 2022 4:11PM by PIB Delhi

वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व में टिकाऊ जीवनशैली को प्रोत्साहन देने के लिए मिशन लाइफ का शुभारम्भ किया। मिशन लाइफ के मुख्य तत्वों यानी जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए टिकाऊ जीवन शैली और उपभोग की स्थायी व्यवस्था का उल्लेख सीओपी 27 के शर्म अल शेख इम्प्लीमेंटेशन लान के मुख्य फैसले में किया गया था। प्रधानमंत्री द्वारा चीता को फिर से भारत लाना प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों में एक अन्य अहम मील का पत्थर था। वर्ष 2022 की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं :-

लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट- लाइफ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अक्टूबर-नवंबर, 2021 में ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 को संबोधित करते हुए दुनिया के सामने मिशन लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) का आह्वान किया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने 20 अक्टूबर, 2020 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटेरस की उपस्थिति में एकता नगर में मिशन लाइफ का शुभारम्भ किया था।

भारत ने लाइफ- लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट की विषय वस्तु को मुख्य धारा में लाने पर जोर के साथ सीओपी 27 में भाग लिया था। सीओपी 27 में भारतीय पैवेलियन में विभिन्न तरीकों- मॉडलों, ऑडियो विजुअल डिसप्ले, गतिविधियों और इससे इतर हुए 49 कार्यक्रमों में केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों, यूएन और बहुपक्षीय संगठनों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, थिंक टैंकों, निजी क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सिविल सोसायटी के संगठनों की भागीदारी के साथ लाइफ की विषय वस्तु पर जोर दिया गया था।

भारत ने लाइफ की मुहिम के साथ सभी देशों को जुड़ने के लिए आमंत्रित किया, जो जन समर्थक और इस पृथ्वी के हित में किया गया प्रयास है। इसका उद्देश्य दुनिया को प्राकृतिक संसाधनों का बिना सोचे समझे और व्यर्थ के उपभोग सचेत करके और सावधानी से एवं सोच समझकर उपयोग की राह पर ले जाना है। यूएनएफसीसीसी सीओपी27 के शर्म अल शेख इम्प्लीमेंटेशन प्लान शीर्षक वाले आवरण सेजलवायु परिवर्तन के समाधान निकालने के प्रयासों के लिए टिकाऊ जीवन शैली और उपभोग एवं उत्पादन की एक टिकाऊ व्यवस्था के लिए बदलाव के महत्वका पता चलता है।

 

लाइफ पर INDIA @ CoP27

सीओपी 27 में भारत ने लाइफ- लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट की विषय वस्तु पर एक पैवेलियन स्थापित की। लाइफ के संदेश के प्रसार के उद्देश्य से लाइफ पर आधारित कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

14 नवंबर, 2022 को लाइफ कार्यक्रमों के लिए समर्पित कर दिया गया था। ऐसा ही एक कार्यक्रम था एमओईएफसीसी और संयुक्त राष्ट्र (भारत में यूएन) की मेजबानी में आयोजित लाइफ की धारणा की समझ। इस कार्यक्रम में श्री भूपेंद्र यादव, मंत्री, ईएफसीसी (एचएमईएफसीसी); सुश्री इंगर एंडरसन, कार्यकारी सचिव, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी); श्री ओवैस सरमद, उप कार्यकारी सचिव, यूएनएफसीसीसी; लॉर्ड निकोलस स्टर्न, आईजी पटेल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड गवरमेंट, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स; और सुश्री उषा राव-मोनारी, एसोसिएट प्रशासक, यूएनडीपी और दुनिया भर के अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे थे। कार्यक्रम के दौरान, एमओईएफसीसी-यूएनडीपी संग्रह 'प्रयास से प्रभाव तक' का विमोचन किया गया।

उसी दिन, एचएमईएफसीसी ने भारत की दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास रणनीति का शुभारम्भ किया। यूएनएफसीसीसी में इस दस्तावेज को जमा करने के साथ, भारत दुनिया में करने वाले सिर्फ 60 देशों के समूह में शामिल हो गया।

एमओईएफसीसी और यूएनडीपी के तहत राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (एनएमएनएच) ने 18 से 23 वर्ष के बीच के युवाओं को स्थायी जीवन शैली के संदेशवाहक बनने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से संयुक्त रूप से "इन अवर लाइफटाइम" अभियान शुरू किया। इस अभियान में दुनिया भर के उन युवाओं को मान्यता देने की कल्पना की गई, जो लाइफ की अवधारणा के अनुरूप अहम जलवायु से जुड़े काम करने की पहल कर रहे हैं।

इंडिया पैवेलियन में हुए कार्यक्रम "परिवर्तनकारी हरित शिक्षा: भारत से अनुभव" (ट्रांसफर्मेटिव ग्रीन एजुकेशन : एक्सपीरिएंसेस फ्रॉम इंडिया) में केंद्रीय मंत्री ने भी भाग लिया। कार्यक्रम से इतर एनएमएनएच, एमओईएफसीसी और जीआईजेड, जीएमबीएच से जुड़े अधिकारियों और विशेषज्ञों के बीच हुए विचार-विमर्श में नई तकनीकों, साधनों और विधियों के जरिये बच्चों के बीच पर्यावरण के लिए टिकाऊ जीवनशैली को प्रोत्साहन देने की जरूरत को रेखांकित किया गया। एचएमईएफसीसी ने एनएमएनएच द्वारा एकत्रित टिकाऊ जीवन शैली पर भारतीय स्कूली बच्चों के चित्रों पर आधारित पुस्तक, कैलेंडर, पोस्टकार्ड, बुकमार्क और पोस्टर जारी किए। इस अवसर पर, माननीय मंत्री ने हरित परिवर्तनकारी शिक्षा पर एक लघु वीडियो भी जारी किया।

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने विद्युत मंत्रालय; आईआरईडीए; सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई); और काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के साथ मिलकर 8 नवंबर, 2022 को एक कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें भारत की जी20 अध्यक्षता के दौरान भारत की ऊर्जा पहुंच, परिवर्तन और दक्षता जैसी कई पहलों को लाइफ के सिद्धांतों के साथ जोड़ने के बारे में विचार-विमर्श किया।

8 नवंबर, 2022 को हिमाद्रि एनर्जी इंटरनेशनल, शक्ति सस्टेनेबिल एनर्जी फाउंडेशन और रिन्यू पावर सहित तीन संगठनों ने मिलकर लाइफ की विषय वस्तु पर आधारित ऊर्जा संक्रमण पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें निम्न-कार्बन प्रणाली की ओर संक्रमण पर जोर दिया गया, जिसमें पर्यावरणीय लाभों पर करीब से नजर डालने, आजीविका के न्यूनतम नुकसान के लिए नीतिगत हस्तक्षेप और एक कुशल कार्यबल तैयार करने की आवश्यकता के साथ ही सतर्क और महत्वाकांक्षी होने की आवश्यकता है। इसके निष्कर्षों में से एक निम्न-कार्बन लक्ष्यों को विकास से संबंधित लक्ष्यों के साथ एकीकृत करना था जो जलवायु लक्ष्यों के दीर्घकालिक निरंतर कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है।

सीईईडब्ल्यू ने 9 नवंबर, 2022 को विकासशील देशों में लाइफ मूवमेंट को सक्षम बनाने के लिए प्रौद्योगिकियों के वित्तपोषण पर एक दिलचस्प कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में विशिष्ट वित्तीय साधनों का प्रस्ताव किया गया। इसमें वे साधन भी शामिल हैं जो कई बाजारों में मानकीकृत समाधान प्रदान करते हैं और जो विशिष्ट विकासशील देशों में विशेष जोखिमों को दूर करने के लिए पहले से तैयार किए गए समाधान हैं।

10 नवंबर, 2022 को इंडिया पैवेलियन में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तु पैनल चर्चा में गांवों और विकास योजनाओं को जलवायु के प्रति लचीली लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (लाइफ) की ओर ले जाने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला गया। 11 नवंबर, 2022 को एसोचैम के कार्यक्रम में लाइफ के सिद्धांतों को शुद्ध-शून्य शहरी विकास में समावेशी विकास के तरीकों और समाधानों को आधार बनाया गया।

हरियाणा सरकार ने 15 नवंबर, 2022 को इस मंच पर आकर लाइफ के लिए उठाए गए कदमों के जरिये जलवायु लक्ष्यों को समर्थन देने से जुड़ी राज्य की पहलों को प्रदर्शित किया। 16 नवंबर, 2022 को कार्यक्रम से इतर टीईआरआरई पॉलिसी सेंटर ने पर्यावरण-पुनर्स्थापना और बदलती जीवन शैली के लिए विकल्प प्रस्तुत करने के साथ इससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान के महत्व को सामने रखा। उसी दिन आईसीएलईआई ने भारत में जलवायु अनुकूल विकास और शहरी साझेदारी के माध्यम से स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

सर्कुलर इकोनॉमी- अपशिष्ट से संपदा को प्रोत्साहन

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 15.08.2021 को 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भारत की मिशन सर्कुलर इकोनॉमी की पहल का उल्लेख किया। नीति आयोग ने विभिन्न श्रेणियों के अपशिष्टों के लिए सर्कुलर इकोनॉमी (सीई) कार्य योजनाओं के विकास के लिए 11 समितियों का गठन किया है।

सर्कुलर इकोनॉमी कार्ययोजनाओं के लिए अपशिष्ट की 10 श्रेणियों लिथियम ऑयन बैटरियां, ई-अपशिष्ट, विषाक्त और खतरनाक औद्योगिक अपशिष्ट, स्क्रैप धातु (लौह और अलौह), टायर और रबड़, वाहनों का जीवनकाल खत्म होना, जिप्सम, प्रयुक्त तेल, सोलर पैनल और नगरीय ठोस अपशिष्ट को अंतिम रूप दिया गया है। साथ ही इन पर काम जारी है। इन कार्ययोजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति पर संबंधित नोडल मंत्रालय समन्वय कायम कर रहे हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय टायर और रबड़ के लिए सर्कुलर इकोनॉमी कार्य योजना के लिए नोडल मंत्रालय और अन्य सीई कार्य योजनाओं के लिए हितधारक मंत्रालय है।

अपशिष्ट की चार श्रेणियों प्लास्टिक पैकेजिंग वेस्ट, बैटरी वेस्ट, ई-वेस्ट और वेस्ट टायर के लिए बाजार आधारित विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) सिद्धांत पर विनियमन अधिसूचित किए गए हैं।

  • 21.07.2022 को अपशिष्ट टायर के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर), 2022।
  • 16.02.2022 को प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए ईपीआर पर दिशानिर्देश।
  • 22.08.2022 को बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022।
  • 02.11.2022 को ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022।

प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए ईपीआर में, न्यूनतम पुनर्चक्रीकरण, पुनर्नवीकृत सामग्री का न्यूनतम उपयोग और चिह्नित आकार में कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग को अनिवार्य बनाने को लक्षित किया गया है। ईपीआर सिद्धांत को शामिल करने वाले नियमों में न्यूनतम पुनर्चक्रीकरण, न्यूनतम रिकवरी प्रतिशत और पुनर्नवीनीकरण सामग्री के न्यूनतम उपयोग के विभिन्न लक्ष्यों को शुरू करने के लिए समय दिया गया है। इन नियमों को इसी वर्ष अधिसूचित/संशोधित किया गया है। एक निश्चित समय में इसका उपयुक्त स्तर हासिल हो जाएगा। ऐसा उद्योग के साथ-साथ पुनर्चक्रणकर्ताओं को प्रणालियों और पुनर्चक्रण इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए समय प्रदान करने के लिए किया गया है। जीवनकाल समाप्ति वाले वाहनों के लिए ईपीआर लाने के उद्देश्य से विनियमों का विकास किया जा रहा है।

अपशिष्ट से संपदा मिशन/ मिशन सर्कुलर इकोनॉमी से नए कारोबारी मॉडल तैयार होने के साथ ही रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। इससे अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण भी होगा। अपशिष्ट से संपदा मिशन को सफल बनाने के लिए उद्योग जगत की भागीदारी महत्वपूर्ण है। इसके परिणाम स्वरूप बिना सोचे-समझे उपभोग से सावधानी पूर्वक उपयोग की ओर रुझान बढ़ेगा और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए मिशन लाइफ-लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट के विजन को हासिल करने में मदद मिलेगी।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी)

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन (एमओईएफएंडसीसी) 10 जनवरी, 2019 से भारत में एक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) कार्यान्वित कर रहा है, जो शहर और क्षेत्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए कार्यों की रूपरेखा तैयार करने वाली राष्ट्रीय स्तर की रणनीति है। शहरी कार्य योजना में वर्णित कार्यों के कार्यान्वयन के लिए एनसीएपी और एक्सवीएफसी के तहत अभी तक 131 शहरों के लिए 7,100 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। एक्सवीएफसी के तहत वित्त वर्ष 2021-22 से 2025-26 के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से शहर वार, वर्ष वार लक्ष्यों को तय करते हुए एनसीएपी शहरों के साथ-साथ एमओईएफएंडसीसी, राज्य सरकार शहरी स्थानीय निकायों ने इन एमओयू पर सीपीसीबी, एसपीसीबी और यूएलबी और 42 एमपीसी के जरिये हस्ताक्षर किए।

एनसीएपी के तहत 7 संबंधित मंत्रालयों ने राष्ट्रीय स्तर की योजना : एक समग्र कार्ययोजना तैयार की है। इसमें भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों की कार्ययोजनाएं शामिल हैं। इसमें विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों की योजनाओं/ कार्यक्रमों का एकीकरण शामिल है।

राज्य कार्य योजनाओं पर अभी काम जारी है और अभी तक 10 राज्यों/यूटी से प्राप्त हुई हैं। शहरी कार्य योजनाएं शहरों द्वारा उन गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए तैयार की जाती हैं जो वायु गुणवत्ता में सुधार में सहायता करती हैं। क्षमता निर्माण और शहर की कार्य योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए 88 प्रतिष्ठित संस्थानों (आईओआर) को 131 एनएसी को सौंपे गए हैं।

एमओईएफएंडसीसी राज्य (अभी तक 3 क्षेत्रीय कार्यशालाओं और ओडिशा में नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन वायु का आयोजन किया गया है) में हितधारकों को संवेदनशील बनाने, ज्ञान की साझेदारी और क्षमता निर्माण के लिए क्षेत्रीय कार्यशालाएं कराई हैं।

एमओईएफएंडसीसी ने 7 सितंबर 2021 को नीले आसमान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ हवा दिवस के अवसर पर एनसीएपी के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक पोर्टल प्राण का भी शुभारम्भ किया और 2022 में क्षमता निर्माण और सार्वजनिक पहुंच के लिए दिशानिर्देशों पर ब्रोशर/पुस्तिकाएं जारी की हैं।

एनसीएपी के तहत धन जारी करने के लिए दिशानिर्देश, 15वें वित्त आयोग के तहत अनुदान जारी करने के लिए परिचालन दिशानिर्देशों के साथ ही वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अपशिष्ट और बायोमास डंपिंग और जलाने से उत्सर्जन, सड़क की धूल को कम करने, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन, क्षमता निर्माण और निगरानी नेटवर्क आदि क्षेत्रों में विभिन्न शहरों द्वारा अपनाई गईं सर्वोत्तम प्रथाओं पर पुस्तिकाएं जारी की गईं।

एनसीएपी के तहत शहरों की रैंकिंग के लिए शहरों को स्वच्छ वायु सर्वेक्षण दिशानिर्देश जारी किए गए हैं- भुवनेश्वर, ओडिशा में वायु सम्मेलन के दौरान 3 दिसंबर 2022 को 9 शहरों को 5 लाख रुपये नकद पुरस्कार के साथ पुरस्कृत किया गया।

2017 की तुलना में 2021-22 के दौरान 95 शहरों में परिवेशी वायु गुणवत्ता में समग्र सुधार देखा गया है। 2019-20 में 18 शहरों का निर्धारित राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (पीएम10 60^जी/एम3 से कम) के भीतर पाया गया। यह संख्या वर्ष 2021-22 में बढ़कर 20 हो गई है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में जलवायु की दिशा में किए गए प्रयासों और भारत की अग्रणी भूमिका की सराहना की है

भारत सरकार ने एक विस्तृत विस्तृत रिपोर्ट जमा की है और न्यायालय के संज्ञान में यह भी लाया है कि मंत्रिमंडल ने भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को मंजूरी दे दी है। यह 2070 तक शुद्ध-शून्य स्थिति तक पहुंचने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कदम है।

न्यायालय के संज्ञान में यह भी लाया गया कि मंत्रिमंडल की मंजूरी प्रधानमंत्री के सीओपी-26 में जलवायु लक्ष्य में बढ़ोतरी के ऐलान के अनुरूप है और भारत अब 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद से उत्सर्जन की तीव्रता को 45 प्रतिशत तक घटाने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का सीओपी-26 –लाइफ यानी लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट पर्यावरण के लिए जीवन शैली में वैश्विक समुदाय के लिए प्रस्तावित आंदोलन और 2021-30 की अवधि के लिए स्वच्छ ऊर्जा के लिए देश में किए जा रहे सभी प्रयासों को न्यायालय के संज्ञान में लाया गया।

न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े कदमों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और आने वाली पीढ़ियों को बेहतर वातावरण प्रदान करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से किए गए गंभीर प्रयासों की सराहना की।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) का पेरिस समझौता

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) के पेरिस समझौत के अनुच्छेद 4, पैरा 19 में कहा गया है, "सभी पक्षों को दीर्घावधि में ग्रीनहाउस गैस के कम-उत्सर्जन पर आधारित विकास रणनीतियों को तैयार करने और संवाद करने का प्रयास करना चाहिए और अनुच्छेद 2 के आलोक में विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप अपनी सामान्य, लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

उक्त को ध्यान में रखते हुए, भारत ने यूएनएफसीसी के 27वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी-27) में अपनी दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास रणनीति का शुभारम्भ किया। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने इस रणनीति का शुभारम्भ किया, जो 6-18 नवंबर, 2022 के दौरान सीओपी 27 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे। इस विमोचन के साथ, भारत उन 60 से भी कम देशों की सूची में शामिल हो गया, जिन्होंने यूएनएफसीसीसी में अपने एलटी एलईडीएस जमा कर दिए हैं।

भारत का दृष्टिकोण, निम्नलिखित चार प्रमुख विचारों पर आधारित है, जो इसकी दीर्घकालिक कार्बन कम-उत्सर्जन विकास रणनीति को रेखांकित करते हैं: (1). भारत ने ग्लोबल वार्मिंग में बहुत कम योगदान दिया है, (2). दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा मौजूद होने के बावजूद, संचयी वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में इसका ऐतिहासिक योगदान बहुत कम रहा है, (3). भारत, विकास हेतु कम-कार्बन रणनीतियों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप सक्रिय रूप से इनका अनुसरण कर रहा है, (4). भारत को जलवायु के प्रति लचीला होने की जरूरत है।

एलटी-एलईडीएस का उद्देश्य अगस्त में घोषित भारत के जलवायु लक्ष्यों या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (एनडीसी) से आगे निकलना, 2030 तक गैर जीवाश्म स्रोतों से भारत की कुल 50 प्रतिशत स्थापित बिजली क्षमता हासिल करना और 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता 2005 के स्तरों से 45 प्रतिशत तक घटाना और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य सहित ग्लासगो में यूएनएफसीसीसी की 26वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी26) के भारत के पंचामृत (पांच अमृत तत्वों) पर आगे बढ़ना है। यह रोडमैप अपनी तरह के पहले अंतर-मंत्रालयी परामर्श और विशेषज्ञों और थिंक टैंकों के साथ भागीदारीपूर्ण प्रयास का परिणाम है।

अपने वर्तमान स्वरूप में, एलटी-एलईडीएस 2070 के लक्ष्य के लिए भारत के संक्रमण के लिए आवश्यक क्षेत्रवार बदलाव का रोडमैप प्रदान करता है। भारत का एलटी-एलईडीएस निम्न-कार्बन विकास के लिए सात प्रमुख बदलावों पर आधारित है। इनमें बिजली व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था, शहरीकरण, औद्योगिक व्यवस्था, सीओ2 हटाने, वानिकी, निम्न कार्बन विकास के आर्थिक और वित्तीय पहलू शामिल हैं।

भारत में चीता का आना

भारत के जंगल में आखिरी चीता 1947 में देखने को मिला था, जहां छत्तीसगढ़ राज्य के कोरिया जिले के साल (शोरिया रोबस्टा) जंगलों में तीन चीतों को गोली मार दी गई थी। भारत में चीतों के विलुप्त होने के मुख्य कारणों में जंगली जानवरों का बड़े पैमाने पर शिकार, इनाम और खेल के लिए शिकार, व्यापक निवास स्थान परिवर्तन शामिल हैं और 1952 में सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था।

भारत सरकार ने नामीबिया गणराज्य के साथ जी2जी परामर्श बैठकें शुरू कीं, जिनका चीता संरक्षण के लिए 20 जुलाई 2022 को दोनों देशों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के रूप में समापन हुआ। एमओयू पर हस्ताक्षर के बाद, एक ऐतिहासिक पहल के रूप में जंगल से जंगल अंतरमहाद्वीपीय हस्तांतरण में, आठ चीतों को 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से भारत भेजा गया था और भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इन्हें छोड़ा गया था। सभी आठ चीते खुराक, शरीर, व्यवहार, गतिविधि और समग्र स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छी स्थिति में हैं।

भारत में चीता की पेशकश का लक्ष्य व्यवहार्य चीता आबादी स्थापित करना है जिससे चीता को एक शीर्ष शिकारी के रूप में अपनी कार्यात्मक भूमिका निभाने की अनुमति मिलती है और चीता को उसकी ऐतिहासिक सीमा के भीतर विस्तार के लिए जगह मिलती है। इससे उसके वैश्विक संरक्षण प्रयासों में योगदान होगा।

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य खुले जंगल और सवाना घास के मैदान को बहाल करना है। इन पारिस्थितिक तंत्रों से जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं लाभान्वित होंगी। इसके अलावा, यह परियोजना स्थानीय सामुदायिक आजीविका को बढ़ाने के लिए पर्यावरण-विकास और पर्यावरण-पर्यटन का अवसर प्रदान करती है।

चीता परियोजना को आगे बढ़ाने के तौर-तरीकों पर पहले ही दक्षिण अफ्रीकी अधिकारियों के साथ चर्चा की जा चुकी है और जनवरी 2023 में 12 चीतों के दूसरे समूह को भारत स्थानांतरित किए जाने की संभावना है।

भारत ने आजादी के 75वें वर्ष में एशिया के सबसे बड़े रामसर स्थल नेटवर्क की स्थापना की

76वें स्वतंत्रा दिवस (15 अगस्त, 2022) की पूर्व संध्या पर, भारत ने रामसर कन्वेंशन के ढांचे के भीतर अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों की सूची में 10 आर्द्रभूमि जोड़ी हैं, जिससे अपनी आजादी के 75वें वर्ष में भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्या अविश्वसनीय रूप से 75 हो गई, जो एशिया में सबसे अधिक है।

भारत ने 1982 में रामसर कन्वेंशन की पुष्टि की थी। कोयलदेव राष्ट्रीय पार्क (राजस्थान में) और चिल्का (ओडिशा में) दो शुरुआती स्थल हैं, जिन्हें भारत सरकार ने रामसर सूची में शामिल किया था। 1990 तक, इस सूची में सिर्फ चार नए स्थल शामिल किए गए थे और इसके बाद दो दशकों में 20 अन्य शामिल किए गए। 2014 के बाद रामसर साइट को एमओईएफसीसी से खासा नीतिगत प्रोत्साहन दिया गया है और 49 आर्द्रभूमि इस सूची में जोड़ी जा चुकी हैं। भारतीय रामसर स्थलों के नेटवर्क में वर्तमान में 1.33 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया है, जो देश के ज्ञात आर्द्रभूमि का लगभग 8 प्रतिशत है।

रामसर साइट्स आर्द्रभूमि का एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाती हैं जो वैश्विक जैविक विविधता के संरक्षण और उनके पारिस्थितिकी तंत्र घटकों, प्रक्रियाओं और सेवाओं के रखरखाव के माध्यम से मानव जीवन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। कन्वेंशन से निर्धारित नौ मानदंडों में से कम से कम एक को पूरा करने से इन साइट्स के अंतर्राष्ट्रीय महत्व का संकेत मिलता है। 255.8 मिलियन हेक्टेयर में फैली 2,455 साइट्स के साथ, रामसर साइट्स दुनिया के सबसे बड़े संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क का प्रतिनिधित्व करती हैं।

भारत में रामसर साइट्स खासी विविधतापूर्ण हैं। रामसर साइट जैविक विविधता में जो योगदान करते हैं, उस पर शायद ही कभी जोर दिया जा सका है। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा 42 भारतीय रामसर स्थलों की जीव विविधता का हालिया संकलन 6200 प्रजातियों को सूचीबद्ध करता है। कई जीव समूहों के लिए, इन आर्द्रभूमियों की ज्ञात विविधता (उदाहरण के लिए, दर्ज स्तनधारी प्रजातियों में से एक तिहाई से अधिक, सरीसृपों का पांचवां हिस्सा और लगभग दो तिहाई ज्ञात पक्षी प्रजातियां) की अहम हिस्सेदारी है। सबसे छोटा रामसर स्थल क्षेत्र (वेम्बन्नूर) सिर्फ 19.75 हेक्टेयर का है, जबकि सबसे बड़ा सुंदरबन 0.42 मिलियन हेक्टेयर में फैला है।

रामसर स्थल रामसर कन्वेंशन के तीन स्तम्भों में से एक है, जबकि अन्य दो आर्द्रभूमियों के समझदारी पूर्ण उपयोग की दिशा में काम किया जा रहा है और सीमापार आर्द्रभूमियों, साझा आर्द्रभूमियों और साझा प्रजातियों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग कर रहे हैं। रामसर कन्वेंशन के आर्द्रभूमियों के स्तम्भ का समझदारीपूर्ण उपयोग प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए नासमझ और विनाशकारी खपत के बजाय सावधानी से और रचनात्मक उपयोगकी दिशा में लॉन्च किए गए अंतर्राष्ट्रीय जनांदोलन लाइफ के बहुत अच्छी तरह से पंक्तिबद्ध है।

1986 से एमओईएफसीसी रामसर स्थलों और अन्य प्राथमिक आर्द्रभूमियों के लिए एकीकृत प्रबंधन योजनाओं की तैयारी और क्रियान्वयन में राज्य सरकारों को सहायता के लिए एक राष्ट्रीय योजना (इसे वर्तमान में जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना) लागू कर रहा है। रामसर स्थलों को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत कानूनी संरक्षण मिला हुआ है। प्रत्येक रामसर साइट के लिए एक प्रबंधन योजना की आवश्यकता होती है जो समझदारीपूर्ण उपयोग की रूपरेखा तैयार करती है। ऐसी प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने के लिए मंत्रालय ने एक नैदानिक दृष्टिकोण सुझाया है। जून 2022 में, मंत्रालय ने देश में आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए "समग्र समाज" दृष्टिकोण और शासन ढांचे को रेखांकित करते हुए 'सहभागिता दिशानिर्देश' भी तैयार किए हैं।

चिह्नित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर 1 जुलाई 2022 से प्रतिबंध और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन

भारत ने एकल उपयोग वाली ऐसी प्लास्टिक को बंद करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए ठोस कदम उठाए हैं, जो नष्ट नहीं होती है और इसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अप्रबंधित और बिखरे हुए प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए सरकार की तरफ से अपनाई गई रणनीति के दो स्तंभ हैं - एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध, जिनमें कूड़ा बनने की अधिक संभावना और कम उपयोगिता है, और प्लास्टिक पैकेजिंग पर उत्पादक पर को ज्यादा जिम्मेदारी देना।

देश ने एकल उपयोग वाली प्लास्टिक को खत्म करने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया है। 1 जुलाई 2022 से चिन्हित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस प्रतिबंध को 12 अगस्त 2021 को अधिसूचित किया गया था।

प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में ये वस्तुएं शामिल हैं- प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, सजावट के लिए पॉलीस्टाइरिन (थर्मोकोल), प्लास्टिक की प्लेट, कप, गिलास, कटलरी, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बों को रैप या पैक करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, स्टिरर। प्लास्टिक के कैरी बैग की मोटाई 75 माइक्रोन (30.09.2011) और 120 माइक्रोन (31.12.2022) तक बढ़ा दी गई।

प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विकल्पों की पेशकश और उपयोग से रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं, नवाचार को बढ़ावा मिला है और नए व्यापार मॉडल का विकास हुआ है। एमएसएमई क्षेत्र में पर्यावरण के अनुकूल सामग्री के साथ विकल्पों के निर्माण से आत्मनिर्भर भारत के विकास में और मदद मिलेगी।

भारत ने 2019 में एकल उपयोग प्लास्टिक के कारण होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे 2019 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा की चौथी बैठक में स्वीकार कर लिया गया था।

एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के विकल्प विकसित करने के उद्देश्य से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्टार्टअप्स और महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के चात्रों के लिए इंडिया प्लास्टिक चैलेंज- हैकाथन 2021 का आयोजन किया था। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के विकल्पों के क्षेत्र में दो स्टार्टअप्स को पुरस्कृत किया गया। पराली से थर्मोकोल का पूर्ण रूप से नष्ट होने के योग्य विकल्प विकसित किया गया है। इस नवाचार में पराली का उपयोग किया जाएगा और यह थर्मोकोल की जगह भी लेगी। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के नवीन विकल्प के रूप में समुद्री शैवाल से पैकेजिंग सामग्री विकसित की गई है।

एकल उपयोग वस्तुओं के लिए इको - विकल्प पर राष्ट्रीय प्रदर्शनी और स्टार्टअप 2022 सम्मेलन चेन्नई में 26 और 27 सितंबर, 2022 को आयोजित किया गया। एक्सपो में देश भर से इको-विकल्प के 150 से अधिक निर्माताओं ने भाग लिया। इको-विकल्प में प्राकृतिक रेशों से बनी वस्‍तुएं जैसे कॉयर, खोई, चावल और गेहूं की भूसी, पौधे और कृषि पराली, केला और सुपारी, जूट और कपड़ा शामिल थे।

आम जनता के बीच जागरूकता के प्रसार के लिए पर्यावरण के स्थायित्व और सुरक्षा के मस्कट के रूप में प्रकृति- पृथ्वी का संदेशवाहक लॉन्च किया गया। एनएसएस, एनसीसी और स्कूलों व महाविद्यालयों में 1,00,000 से ज्यादा इको-क्लब के द्वारा एकल उपयोग वाली प्लास्टिक को खत्म करने के लिए एक जनांदोलन विकसित किया जा रहा है। पुनीत सागर और स्वच्छ सागर सुरक्षित सागर कैंपेन ने सुरक्षित तटों और किनारों के रखरखाव में सामूहिक रूप से काम करने के महत्व को प्रदर्शित किया है।

प्लास्टिक पैकेजिंग पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व के लिए तैयार दिशानिर्देश खास हैं और इससे प्लास्टिक पैकेजिंग पर ईपीआर कार्यान्वयन के लिए दुनिया का सबसे बड़ा ढांचा स्थापित हुआ है। प्लास्टिक पैकेजिंग पर ईपीआर के कार्यान्वयन से देश में बिखरे और अप्रबंधित प्लास्टिक कचरे में कमी आएगी, प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा, प्लास्टिक के नए विकल्पों के विकास को बढ़ावा मिलेगा और टिकाऊ प्लास्टिक पैकेजिंग की दिशा में नए व्यापार मॉडल का विकास होगा। ईपीआर ढांचे को व्यापार सुगमता सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।

प्लास्टिक पैकेजिंग में ईपीआर के लिए दिशानिर्देश एक पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा देते हैं जो एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के नासमझ और विनाशकारी उपभोगके बजाय सख्त प्लास्टिक पैकेजिंग और टिकाऊ प्लास्टिक पैकेजिंग के पुन: उपयोग के माध्यम से सावधानीपूर्वक उपभोग पर केंद्रित है। प्लास्टिक पैकेजिंग में ईपीआर के दिशानिर्देश प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री के निर्माण में पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक सामग्री के उपयोग के माध्यम से पैकेजिंग में प्लास्टिक को कम करने पर जोर देते हैं।

भारत के बाघ अभयारण्यों को टीएक्स2 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार

एक बाघ संरक्षण उत्कृष्टता पुरस्कार टीएक्स2 का आयोजन कंजर्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (सीए | टीएस), फॉना एंड फ्लोरा इंटरनेशनल, ग्लोबल टाइगर फोरम, आईयूसीएन इंटिग्रेटेड टाइगर हैबीटेट कंजर्वेशन प्रोग्राम, पैंथेरा, यूएनडीपी लायंस शेयर, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी और डब्ल्यूडब्ल्यूई टाइगर्स एलाइव इनीशिएटिव नाम के अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के कंसोर्टियम ने किया है। यह पुरस्कार उन बाघ अभयारण्यों को दिया जाता है जिन्होंने 2010 से बाघों की संख्या को दोगुना करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है या संरक्षण उत्कृष्टता प्रदर्शित की है।

2010 में, 13 बाघ रेंज देशों ने 2022 तक जंगली बाघों की संख्या को दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इन देशों के बाघ अभयारण्य/ बाघ संरक्षण स्थल टीएक्स2 पुरस्कारों के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। भारत से, 2020 में, पीलीभीत टाइगर रिजर्व, उत्तर प्रदेश ने टीएक्स2 पुरस्कार जीता और मानस टाइगर रिजर्व, असम को सीमापार संरक्षण साझेदारी के लिए संरक्षण उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए चुना गया।

वर्ष 2021 का टीएक्स2 पुरस्कार सत्यामंगलम टाइगर रिजर्व, तमिलनाडु को मिला था। 2013 में टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित सत्यामंगलम में 2011 में 25 बाघ थे। सत्यमंगलम में बाघ संरक्षण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों द्वारा निरंतर प्रबंधन इनपुट (तकनीकी और वित्तीय दोनों) दिए जाने के परिणामस्वरूप बाघों की संख्या में 80 की बढ़ोतरी हुई है, जो बेहतर संरक्षण, बेहतर आवास प्रबंधन, वैज्ञानिक निगरानी और स्थानीय समुदायों की भागीदारी के कारण संभव हुआ है।

देश में 75,000 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले 53 टाइगर रिजर्व हैं। भारत में बाघों की वैश्विक आबादी की तुलना में 70% से अधिक बाघ हैं और उसे दुनिया में बाघों की सबसे बड़ी रेंज वाले देश का सम्मान प्राप्त है। बाघ पारिस्थितिकी तंत्र में शीर्ष परभक्षी हैं और बाघों के संरक्षण के परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहता है, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का संपूर्ण रूप से संरक्षण होता है।

 

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