विद्युत मंत्रालय
विद्युत मंत्रालय ने स्वच्छ ऊर्जा खपत को बढ़ावा देने के लिए ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन का प्रस्ताव रखा
प्रस्ताव में औद्योगिक इकाइयों द्वारा समग्र खपत में नवीकरणीय ऊर्जा के न्यूनतम हिस्से को परिभाषित करना शामिल है
संभावित संशोधनों पर सुझाव प्राप्त करने के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ चार हितधारक परामर्श बैठकें आयोजित की गईं
संशोधन में जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती से निपटने का भी प्रस्ताव किया गया है
Posted On:
30 OCT 2021 9:57AM by PIB Delhi
ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों और बदलते वैश्विक जलवायु परिदृश्य के बीच, भारत सरकार ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव करके नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल के उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए नए क्षेत्रों की पहचान की है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य उद्योग, निर्माण, परिवहन आदि जैसे क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा की मांग को बढ़ाना है।
विद्युत मंत्रालय ने हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद संशोधन तैयार किए हैं। प्रस्ताव में औद्योगिक इकाइयों या किसी प्रतिष्ठान द्वारा समग्र खपत में अक्षय ऊर्जा के न्यूनतम हिस्से को परिभाषित करना शामिल है। कार्बन बचत प्रमाण पत्र के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने का प्रावधान होगा। माननीय विद्युत मंत्री श्री आर.के. सिंह ने हाल ही में प्रस्तावित संशोधनों की समीक्षा की और संबंधित मंत्रालयों/विभागों और राज्य सरकारों से टिप्पणियां और सुझाव लेने का निर्देश दिया। तदनुसार, श्री आलोक कुमार, सचिव (विद्युत मंत्रालय) ने हितधारकों, मंत्रालयों और संगठनों के साथ 28 अक्टूबर, 2021 को ईसी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को अंतिम रूप देने के लिए एक बैठक आयोजित की थी।
अधिनियम की विस्तार से समीक्षा करने के लिए, संभावित संशोधनों पर चर्चा करने और सुझाव प्राप्त करने के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ चार हितधारक परामर्श बैठकें (एक राष्ट्रीय परामर्श कार्यशाला और तीन क्षेत्रीय परामर्श) आयोजित की गईं। इसके अलावा, प्रस्तावित संशोधनों में अधिनियम के तहत मूल रूप से परिकल्पित संस्थानों को मजबूत करने का प्रस्ताव किया गया है। प्रस्तावित संशोधन भारत में कार्बन बाजार के विकास की सुविधा प्रदान करेंगे और अक्षय ऊर्जा की न्यूनतम खपत निर्धारित करेंगे चाहे वो प्रत्यक्ष खपत के रूप में हो या ग्रिड के माध्यम से अप्रत्यक्ष खपत के रूप में। इससे जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा खपत और वातावरण में कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
भारत जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या से निपटने में सबसे आगे खड़ा है और 2005 के स्तर के मुकाबले 2030 में उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35% तक कम करने के लिए एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के लिए प्रतिबद्ध है। विद्युत मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म-ईंधन ऊर्जा संसाधनों से 40 प्रतिशत से अधिक संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा, ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने से, भारत 2030 तक लगभग 550 एमटी सीओ2 को कम करने की क्षमता रखता है। ऊर्जा संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देगा। इन प्रावधानों से उद्योगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले मौजूदा जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने में सुविधा होगी।
स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का उपयोग बढ़ने से कार्बन क्रेडिट के रूप में अतिरिक्त प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप जलवायु कार्यों में निजी क्षेत्र की भागीदारी होगी। प्रस्ताव में स्थायी आवास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बड़े आवासीय भवनों को शामिल करने के लिए अधिनियम के दायरे का विस्तार करना भी शामिल है।
विद्युत मंत्रालय ने कहा है कि ऊर्जा की आवश्यकता अपरिहार्य है और बदलते व्यावसायिक परिदृश्य के साथ, यह पर्यावरण पर और दबाव डाले बिना देश को ऊर्जा संपन्न बनाने की आवश्यकता को पूरा करना और भी अनिवार्य हो गया है। ईसी अधिनियम, 2001 में संशोधन के साथ, संस्थानों को हमारी पेरिस प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए योगदान करने और हमारे एनडीसी को समय पर पूरी तरह से लागू करने के लिए सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
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