उपभोक्‍ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय

मोटे अनाज के वितरण और किसानों को लाभ पहुंचाने से जुड़ी नीतियों को बदलने का वक्त आ गया है: श्री पीयूष गोयल


सीमांत किसानों को मदद पहुंचाने के लिए मोटे अनाज की खेती और खरीद को बढ़ाने की जरूरत: श्री गोयल

​​​​​​​मक्का, ज्वार, बाजरा आदि न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहतर

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, रेलवे और वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने भारत में मोटे अनाज की खरीद, वितरण और निपटान के लिए नीतिगत ढांचे की समीक्षा की

Posted On: 15 JUN 2021 7:09PM by PIB Delhi

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, रेलवे और वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने मोटे अनाज की खरीद, वितरण और निपटान के लिए नीतिगत ढांचे की समीक्षा करते हुए कहा, "भारत में मोटे अनाज की खेती और वितरण को प्रोत्साहित करने के लिए मानदंडों को संशोधित करने का समय आ गया है।"

उन्होंने कहा कि मोटे अनाज की खेती और खरीद को योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाने की जरूरत है।

बैठक में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग और कृषि मंत्रालय के तहत कई विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। गौरतलब है कि मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी आदि न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं बल्कि कृषि अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहतर फसलें हैं।

हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश में बाजरे को बढ़ावा देने की आवश्यकता की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष' के रूप में घोषित किया है। इसी को देखते हुए मोटे अनाज की खरीद, वितरण और निपटान के लिए नीतिगत दिशा-निर्देशों में संशोधन की आवश्यकता थी।

मंत्री ने कहा कि मानदंडों में संशोधन से मोटे अनाज की खरीद को बढ़ावा मिलेगा। मोटे अनाजों का पौष्टिक भोजन होने के कारण इससे सतत कृषि विकास और फसलों के विविधीकरण में फायदा होता है, इसलिए उनकी खरीद को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इन फसलों की नई खरीद की अनुमति तभी दी जाएगी जब पिछले स्टॉक का निपटान किया जाएगा ताकि संभावित रीसाइक्लिंग से बचा जा सके। उपभोक्ता राज्य की आवश्यकता के अनुसार ही अंतर्राज्यीय आवागमन की अनुमति दी जाएगी।

बाजरे की खेती सीमांत और असिंचित भूमि पर की जाती है और इसकी खरीद से किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी। बाजरा अधिक पौष्टिक होता है, इसलिए भारत को कुपोषण से लड़ने में मदद मिलेगी। साथ ही बाजरा अधिक पर्यावरण के अनुकूल है इसलिए स्थायी कृषि को बढ़ावा देने और पर्यावरण के संरक्षण में इसकी अहम भूमिका है। इसके अलावा इस फसल की स्थानीय खरीद और खपत से ट्रांसपोर्ट का खर्चा बचेगा, अन्य फसलों की आवाजाही की जरूरत भी कम होगी। मोटे अनाज तीन महीने से ज्यादा वक्त तक खराब भी नहीं होते हैं। मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार राज्य सरकार की एजेंसियों/एफसीआई द्वारा किसानों से मोटे अनाज की खरीद की जाती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अंतर्गत आने वाली प्रमुख मोटे अनाज की फसलें ज्वार (हाइब्रिड), ज्वार (मालदंडी), बाजरा, रागी, मक्का और जौ हैं। बाजरा, मक्का और जौं को मोटे अनाज के रूप में जाना जाता है। भारत में, खरीफ मार्केटिंग सीजन 2020-21 के दौरान कुल 3,04,914 किसान लाभान्वित हुए हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान कुल 1162886 (11.62 एलएमटी) मोटे अनाज की खरीद की गई है।

21 मार्च 2014 को जारी मोटे अनाज के लिए वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार, राज्य सरकार को दी गई खरीद अवधि तीन महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही दूसरी शर्त यह कि निर्धारित खरीद अवधि उस राज्य में कटाई अवधि खत्म होने के एक महीने से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। राज्य में संबंधित फसल की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से मोटे अनाज की खरीद और वितरण के लिए राज्यों को अधिकतम 6 महीने का समय प्रदान किया जाता है।

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