विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
डीबीटी-आईएलएस ने एनिमल चैलेंज स्टडी प्लेटफॉर्म की स्थापना की
Posted On:
07 JUN 2021 5:54PM by PIB Delhi
कोविड-19 एक बड़ी वैश्विक महामारी का कारण बन रहा है। इसके प्रभावी उपचार और रोकथाम को विकसित करने के लिए वैज्ञानिक एवं क्लीनिकल समुदाय काफी सक्रियता से काम कर रहे हैं। कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से मनुष्यों की रक्षा करने की एक प्रमुख रणनीति प्रभावी टीकों और उपचार का विकास है। हालांकि वर्तमान में कई कई नैदानिक परीक्षण चल रहे हैं लेकिन इस वायरस को समझने और इसके थेराप्यूटिक एजेंटों की सुरक्षा एवं प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए साथ-साथ इन विट्रो और मॉडल ऑर्गेनिज्म पर प्रीक्लीनिकल शोध करने की भी आवश्यकता है। मनुष्यों में सार्स-कोव-2 प्रेरित बीमारियों के रोगजनन से मिलते-जुलते पशु मॉडल रोग तंत्र पर शोध करने और संभावित टीकों एवं एंटीवायरल दवाओं के आकलन के लिए आवश्यक हैं। चूहे और सीरियाई हैम्स्टर जैसे छोटे जानवर सार्स-कोव-2 का अध्ययन करने के लिए उपयुक्त होते हैं क्योंकि वे तेजी से पैदा होते हैं और मनुष्यों में विश्वसनीय तरीके से कोविड-19 पैथेलॉजी को तैयार करते हैं। अन्य उपलब्ध पशु मॉडलों में अब तक हैम्स्टर का व्यापक रूप से सार्स-कोव-2 संक्रमण के अध्ययन में उपयोग किया गया है। कोविड-19 का हैम्स्टर मॉडल पूरी रिकवरी के साथ मानव रोग के हल्के पैटर्न की नकल करता है।
इन जानवरों के साथ प्रयोग करने के लिए विभिन्न विशेषज्ञता वाले लोगों और विशेष पशु जैव सुरक्षा स्तर 3 प्रयोगशालाओं (एबीएसएल3) की आवश्यकता होती है। सार्स-कोव-2 के लिए एंटीवायरल और वैक्सीन उम्मीदवारों के विकास के लिए इन आवश्यकताओं के महत्व को समझते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, भुवनेश्वर (भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने इन पशु मॉडलों और एक एबीएसएल3 प्रयोगशाला की स्थापना की है। आईएलएस में इस प्लेटफॉर्म को मिशन कोविड सुरक्षा के तहत जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के सहयोग से स्थापित किया गया है।
हाल में इस संस्थान की कोविड-19 अनुसंधान टीम ने आईएलएस में एक विशेषत स्थानीय वायरस का उपयोग करके सार्स-कोव-2 संक्रमण के हैम्स्टर मॉडल की स्थापना की है। आईएलएस में किए गए प्रोटिओमिक अध्ययन मनुष्यों और हैम्स्टर में सार्स-कोव-2 संक्रमण के बीच समानता दर्शाते हैं। क्लीनिकल मापदंडों के विश्लेषण से पता चलता है कि ऊतक के नमूने सार्स-कोव-2 संक्रमण की पैथोफिजियोलॉजिकल अभिव्यक्ति को दिखाते हैं जैसा पहले कोविड-19 से संक्रमित रोगियों में पाया गया था। इससे एक दमदार मॉलिक्यूलर साक्ष्य प्राप्त होता जो कोविड-19 के शोध में इस मॉडल की क्लीनिकल प्रासंगिकता को दर्शाता है। हाल ही में इस अध्ययन के निष्कर्ष एक प्रतिष्ठित जर्नल एफएएसईबी (फेडरेशन ऑफ अमेरिकन सोसाइटीज फॉर एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी) जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। आईएलएस प्लेटफॉर्म के वर्तमान और संभावित उपयोगकर्ताओं में एनआईआरआरएच मुंबई, आईआईटी इंदौर, एनसीबीएस-इनस्टेम बेंगलूरु, एनसीएल पुणे, सीआईएबी मोहाली आदि शामिल हैं।
यह अध्ययन डॉ. शतीभूषण सेनापति और डॉ. गुलाम सैयद के नेतृत्व में एक टीम द्वारा किया गया। संस्थान के निदेशक डॉ. अजय परिदा का मानना है कि यह पशु मॉडल और संस्थान में स्थापित एबीएसएल3 प्रयोगशाला सार्स-कोव-2 के लिए दवा एवं वैक्सीन उम्मीदवारों के परीक्षण और मूल्यांकन के लिए सेवाएं प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। डॉ. परिदा ने कहा कि आईएलएस ने के18-एच एसीई2 ट्रांसजेनिक चूहा कॉलोनियों की भी स्थापना की है जो मूल्यांकन प्रयासों के पूरक होंगे। यह प्रयोगशाला फ्री-फॉर-सर्विस मोड या साझेदारी मॉडल के तहत संचालित होगी और यह भारत एवं विदेश के शिक्षाविदों, उद्योग और स्टार्टअप के शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए उपलब्ध होगी।
अधिक जानकारी के लिए डीबीटी/बीआईआरएसी के संचार प्रकोष्ठ से संपर्क करें।
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