सूचना और प्रसारण मंत्रालय
हमारी फिल्म “दि ब्रिज” असम के ग्रामीण क्षेत्रों में हर वर्ष आने वाली बाढ़ से लोगों के जीवन में आने वाली परेशानियों को दर्शाती है – स्वतंत्र फिल्मकार कृपाल कलिता
“एक विशेष सीन को शूट करने के लिए हमारी टीम को सात घंटे तक बाढ़ के पानी के अंदर ही रहना पड़ा"
मैं उनके विचारों से काफी ज़्यादा प्रभावित हूं। मेरी फिल्म का उद्देश्य उनके विचारों को अगली पीढ़ी तक लेकर जाना हैः बिशप फिलिपोज़ मार क्रिसोस्टम पर बनाई गई डॉक्युमेंट्री के बारे में निदेशक ब्लेसी इपे थॉमस के विचार
कृपाल कलिता की असमिया भाषा की फिल्म “दि ब्रिज” असम के गांवों में हर साल आने वाली बाढ़ और उससे होने वाली तबाही और परेशानियों पर प्रकाश डालती है। “इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। असम के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले एक किसान का बेटा होने की वजह से मैंने बाढ़ की इस विभीषिका और परेशानियों को झेला है। ये बात कृपाल कलिता ने मंगलवार को गोवा में 51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के दौरान आईएफएफाई 51 इंडियन पैनोरमा फीचर फिल्म विषय पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। पत्रकारों से वार्ता के दौरान अपनी 2019 में बनी डॉक्युमेंट्री ‘100 ईयर्स ऑफ क्राइसोस्टम - ए बायोग्राफिकल फिल्म’ के बारे में अपने विचार रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक ब्लेसी इपे थॉमस भी मौजूद थे। 51वें आईएफएफआई के दौरान इंडियन पैनोरमा नॉन फीचर फिल्म की श्रेणी में इस डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन किया जा रहा है।”
पवित्र ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियाँ हर वर्ष कई गाँवों को पानी में डुबोने के साथ-साथ खेती को बर्बाद कर देती हैं। कलिता ने बताया कि फिल्म की नायिका जोनाकी बाढ़ के कारण पैदा हुई असामान्य परिस्थितियों और संघर्ष से जूझती है। नदी पर पुल न होने की वजह से उसकी परेशानी और ज़्यादा बढ़ जाती है। लेकिन फिल्म के अंत में, वह एक शक्तिशाली महिला बनकर सामने आती है, और ये बताने का प्रयास करती है कि “ज़िंदगी में हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए।”
थिएटर की पृष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्र फिल्मकार कलिता ने अपनी फिल्म में ज़्यादातर नए लोगों को मौका दिया है और उनसे ही अलग-अलग भूमिकाएं करवाई हैं। ‘जोनाकी’ की भूमिका निभाने वाली शिवा रानी कलिता का चयन 300 कॉलेज विद्यार्थियों और थिएटर कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट के बाद किया गया। सीमित संसाधनों के साथ निर्माण की गई इस फिल्म को असम के ऊपरी इलाकों में बाढ़ की वास्तविक स्थिति में शूट किया गया था। एक विशेष सीन को शूट करने के लिए हमारी टीम को सात घंटे तक बाढ़ के पानी के अंदर ही रहना पड़ा। बाढ़ की वजह से संघर्ष करते लोगों के वास्तविक दृश्यों को फिल्म में इस्तेमाल किया गया है।
फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन के दौरान जिन परेशानियों का सामना उन्हें करना पड़ रहा है, उसके बारे में बोलते हुए कलिता ने कहाः “कोविड 19 के चलते लॉकडाउन की वजह से कई थिएटर अभी भी बंद हैं।”
मीडिया के एक सवाल के जवाब में उन्होंने 13वीं शताब्दी में थाइलैंड से आने वाले और असम साम्राज्य स्थापित करने वाले अहोम किंग चाओलंग सुकफा पर एक बड़े बजट की फिल्म बनाने की इच्छा ज़ाहिर की। उन्होंने कहा कि मैं फिल्म के माध्यम से बताना चाहता हूं कि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के प्रकोप से होने वाली कठिनाइयों का सामना एक राजा को भी करना पड़ता है।
अपने राज्य की समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, बेहतर रोज़गार की तलाश में स्थानीय लोगों का पलायन असम में आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचा रहा है।
ब्लेसी इपे थॉमस की 2019 में बनी डॉक्युमेट्री “100 ईयर्स ऑफ क्राइसोस्टम - ए बायोग्राफिकल फिल्म” 103 वर्षीय बिशप फिलिपोज़ मार क्रिसोस्टम मार थोमा वालिया मेट्रोपॉलिटन के विचारों और भावनाओं के बारे में बताती है। वह एशिया में क्रिश्चियन चर्च के सबसे ज़्यादा समय तक रहने वाले बिशप और ईसाई धर्म के इतिहास में सबसे लंबे समय तक बिशप रहने वालों में से एक हैं। वह 2007 में मार थोमा वालिया मेट्रोपॉलिटन बने थे, और 2018 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनका जीवन प्रथम विश्व युद्ध के अंतिम वर्ष से शुरू होने वाली शताब्दी में भारत के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास में काफी महत्वपूर्ण और एक महाकाव्य की तरह है। निर्देशक ने कहा कि “मैं उनके विचारों से काफी ज़्यादा प्रभावित हूं। इस डॉक्युमेंट्री का उद्देश्य उनके विचारों और दृष्टिकोण को अगली पीढ़ी तक लेकर जाना है।”
श्री थॉमस की पूर्ण डॉक्युमेंट्री की अवधि 48 घंटे और 10 मिनट है। इसे वर्ष 2019 में सबसे लंबी डॉक्युमेंट्री के रूप में गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। इस डॉक्युमेंट्री फिल्म को पांच वर्षों में शूट किया गया था।
***
एमजी/एएम/पीजी/डीवी
(Release ID: 1690235)
Visitor Counter : 367