नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय

एमएनआरई ने प्रधानमंत्री-कुसुम योजना के घटक-सी के तहत फीडर स्तर सौरकरण के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश जारी किया

Posted On: 04 DEC 2020 2:48PM by PIB Delhi

नवीन और नवीकरणीय मंत्रालय (एमएनआरई) ने राज्य सरकारों से परामर्श के बाद प्रधानमंत्री-कुसुम योजना के घटक-सी के तहत फीडर स्तर सौरकरण (सोलराइजेशन) के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 19.2.2019 को हुई अपनी बैठक में पीएम-कुसुम योजना को मंजूरी दी थी। इस योजना के तीन घटक हैं। घटक-ए में विकेंद्रीकृत ग्राउंड माउंटेड ग्रिड से जुडे अक्षय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना शामिल है, घटक-बी में सौर ऊर्जा से संचालित अकेले चल सकने वाले कृषि पंपों की स्थापना और घटक-सी में ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों के सौरकरण शामिल हैं।

मंत्रालय ने 8 नवंबर 2019 को प्रधान मंत्री-कुसुम योजना के घटक-सी के कार्यान्वयन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे। पीएम-कुसुम योजना के प्रावधानों के अनुसार,ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को 30% की केंद्रीय और 30% की राज्य सब्सिडी के साथ किसानों के 40% के अपने योगदान से सौर ऊर्जा से जोड़ा जा सकता है। सौर क्षमता को किलोवाट (केडब्ल्यू) में पंप क्षमता के दो गुना तक करने की अनुमति है और अधिशेष बिजली डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनी) द्वारा खरीदी जाएगी। चूंकि योजना के इस घटक को प्रायोगिक तौर पर लागू किया जाना था, इसलिए राज्यों द्वारा नेट-मीटरिंग, बीएलडीसी पंप के साथ पंप या किसी अन्य अभिनव मॉडल के रूप में फिट किए गए मॉडल के उपयोग के लिए लचीलापन दिया गया था।

राज्यों के साथ हुई चर्चाओं के आधार पर यह भी तय किया गया है कि प्रधानमंत्री-कुसुम योजना के घटक-सी के तहत फीडर स्तर के सौरकरण को भी शामिल किया जाए। तदनुसार, फीडर स्तर सौरकरण के लिए व्यापक कार्यान्वयन ढांचा प्रदान करने के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

कार्यान्वयन का तरीका :

बिजली वितरण कंपनी (डिस्कॉम) / विद्युत विभाग अपने-अपने क्षेत्रों में फीडर स्तर के सौरकरण के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगी। हालांकि, राज्य सरकार फीडर स्तर के सौरकरण के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की निविदा और अन्य संबंधित गतिविधियों के लिए डिस्कॉम की सहायता के लिए किसी अन्य विशेषज्ञ एजेंसी को नियुक्त कर सकती है।

जहां कृषि फीडरों को पहले ही अलग कर दिया गया है, इस योजना के तहत फीडरों को सौर ऊर्जा से युक्त किया जा सकता है। इससे कम पूंजी लागत और बिजली की लागत दोनों के मामले में लागत कम हो जाएगी। योजना के तहत कृषि के लिए प्रमुख भार वाले फीडरों पर भी विचार किया जा सकता है। एक कृषि फीडर के लिए कुल वार्षिक बिजली की आवश्यकता का आकलन किया जाएगा और उस कृषि फीडर की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता वाले एक सौर ऊर्जा संयंत्र को या तो कैपेक्स (सीएपीईएक्स) मोड या रेस्को (आरईएससीओ)मोड के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है,जो उस कृषि फीडर तक सौर ऊर्जा की आपूर्ति करेगा।

उदाहरण के लिए, एक फीडर जिसमें 10 लाख यूनिट की वार्षिक बिजली की आवश्यकता होती है, को बिजली की आपूर्ति 19% के सीयूएफ के साथ लगभग 600 किलोवाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र द्वारा की जा सकती है। क्षेत्रों में उपलब्ध औसत सूर्यताप के आधार परउच्च या निम्न सीयूएफ पर सौर ऊर्जा क्षमता का आकलन करने के लिए विचार किया जा सकता है।

एक फीडर या एक वितरण उप-स्टेशन (डीएसएस) से निकलने वाले कई कृषि फीडरों के लिए 11 केवी पर या डीएसएस के उच्च वोल्टेज स्तर के पक्ष मेंबिजली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए फीडर स्तर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा सकता है। यह भूमि की उपलब्धता, तकनीकी व्यवहार्यता आदि जैसे कारकों पर निर्भर करता है और फीडर स्तर के सौरकरण के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र की क्षमता की कोई सीमा नहीं होती है।

बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) डीएसएस के पास भूमि की पहचान कर सकती हैं, भूमि का स्वामित्व प्राप्त कर सकती हैं या पट्टे पर इसका अधिकार प्राप्त कर सकती हैं, डीएसएस में कनेक्टिविटी प्रदान कर सकती हैं और डीएसएस तथा सौर ऊर्जा संयंत्र के बीच उप-पारेषण लाइन बिछा सकती हैं। सीएफए की गणना के उद्देश्य से, सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की लागत का अनुमान 3.5 करोड रुपये प्रति मेगावाट के रूप में किया गया है। योजना के तहत किसी भी क्षमता के पंपों के सौरकरण की अनुमति है, हालांकि, 7.5 एचपी से अधिक क्षमता वाले पंपों के मामले में सीएफए 7.5 एचपी पंपों के लिए सौर क्षमता तक सीमित होगा।

जहां कृषि फीडरों को अलग नहीं किया गया है, वहां फीडर अलग करने के लिए नाबार्ड / पीएफसी / आरईसी से ऋण उपलब्ध होगा। बिजली मंत्रालय भी फीडर अलग करने के लिए सहायता प्रदान करने के लिए एक योजना को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। कृषि पर बिजली सब्सिडी और सिंचाई के लिए इस्तेमाल नहीं किए जाने की स्थिति में सौर ऊर्जा संयंत्र द्वारा उत्पादित अधिशेष बिजली से होने वाली आय पर बचत का उपयोग फीडर अलग करने के लिए लिए गए ऋण का भुगतान करने में भी किया जा सकता है।

सौर संयंत्र की बढ़ी हुई क्षमता के साथ फीडर स्तर का सौरकरण:

राज्य कृषि फीडर को बिजली की आपूर्ति के लिए जरूरी क्षमता से अधिक क्षमता के फीडर स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का विकल्प चुन सकता है। उत्पन्न अतिरिक्त सौर ऊर्जा का उपयोग आस-पास के ग्रामीण / शहरी इलाकों में आपूर्ति के लिए दिन के समय या वैकल्पिक रूप से संग्रहीत / जमा बिजलीको शाम के समय प्रकाश फैलाने/ खाना पकाने और अन्य घरेलू कार्यों के लिए बिजली की आपूर्ति के लिए किया जा सकता है। हालांकि, इस मामले में सीएफए कृषि फीडर को बिजली की आपूर्ति के लिए आवश्यक सौर क्षमता के लिए सीमित होगा।

कैपेक्स मॉडल के तहत कार्यान्वयन:

फीडर स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए 30% का सीएफए (पूर्वोत्तर राज्यों, पहाड़ी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों और द्वीप संघ शासित प्रदेशों के मामले में 50%) केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किया जाएगा और शेष राशि नाबार्ड / पीएफसी / आरईसी से ऋण के माध्यम से मिलेगी। कृषि पंपों के सौरकरण के लिए रियायती वित्तपोषण उपलब्ध होगा क्योंकि आरबीआई ने इस घटक को प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र के तहत पहले ही शामिल कर लिया है और कृषि एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत सामुदायिक स्तर के सौरकरण को शामिल किया है। राज्य सरकार द्वारा कृषि पंपों को बिजली की आपूर्ति के लिए वर्तमान में दी जा रही सब्सिडी पर मौजूदा परिव्यय का उपयोग पांच से छह वर्षों में ऋण चुकाने के लिए किया जा सकता है, जिसके बाद बिजली मुफ्त में उपलब्ध होगी और राज्य सरकार के खजाने से कृषि के लिए दी गई बिजली सब्सिडी समाप्त हो जाएगी। औसतन, कृषि के लिए वर्ष में केवल 150 दिनों के लिए बिजली की आवश्यकता होगी और साल के बाकी दिनों में सौर ऊर्जा संयंत्र से उत्पादित बिजली संभवतः डिसकॉम को एक अतिरिक्त आय प्रदान करेगी। यदि इसका उपयोग नाबार्ड / पीएफसी / आरईसी से लिए गए ऋणों का भुगतान करने के लिए भी किया जाता है,तो ऋण जल्द ही चुकाया जा सकता है।

सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए चयनित ईपीसी ठेकेदार के साथ निविदा प्रक्रिया को पूरा करने और कार्य समझौते पर हस्ताक्षर करने पर कुल पात्र सीएफए का 40% तक एडवांस सीएफए डिस्कॉम्स को जारी किया जाएगा। शेष सीएफए सौर ऊर्जा संयंत्र की सफलतापूर्वक शुरूआत और संयंत्र कृषि फीडर (ओं) को बिजली की आपूर्ति शुरू होने पर जारी किया जाएगा। ईपीसी ठेकेदार के साथ कार्य समझौते की निविदा और हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया आम तौर पर एमएनआरई द्वारा अनुमोदन जारी करने की तारीख से छह महीने के भीतर कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा पूरी की जानी चाहिए।

डिस्कॉम सौर ऊर्जा संयंत्र के संचालन और रख-रखाव काकाम कर सकती है। वैकल्पिक रूप से, सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने वाले ईपीसी ठेकेदार को भी संयंत्र के संचालन और रख-रखाव का काम दिया जा सकता है और 25 वर्षों के लिए सौर ऊर्जा की आपूर्ति की जा सकती है। सौर संयंत्र के संचालन और रख-रखाव के लिए भुगतान को ऊर्जा उत्पादन के साथ जोड़ा जा सकता है। परियोजना के पूरे 25 वर्षों तक आवश्यक सौर ऊर्जा की आपूर्ति करने में सौर ऊर्जा संयंत्र की विफलता के मामले में, एमएनआरई यथानुपात आधार पर डिस्कॉम को सीएफए राशि वापस करने का निर्देश दे सकता है। इस आशय की  एक अंडरटेकिंग डिस्कॉम द्वारा नवीन एवं नवीकरणीय उर्जा मंत्रालय को प्रस्तुत किया जाएगा।

रेस्को (आरईएससीओ) मॉडल के तहत कार्यान्वयन:

रेस्को (आरईएससीओ)मॉडल के माध्यम से फीडर स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिएडेवलपर्स को 25 वर्षों की अवधि के लिए सौर ऊर्जा की आपूर्ति के लिए पेश किए गए सबसे कम टैरिफ के आधार पर चुना जाएगा। डेवलपर को सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की अनुमानित लागत का 30% सीएफए यानी 1.05 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट (3.5 करोड़ / मेगावाट का 30%) मिलेगा। रेस्को डेवलपर द्वारा आपूर्ति की जाने वाली सौर ऊर्जा वितरण उप-स्टेशन से वितरित बिजली की वर्तमान लागत की तुलना में बहुत सस्ती होगी और इसलिए, डिस्कॉम दोनों के बीच अंतर के बराबर राशि बचा पाएगा। रेस्को मॉडल में कृषि के लिए बिजली सब्सिडी का बोझ ऊपर उल्लिखित अंतर की सीमा तक कम हो जाएगा और शून्य नहीं होगा जैसा कि कैपेक्स मॉडल में होता है, जहां एक बार ऋण चुकाने के बादराज्य सरकार से सब्सिडी लेने की आवश्यकता नहीं है।

राज्य कृषि उपभोक्ताओं को दी जा रही बिजली सब्सिडी के बदले अग्रिम सब्सिडी प्रदान करने का विकल्प चुन सकते हैं। राज्य की यह अग्रिम सब्सिडी वर्तमान रियायती दरों पर या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किसी अन्य दर पर किसानों को बिजली की आपूर्ति करने के लिए 30% सीएफए के अलावा, वीजीएफ से आरईएससीओ डेवलपर के रूप में हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि वर्तमान में कृषि के लिए रियायती दर 1.50 रुपये / केडब्ल्यूएच है तो रेस्को डेवलपर को 1.50 रुपये / केडब्ल्यूएच की दर से सौर ऊर्जा की आपूर्ति के लिए सबसे कम वीजीएफ के आधार पर चुना जाएगा।

कुल योग्य सीएफए का सौ फीसदी तक सीएफए रेस्को डेवलपर को सौर ऊर्जा संयंत्र की सफल शुरूआत औरउसके वाणिज्यिक संचालन तिथि (सीओडी)की घोषणा पर डिस्कॉम के माध्यम से जारी किया जाएगा। रेस्को डेवलपर को सीएफए जारी करना सीएफए राशि के बराबर बैंक गारंटी जमा करने के अधीन है। बैंक की गारंटी संयंत्र के सफल संचालन पर वाणिज्यिक संचालन तिथि (सीओडी) के 2.5 साल,5 साल,7.5 साल और 10 साल बाद 25% के चार चरणों में जारी की जाएगी। रेस्को डेवलपर और पीपीए के चयन के लिए, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा पीएमकुसुम योजना के घटक-ए के कार्यान्वयन के लिए जारी दिशानिर्देश और मॉडल पीपीए का उपयोग उपयुक्त संशोधनों के साथ किया जा सकता है। रेस्को डेवलपर द्वारा सौर ऊर्जा संयंत्र के शुरू होने के लिए अधिकतम समय सीमा पीपीए पर हस्ताक्षर करने की तारीख से नौ महीने होगी। रेस्को डेवलपर के चयन और पीपीए पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया एमएनआरई द्वारा अनुमोदन जारी करने की तारीख से छह महीने के भीतर कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा पूरी होनी चाहिए।

जल संरक्षण और किसानों की आय में वृद्धि:

पीएम-कुसुम योजना के घटक-सी का उद्देश्य किसानों को दिन के समय में विश्वसनीय बिजली प्रदान करना, अधिशेष सौर ऊर्जा की खरीद करके उनकी आय को बढ़ाना और इस तरह उन्हें पानी की बचत के लिए प्रोत्साहित करना है। फीडर स्तर के सौरकरण के मामले में, किसानों को सिंचाई के लिए दिन के समय विश्वसनीय सौर ऊर्जा मिलेगी, लेकिन अधिशेष सौर ऊर्जा को बेचने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, किसानों को पानी बचाने और उनकी अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। डिस्कॉम विभिन्न कारकों के आधार पर एक क्षेत्र के किसानों के लिए औसत बिजली की आवश्यकता का आकलन करेंगी। बिजली की इस आवश्यकता को उनके न्यूनतम मानदंड खपत के रूप में माना जाएगा। डिस्कॉम किसानों को मानदंड खपत से कम बिजली खपत करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। बिजली की इस तरह की बचत को किसानों द्वारा बचाए गए अधिशेष शक्ति के रूप में माना जाएगा और इसके लिए उन्हें पूर्व निर्धारित दर पर डिस्कॉम द्वारा भुगतान किया जाएगा। यह भूजल स्तर के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय होगा।

क्षमता और सेवा प्रभार का आवंटन:

पीएम-कुसुम योजना के घटक-सी के तहत कुल 4 लाख ग्रिड से जुड़े पंपों के सौरकरण को 2020-21 तक मंजूरी के लिए लक्षित किया गया है और इनमें से 50%का सौरकरण फीडर स्तर के सौरकरण के माध्यम से और बाकी के 50% का सौरकरण व्यक्तिगत पंप सौरकरण के माध्यम से किए जाने हैं। मांग से संचालित योजना होने की वजह से राज्यों द्वारा की गई मांगके आधार पर उन्हें क्षमता आवंटित की जाएगी। एमएनआरई राज्यों से अनुरोध करेगा कि वे दी गई समय सीमा के भीतर अपनी मांग भेजें। राज्य अलग-अलग पंप सौरकरण या फीडर स्तर के सौरकरण या दोनों के लिए अपनी मांग भेज सकते हैं। क्षमता का आवंटन सचिव, एमएनआरई की अध्यक्षता वाली स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा किया जाएगा। कार्यान्वयन एजेंसी को योजना के दिशा-निर्देशों के तहत सेवा शुल्क मिलेगा।

प्रणाली की विशेषताएं और गुणवत्ता नियंत्रण:

सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए उपयोग किए गए सभी घटक बीआईएस / एमएनआरई विनिर्देशों को लागू करने और एमएनआरई द्वारा जारी किए गए गुणवत्ता नियंत्रण दिशा-निर्देशों की पुष्टि करेंगे। स्वदेशी सौर सेल और मॉड्यूल के साथ स्वदेश निर्मित सौर पैनलों का उपयोग करना अनिवार्य होगा।

दिन में धूप के दौरान फीडर की उपलब्धता बनाए रखने के लिए चयनित कृषि फीडरों का पर्याप्त रखरखाव आवश्यक है। इसमें समयबद्ध तरीके से नियमित आधार पर डीएसएस, उप-प्रसारण / एलटी लाइनों और वितरण ट्रांसफार्मर आदि का रखरखाव शामिल है।

निगरानी:

डिस्कॉम के लिए सौर ऊर्जा उत्पादन और सौर ऊर्जा संयंत्र के प्रदर्शन की निगरानी ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से करना अनिवार्य होगा। ऑनलाइन आंकड़े को केंद्रीय निगरानी पोर्टल के साथ एकीकृत किया जाएगा जो योजना की निगरानी के लिए राज्यों के पोर्टल से डेटा निकाल सकेगा।

दिशा-निर्देशों की व्याख्या:

इन दिशा-निर्देशों में से किसी भी प्रावधान की व्याख्या में किसी अस्पष्टता के मामले में, मंत्रालय का निर्णय अंतिम होगा। मंत्रालय द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देशों की समीक्षा की जाएगी और सक्षम अधिकारी की मंजूरी के बाद आवश्यक संशोधनों को शामिल किया जाएगा।

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