উপ-ৰাষ্ট্ৰপতি সচিবালয়
সকলো ভাৰতীয় ভাষাকে যথোচিতভাৱে সমানে সন্মান কৰিবলৈ উপ-ৰাষ্ট্ৰপতিৰ আহ্বান
আমি আমাৰ সমৃদ্ধিশালী ভাষাৰ বৈচিত্ৰক লৈ গৌৰৱান্বিত হোৱা উচিতঃ উপ-ৰাষ্ট্ৰপতি
তেওঁ কয় যে হিন্দী আৰু অন্য ভাৰতীয় ভাষাক পাৰস্পৰিক পৰিপূৰক হিচাপে চাব লাগে
কোনো ভাষা আৰোপ বা বিৰোধ কৰিব নালাগেঃ উপ-ৰাষ্ট্ৰপতি
Posted On:
14 SEP 2020 1:54PM by PIB Guwahati
ভাৰতৰ উপ-ৰাষ্ট্ৰপতি শ্ৰী এম ভেংকায়া নাইডুৱে আজি সকলো ভাষাকে যথোচিতভাৱে সমানে সন্মান কৰিবলৈ আহ্বান জনায় আৰু এই কথাৰ ওপৰত আলোকপাত কৰে যে কোনো ভাষাকে জাপি দিব নালাগে বা বিৰোধ কৰিব নালাগে।
হিন্দী দিৱস ২০২০ উপলক্ষে মধুবন ইডুকেশ্বনেল বুকছে আয়োজন কৰা এক অনলাইন অনুষ্ঠান সম্বোধন কৰি উপ-ৰাষ্ট্ৰপতিয়ে কয় যে আমাৰ সকলো ভাষাৰে সমৃদ্ধিশালী ইতিহাস আছে আৰু আমি আমাৰ ভাষাৰ বৈচিত্ৰ তথা সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যক লৈ গৌৰৱান্বিত হোৱা উচিত। মহাত্মা গান্ধীয়ে ১৯১৮ত দক্ষিণ ভাৰত হিন্দী প্ৰচাৰ সভা প্ৰতিষ্ঠা কৰাৰ কথা উল্লেখ কৰি উপ-ৰাষ্ট্ৰপতিয়ে আলোকপাত কৰে যে হিন্দী আৰু অন্য ভাৰতীয় ভাষাক পাৰস্পৰিক পৰিপূৰক হিচাপে চাব লাগে। নাগৰিকসকলৰ মাজত ভাল মনোভাব, প্ৰেম আৰু ভালপোৱা বৃদ্ধি কৰিবলৈ, শ্ৰী নাইডুৱে মন্তব্য কৰে যে হিন্দী নোকোৱা ৰাজ্যৰ ছাত্ৰ-ছাত্ৰীয়ে হিন্দী শিকিব লাগে আৰু হিন্দী কোৱা ৰাজ্যৰ ছাত্ৰ-ছাত্ৰীয়ে তামিল, তেলেগু, কন্নড় ইত্যাদিৰ দৰে অন্য যিকোনো এটা ভাৰতীয ভাষা শিকিব লাগে।
এন ই পি-২০২০ত মাতৃভাষাৰ ওপৰত দিয়া গুৰুত্বক লৈ সন্তুষ্টি ব্যক্ত কৰি, উপ-ৰাষ্ট্ৰপতিয়ে সকলোকে সামৰি লোৱা শিক্ষাৰ বাবে মাতৃভাষাত শিক্ষা প্ৰদানৰ ওপৰত জোৰ দিয়ে। ''ই ছাত্ৰ-ছাত্ৰীক বিষয় একোটা অধিক ভালদৰে শিকাত সহায় কৰে আৰু তেওঁলোকে তেতিয়া নিজকে অধিক ভালদৰে প্ৰকাশ কৰিব পাৰে'', তেওঁ কয়।
মাতৃভাষাত শিক্ষাদান কৰিলে হিন্দী আৰু অন্য ভাৰতীয় ভাষাত ভাল কিতাপ সহজে উপলব্ধ হ'ব বুলি উল্লেখ কৰি তেওঁ কয় যে এই ক্ষেত্ৰত প্ৰকাশন প্ৰতিষ্ঠানসমূহৰ এক গুৰুত্বপূৰ্ণ ভূমিকা আছে।
সকলো ভাৰতীয় ভাষা একেলগে সমানে বিকশিত হোৱাৰ প্ৰয়োজনীয়তাৰ বিষয়ে প্ৰকাশ কৰি শ্ৰী নাইডুৱে প্ৰকাশক আৰু শিক্ষাদাতা সকলক আমাৰ ভাষাবিলাকৰ জৰিয়তে আলোচনা বৃদ্ধি কৰাত জোৰ দিবলৈ কয়। মধুবন ইডুকেশ্বনেল বুকছৰ মুখ্য কাৰ্যবাহী মিঃ নবীন ৰাজলানি, এন চি ই আৰ টিৰ অধ্যাপক ঊষা শৰ্মা, ইন্দ্ৰপ্ৰষ্ঠ ইউনিভাৰছিটীৰ অধ্যাপক সৰোজ শৰ্মা আৰু এন চি ই আৰ টিৰ অধ্যাপক পৱন সুধীৰ আছিল অনুষ্ঠানত উপস্থিত থকা গণ্য-মান্যসকলৰ অন্যতম।
তলত ভাষনৰ পূৰ্ণ পাঠ দিয়া হৈছেঃ
“हिन्दी दिवस के अवसर पर भारत के भविष्य के मेधावी नागरिकों से बात करने का सुयोग मिला है। बहुत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। इस अवसर को आयोजित करने के लिये मधुबन एजुकेशनल बुक्स की सराहना करता हूँ।
मित्रों,
आज ही के दिन 1949 में हमारी संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। उसी वर्ष 26 नवंबर को संविधान सभा में अपने समापन भाषण में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस की महत्ता बताते हुये कहा था कि पूरे देश ने पहली बार अपने लिये एक राजभाषा को स्वीकार किया है। जिनकी भाषा हिंदी नहीं भी है उन्होंने भी स्वेच्छा से राष्ट्र निर्माण के लिये उसे राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि हर क्षेत्र न सिर्फ अपनी भाषा का प्रयोग करने के लिये आजाद होगा बल्कि उसे अपनी परंपराओं और संस्कारों की भाषा को विकसित करने के लिये बढ़ावा भी दिया जायेगा। इससे पहले 1946 में हरिजन में अपने एक लेख में गांधीजी ने लिखा था कि क्षेत्रीय भाषाओं की नींव पर ही राष्ट्रभाषा की भव्य इमारत खड़ी होगी। राष्ट्रभाषा और क्षेत्रीय भाषाएं एक दूसरे की पूरक है विरोधी नहीं। हमें याद रखना चाहिये कि गांधी जी ने 1918 में ही तत्कालीन मद्रास में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना की थी और उनके पुत्र देवदास गांधी पहले हिंदी प्रचारक बने।
मित्रों, महात्मा गांधी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा सुझाया मार्ग ही हमारी भाषाई एकता को सुदृढ़ कर सकता है। हमें अपनी भाषाई विविधता पर गर्व होना चाहिए। हमारी सभी भाषाओं का समृद्ध साहित्यिक इतिहास रहा है। हमारी भाषाऐं हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
मेरा मानना रहा है कि न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए न किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए। हर भाषा वंदनीय है। कोई भी भाषा हमारे संस्कारों की तरह शुद्ध और हमारी आस्थाओं की तरह पवित्र होती है।
समावेशी और स्थायी विकास के लिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी ही चाहिए इससे बच्चों को स्वयं अभिव्यक्त करने में और विषय को समझने में आसानी होती है। पढ़ने में रुचि पैदा होती है।
मुझे खुशी है कि नयी शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं और संस्कृति के महत्व को स्वीकार किया गया है। इसके लिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करानी होगी। इस दिशा में आप जैसे प्रकाशन संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। मैंने सदैव माना है कि सभी भारतीय भाषाओं का विकास साथ ही हो सकता है। उनके बीच संवाद स्थापित करने में प्रकाशकों और शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हम अन्य भारतीय भाषाओं के कुछ न कुछ मुहावरे, शब्द या गिनती जरूर सीखें। मेरा आग्रह होगा कि हिन्दी में भी छात्रों को अन्य भारतीय भाषाओं के प्रख्यात साहित्यकारों की जीवनी, उनकी कृतियों से परिचित कराया जाय तथा हिंदी के साहित्यकारों, उनकी कृतियों से अन्य भाषाई क्षेत्रों को परिचित कराया जाय। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को सीखना आसान होगा क्योंकि राष्ट्र के संस्कार, विचार तो समान ही हैं। ऑनलाइन भारतीय भाषाऐं सीखने के लिए आधुनिक तकनीक की सहायता ली जा सकती है।
मुझे यह जानकर खुशी है कि Madhuban Educational Books विद्यालयों के लिए पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन करता रहा है। इस काम में आपको बुद्धिजीवी लेखकों का मार्गदर्शन भी मिलता रहा है। आप हिंदी दिवस के अवसर पर देश भर में हिंदी शिक्षण में योगदान देने वाले शिक्षकों और मेधावी छात्रों को सम्मानित करते हैं। शिक्षा विशेषकर हिंदी शिक्षा के क्षेत्र में आपके प्रयास अभिनंदनीय हैं। इस अवसर पर सम्मानित शिक्षकों, मेधावी छात्रों को उनके प्रयासों के लिए शुभकामनाऐं देता हूं।
मित्रों,
हिंदी दिवस के अवसर पर आप सभी मेधावी छात्र छात्राओं से मेरा अनुरोध होगा कि वे अपनी मातृभाषा का सम्मान करें, रोजमर्रा के कामों में उसका प्रयोग करें। हिन्दी और देश की भाषाओं का साहित्य पढ़े, उसमें लिखे। तभी हमारी भाषाओं का विकास होगा, वे समृद्ध होगीं।
हिंदी दिवस पर आप सभी का एक बार पुन: अभिनंदन करते हुये अपनी बात समाप्त करता हूँ।
जय हिन्द।"
****
VRRK/MS/MSY/DP
(Release ID: 1654258)
Visitor Counter : 171