उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने अपने जीवन में श्री आडवाणी सहित सभी गुरुजनों के प्रभाव को याद किया


गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने 57 गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की

इंटरनेट से सिर्फ सूचना मिल सकती है ज्ञान गुरु से ही मिलता है

छात्रों और देश के चतुर्दिक विकास में गुरुओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया

Posted On: 04 JUL 2020 4:07PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आज श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित अपने सभी गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त किया जिन्होंने उनके जीवन के विभिन्न दौर में उनका मार्गदर्शन किया है।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने एक फेसबुक पोस्ट में श्री नायडू ने अपने 57 गुरुजनों द्वारा दी गई शिक्षा और मार्गदर्शन को याद किया। अपने सार्वजनिक जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उन्हें श्री तन्नेती विश्वनाथम जैसे स्वाधीनता सेनानी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, कालांतर में श्री आडवाणी ने उनके दृष्टिकोण को दिशा दी। उन्होंने लिखा कि 15 वर्ष की आयु में ही माता-पिता खो देने के बाद उनके दादा-दादी ही उनके पहले गुरु बने। अपनी पोस्ट में श्री नायडू ने अपने दादा-दादी के अतिरिक्त स्कूल, कॉलेज तथा विश्विद्यालय के 55 गुरुजनों का भी उल्लेख किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया।

 

भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के अनुरूप शिष्यों के जीवन में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने लिखा है कि गुरु शिष्यों के चहुंमुखी विकास के लिए आवश्यक संस्कारों और चरित्र का निर्माण करते हैं। उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि टेक्नोलॉजी के इस युग में भी वे व्यक्तिगत रूप से रुचि ले कर शिष्यों को शिक्षा और संस्कार प्रदान करें। उन्होंने लिखा कि लोगों के व्यक्तित्व और विचारों को सुसंस्कारों से गढ़ कर, शिक्षक राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

इंटरनेट युग में शिक्षा पर विचार रखते हुए, उपराष्ट्रपति ने लिखा कि इंटरनेट आपको दुनिया भर की सूचना तो दे सकता है किन्तु उसका सम्यक मूल्यांकन करने के ज्ञान का संस्कार तो सिर्फ गुरु ही दे सकता है। उन्होंने आगे लिखा कि सिर्फ गुरु ही दया, करुणा, त्याग, अनुशासन जैसे मानवीय गुण प्रदान कर सकता है।

इस संदर्भ में श्री नायडू ने रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानंद के गुरु शिष्य संबंधों को आदर्श माना कि किस प्रकार विवेकानंद प्रारंभ में रामकृष्ण परमहंस के दृष्टिकोण से सहमत न होते हुए भी अंततः उनके शिष्य बन गए।

      उन्होंने लिखा है कि गुरु शब्द की उत्पत्ति गु तथा रू दिए वर्णों की संधि से हुई है। संस्कृत में ' गु ' का अभिप्राय अंधकार या गुप्त से है जबकि ' रू ' का तात्पर्य उस अंधकार को नष्ट करने वाले से है। गुरु अर्थात अंधकार को नष्ट कर, गूढ़तर ज्ञान को प्रकाशित करने वाला। श्री नायडू ने लिखा है कि गुरु बिना जीवन एक अंधकारमय पथ की भांति है।

गुरु पूर्णिमा हर वर्ष आषाढ़ माद की पहली पूर्णिमा को गुरुजनों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाई जाती है। इस अवसर को महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी जाना जाता है। बौद्ध मतावलंबी इसे भगवान बुद्ध द्वारा सारनाथ में प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन की स्मृति में मानते है। जबकि जैन मतावलंबी इस 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती के रूप में मनाते हैं।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने सभी से आग्रह किया कि वे अपने जीवन के विभिन्न दौर में गुरुजनों के योगदान का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करें।

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