जनजातीय कार्य मंत्रालय

महाराष्ट्र में वन धन विकास केन्द्रों ने कोविड संकट के दौरान जनजातीय संग्रहकर्ताओं की सहायता करने के लिए अभिनव पहल की

Posted On: 05 JUN 2020 2:40PM by PIB Delhi

जनजातीय कार्य मंत्रालय के ट्राइफेड द्वारा शुरू की गई योजना के अंतर्गत वन धन केन्द्रों की स्थापना की गई है, जो इस संकट के समय में आदिवासियों को उनकी आजीविका के सृजन में मदद कर रहे हैं। इस संकट से प्रभावित होने वालों में आदिवासी आबादी भी शामिल है, क्योंकि उनकी अधिकांश आय लघु वन उपज गतिविधियों से होती है जैसे कि संग्रह करना, जो कि आमतौर पर अप्रैल से जून के महीनों में काम अधिक होता है।

महाराष्ट्र कोरोना वायरस के संकट से सबसे ज्यादा जूझ रहा है लेकिन इसके बावजूद राज्य में वन धन योजना सफला की इबारत लिख रही है। महाराष्ट्र में 50 से ज्यादा जनजातीय समुदाय रहते हैं और मौजूदा संकट से उबरने के लिए वन धन केंद्र की टीम ने कमान संभाली है। अपने निरंतर प्रयासों और पहल के माध्यम से वन धन टीम 19,350 आदिवासी उद्यमियों को निरंतर आजीविका के लिए उत्पादों के विपणन के लिए एक मंच मुहैया करा रहा है।

कोविड-19 से निपटने के लिए विभिन्न पहल की गई हैं। इसके तहत स्वयं सहायता समूहों को बिना ब्याज के ऋण मुहैया कराया जाता है, जिसका इस्तेमाल इस क्षेत्र में महुआ के फूल, गिलोय (इस क्षेत्र में खरीद किया जाने वाला सबसे ज्यादा उत्पाद) और मधुमक्खियों को पालने में किया जाता है। इन उत्पादों को गांव-गांव जाकर एकत्रित किया जाता है। लॉकडाउन के बीच महुआ और गिलोय की खरीद पर्याप्त सुरक्षा उपायों मसलन सोशल डिस्टेसिंग, मास्क का इस्तेमाल के साथ की जा रही है।

A group of people sitting in the sandDescription automatically generated

      इस क्षेत्र में वन धन विकास केंद्र में से एक शबरी आदिवासी विकास महामंडल इन उत्पादों से अलग-अलग उप-उत्पाद बनाकर स्वयं सहायता समूहों को बेचने की योजना बना रहा है। इन उत्पादों के मूल्य को जोड़कर, इन उत्पादों के लिए एक बेहतर मूल्य प्राप्त किया जाएगा। उइके शिल्पग्राम में एक वन धन विकास केंद्र, स्वयं कला संस्थान ने लगभग 125 क्विंटल महुआ फूल (6.5 लाख रुपये मूल्य का) खरीदा है और इसे महुआ जैम, लड्डू और महुआ के रस में परिवर्तित किया है।

A group of people standing in a roomDescription automatically generated

 

एक अन्य समूह, कटकरी जनजातीय युवा समूह, जो शाहपुर वन धन विकास केंद्र के अंतर्गत आता है, ने अन्य समूहों के लिए एक बेंचमार्क निर्धारित किया है। युवा समूह ने एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म स्थापित किया है और देश भर के बाजारों में गिलोय लेने के लिए डी'मार्ट जैसी खुदरा श्रृंखलाओं के साथ सहयोग कर रहा है।

इन पहलों का परिणाम देखा जा सकता है। इस चालू वित्त वर्ष 2020-21 में महुआ और गिलोय प्रमुख न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ 0.05 करोड़ रुपये की खरीद हुई है।

ऐसे समय में जब खबरें मुख्य रूप से आपदा से संबंधित होती हैं, वैसे समय में वन धन योजना के बारे में ऐसी सफलता की कहानियां नई उम्मीद और प्रेरणा लेकर आती हैं।

वन धन योजना जनजातीय मामलों के मंत्रालय और ट्राइफेड की एक पहल है और यह जनजातीय लोगों के लिए आजीविका उत्पादन को लक्षित करती है और उन्हें उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करती है। इस योजना के पीछे का मकसद जनजातीय समुदाय के स्वामित्व वाली वन धन विकास केंद्रों की आदिवासी बहुल जिलों में स्थापना करना है। एक केंद्र के साथ 15 आदिवासी स्वयं सहायता समूह काम करते हैं और प्रत्येक समूह में 20 आदिवासी युवा जुड़े होते हैं और जनजातीय उत्पाद को एकत्रित करते हैं। मतलब प्रति वन धन केंद्र से 300 लाभार्थी जुड़े हुए हैं।

आदिवासी लोगों की आजीविका और सशक्तीकरण के लिए शीर्ष राष्ट्रीय संगठन के रूप में ट्राइफेड योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी है। यह योजना जनजातीय लोगों को कुछ बुनियादी सहायता प्रदान करने में एक शानदार सफलता हासिल कर रही है और उनके जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर रही है। 1,126 वंदना केंद्र देश भर में जनजातीय स्टार्ट-अप के रूप में स्थापित किए गए हैं जिससे 3.6 लाख से अधिक लोग लाभ ले रहे हैं।

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