विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

डीएसटी से वित्तपोषित स्टार्टअप ने स्पर्शोन्मुख कोविड-19 संक्रमण के परीक्षण के लिए विकसित की किट और वैक्सीन के उत्पादन की शुरू की तैयारी


डीएसटी सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, “वैक्सीन के विकास में लगता है लंबा समय, इसलिए इस गतिविधि को तेजी से पूरा करना है जरूरी”

Posted On: 11 APR 2020 12:21PM by PIB Delhi

नई जैविक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम कर रहे स्टार्टअप सीगुल बायोसॉल्युशंस को कोविड-19 महामारी में काम आने वाली एक्टिव वीरोसम (एवी)- वैक्सीन और इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट के विकास के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्तपोषण किया जा रहा है।

सीगुल बायो द्वारा विकसित एक्टिव वीरोसम टेक्नोलॉजी (एवीटी) वैक्सीन और इम्यूनोथेरेप्यूटिक (प्रतिरोधी चिकित्सा) एजेंट के उत्पादन में उपयोगी है। एवीटी प्लेटफॉर्म नए, गैर खतरनाक और किफायती एक्टिव वीरोसम एजेंट के उत्पादन में उपयोगी है, जिससे लक्षित रोगजनक से जरूरी एंटीजन का पता चलता है। इसे कोविड 19 से बचाव के लिए एक नई वैक्सीन के विकास में और कोविड 19 के लिए इम्यूनोडायग्नोस्टिक एलीजा किट में उपयोग किया जाएगा।

डीएसटी सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, कोविड 19 की चुनौतियों का हल निकालने के लिहाज से सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन के साथ ही सटीक निदान, संचरण की चेन तोड़ना, उपचार और बचाव के उपाय अपनाना खासा अहम हो जाता है। इनमें से वैक्सीन को विकसित करने में लंबा समय लग जाता है और इसलिए अब इस गतिविधि को तेजी से पूरा करना खासा अहम हो गया है।

पोलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) आधारित डायग्नोस्टिक किट्स जो वर्तमान में भारत में उपलब्ध है, सक्रिय कोविड 19 संक्रमण से तेजी से रक्षा करने में सक्षम है लेकिन यह स्पर्शोन्मुख संक्रमण या ऐसे लोगों की पहचान नहीं कर सकता, जो अतीत में कोविड 19 के मरीजों के संपर्क में थे या संक्रमित थे और बीमारी से पीड़ित नहीं है या कोविड 19 बीमारी से उबर चुके हैं तथा आगे भी वायरस फैला सकते हैं। इसके विपरीत इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट से कोविड की एंटीबॉडीज के बारे में पता करने में सहायता मिलती है, जो इन संक्रमणों का भी पता लगा सकती है। इसलिए, एसबीपीएल ने कोविड 19 के लिए इम्यूनोडायग्नोस्टिक के उत्पादन के प्रयास शुरू किए हैं। इन परीक्षणों से स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के लिए कोविड 19 के प्रसार के बारे में सटीकता से पता लगाना संभव हो जाता है।

 

 

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उद्यमशीलता विकास केंद्र (वेंचर सेंटर), पुणे स्थित और प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी), डीएसटी के सीड सपोर्ट सिस्टम से समर्थित सीगुल बायो दो तरह के एक्टिव वीरोसम (एवी) एजेंट का उत्पादन कर रही है। एसबीपीएल दो तरह के एवी एजेंट का उत्पादन करेगी, जिसमें एक कोविड 19 (एवी-एस) के एस प्रोटीन को व्यक्त करने वाला और दूसरा कोविड 19 (एवी-एसपी) के संरचनागत प्रोटीन को व्यक्त करने वाला है। एसबीपीएल वर्तमान में इन दोनों एजेंट के संश्लेषण को 10 एमजी के स्तर तक बढ़ाने वाला है, जिससे उनकी प्रतिरक्षाजनकता का परीक्षण किया जा सकता है। इस परीक्षण को पहले एंटी कोविड 19 न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज और सेल्युलर इम्यून रिस्पॉन्स को प्रेरित करके एवी-एस और एवी-एसबी की क्षमता पता लगाने के लिए जंगली चूहे पर किया जाता है।

एक बार इसके प्रमाणित होने पर वे एसीई-2 आर प्लस चूहे में इसके प्रभाव का आकलन किया जाएगा, जिसे सार्स बीमारी के लिए एक मॉडल के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके समानांतर एवी-एजेंट के उत्पादन के लिए जैविक प्रक्रिया की जाएगी और लगभग 1,00,000 वैक्सीन खुराक के लिए एवी-एजेंट का उत्पादन किया जाएगा। एसीई2आर प्लस चूहे और एक अन्य जानवर या बंदरों में इसका विस्तृत विषाक्तता, सुरक्षा और फार्माकोकाइनेटिक अध्ययन किया जाएगा और उसके बाद पहले चरण के लिए चिकित्सकीय परीक्षण के लिए एवी- वैक्सीन एजेंट तैयार की जाएगी। कंपनी को अनुमान है कि एवी की खास विशेषता के कारण 18-20 महीने के अंत तक इसका पहले चरण का परीक्षण शुरू हो जाएगी।

इस वैक्सीन परियोजना के समानांतर, एसबीपीएल इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट के विकास के लिए एंटीजन के रूप में कोविड 19 के एस प्रोटीन को प्रकट करने वाले एक्टिव वीरोसम्स को भी उपयोग करेगी। आईजीएम का पता लगाने एलीजा किट, आईजीजी प्रकार के एंटीबॉडी पता लगानने वाली एलीजा किट और एक लेटरल फ्लो (एलएफए) इम्यूनोडायग्नोस्टिक परीक्षण किया जाएगा। एलएफए परीक्षण से भारत के नागरिक आसानी से परीक्षण करने में सक्षम होंगे और इससे उनका बीमारीमुक्त बने रहना सुनिश्चित होगा। एसबीपीएल को अगस्त 2020 के अंत तक परीक्षण के लिए इम्यूनोडॉयग्नोस्टिक किट के तैयार होने और 10-11 महीने में इसे स्वीकृति मिलने का अनुमान है। दूसरी तरफ, एवी वैक्सीन के तैयार होने में लंबा वक्त लगने का अनुमान है। हालांकि वर्तमान आपातकालीन हालात को देखते हुए एसबीपीएल का लक्ष्य इसके प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट को 80 दिन में पूरा करने और 18 से 20 महीनों के भीतर इसके पूर्व चिकित्सा विकास और पहले चरण का परीक्षण पूरा करने का लक्ष्य है।

 

(ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करें : विश्वास डी. जोशी vishwasjo@seagullbiosolutions.in, 9967547936)

 

 

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