पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय हरित अधिकरण के ‘पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन– 2025’ का उद्घाटन किया

केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्रवाई और सतत विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया

महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों, नीतिगत अंतर और सतत प्रबंधन को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श के लिए दो दिवसीय कार्यक्रम

Posted On: 29 MAR 2025 6:56PM by PIB Delhi

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में ‘पर्यावरण-2025’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस उद्घाटन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव,  सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, अटॉर्नी जनरल श्री आर. वेंकटरमणि और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने भाग लिय।

दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में किया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार-विमर्श करना तथा हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। इस सम्मेलन में प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों, कानूनी विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों तथा नीति-निर्माताओं ने भाग लिया।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास के संतुलन के महत्व पर जोर दिया और प्रकृति-विनाश को रोकते हुए प्रगति सुनिश्चित करने की हमारी जिम्मेदारी पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ पर्यावरण की विरासत प्रदान करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। (विस्तृत जानकारी के लिए प्रेस विज्ञप्ति देखें:  https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2116543

इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ मंत्र का उद्धृत किया और इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण का संरक्षण भारतीय लोकाचार में सम्मिलित है। उन्होंने कहा कि इसमें वनस्पति, जीव-जंतु, पहाड़, नदियां और पर्यावरण के सभी घटक शामिल हैं।

श्री यादव ने कहा कि भारत अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के आधार पर जिम्मेदारी से आगे बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्रवाई के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के प्रदर्शन के रूप में, भारत ने 2030 के लक्ष्य से नौ साल पहले ही हरित ऊर्जा पर पेरिस समझौते की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर लिया है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दुनिया को जकड़ने वाली जलवायु संबंधी चिंता भारत को अपने 140 करोड़ लोगों को भोजन, पानी, ऊर्जा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के अधिकार को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत चुनौतियों और अवसरों के बीच संतुलन बनाने के लिए आत्मविश्वास से काम कर रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने इस बात पर जोर दिया कि जब हम एकजुट होते हैं, तो हम कई तरह के उद्देश्यों को पूरा करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पर्यावरण कोई बाहरी तत्व नहीं है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य और संस्कृति से आंतरिक रूप से जुड़ा हुआ है।

अटॉर्नी जनरल श्री आर. वेंकटरमणि ने जोर देकर कहा कि मानव व्यवहार केवल लाभ कमाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य भावी पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित करना होना चाहिए।

अपने भाषण में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस सम्मेलन को वास्तव में असाधारण बनाने वाली बात इसकी समावेशिता है, जो विभिन्न संस्थानों के न्यायविदों, विशेषज्ञों, शिक्षकों और उत्साही छात्रों को एक मंच पर लाती है तथा सभी स्थिरता व पर्यावरण संरक्षण के एक साझा दृष्टिकोण से एकजुट हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारे प्रयास न केवल एक जिम्मेदारी हैं, बल्कि हमारे भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भी हैं।

उद्घाटन सत्र के बाद दो तकनीकी सत्र हुए। पहला सत्र वायु गुणवत्ता निगरानी और प्रबंधन पर आधारित था, जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची ने की। यह उल्लेख किया गया कि सही मायने में प्रगति केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं मापी जाती, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता के साथ विकास को संतुलित करने की हमारी क्षमता से मापी जाती है और वायु प्रदूषण के बढ़ते मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया। मेदांता के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनल मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ. रणदीप गुलेरिया, आईआईटी दिल्ली के डॉ. दिलीप गांगुली, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव श्री तन्मय कुमार और चेन्नई में एनजीटी की माननीय न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण सहित विशेषज्ञों ने वायु प्रदूषण को कम करने के कारणों, नियामक ढांचे और संभावित समाधानों पर विचार-विमर्श किया।

जल गुणवत्ता प्रबंधन और नदी कायाकल्प पर दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने की। इसमें जल प्रदूषण के मुद्दे पर चर्चा की गई, जिसमें स्विट्जरलैंड के यूरोपीय राइन नदी जीर्णोद्धार मॉडल और नामीबिया के मामले पर प्रकाश डाला गया, साथ ही भारत की स्थिति की तुलना की गई। उन्होंने सामुदायिक सहयोग, अनुपालन और पारदर्शिता तंत्र एवं वैज्ञानिक नवाचारों को अपनाने सहित व्यावहारिक समाधान भी प्रदान किए तथा जल प्रदूषण, भू-जल के अत्यधिक निष्कर्षण और संरक्षण रणनीतियों संबंधी चिंताओं का पता लगाया। पैनलिस्ट डॉ. एम.के. गोयल, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की, सुश्री देबाश्री मुखर्जी, सचिव, जल शक्ति मंत्रालय, डॉ. राजीव कुमार मित्तल, महानिदेशक (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन) और माननीय न्यायमूर्ति बी. अमित स्टालेकर, एनजीटी, कोलकाता ने विधायी उपायों, जल जीवन मिशन जैसी सरकारी पहलों और सतत जल प्रबंधन के लिए समुदाय संचालित समाधानों पर चर्चा की। इस सत्र का संचालन आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर ए.के. गोसाईं ने किया।

इस सम्मेलन का पहला दिन विचारोत्तेजक चर्चाओं के साथ संपन्न हुआ, जिसने कल होने वाले विचार-विमर्श के लिए आधार तैयार किया है। इस सम्मेलन के दूसरे दिन वन संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण पर तीसरा तकनीकी सत्र होगा और चौथे तकनीकी सत्र में पहले तीन तकनीकी सत्रों की मुख्य बातों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

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