राष्ट्रपति सचिवालय
भारत की राष्ट्रपति ने श्री सत्य साई बाबा के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित विशेष सत्र में भाग लिया
श्री सत्य साई बाबा ने अध्यात्म को निःस्वार्थ सेवा और व्यक्तिगत परिवर्तन से जोड़ा जिससे लाखों लोग सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हुए: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु
आध्यात्मिक संगठन राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु
प्रविष्टि तिथि:
22 NOV 2025 1:01PM by PIB Delhi
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (22 नवंबर, 2025) प्रशांति निलयम, पुट्टपर्थी, आंध्र प्रदेश में श्री सत्य साई बाबा के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में विशेष सत्र में भाग लिया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपने कर्मों और वचनों से समाज का मार्गदर्शन करते रहे हैं। इन महान आत्माओं ने समाज कल्याण के लिए अनेक कार्य किए हैं। श्री सत्य साई बाबा का ऐसे महापुरुषों में विशेष स्थान है। उन्होंने सदैव समाज कल्याण के लिए कार्य किया है। श्री सत्य साई बाबा ने इस विश्वास पर बल दिया कि "मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा है" और अपने अनुयायियों को इस आदर्श का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार, उन्होंने आध्यात्म को लोक कल्याण की ओर उन्मुख किया। उन्होंने आध्यात्म को निस्वार्थ सेवा और व्यक्तिगत परिवर्तन से जोड़ा और लाखों लोगों को सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री सत्य साई बाबा ने अनेक सामाजिक कल्याण कार्यों के माध्यम से आदर्शों को वास्तविकता में बदलने का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री सत्य साई सेंट्रल ट्रस्ट छात्रों को उच्च-गुणवत्ता वाली निःशुल्क शिक्षा प्रदान करता है जिसमें शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ-साथ चरित्र निर्माण का भी समावेश होता है। शिक्षा के साथ-साथ, निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा के माध्यम से भी सत्य साई बाबा के मिशन को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के हज़ारों सूखा प्रभावित गाँवों में पेयजल उपलब्ध कराना भी उनकी दूरदर्शिता का परिणाम है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सत्य साई बाबा के संदेश "सबसे प्रेम करो, सबकी सेवा करो" और "सदैव सहायता करो, कभी किसी को दुःख न पहुँचाओ" शाश्वत और सार्वभौमिक है। उनका मानना था कि विश्व हमारा विद्यालय है और पाँच मानवीय मूल्य—सत्य, नैतिकता, शांति, प्रेम और अहिंसा—हमारा पाठ्यक्रम हैं। मानवीय मूल्यों की उनकी शिक्षाएँ सभी संस्कृतियों और सभी कालों के लिए सत्य है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र निर्माण सभी संगठनों का कर्तव्य है और 'राष्ट्र प्रथम' की भावना के अनुरूप कार्य करना आवश्यक है। आध्यात्मिक संगठन इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। भारत सरकार नागरिकों के जीवन को सुगम और सरल बनाने के लिए अनेक कदम उठा रही है ताकि वे अपनी प्रतिभा और क्षमताओं का उपयोग राष्ट्र के विकास में कर सके। सभी धर्मार्थ संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और नागरिकों को भारत सरकार के इन प्रयासों में योगदान देना चाहिए। उनका योगदान 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
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पीके/केसी/पीपी/आर
(रिलीज़ आईडी: 2192844)
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