प्रधानमंत्री कार्यालय
नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 2025 में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
प्रविष्टि तिथि:
31 OCT 2025 7:16PM by PIB Delhi
गुजरात और महाराष्ट्र के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी, ज्ञान ज्योति महोत्सव आयोजन समिति के चैयरमेन सुरेन्द्र कुमार आर्य जी, डीएवी कॉलेज मैनेजिंग कमेटी के प्रेसिडेंट पूनम सूरी जी, वरिष्ठ आर्य सन्यासी, स्वामी देवव्रत सरस्वती जी, विभिन्न आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट, देश और दुनियाभर से आए आर्य समाज के सभी व्रती, देवियों और सज्जनों।
सबसे पहले मुझे आने में विलंब हो गया, इसके लिए आप सबकी क्षमा मांगता हूं। आज सरदार साहब की जयंती थी, 150 वीं जयंती। Statue of Unity एकता नगर में उनका कार्यक्रम था, और इसलिए मुझे आने में विलंब हो गया, और उसके कारण मैं समय से नहीं आ पाया और इसके लिए मैं आप सबकी क्षमा चाहता हूं। जब हम यहां आए तो प्रारंभ में जो मंत्र सुने उनकी ऊर्जा अब भी हम सब महसूस कर रहे हैं। जब भी मुझे आपके बीच आने का अवसर मिला, और जब-जब मैं आया, वो अनुभव दैवीय अनुभव होता है, अद्भुत अनुभव होता है। और ये स्वामी दयानंद जी का आशीर्वाद है, उनके आदर्शों के प्रति हम सबकी श्रद्धा है, आप सभी विचारकों से दशकों पुरानी मेरी आत्मीयता है कि मुझे बार बार आपके बीच आने का अवसर मिलता है। और जब भी मैं आपसे मिलता हूं, आपसे संवाद करता हूं, एक अलग ही ऊर्जा से, एक अलग ही प्रेरणा से भर जाता हूं। और मुझे अभी बताया गया कि ऐसे और 9 सभाग्रह बनाए गए हैं। वहां हमारे सभी आर्य समाज के वृति वीडियो से इस कार्यक्रम को देख रहे हैं। मैं उनके दर्शन नहीं कर पा रहा हूं, लेकिन मैं उनको भी यहां से प्रणाम करता हूं।
साथियों,
गत वर्ष गुजरात में दयानंद सरस्वती जी के जन्मस्थान पर विशेष कार्यक्रम हुआ था। उसमें मैं वीडियो संदेश के जरिए शामिल हुआ था। इसके पहले यहां दिल्ली में ही मुझे महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती समारोह के शुभारंभ का सौभाग्य मिला था। वेदमंत्रों के उच्चारण की ऊर्जा, वो हवन अनुष्ठान, ऐसा लगता है जैसे अभी वो सब कल की ही बात हो।
साथियों,
तब उस आयोजन में हम सबने 200वीं जयंती के समारोह को, एक विचारयज्ञ के रूप में दो वर्ष तक जारी रखने का फैसला किया था। मुझे खुशी है, वो अखंड विचारयज्ञ अनवरत दो वर्ष तक चला है। समय-समय पर मुझे आपके प्रयासों और कार्यक्रमों की जानकारी भी मिलती रही है। और, आज मुझे एक बार फिर, आर्यसमाज के 150वें स्थापना वर्ष के इस आयोजन में, अपनी एक और भाव आहुति देने का अवसर मिला है। मैं स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के चरणों में प्रणाम करता हूँ, उन्हें आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं आप सभी को इस अंतरराष्ट्रीय समिट के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। अभी हमें इस अवसर पर विशेष स्मारक सिक्के को जारी करने का भी सौभाग्य मिला है।
साथियों,
आर्य समाज की स्थापना के 150 वर्ष, ये अवसर केवल समाज के एक हिस्से या संप्रदाय से जुड़ा नहीं है। ये अवसर पूरे भारत की वैदिक पहचान से जुड़ा है। ये अवसर भारत के उस विचार से जुड़ा है, जो गंगा के प्रवाह की तरह खुद को परिष्कृत करने की, self-purification की ताकत रखता है। ये अवसर उस महान परंपरा से जुड़ा है, जिसने समाज सुधार की महान परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाया! जिसने आज़ादी की लड़ाई में कितने ही सेनानियों को वैचारिक ऊर्जा दी। लाला लाजपतराय, हुतात्मा रामप्रसाद बिस्मिल, ऐसे कितने ही क्रांतिकारियों ने आर्यसमाज से प्रेरणा लेकर, आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व समर्पित किया था। दुर्भाग्य से, राजनीतिक कारणों से आज़ादी की लड़ाई में, आर्य समाज की इस भूमिका को वो सम्मान नहीं मिला, जिसका आर्य समाज हकदार था।
साथियों,
आर्य समाज अपनी स्थापना से लेकर आज तक प्रबल राष्ट्रभक्तों की संस्था रही है। आर्य समाज निर्भीक होकर भारतीयता की बात करने वाली संस्था रही है। भारत विरोधी कोई भी सोच हो, विदेशी विचारधाराओं को थोपने वाले लोग हों, विभाजनकारी मानसिकता हो, सांस्कृतिक प्रदूषण के दुष्प्रयास हों, आर्य समाज ने हमेशा इनको चुनौती दी है। मुझे संतोष है कि आज जब आर्यसमाज और उसकी स्थापना के एक सौ पचास वर्ष हो रहे हैं, तो समाज और देश, दयानंद सरस्वती जी के महान विचारों को इस विराट स्वरूप में नमन कर रहा है।
साथियों,
स्वामी श्रद्धानंद जैसे आर्य समाज के अनेक मनीषी, जिन्होंने धर्म जागरण के जरिए इतिहास की धारा को एक नई दिशा दी, आज ऐतिहासिक क्षण में उन सबकी ऊर्जा और आशीर्वाद भी शामिल है। मैं इस मंच से ऐसी कोटि-कोटि पुण्यात्माओं को नमन करता हूँ, उनकी स्मृति को प्रणाम करता हूँ।
साथियों,
हमारा भारत कई मायनों में विशेष है। ये धरती, इसकी सभ्यता, इसकी वैदिक परंपरा, ये युगों-युगों से अमर है। क्योंकि, किसी भी कालखंड में जब नई चुनौतियाँ आती हैं, समय नए सवाल पूछता है, तो कोई न कोई महान विभूति उनके उत्तर लेकर अवतरित हो जाती है। कोई न कोई ऋषि, महर्षि और मनीषी हमारे समाज को नई दिशा दिखाते हैं। दयानन्द सरस्वती जी भी इसी विराट परंपरा के महर्षि थे। उन्होंने गुलामी के कालखंड में जन्म लिया था। सदियों की गुलामी से पूरा देश, पूरा समाज टूट चुका था। विचार और चिंतन की जगह पाखंड और कुरीतियों ने ले ली थी। अंग्रेज़, हमें, हमारी परम्पराओं और हमारी मान्यताओं को नीचा दिखाते थे। हमें नीचा दिखाकर वो भारत की गुलामी को सही ठहराते थे। ऐसी परिस्थितियों में, नए मौलिक विचारों को कहने का साहस भी समाज खो रहा था। और ऐसे ही मुश्किल समय में, एक युवा सन्यासी आता है। वो हिमालय के निर्जन और कठिन स्थानों में साधना करता है, खुद को तपस्या की कसौटी पर कसता है। और वापस आकर वो हीन-भावना में फंसे भारतीय समाज को झकझोरता है। जब पूरी अँग्रेजी सत्ता, भारतीय पहचान को नीचा दिखाने में लगी थी, जब समाज के गिरते आदर्शों और नैतिकता के पश्चिमीकरण को, आधुनिकीकरण के तौर पर पेश किया जा रहा था, तब आत्मविश्वास में भरा वो ऋषि अपने समाज का आह्वान करता है-वेदों की ओर लौटो! वेदों की ओर लौटो! ऐसी अद्भुत विभूति थे- स्वामी दयानंद जी! उन्होंने गुलामी के उस कालखंड में दबी-कुचली राष्ट्र की चेतना को, फिर से जागृत कर दिया।
साथियों,
स्वामी दयानंद सरस्वती जी जानते थे कि अगर भारत को आगे बढ़ना है, तो भारत को सिर्फ गुलामी की जंजीरें ही नहीं तोड़नी हैं, जिन जंजीरों ने हमारे समाज को जकड़ा हुआ था, उस जंजीरों को भी तोड़नी जरूरी थीं। इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ऊंच-नीच, छुआछूत और भेदभाव का खंडन किया। उन्होंने छुआछूत को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। उन्होंने अशिक्षा के खिलाफ अभियान छेड़ा। उन्होंने हमारे वेदों और शास्त्रों की गलत व्याख्या और मिलावट करने वालों को ललकारा। उन्होंने विदेशी narratives को भी चुनौती दी। और, शास्त्रार्थ की पुरानी परंपरा से सत्य को सिद्ध किया।
साथियों,
स्वामी दयानंद जी युगदृष्टा महापुरुष थे। वो जानते थे, चाहे व्यक्ति निर्माण हो, या समाज निर्माण, उसके नेतृत्व में नारीशक्ति की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इसीलिए उन्होंने महिलाओं को घर की चौखट तक सीमित समझने वाली सोच को ही चुनौती दी। आर्य समाज के स्कूलों में लड़कियों को शिक्षा देने का अभियान शुरू किया। उस समय जालंधर में जो कन्या विद्यालय शुरू हुआ, वो देखते ही देखते “कन्या महाविद्यालय” बन गया। आर्य समाज के ऐसे ही महाविद्यालयों में पड़ीं लाखों लाख बेटियां, आज राष्ट्र की नींव को मजबूत कर रही हैं।
साथियों,
यहां दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी इस समय मंच पर मौजूद हैं। अभी दो दिन पहले ही हमारी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी ने राफेल फाइटर प्लेन में उड़ान भरी। और इसमें उनकी साथी बनी स्कवैड्रन लीडर शिवांगी सिंह। आज हमारी बेटियां फाइटर जेट उड़ा रही हैं, और ड्रोन दीदी बनकर आधुनिक कृषि को भी बढ़ावा दे रही हैं। आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं, भारत आज दुनिया के सबसे ज्यादा female STEM graduates वाला देश है। आज साइंस और टेक्नालजी की Field में भी महिलाएं Leadership Roles में आ रही हैं। आज देश की टॉप वैज्ञानिक संस्थानों में वूमन साइंटिस्ट्स मंगलयान, चंद्रयान और गगनयान जैसे स्पेस मिशन्स में अहम भूमिका निभा रही हैं। ये बदलाव बताता है कि देश आज सही मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। देश स्वामी दयानन्द जी के सपनों को पूरा कर रहा है।
साथियों,
स्वामी दयानन्द जी के एक विचार का मैं अक्सर चिंतन करता हूँ। उसे कई बार लोगों को बोलता भी हूँ। स्वामी जी कहते थे- “जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है, वही परिपक्व है। इन सीमित शब्दों में इतना असाधारण विचार है, कि शायद इसकी व्याख्या में कई किताबें लिखी जा सकती हैं। लेकिन, किसी विचार की असली ताकत उसके भावार्थ से भी ज्यादा इससे तय होती है, वो विचार कितने समय तक जीवित रहता है। वो विचार कितनी ज़िंदगियों का परिवर्तन करता है! और जब हम इस कसौटी पर महर्षि दयानंद जी के विचारों पर कसते हैं, जब हम आर्य समाज के समर्पित लोगों को देखते हैं, तब हमें लगता है कि उनके विचार समय के साथ-साथ और अधिक प्रकाशमान हुये हैं।
भाइयों- बहनों,
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपने जीवन में परोपकारिणी सभा की स्थापना की थी। स्वामी जी के लगाए बीज ने विशाल वृक्ष की तरह कितनी ही शाखाओं को विस्तार दिया है। गुरुकुल कांगड़ी, गुरुकुल कुरुक्षेत्र, DAV संस्थान, एवं अन्य शैक्षणिक संस्थान, ये सभी अपने अपने क्षेत्रों में लगातार काम कर रहे हैं। जब जब देश पर संकट आया है, आर्य समाज के लोगों ने अपना सब कुछ देशवासियों के लिए समर्पित किया है। भारत विभाजन की विभीषिका में सबकुछ गँवाकर भारत आने वाले शरणार्थियों की सहायता, पुनर्वास और शिक्षा, इसमें आर्य समाज ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई, ये इतिहास में दर्ज है। आज भी प्राकृतिक आपदाओं के समय पीड़ितों की सेवा में आर्य समाज हमेशा आगे रहता है।
भाइयों और बहनों,
आर्य समाज के जिन कार्यों का ऋण देश पर है, उनमें एक अहम कार्य देश की गुरुकुल परंपरा को जीवित रखना भी है। एक समय गुरुकुलों की ताकत से ही भारत ज्ञान विज्ञान के शिखर पर था। गुलामी के दौर में इस व्यवस्था पर जानबूझकर प्रहार किए गए। इससे हमारा ज्ञान नष्ट हुआ, हमारे संस्कार नष्ट हुये, नई पीढ़ी कमजोर हुई, आर्यसमाज ने आगे आकर ध्वस्त होती गुरुकुल परंपरा को बचाया। यही नहीं, समय के मुताबिक आर्य समाज के गुरुकुलों ने खुद को परिष्कृत भी किया। उसमें आधुनिक शिक्षा का समावेश भी किया। आज जब देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए एक बार फिर शिक्षा को मूल्यों और चरित्र निर्माण से जोड़ रहा है, तो मैं भारत की इस पवित्र ज्ञान परंपरा की रक्षा के लिए आर्यसमाज का आभार भी करता हूँ।
साथियों,
हमारे वेदों का वाक्य है- “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्”, अर्थात्, हम पूरे विश्व को श्रेष्ठ बनाएँ, उसे श्रेष्ठ विचारों की ओर लेकर के जाएँ। स्वामी दयानन्द जी ने इसी वेदवाक्य को आर्य समाज का ध्येयवाक्य बनाया। आज यही वेदवाक्य भारत की विकास यात्रा का मूलमंत्र भी है। भारत के विकास से विश्व का कल्याण, भारत की समृद्धि से मानवता की सेवा, देश इसी विज़न पर आगे बढ़ रहा है। आज भारत sustainable development की दिशा में एक प्रमुख ग्लोबल वॉइस बन चुका है। जिस तरह स्वामी जी ने वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया था, उसी तरह, आज भारत वैदिक जीवन पद्धति और आदर्शों की ओर लौटने की बात ग्लोबल स्टेज पर कर रहा है। इसके लिए हमने मिशन LiFE लॉंच किया है। पूरे विश्व से इसे सपोर्ट मिल रहा है। One Sun, One World, One Grid विज़न के जरिए हम क्लीन एनर्जी को भी एक ग्लोबल मूवमेंट में बदल रहे हैं। हमारा योग भी आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के जरिए दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में पहुँच चुका है। जीवन में योग को अंगीकार करने की, योगमय जीवन जीने की ये पहल, पर्यावरण से जुड़े LiFE जैसे मिशन, ये वैश्विक अभियान, पूरी दुनिया आज जिनमें रुचि दिखा रही है, आर्य समाज के लोगों के लिए तो ये उनके जीवन और अनुशासन का हिस्सा हैं। सादा जीवन और सेवा की भावना, भारतीय वेश-भूषा और परिधानों को प्राथमिकता, पर्यावरण की चिंता, भारतीयता का प्रचार प्रसार, आर्य समाज के लोग आजीवन इसमें लगे रहते हैं।
इसीलिए भाइयों- बहनों,
आज भारत जब “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का उद्देश्य लेकर विश्व कल्याण के इन अभियानों को आगे बढ़ा रहा है, आज जब भारत विश्व बंधु के रूप में अपनी भूमिका को और मजबूत कर रहा है, तो आर्य समाज का हर सदस्य इसे सहज ही अपना उद्देश्य मानकर काम कर रहा है। मैं आप सभी की इसके लिए सराहना करता हूं, प्रशंसा करता हूं।
साथियों,
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने जो मशाल जलायी, वो पिछले डेढ़ सौ वर्षों से आर्य समाज के रूप में समाज का पथ-प्रदर्शन कर रही है। मैं मानता हूँ, स्वामी जी हम सभी में एक उत्तरदायित्व बोध जगाकर गए हैं। ये उत्तरदायित्व है- नए विचारों को आगे बढ़ाने का! ये उत्तरदायित्व है- होता है, चलता है, ऐसी रूढ़ियों को तोड़कर नए सुधारों का! आप सभी का मुझ पर इतना स्नेह रहा है, इसलिए मैं आज आपसे कुछ मांगने के लिए भी आया हूं, कुछ आग्रह भी करने आया हूं। मांग सकता हूं ना? मांग सकता हूं ना? मुझे पूरा विश्वास है आप देकर रहेंगे। राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में, आप इतना कुछ पहले से कर रहे हैं, मैं देश की कुछ वर्तमान प्राथमिकताएं भी आपके सामने दोहराना चाहता हूं। जैसे स्वदेशी आंदोलन, आर्य समाज इनसे ऐतिहासिक रूप से जुड़ा रहा है। आज जब देश ने फिर से स्वदेशी की ज़िम्मेदारी उठाई है, देश वोकल फॉर लोकल हुआ है, तो आपकी भूमिका इसमें और अहम हो जाती है।
साथियों,
आपको ध्यान होगा, अभी कुछ समय पहले देश ने ज्ञान भारतम् मिशन भी शुरू किया है। इसका उद्देश्य है- भारत की प्राचीन manuscripts को digitize और preserve करना! अथाह ज्ञान की हमारी ये धरोहरें, ये तभी संरक्षित होंगी, जब हमारी नई पीढ़ी इनसे जुड़े, इनकी अहमियत को समझे! इसलिए, मैं आर्य समाज से आह्वान करूंगा, आपने डेढ़ सौ साल से, भारत के पवित्र प्राचीन ग्रन्थों को खोजने और संरक्षित करने का काम किया है। हमारे ग्रन्थों को मौलिक रूप में बचाने का काम कई पीढ़ियों से आर्य समाज के लोग करते आ रहे हैं। ज्ञान भारतम् मिशन अब इसी प्रयास को राष्ट्रीय स्तर पर लेकर जाएगा। आप इसे अपना ही अभियान मानकर इसमें सहयोग करें, और, अपने गुरुकुलों के जरिए, अपने संस्थानों के जरिए, युवाओं को manuscripts के अध्ययन और शोध से भी जोड़ें।
साथियों,
महर्षि दयानन्द जी की 200वीं जयंती के अवसर पर मैंने यज्ञ में प्रयोग होने वाले अनाजों की चर्चा की थी। हम सब जानते हैं, यज्ञ में श्रीअन्न की कितनी अहमियत होती है। जो अनाज यज्ञ में इस्तेमाल होते हैं, उन्हें विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। इन अन्नों के साथ, मोटे अनाजों यानी श्रीअन्न की भारतीय परंपरा को भी हमें आगे बढ़ाना है। यज्ञ में प्रयोग होने वाले अन्न की एक खूबी ये भी होती है कि उनकी पैदावार प्राकृतिक रूप से होनी चाहिए। प्राकृतिक खेती, नैचुरल फ़ार्मिंग, अभी आचार्य जी बड़े विस्तार से उसका वर्णन कर रहे थे, ये नैचुरल फ़ार्मिंग भारतीय अर्थव्यवस्था की बहुत बड़ी आधार हुआ करती थी। आज एक बार फिर दुनिया उसके महत्व को समझने लगी है। मेरा आग्रह है, आर्य समाज नैचुरल फ़ार्मिंग के आर्थिक और आध्यात्मिक पहलू के प्रति भी लोगों को जागरूक करे।
साथियों,
एक और विषय, जल संरक्षण का भी है। आज देश गाँव-गाँव साफ पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन पर काम कर रहा है। जल जीवन मिशन अपने आपमें दुनिया का सबसे अनूठा अभियान है। लेकिन, हमें ध्यान रखना है, पानी पहुंचाने के संसाधन तभी काम करेंगे जब आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्याप्त पानी बचेगा। इसके लिए हम ड्रिप इरिगेशन से खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। देश में 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर बनाने का भी काम हुआ है। हमें चाहिए, सरकार के इन प्रयासों के साथ-साथ समाज खुद भी आगे आए। हमारे यहाँ गाँव-गाँव तालाब, सरोवर, कुआं और वापी होते थे। बदले हालातों में उनकी उपेक्षा होती गई, और वो सूखते चले गए। हमें लोगों को अपने इन प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए निरंतर जागरूक करना है। Catch the rain, जो सरकार का अभियान है, Recharging well बनाने का जो अभियान है, वर्षा का पानी का उपयोग Recharging के लिए करना, ये समय की मांग है।
साथियों,
बीते काफी समय से देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी खूब सफल हुआ है। ये अभियान केवल कुछ दिनों या वर्षों का नहीं है। वृक्षारोपण सतत चलने वाला अभियान है। आर्य समाज के लोग इस अभियान से भी ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ सकते हैं।
साथियों,
हमारे वेद हमें सिखाते हैं- "संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्”। अर्थात्, हम एक साथ चलें, एक साथ बोलें, और एक दूसरे के मन को जानें। यानी, एक दूसरे के विचारों का सम्मान करें। वेदों के इसी आह्वान को हमें राष्ट्र के आह्वान के रूप में भी देखना है। हमें देश के संकल्पों को अपना संकल्प बनाना है। हमें जनभागीदारी की भावना से सामूहिक प्रयासों को आगे बढ़ाना है। इन डेढ़ सौ वर्षों में आर्यसमाज ने इसी भावना से काम किया है। इसी भावना को हमें निरतंर सशस्त करना है। मुझे विश्वास है, महर्षि दयानंद सरस्वती जी के विचार, इसी तरह मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। इसी कामना के साथ, एक बार फिर आप सभी को आर्य समाज के 150 वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार।
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MJPS/ST/DK
(रिलीज़ आईडी: 2184818)
आगंतुक पटल : 208
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