पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने आज फिक्की “लीड्स” सम्मेलन के चौथे संस्करण में सतत और सहयोगात्मक विकास के लिए हरित वित्त की अहम भूमिका पर जोर दिया


हरित वित्त की दीर्घकालीन और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य भूमिका है: श्री भूपेंद्र यादव

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स ने भारत की हरित विकास क्षमता में वैश्विक निवेशकों का मजबूत विश्वास आकर्षित किया है

पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 की जलवायु वित्त में सहायता प्राप्त करने में अहम भूमिका है

निजी क्षेत्र की भागीदारी और पर्यावरण-पुनर्स्थापना प्रतिबद्धताओं को सक्षम करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हरित क्रेडिट कार्यक्रम की कार्यप्रणाली में संशोधन किया

भावी पीढ़ियों के प्रति हरित परिवर्तन के लिए वित्तपोषण में कमी नैतिक असफलता है

Posted On: 11 SEP 2025 11:20AM by PIB Delhi

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, श्री भूपेंद्र यादव ने आज "परिवर्तनकारी विश्व में विकास के लिए सहयोग" विषय पर फिक्की लीड्स सम्मेलन के चौथे संस्करण को संबोधित किया। हरित वित्तपोषण विषय पर मुख्य संबोधन में श्री यादव ने इस बात पर बल दिया कि भविष्य की अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण का मार्ग प्रगति और लाभ को स्थिरता के साथ जोड़ने पर निर्भर करता है, जिसमें लोगों और पारिस्थितिकी प्रणाली को विकास के केंद्र में रखा जाता है। उन्होंने बल देकर कहा कि सरकारों, उद्योग, नियामकों, वैश्विक वित्तीय संस्थानों और नागरिकों के बीच सहयोगात्मक विकास, समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने की कुंजी है।

श्री भूपेन्द्र यादव ने श्रोताओं को औद्योगीकरण और प्रगति की उस यात्रा से परिचय कराया जिसने पिछली दो शताब्दियों में वैश्विक पर्यावरणीय क्षरण में योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता वैश्विक तापमान केवल जलवायु विज्ञान का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि असंवहनीय विकास के परिणामों का भी संकेत हैं। उन्होंने कहा कि उद्योगो को न केवल अपने लाभ के आंकड़ों के प्रति, बल्कि उनके पीछे छिपी पर्यावरणीय लागतों के प्रति भी सचेत रहना चाहिए।

श्री यादव ने बताया कि 21वीं सदी भारत जैसे देशों के लिए दोहरी ज़िम्मेदारी लेकर आई है: एक युवा और महत्वाकांक्षी जनसंख्या की विकासात्मक आकांक्षाओं को पूरा करना और साथ ही, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के नुकसान और पारिस्थितिक क्षरण के प्रभावों से पृथ्वी की रक्षा करना। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने महत्वाकांक्षा, नवाचार और परिवर्तन का मार्ग चुना है। मंत्री महोदय ने इस कार्यक्रम में फिक्की द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए भारतीय उद्योग जगत की आर्थिक विकास और पारिस्थितिक स्थिरता, दोनों को आगे बढ़ाने की भावना को दर्शाने के लिए सराहना की।

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हरित वित्त को एक विशिष्ट हस्तक्षेप के रूप में नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धी और सतत अर्थव्यवस्थाओं के केंद्र के रूप में देखा जाना चाहिए। इसमें पूँजी प्रवाह का पुनर्गठन शामिल है ताकि हर निवेश—बुनियादी ढाँचे, कृषि, परिवहन या उद्योग में—न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करे, बल्कि साथ ही साथ स्थिरता को भी मज़बूत करे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हरित वित्त पोषण को ऐसी आर्थिक प्रणालियाँ बनानी चाहिए जिनमें विकास पारिस्थितिक कल्याण और समुदायों के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हो।

श्री यादव ने हरित निवेश में विश्वास पैदा करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदमों पर प्रकाश डाला। सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करना, जिसने व्यापक अंतरराष्ट्रीय रुचि आकर्षित की है, भारत की हरित विकास क्षमता में दृढ़ विश्वास का प्रमाण बताया गया। भारतीय रिज़र्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड जैसे नियामक भी हरित उपकरणों में ज़िम्मेदारीपूर्ण प्रकटीकरण, उत्तरदायिता और पारदर्शिता को प्रोत्साहन देने के लिए कार्रवाई तेज़ कर रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में दीर्घकालिक विश्वास और स्थिरता सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही, भारत मिश्रित वित्त प्रणाली को बढ़ावा दे रहा है जो नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, विद्युत गतिशीलता, अपशिष्ट से धन और प्रकृति-आधारित समाधानों में निजी निवेश को जोखिम मुक्त करने और तेज़ करने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करता है। यह देखते हुए कि भारत को अपने शुद्ध शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 2070 तक 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी, ऐसी प्रणाली महत्वपूर्ण हैं।

मंत्री महोदय ने भारत के जलवायु कार्रवाई प्रयासों के मार्गदर्शक तीन प्रमुख सिद्धांत प्रस्तुत किए। पहला, जलवायु वित्त को विकास वित्त से अलग नहीं किया जा सकता। दूसरा, स्वच्छ ऊर्जा, कुशल शहर, जलवायु-अनुकूल कृषि और लचीला बुनियादी ढाँचा केवल अतिरिक्त नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता की नींव हैं। तीसरा, जो देश आज हरित निवेश जुटाएँगे, वे भविष्य में उद्योग और व्यापार की मूल्य श्रृंखलाओं का नेतृत्व करेंगे। उन्होंने कहा कि विकसित देशों की ग्लोबल साउथ का समर्थन करने की नैतिक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2035 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर का यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया लक्ष्य अपर्याप्त है और चुनौती के पैमाने को प्रतिबिंबित नहीं करता है।

कार्बन वित्त की भूमिका को स्वीकार करते हुए, श्री यादव ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 को लागू करने के महत्वपूर्ण महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता और उत्तरदायिता से संचालित कार्बन बाज़ार जलवायु कार्रवाई में अरबों डॉलर का निवेश कर सकते हैं। अनुच्छेद 6 प्रणाली देशों को द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रूप से जलवायु परिणामों का व्यापार करने की अनुमति देता है, जिससे वित्तीय प्रोत्साहन और नई तकनीकों तक पहुँच दोनों का निर्माण होता है। उन्होंने रेखांकित किया कि ऐसे उपाय न केवल खरीदार देशों के लिए उत्सर्जन में कमी लाने में तेज़ी लाते हैं, बल्कि विक्रेता देशों को वित्त और क्षमता विकास तक पहुँचने में भी सक्षम बनाते हैं। यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन को उद्धृत करते हुए, उन्होंने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि "जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त ही निर्णायक है।"

मंत्री महोदय ने अक्टूबर 2023 में शुरू किए गए भारत सरकार के ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के संबंध में भी जानकारी दी, जो व्यक्तियों और संस्थाओं को पर्यावरण-पुनर्स्थापना जैसे सकारात्मक पर्यावरणीय कार्यों को स्वेच्छा से करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एक अभिनव साधन है। उन्होंने उपस्थित लोगों को बताया कि 29 अगस्त 2025 को, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा इस कार्यक्रम के लिए एक संशोधित कार्यप्रणाली अधिसूचित की गई थी, जिसमें निजी संस्थाओं की प्रत्यक्ष भागीदारी, अनिवार्य न्यूनतम पुनर्स्थापन प्रतिबद्धताएँ और ऋणों के उपयोग की व्यापक सीमा जैसे नए बिंदु सम्मिलित किए गए थे। इन उपायों का उद्देश्य न केवल निजी पूंजी जुटाना है, बल्कि जमीनी स्तर पर जलवायु कार्रवाई के लाभ के लिए पारदर्शिता और मापनीय परिणाम सुनिश्चित करना भी है।

केंद्रीय मंत्री ने नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापक विस्तार, एक जीवंत स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी प्रणाली और नवाचार का नेतृत्व करने के लिए तैयार युवा, कुशल जनसंख्या के साथ सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की मज़बूत स्थिति का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि सौर और पवन ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, सतत कृषि, चक्रीय अर्थव्यवस्था और जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देने में हरित वित्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इन क्षेत्रों में लाखों रोज़गार सृजित करने, प्रतिस्पर्धात्मकता को मज़बूत करने और भारत के ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित करने की क्षमता है।

श्री यादव ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस परिवर्तन के लिए वित्तपोषण प्रणाली को समावेशिता सुनिश्चित करनी चाहिए और एमएसएमई, किसानों और वंचित समुदायों को लाभ प्रदान करना चाहिए। उन्होंने वित्तपोषण में नवाचार की भूमिका पर भी ज़ोर दिया और इस बात पर बल दिया कि वित्तीय तकनीक, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और एआई-आधारित दृष्टिकोण हरित वित्तपोषण को अधिक कुशल, पारदर्शी और मापनीय बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि हरित बॉन्ड, स्थिरता-संबंधी ऋण, कार्बन बाज़ार और प्रभाव निवेश निधि जैसे साधनों को मुख्यधारा में सम्मिलित करना होगा।

मंत्री महोदय ने हितधारकों से आह्वान किया कि वे हरित परिवर्तन के वित्तपोषण को भावी पीढ़ियों के प्रति एक नैतिक और नैतिक ज़िम्मेदारी के रूप में देखें। उन्होंने चेतावनी दी कि अभी कार्रवाई न करना, भावी पीढ़ियों के अस्तित्व और कल्याण से ऊपर अल्पकालिक सुख-सुविधाओं को प्राथमिकता देने के समान होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सतत विकास में अग्रणी भूमिका निभाने, वैश्विक जलवायु ज़िम्मेदारियों को पूरा करने और ग्रह के भविष्य की रक्षा करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की।

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