संस्‍कृति मंत्रालय
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आईजीएनसीए ने भारत के विज्ञान और संस्कृति के एकीकृत मंच के उपलक्ष्य में बीएसआईपी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए


आईजीएनसीए ने अनुभवात्मक शिक्षा पर बल देते हुए पीजी डिप्लोमा कार्यक्रम शुरू किया

Posted On: 13 AUG 2025 4:11PM by PIB Delhi

संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्वायत्त ट्रस्ट, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए), नई दिल्ली ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी), लखनऊ के साथ आईजीएनसीए, नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा संचालित ग्यारह पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए एक अभिविन्यास कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. महेश जी. ठक्कर थे। इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा, अकादमिक इकाई के प्रभारी प्रो. अरुण भारद्वाज और संबंधित प्रभागों के अन्य प्रमुख और डीन भी उपस्थित थे।

 

 

 

यह समझौता ज्ञापन देश में विज्ञान और संस्कृति को एक एकीकृत मंच पर लाने की अनूठी पहल है। इसका उद्देश्य देश की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय जगत के सामने प्रदर्शित करना है। इस अवसर पर, आईजीएनसीए द्वारा संचालित ग्यारह पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए एक अभिविन्यास कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें सांस्कृतिक सूचना विज्ञान से लेकर भारतीय साहित्य तक के क्षेत्र शामिल थे। इसका उद्देश्य समकालीन शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान को समाहित करना था। कुशल पेशेवरों को विकसित करने के लिए तैयार किए गए ये पाठ्यक्रम व्यावहारिक प्रशिक्षण और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करते हैं। इससे शिक्षार्थियों, विशेषज्ञों और जीवंत परंपराओं के बीच सार्थक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी और प्रो. महेश जी. ठक्कर ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। आईजीएनसीए के संरक्षण प्रभाग के प्रमुख एवं प्रोफेसर डॉ. अचल पंड्या और बीएसआईपी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिल्पा पांडे इस सहयोग के लिए नोडल अधिकारी के रूप में काम करेंगी। आईजीएनसीए और बीएसआईपी के बीच समझौता ज्ञापन का उद्देश्य अंतःविषय अनुसंधान, संयुक्त आयोजनों और साझा विशेषज्ञता के माध्यम से विज्ञान और संस्कृति को एकीकृत करना है। यह डिजिटलीकरण, शिक्षा और समुद्री इतिहास में जलवायु परिवर्तन पर प्रोजेक्ट मौसम के समर्थन पर केंद्रित है। सहयोग में अनुसंधान, प्रलेखन, संरक्षण, संग्रहालय विकास, क्षेत्रीय कार्य, दृश्य-श्रव्य अभिलेख, संयुक्त प्रकाशन, और संरक्षण एवं विरासत प्रबंधन में प्रशिक्षण के साथ-साथ जन-पहुंच शामिल होगी। इस पहल का उद्देश्य राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए नवोन्मेषी कार्यक्रमों के माध्यम से भारत की विरासत को संरक्षित, व्याख्यायित और प्रस्तुत करना है।

 

 

इस अवसर पर, प्रो. महेश जी. खट्टर ने कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) और बीएसआईपी के बीच सहयोग विज्ञान, कला और संस्कृति को एक साथ लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस पहल से अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जन जागरूकता बढ़ेगी और युवा पीढ़ी प्रेरित होगी। उन्होंने कहा कि यह पहल न केवल हमारे इतिहास और विरासत को समझने के लिए है, बल्कि भविष्य के लिए उनके संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। उन्होंने आगे बताया कि यह विज्ञान, कला और संस्कृति को एक मंच पर लाने के लिए आईजीएनसीए के साथ एक संयुक्त प्रयास है। उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में और अधिक प्रदर्शनियां, शोध और प्रकाशन किए जाने और लोगों को पृथ्वी के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जागरूक करने के लिए ही आज समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं।

इस अवसर पर, डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने आईजीएनसीए को एक जहाज़ बताया, जिसका केवल एक-तिहाई हिस्सा पानी के ऊपर दिखाई देता है जबकि दो-तिहाई हिस्सा पानी के नीचे रहता है।  यह उस विशाल सांस्कृतिक भंडार का प्रतीक है जिसकी अभी खोज की जानी है। 2016 में कार्यभार संभालने के बाद, उन्होंने कुशल जनशक्ति की महती आवश्यकता को पहचाना और परिणामस्वरूप 2017 में तीन स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किए। तब से, इन कार्यक्रमों का विस्तार ग्यारह विशिष्ट, आवश्यकता-आधारित पाठ्यक्रमों तक हो गया है, जो उत्साही युवाओं से लेकर अनुभवी बुजुर्गों तक, विविध प्रकार के प्रतिभागियों को आकर्षित करते हैं। यहां शिक्षा स्वैच्छिक और उत्साह से प्रेरित है, जो सीखने को जीवंत और व्यावहारिक बनाती है। डॉ. जोशी ने आईजीएनसीए की व्यापक गतिविधियों पर प्रकाश डाला—नए संसद भवन की कलाकृतियों और भारत मंडपम में दुनिया की सबसे बड़ी अष्टधातु नटराज प्रतिमा से लेकर ओसाका एक्सपो में इंडिया पैवेलियन और 6,50,000 गांवों की सांस्कृतिक विरासत का मानचित्रण करने वाली महत्वाकांक्षी 'मेरा गांव, मेरी धरोहर' परियोजना तक। उन्होंने आईजीएनसीए में अवसर असीमित है पर ज़ोर देते हुए छात्रों से सच्चे सांस्कृतिक राजदूत बनने के लिए सक्रिय रूप से जुड़ने का आग्रह किया।

डॉ. शिल्पा पांडे ने कहा कि यह समझौता ज्ञापन भारतीय संस्कृति, कला और विज्ञान पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करेगा और विज्ञान, संस्कृति और समाज के बीच अनदेखे सम्बंधों को उजागर करेगा। इस सहयोग के तहत वृत्तचित्र, लेख और जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे ताकि हिमालय से कन्याकुमारी के तटों तक, पूरे भारत में लुप्तप्राय सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके। प्रो. अचल पंड्या ने कहा कि यह गठबंधन वैज्ञानिक सटीकता को सांस्कृतिक सार के साथ जोड़कर अतीत और भविष्य को जोड़ता है ताकि भारत की कहानी को वैश्विक स्तर पर साझा किया जा सके। उल्लेखनीय है कि सांस्कृतिक सूचना विज्ञान के निदेशक श्री प्रतापानंद झा और प्रोजेक्ट मौसम के परियोजना निदेशक श्री अजीत कुमार का योगदान इस समझौता ज्ञापन को आकार देने और इसके उद्देश्यों को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण रहा। उनके प्रयासों के कारण ही यह सुनिश्चित हुआ कि इसका दायरा विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्रों को प्रभावी ढंग से जोड़ता है।

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