रक्षा मंत्रालय
सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए आईआईटी मद्रास में 'अग्निशोध' अनुसंधान प्रकोष्ठ का शुभारंभ किया
Posted On:
04 AUG 2025 5:49PM by PIB Delhi
भारतीय सेना ने रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। इस पहल के अंतर्गत सेना ने आईआईटी मद्रास परिसर में भारतीय सेना अनुसंधान प्रकोष्ठ (आईएआरसी) 'अग्निशोध' की स्थापना के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के साथ सहभागिता की है। थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने अपनी दो दिवसीय चेन्नई यात्रा के दौरान आज इस अनुसंधान प्रकोष्ठ का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया।
यह पहल भारतीय सेना में व्यापक परिवर्तन लाने वाले आधारभूत ढांचे का हिस्सा है, जो सेना प्रमुख द्वारा व्यक्त बदलाव के पांच स्तंभों द्वारा निर्देशित है। अग्निशोध विशेष रूप से आधुनिकीकरण एवं प्रौद्योगिकी सम्मिश्रण के एक स्तंभ को आगे बढ़ाता है। यह भारतीय सेना के शैक्षणिक अनुसंधान को वास्तविक समय परिचालन अनुप्रयोगों के साथ समेकित रूप से एकीकृत करने के प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है।
जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आईआईटी मद्रास में "ऑपरेशन सिंदूर - आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक नया अध्याय" विषय पर एक कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने इस ऑपरेशन को एक ऐतिहासिक, खुफिया कार्रवाई-संचालित प्रतिक्रिया बताया, जिसने भारत के आतंकवाद-रोधी सिद्धांत को नए सिरे से परिभाषित किया है। सेना प्रमुख ने कहा कि 88 घंटे का यह ऑपरेशन पैमाने, सीमा, गहराई व रणनीतिक प्रभाव की दृष्टि से अभूतपूर्व था और इसे डीआईएमई स्पेक्ट्रम में क्रियान्वित किया गया। उन्होंने बदलते समय में युद्ध की विकासशील प्रकृति का भी उल्लेख किया। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस बात पर बल दिया कि भारतीय सशस्त्र बल बिना-संपर्क युद्ध, रणनीतिक तालमेल और मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व से प्रेरित पांचवीं पीढ़ी के संघर्षों के लिए तैयार हैं। उन्होंने "स्वदेशीकरण से सशक्तिकरण" के तहत आत्मनिर्भरता के लिए भारतीय सेना की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। सेनाध्यक्ष ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी मिशनों जैसे इंडियाएआई, चिप-टू-स्टार्टअप और प्रोजेक्ट क्विला के तहत प्रमुख सहयोगों का भी जिक्र किया, जिसमें एमसीटीई महू एक रणनीतिक साझेदार है। उन्होंने आईआईटी दिल्ली, आईआईटी कानपुर और आईआईएससी बेंगलुरु में भारतीय सैन्य प्रकोष्ठों द्वारा शैक्षणिक नवाचारों का उपयोग करके प्रारंभ की गई विभिन्न परियोजनाओं की सराहना की। जनरल द्विवेदी ने रक्षा अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए आईआईटी मद्रास की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रोजेक्ट संभव और आर्मी बेस वर्कशॉप के साथ एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग साझेदारी जैसी पहल नए मानक स्थापित कर रही हैं। उन्होंने अपने संबोधन के समापन पर कहा कि नया आईआईटीएम-भारतीय सेना अनुसंधान केंद्र अग्निशोध, अकादमिक उत्कृष्टता को युद्धक्षेत्र नवाचार में बदल देगा और यह विकसित भारत 2047 की ओर भारत की सैन्य यात्रा को शक्ति प्रदान करेगा।
अग्निशोध सहयोग आईआईटी मद्रास रिसर्च पार्क तक विस्तारित होगा, जो उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकी विकास केंद्र (एएमटीडीसी) और प्रवर्तक टेक्नोलॉजीज फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करेगा। यह प्रयोगशाला-स्तरीय नवाचारों को युद्ध क्षेत्र हेतु तैयार प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने के लिए एक अद्वितीय मंच के रूप में अपनी सेवाएं देगा।
इसके अतिरिक्त, अग्निशोध प्रमुख उभरते क्षेत्रों में सैन्य कर्मियों को कुशल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसमें एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग, वायरलेस संचार और मानव रहित हवाई प्रणाली शामिल हैं। इस पहल से सशस्त्र बलों के भीतर तकनीकी रूप से सशक्त मानव संसाधन आधार का निर्माण होगा।
जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) का भी दौरा किया, जहां उन्हें अकादमी के बुनियादी ढांचे, आधुनिक प्रशिक्षण पद्धतियों और समकालीन चुनौतियों से निपटने हेतु भावी सैन्य अधिकारियों को तैयार करने के लिए संचालित की जा रही गतिविधियों के बारे में जानकारी दी गई। उन्होंने कैडेटों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और उनके भीतर प्रमुख सैन्य मूल्यों को स्थापित करने में अनुदेशात्मक कर्मियों के प्रयासों की सराहना की। अपने संबोधन के दौरान, सेना प्रमुख ने भारतीय सेना की परिवर्तनकारी यात्रा का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने ग्रे जोन संघर्षों, तकनीकी लोकतंत्रीकरण और एकीकृत प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता द्वारा युद्ध के बदलते चरित्र को उजागर किया। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ऑपरेशन सिंदूर पर भी अपने विचारों को रखा। उन्होंने कहा कि तीनों सेनाओं की इस संयुक्त कर्रवाई ने भारत के सटीक, दंडात्मक और समन्वित हमला करने की क्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे पाकिस्तान को 88 घंटों के भीतर युद्ध विराम की मांग करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भविष्य के संघर्षों में पारंपरिक सामर्थ्य और आधुनिक क्षमताओं के मिश्रण की आवश्यकता होगी, जहां पर"बूट्स को बॉट्स के साथ स्थान साझा करना होगा।" सेना प्रमुख ने विभिन्न सुधारों के माध्यम से भारतीय सेना के ‘परिवर्तन के दशक’ के लिए प्रतिबद्धता दोहराई।
भारतीय सेनाध्यक्ष ने पूर्व सैनिकों के एक समूह से भी बातचीत की और राष्ट्र एवं सशस्त्र बलों के प्रति उनके योगदान की सराहना की। इस अवसर पर उन्होंने चार प्रतिष्ठित पूर्व सैनिकों को उनकी निस्वार्थ सेवा और राष्ट्र निर्माण के प्रति निरंतर वचनबद्धता के सम्मान में वेटरन अचीवर्स पुरस्कार से सम्मानित किया।
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