उप राष्ट्रपति सचिवालय
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उपराष्ट्रपति ने न्यायमूर्ति वर्मा नकद बरामदगी मामले में कहा, लोग बेसब्री से इस जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इस वित्तीय लेनदेन का सिरा कहां तक है, इस पैसे का स्रोत क्या है, इसका उद्देश्य क्या है, क्या इससे न्यायिक प्रणाली प्रदूषित हुई, कौन हैं सबसे बड़े अपराधी?


कानून का शासन ही समाज की नींव है; उपराष्ट्रपति ने प्राथमिकी दर्ज होने में देरी पर सवाल उठाए

के. वीरास्वामी फैसले पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है, यह एक न्यायिक छल है – उपराष्ट्रपति

न्यायिक परिदृश्य बदलकर बेहतरी की दिशा में बढ़ रहा है-उपराष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की

3 सदस्यीय समिति का कोई संवैधानिक आधार या कानूनी औचित्य नहीं है - उपराष्ट्रपति ने न्यायमूर्ति वर्मा नकदी बरामदगी मामले के संबंध में कहा

हमें प्रोटोकॉल में विश्वास रखना चाहिए, प्रोटोकॉल की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हम वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के आभारी हैं- उपराष्ट्रपति

मैं भी इसका शिकार हूं- प्रोटोकॉल के उल्लंघन के संबंध में उपराष्ट्रपति ने कहा

Posted On: 19 MAY 2025 8:30PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि 1991 के के. वीरास्वामी फैसले पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। अपने संबोधन में, उन्होंने कहा, “इस अभेद्य आवरण की उत्पत्ति 1991 में के. वीरस्वामी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय से हुई है। अगर मैं इसे ऐसे कहूं...न्यायिक छल। आम तौर पर इसका इस्तेमाल विधायिका के लिए किया जाता है। क्या मैं सही हूं? दंड से मुक्ति का मचान खड़ा किया गया है, जवाबदेही और पारदर्शिता के सभी कवच ​​को बेअसर कर दिया गया है। अब बदलाव का समय आ गया है। और मुझे वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा भरोसा है, जो प्रतिष्ठित एवं ईमानदार लोगों का न्यायालय है। कम समय में ही वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने दिखा दिया है कि आम लोगों के लिए चीजें सुखद हैं।”

अपने संबोधन में उन्होंने आगे कहा, “न्यायपालिका की रक्षा करने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे न्यायाधीशों को कमजोर न पड़ने दिया जाए क्योंकि वे निडर होकर निर्णय लेते हैं। वे सबसे कठिन काम करते हैं। वे कार्यपालिका में बैठे शक्तिशाली लोगों से निपटते हैं। वे उद्योग जगत के शक्तिशाली लोगों से निपटते हैं। वे उन शक्तिशाली लोगों से निपटते हैं जिनके पास बहुत अधिक आर्थिक ताकत और संस्थागत अधिकार हैं। और इसलिए, हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए। हमें अपने तंत्र को और अधिक विकसित करना चाहिए। मैं एक क्षण के लिए भी नहीं देखूंगा। मैं ऐसा संकेत नहीं दूंगा कि हमें अपने न्यायाधीशों को कमजोर बनाना चाहिए। हरगिज नहीं। जब न्यायपालिका की स्वतंत्रता को न पचा पाने वाली ताकतों द्वारा घातक इरादे से न्यायाधीशों को चुनौती देने की बात आती है, तो हमें न्यायाधीशों को अभेद्यता जैसी चीज प्रदान करनी होगी। लेकिन इसके लिए एक ऐसे आंतरिक विनियामक तंत्र की आवश्यकता है जो पारदर्शी, जवाबदेह एवं त्वरित हो और जिसे सहकर्मी को लेकर चिंता न हो। हम सभी इसके शिकार हैं। उदाहरण के लिए, संसद में, विशेषाधिकार का उल्लंघन उन्हीं लोगों द्वारा निर्धारित किया जाता है जो साथ बैठते हैं, लेकिन हमें निष्ठुर होना चाहिए।

भारत मंडपम में श्री विजय हंसारिया द्वारा संपादित पुस्तक द कॉन्स्टिट्यूशन वी अडॉप्टेड (विद आर्टवर्क्स)के विमोचन समारोह में बोलते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “.......लोकतंत्र के अस्तित्व एवं उसके विकास के लिए एक मजबूत न्यायिक प्रणाली आवश्यक है। और यदि किसी घटना के कारण यह प्रणाली कुछ हद तक संदिग्ध हो जाती है, तो यह हमारा परम दायित्व है कि हम उस संदेह को यथाशीघ्र दूर करें। और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि दुनिया भर में जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है, और उसका न्यायिक निर्णय न्यायपालिका का अधिकार क्षेत्र है। मैं, राज्यसभा के सभापति के रूप में, न्यायाधीश को हटाने के लिए देश में जो परिदृश्य है, उसका विश्लेषण करने के बाद आश्चर्यचकित हूँ.......... जब अपेक्षित संख्या में सांसद न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव लेकर आयें, तो समिति का गठन वैध रूप से केवल लोकसभाध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति, जैसा भी मामला हो, द्वारा ही किया जा सकता है। अब जरा सोचिए कि दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने कितना श्रम किया होगा। एक उच्च न्यायालय के कवरेज क्षेत्र में, दो राज्य और एक केन्द्र-शासित प्रदेश है। वे एक ऐसी जांच में संलग्न हैं, जिसका कोई संवैधानिक आधार या कानूनी औचित्य नहीं है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अप्रासंगिक होगा। जांच रिपोर्ट प्रशासनिक पक्ष पर अदालत द्वारा विकसित तंत्र के तहत किसी को भी भेजी जा सकती है। क्या इस देश में हम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक कार्य की कीमत पर इतना समय निवेश करने का जोखिम उठा सकते हैं? उच्च न्यायालय का न्यायिक कार्य? और मुझे अभी भी आश्चर्य है कि जांच करते समय या तथाकथित अनुसंधान के दौरान, तीन न्यायाधीशों वाली समिति ने लोगों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद किए। यह एक गंभीर मुद्दा है। ऐसा कैसे किया जा सकता है? मैं आपको केवल यह कह रहा हूं कि मैं न्यायपालिका का एक सिपाही हूं। हमें कानून के शासन का पालन करने वाले उच्चतम एवं अनुकरणीय मानक स्थापित करने होंगे।"

लोकतंत्र में कानून के शासन के महत्व पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “हम एक कटु सच्चाई का सामना कर रहे हैं। लुटियन दिल्ली में एक न्यायाधीश के घर के लोगों ने नोट और नकदी जला दी। आज तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। हमारे देश में कानून का शासन है, आपराधिक न्याय प्रणाली है। और अगर मैं कानूनी क्षेत्र की बात करूं, जो विधायन से जुड़ा है, तो एक पल के लिए भी देरी करने का कोई मौका नहीं हो सकता, क्योंकि वह कानून का आदेश है। कानून का शासन समाज की नींव है। लोकतंत्र को मुख्य रूप से तीन पहलुओं से परिभाषित किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति। दूसरा, संवाद। तीसरा, जवाबदेही...किसी व्यक्ति को नीचा दिखाने या किसी संस्था को गिराने का सबसे पक्का तरीका है उसे छानबीन से दूर रखना, उसे जांच से दूर रखना...और इसलिए, अगर हमें वास्तव में लोकतंत्र का पोषण करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि लोकतंत्र फले-फूले, तो यह अपरिहार्य है कि हम हर संस्था और व्यक्ति को जवाबदेह बनाएं और कानून के अनुसार काम करें।

उन्होंने कहा, “आज मैं एक मूकदर्शक के रूप में नहीं बल्कि न्यायपालिका के एक सिपाही के रूप में विचार व्यक्त कर रहा हूं। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन न्यायपालिका में बिताया है और मैं बहुत भाग्यशाली रहा हूं। मैं कभी नहीं सोच सकता कि मैं कुछ ऐसा करूंगा जिससे न्यायपालिका की गरिमा को थोड़ा भी ठेस पहुंचे। मैंने प्रोटोकॉल से शुरुआत की। लेकिन मैंने लगातार मुद्दे उठाए हैं क्योंकि एक मजबूत स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली नागरिकों के लिए और लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए सबसे सुरक्षित गारंटी है। अब, मैं देख रहा हूं कि इस समय एक बड़ा बदलाव हो रहा है। न्यायिक परिदृश्य बदलकर बेहतरी की दिशा में बढ़ रहा है। निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खन्ना ने जवाबदेही एवं पारदर्शिता के मामले में बहुत उच्च मानक स्थापित किए हैं। एक न्यायधीश के निवास पर घटित हुई जिस घटना का मैंने उल्लेख किया है, उसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए। और कृपया मुझे गलत न समझें। मैं किसी व्यक्ति की निर्दोषता को सबसे अधिक महत्व देता हूं। जब तक साबित नहीं हो जाता, तब तक हम निर्दोष माने जायेंगे। मैं किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं। लेकिन मैं बस इतना ही कह रहा हूं कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो हम अंदरूनी या बाहर वाले लोग के रूप में विभाजित नहीं हो सकते। हम सभी संवैधानिक भाव एवं भावना को पोषित करने में एकजुट हैं। मैं ही वह व्यक्ति हूं जिसने यह सुनिश्चित किया कि विरासत संबंधी मुद्दों के कारण 90 के दशक के प्रारंभ में एक निर्णय द्वारा तंत्र विकसित किया जाए। वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकतम सीमा तक वही किया, जो वह कर सकता था। लेकिन अब पुनर्विचार का समय आ गया है क्योंकि परिदृश्य वास्तव में ऐसा है और देश का हर व्यक्ति इसकी प्रतीक्षा कर रहा है। वे चाहते हैं कि केवल पूर्ण सत्य सामने आए।”

अपराध की वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “देश में हर कोई अब यही सोच रहा है कि कहीं इसपर लीपापोती तो नहीं कर दी जाएगी, समय के साथ यह धुंधला तो नहीं पड़ जाएगा और वे वास्तव में चिंतित हैं। आपराधिक न्याय प्रणाली क्यों वैसे संचालित नहीं हुई, जैसा कि उसे हर आम व्यक्ति के मामले में किया जाना चाहिए? यहां तक कि महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल के संदर्भ में भी, केवल दो पदाधिकारी। उन्मुक्ति का कवच केवल तब तक है जब तक वे पद पर हैं। और इसलिए, उस संस्था का अभिन्न हिस्सा होने के नाते, जिसने यह परिभाषित किया है कि हम आज क्या हैं और जो यह परिभाषित करता है कि हमारा लोकतंत्र आज क्या है। इस मुद्दे पर लोग बेसब्री से जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इस वित्तीय लेनदेन का सिरा कहां तक है, इस पैसे का स्रोत क्या है, इसका उद्देश्य क्या है, क्या इससे न्यायिक प्रणाली प्रदूषित हुई, कौन हैं सबसे बड़े अपराधी? हमें पता लगाने की आवश्यकता है। पहले ही दो महीने बीत चुके हैं और मेरे सामने बैठे लोगों से बेहतर कोई नहीं जानता। तेजी से जांच होनी चाहिए। प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में भी यही बात है। मुझे आशा और विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अब तक का सबसे अच्छा काम किया है क्योंकि उसके समक्ष 90 के दशक में दिए गए फैसलों के विरासत का मुद्दा था। लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस पर विचार करें। न्यायमूर्ति खन्ना ने आंशिक रूप से भरोसा बहाल किया है। आप सार्वजनिक डोमेन में वो दस्तावेज डालते हैं जिसके बारे में लोगों को लगता है कि उन्हें कभी नहीं दिखाया जाएगा। जवाबदेही और पारदर्शिता को प्रदर्शित करने की दिशा में यह उनका एक बड़ा कदम था। अगर लोकतांत्रिक मूल्यों को समृद्ध होना है, तो मुझे यकीन है कि यह एक आदर्श मामला है। जांच से जुड़े लोगों द्वारा तेजी से जांच की जानी चाहिए। हमें वैज्ञानिक सामग्री का उपयोग करना चाहिए। अग्रिम पंक्ति के लोग विशेष रूप से जानते हैं, बहुत सी चीजें नहीं हो रही हैं। और इन दिनों, कठिन समय है। सबसे सुरक्षित रहस्य सड़क पर एक खुला रहस्य है। हर कोई इसे जानता है। नाम तैर रहे हैं। कई प्रतिष्ठाएं धूमिल पड़ गई हैं। लोगों को लगता है कि व्यवस्था को वास्तव में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। व्यवस्था को शुद्ध कर दिया जाएगा। एक बार जब दोषियों को सजा मिल जाएगी तो इसकी छवि बदल जाएगी और एक पल के लिए भी मैं किसी को दोषी नहीं बता रहा हूं। जब तक कुछ साबित नहीं हो जाता, तब तक हर कोई निर्दोष है।

उपराष्ट्रपति ने कहा, “पूरा देश चिंतित है। 14 और 15 मार्च की दरमियानी रात को एक घटना घटी। 1.4 अरब की आबादी वाले देश को इसके बारे में पता ही नहीं चला। एक सप्ताह बाद तक। जरा सोचिए ऐसी कितनी ही घटनाएं हुई होंगी जिनके बारे में हमें पता ही नहीं है क्योंकि विश्वसनीयता का ऐसा हर उल्लंघन आम आदमी को प्रभावित करता है, उन लोगों को प्रभावित करता है जो कानून के शासन तथा योग्यता में विश्वास करते हैं और इसलिए हमें इस बारे में  कोई कोताही नहीं बरतनी होगी। सर्वोच्च न्यायालय का आदर्श वाक्य, जिसे आपने कई बार देखा होगा, मैंने इसे हर बार देखा- यतो धर्मः ततो जयः - जहां धर्म है, वहां विजय है। सत्यमेव जयते। इस मामले में सत्य की जीत होनी ही चाहिए।”

प्रोटोकॉल के बारे में भारत के मुख्य न्यायाधीश की हाल की टिप्पणियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, श्री धनखड़ ने आज कहा, “आज सुबह मुझे एक ऐसी बात याद आई जो देश में बेहद महत्वपूर्ण है और यह अपने लिए नहीं है। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने जो कहा, हमें  प्रोटोकॉल में विश्वास करना चाहिए। देश के मुख्य न्यायाधीश और प्रोटोकॉल को बहुत ऊपर रखा जाता है। जब उन्होंने यह संकेत दिया, तो यह व्यक्तिगत नहीं था, सबसे पहले वह जिस पद पर हैं, उसके लिए था और मुझे यकीन है कि सभी इसका ध्यान रखेंगे। एक तरह से, मैं भी इसका शिकार हूं, आपने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर देखी है, लेकिन उपराष्ट्रपति की नहीं। जब मैं यह पद छोडूंगा, तो मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मेरे उत्तराधिकारी की एक तस्वीर हो, लेकिन मैं वास्तव में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश का आभारी हूं कि उन्होंने नौकरशाही में लोगों का ध्यान इस बात की ओर आकर्षित किया है कि प्रोटोकॉल का पालन मौलिक है।”

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