संस्कृति मंत्रालय
भारत सिर्फ बुद्ध की जन्मभूमि नहीं, बल्कि उनके अहिंसा, चैतन्यता और मध्यम मार्ग के सार्वभौमिक संदेश का वाहक है- श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत
वैशाख बुद्ध पूर्णिमा 2025 अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में भव्यता के साथ मनाई गई
आईबीसी स्मरणोत्सव समारोह में भारत ने बुद्ध के शाश्वत शिक्षाओं के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि की
Posted On:
15 MAY 2025 7:40PM by PIB Delhi
वैशाख बुद्ध पूर्णिमा 2025 का औपचारिक उद्घाटन आज नई दिल्ली के डॉ. बीआर अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में, भगवान शाक्यमुनि बुद्ध को आध्यात्मिक अनुगूँज और सांस्कृतिक समृद्ध, आदरंजलि के रूप में किया गया। यह कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) द्वारा बुद्ध के जन्म, ज्ञान और महापरिनिर्वाण की याद में मनाए जाने वाले त्रिगुण धन्य दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था।

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और पवित्र बौद्ध विरासत के संरक्षक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक दृष्टिकोण को दोहराते हुए कहा, "भारत केवल बुद्ध की जन्मभूमि नहीं - यह अहिंसा, सजगता और मध्यम मार्ग के उनके सार्वभौमिक संदेश का संरक्षक है।"

समृद्ध बौद्ध विरासत पर प्रकाश डालते हुए मंत्री ने कहा, "भारत अपनी पवित्र विरासत को सक्रियता से साझा और संरक्षित करता है। हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने वैश्विक बौद्ध संबंधों को मजबूत करने की पहल की है। सबसे महत्वपूर्ण प्रयासों में से एक पवित्र बुद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी है। आस्था और श्रद्धा की निधि, ये अवशेष - मंगोलिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों में विशेष यात्राओं पर भेजे गए हैं, जिससे विदेशों में हमारे बौद्ध भाइयों के साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए हैं।"
उन्होंने कहा कि ये प्रदर्शनियां महज औपचारिकता से कहीं बढ़कर हैं - ये सांस्कृतिक कूटनीति और आध्यात्मिक एकता के कार्य हैं। उन्होंने कहा कि ये अवशेष जहां भी जाते हैं, वहां भक्ति की भावना जागृत होती है, संबंध गहरे होते हैं और बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक स्रोत के रूप में भारत की भूमिका की पुष्टि होती है। पिछले दस दिनों में अब तक वियतनाम से 18 लाख से अधिक लोग इन पवित्र अवशेषों का आशीर्वाद ले चुके हैं।
मुख्य अतिथि, संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने बुद्ध की शिक्षाओं की समावेशी प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "बुद्ध का अनुसरण करने के लिए किसी को बौद्ध होने की आवश्यकता नहीं है। उनका ज्ञान, खासकर उथल-पुथल और अनिश्चितता के समय में सभी के लिए मार्गदर्शक प्रकाश है। बौद्ध धर्म एक दर्शन है, मात्र धर्म नहीं।"

युद्ध विराम के बाद प्रधानमंत्री के भाषण का हवाला देते हुए कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध की शिक्षा दी है, श्री रिजिजू ने कहा कि भारत शांति के लिए प्रयास करता है लेकिन यदि ऐसे तत्व हैं जो शांति को बाधित करना चाहते हैं, तो हम शांति बनाए रखने के लिए शक्ति का उपयोग करेंगे।

मंत्री महोदय 600 से अधिक लोगों से भरे हॉल को संबोधित कर रहे थे जिसमें संघ, भिक्षु और भिक्षुणियाँ, बौद्ध धर्म के छात्र, आम साधक और अन्य लोग शामिल थे। इस अवसर पर राजनयिक समुदाय के सदस्य भी मौजूद थे। भूटान, मंगोलिया, नेपाल और श्रीलंका के राजदूतों के साथ-साथ लाओस, जापान, रूस, ताइवान और कंबोडिया के प्रतिनिधियों को भी सम्मानित किया गया।
अपने स्वागत भाषण में आईबीसी के महासचिव शार्त्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन रिनपोछे ने धम्म पर बोलते हुए संस्कृत में बुद्ध के 47 गुणों का उल्लेख किया और कहा कि ये स्तुतियाँ और उनके गुणों का वर्णन केवल संस्कृत साहित्य में ही मौजूद है, जो इसे एक मूल्यवान ग्रंथ बनाता है। ये श्लोक प्रेरणादायक हैं और वेसाक पूर्णिमा महीने के दौरान पढ़े जाते हैं।
आईबीसी के महानिदेशक अभिजीत हलदर ने बुद्ध के पवित्र पिपरावाह अवशेषों से जुड़े आभूषणों की नीलामी को रोकने के लिए संस्कृति मंत्रालय के आक्रामक प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिसे नीलामी से दो दिन पहले ही रोक दिया गया था। उन्होंने कहा, "यह बुद्ध की शक्ति और आशीर्वाद ही था जिसने नीलामी को रोका।"
गेशे दोरजी दामदुल, प्रो. हीरा पॉल गंग नेगी और प्रो. बिमलेन्द्र कुमार सहित बौद्ध विद्वानों ने 'संघर्ष समाधान में बुद्ध धम्म के अनुप्रयोग' पर गहन पैनल चर्चा में भाग लिया।
आदरणीय ग्यालत्सेन समतेन ने एक विशेष संबोधन दिया, खासकर मुश्किल समय में बुद्ध द्वारा बताए गए नैतिक साहस और शांति पर चिंतन करने का आग्रह किया । सुश्री सुभद्रा देसाई ने शिक्षाओं की भावना का आह्वान करते हुए रत्न सुत्त का भक्तिपूर्ण प्रतिपादन किया।
समारोह में दो प्रमुख प्रदर्शनियाँ शामिल थीं - पहले वियतनाम में संयुक्त राष्ट्र वेसाक दिवस 2025 के कार्यक्रमों का हिस्सा रहीं, भारत का तुलनात्मक बौद्ध कला इतिहास और बुद्ध का जीवन और शिक्षाएँ। प्रदर्शनियों में एशिया भर में बुद्ध धम्म के प्रसार और सारनाथ से पवित्र अवशेषों की प्रदर्शनी पर वृत्तचित्र शामिल थे।
स्मारक समारोह का समापन गुरु अल्पना नायक और उनकी मंडली द्वारा जीवंत सांस्कृतिक प्रदर्शन के साथ हुआ, जिसमें भगवान बुद्ध की कालातीत कलात्मक और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाया गया।
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