इस्‍पात मंत्रालय
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वर्षांत समीक्षा 2024: इस्पात मंत्रालय


इस्पात उद्योग में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए 15000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाला 'हरित इस्पात मिशन'

'विशेष इस्पात' के घरेलू इस्पात विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 27,106 करोड़ रुपये के प्रतिबद्ध निवेश के रूप में उत्पादन सम्बंधी प्रोत्साहन (पीएलआई)

मानकीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के माध्यम से इस्पात की गुणवत्ता की सुनिश्चितता जारी

Posted On: 30 DEC 2024 1:26PM by PIB Delhi
  1. हरित स्टील मिशन: सरकार ने उद्योग की पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं। इस्पात मंत्रालय कार्बन उत्सर्जन को कम करने और नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति के लिए इस्पात उद्योग को सहायता देने के लिए 15000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले 'हरित स्टील मिशन' की तैयारी कर रहा है। इस अभियान में हरित स्टील के लिए पीएलआई योजना, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और सरकारी एजेंसियों के लिए हरित स्टील खरीदने के लिए अधिदेश शामिल हैं। स्टील उत्पादन के डीकार्बोनाइजेशन में योगदान के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की अगुवाई में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, स्टील क्षेत्र को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग के व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ लाता है। इस सम्बंध में, इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के विभिन्न प्रमुख पहलुओं को रेखांकित करते हुए इस्पात मंत्रालय द्वारा गठित 14 टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर 'भारत में स्टील क्षेत्र को हरित बनाना: रोडमैप और कार्य योजना' पर एक रिपोर्ट 10.09.2024 को जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में स्टील की हरित स्टील और हरित स्टार रेटिंग को परिभाषित किया गया है। स्टील स्क्रैप रिसाइकिलिंग नीति घरेलू स्तर पर पैदा होने वाले स्क्रैप की उपलब्धता बढ़ाकर इन प्रयासों को सफल बनाती है, जिससे संसाधन दक्षता को बढ़ावा मिलता है।

मंत्रालय ने कम उत्सर्जन वाले स्टील को परिभाषित करने और वर्गीकृत करने के मानक प्रदान करने के लिए 12 दिसंबर, 2024 को हरित स्टील के लिए वर्गीकरण जारी किया है। इससे स्टील उद्योग के हरित परिवर्तन को सुगम बनाने का रास्ता खुलता है। यह हरित स्टील के उत्पादन और इसके लिए बाजार बनाने तथा वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग के लिए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की है। इस मिशन में इस्पात क्षेत्र भी एक हितधारक है और इसे वित्तीय वर्ष 2029-30 तक मिशन के तहत लौह एवं इस्पात क्षेत्र में पायलट परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 455 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। इस मिशन के तहत, इस्पात मंत्रालय ने 19.10.2024 को वर्टिकल शाफ्ट में 100 प्रतिशत हाइड्रोजन का उपयोग करके डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआई) का उत्पादन करने के लिए दो पायलट परियोजना और कोयले या कोक की खपत को कम करने के लिए मौजूदा ब्लास्ट फर्नेस में हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। प्राकृतिक गैस के आंशिक प्रतिस्थापन के लिए मौजूदा वर्टिकल शाफ्ट आधारित डीआरआई बनाने वाली इकाई में हरित हाइड्रोजन के उपयोग के लिए पायलट प्रोजेक्ट की भी खोज की जा रही है।

  1. स्पेशलिटी स्टील-उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन (पीएलआई): 'स्पेशलिटी स्टील' के घरेलू इस्पात निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना एक प्रमुख पहल है और इसका उद्देश्य पूंजी निवेश को आकर्षित करना और आयात को कम करना है। प्रतिभागी कंपनियों ने 27,106 करोड़ रुपये के निवेश, 14,760 लोगों के प्रत्यक्ष रोजगार और योजना में चिन्हित 7.90 मिलियन टन 'स्पेशलिटी स्टील' के अनुमानित उत्पादन के लिए प्रतिबद्धता जताई है। अभी अक्टूबर 2024 तक, कंपनियों ने 17,581 करोड़ रुपये का निवेश किया है और 8,660 से अधिक रोजगार सृजित किए हैं।
  2. क्षमता विस्तार: इस्पात एक विनियमन-मुक्त क्षेत्र है। महाराष्ट्र सहित देश के सभी राज्यों में इस्पात क्षेत्र के विकास के लिए सरकार, अनुकूल नीतिगत माहौल बनाकर सुविधा पहुंचाने वाली इकाई के रूप में कार्य करती है। हालांकि भारत, अधिकांश ग्रेड के इस्पात में आत्मनिर्भर है इसलिए देश के इस्पात उत्पादन में आयात का प्रतिशत बहुत कम है। कच्चे इस्पात के उत्पादन, तैयार इस्पात उत्पादन और खपत के बारे में विवरण इस प्रकार है–

वर्ष

कच्चा इस्पात (मिलियन टन में)

तैयार इस्पात (मिलियन टन में)

उत्पादन

उत्पादन

उपभोग

2019-20

109.14

102.62

100.17

2020-21

103.54

96.20

94.89

2021-22

120.29

113.60

105.75

2022-23

127.20

123.20

119.89

2023-24

144.30

139.15

136.29

अप्रैल-अक्टूबर '23

82.47

79.13

76.01

अप्रैल-अक्टूबर '24

85.40

82.81

85.70

स्रोत: संयुक्त संयंत्र समिति

सरकार ने एक सुविधाप्रदाता के रूप में देश में इस्पात के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिए अनुकूल नीतिगत माहौल बनाने हेतु निम्नलिखित उपाय किए हैं: -

  1. सरकारी खरीद के लिए 'मेक इन इंडिया' इस्पात को बढ़ावा देने के लिए घरेलू स्तर पर तैयार लौह एवं इस्पात उत्पाद (डीएमआई एंड एसपी) नीति का कार्यान्वयन।
  2. बजट 2024 में कच्चे माल, फेरो निकल पर मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) को 2.5 प्रतिशत से घटाकर शून्य करना, इसे शुल्क मुक्त बनाना और फेरस स्क्रैप पर शुल्क छूट को 31 मार्च 2026 तक बढ़ाना। फेरो-निकल स्टेनलेस स्टील उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। फेरो-निकल पर लगने वाले बीसीडी में कमी से घरेलू स्टेनलेस स्टील उद्योग को मदद मिलेगी, क्योंकि देश में इसकी अनुपलब्धता के कारण फेरो-निकल का आयात करना हमारी मजबूरी है। स्क्रैप रीसाइक्लिंग से इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन में मदद मिलती है। अतीत में इस्पात की कम खपत के कारण भारत में स्क्रैप की घरेलू उपलब्धता सीमित है। फेरस स्क्रैप पर शून्य बीसीडी जारी रखने से इस्पात उत्पादक इकाइयों में, विशेष रूप से द्वितीयक क्षेत्र की, अधिक प्रतिस्पर्धा का माहौल बनेगा।
  3. 25.07.2024 को लौह एवं इस्पात क्षेत्र के लिए 16 सुरक्षा दिशा-निर्देश प्रकाशित किए गये हैं। इनमें प्रक्रिया और कार्यस्थल आधारित सुरक्षा दोनों शामिल हैं। इससे दुर्घटनाओं में कमी आएगी और कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल तैयार होने से उत्पादकता में सुधार होगा। इस्पात संयंत्रों में इन दिशा-निर्देशों की जानकारी पहुंचाने और इन्हें अपनाने को लेकर कर्मचारियों और ठेकेदारों दोनों के लिए सुरक्षा प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं। इन दिशा-निर्देशों को अपनाने से सुरक्षा इको-सिस्टम में सुधार होगा, दुर्घटनाओं में कमी आएगी और इस्पात संयंत्रों में कार्यस्थल की समग्र उत्पादकता में सुधार होगा।
  4. घरेलू इस्पात उद्योग की चिंताओं को दूर करने के लिए आयात की अधिक प्रभावी निगरानी के लिए इस्पात आयात निगरानी प्रणाली (एसआईएमएस) 2.0 शुरू की जा रही है। एसआईएमएस पोर्टल पर आयातकों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को संकलित किया जाता है और पाक्षिक आधार पर इस्पात मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है। आयात की अधिक प्रभावी निगरानी के लिए 25.07.2024 से नए एसआईएमएस पोर्टल के शुभारंभ के साथ एसआईएमएस का पुनर्गठन किया गया है। संशोधित एसआईएमएस आयात किए जा रहे इस्पात के मानकों और ग्रेड के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा। यह इस्पात के आयात में किसी भी उछाल के कारण उत्पन्न होने वाली घरेलू इस्पात उद्योग की चिंताओं को दूर करने के लिए उचित नीतिगत उपाय प्रदान करेगा। मंत्रालय एसआईएमएस को सीबीआईसी के आईसीईजीएटीई पोर्टल के साथ एकीकृत करने के लिए भी काम कर रहा है। नए एसआईएमएस पोर्टल के प्रभाव का विश्लेषण एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के बाद किया जा सकता है।

4) कच्चे माल की सुरक्षा: घरेलू इस्पात उद्योग की वर्तमान मांग और खपत को पूरा करने के लिए देश में लौह अयस्क और गैर-कोकिंग कोयले का पर्याप्त भंडार है। हालांकि, देश में उच्च गुणवत्ता वाले कोयले/कोकिंग कोयले (कम राख वाले कोयले) की आपूर्ति सीमित होने के कारण कोकिंग कोयले का आयात किया जाता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से एकीकृत इस्पात उत्पादकों द्वारा किया जाता है। स्टील सीपीएसई मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, इंडोनेशिया, मोजाम्बिक आदि देशों के एक विविध समूह से कोकिंग कोयला खरीद रहे हैं।

चूंकि, देश में घरेलू स्तर पर उत्पादित अधिकांश कोकिंग कोयले में राख की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे यह स्टील के निर्माण में बेकार हो जाता है, इसके कारण अप्रैल 2024 से सितंबर 2024 की अवधि के लिए 2020-21 में 51.20 एमएमटी (मिलियन मीट्रिक टन), 2021-22 में 57.16 एमएमटी, 2022-23 में 56.05 एमएमटी, 2023-24 में 58.12 एमएमटी और 2024-25 में 30.19 एमएमटी कोकिंग कोयले का आयात किया गया है। इस आयात का बड़ा हिस्सा ऑस्ट्रेलिया से है।

इसके अलावा, इस्पात निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कोकिंग कोल में सहयोग पर भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय और रूसी संघ के ऊर्जा मंत्रालय के बीच 14.10.2021 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। वित्त वर्ष 2021-22 में रूस से कोकिंग कोल का आयात 1.506 एमएमटी, वित्त वर्ष 2022-23 में 4.481 एमएमटी, वित्त वर्ष 2023-24 में 5.256 एमएमटी और वित्त वर्ष 2024-25 (सितंबर 2024 तक) में लगभग 4.034 एमटी रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 (अक्टूबर 2024 तक) में सेल ने रूस से कोकिंग कोल का कुल लगभग 545,000 मीट्रिक टन आयात किया, जबकि एनएसएल ने लगभग 78,520 मीट्रिक टन आयात किया है।

इसके अतिरिक्त, भारतीय इस्पात क्षेत्र के लिए कोकिंग कोयले के आयात की संभावनाओं और व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल ने सितंबर-अक्टूबर 2024 में मंगोलिया का दौरा किया।

5) अंतर्राष्ट्रीय रणनीति: भारत के इस्पात क्षेत्र के लिए वैश्विक रणनीति का विकास अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। वैश्विक हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भागीदारी करना भारत को अपने मानकों को वैश्विक सर्वोत्तम तौर-तरीकों के साथ तालमेल बैठाने में मदद कर सकता है। एक व्यापक वैश्विक रणनीति भारत को इस्पात उद्योग में अग्रणी बनाएगी, जिससे देश घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी बन जाएगा।

भारत की इस्पात वैश्विक दृष्टिकोण रणनीति तैयार करने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया गया है, जिसमें सहयोग के चार रणनीतिक क्षेत्रों अर्थात कच्चा माल, निवेश, प्रौद्योगिकी और इस्पात निर्यात पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद, सहयोग वाले केंद्रित क्षेत्रों और प्राथमिकता वाले देशों के लिए कार्य योजना की पहचान करते हुए एक रणनीति पत्र तैयार किया जाएगा।

6) मानकीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के माध्यम से इस्पात की गुणवत्ता सुनिश्चित करना: देश में खपत वाले इस्पात के लिए मानक तैयार करने और उन्हें गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) में शामिल करने के उपाय किए गए हैं। मानकीकरण में इस्पात उत्पादन के लिए एक समान विनिर्देश, परीक्षण विधियां और विनिर्माण प्रक्रियाएं स्थापित करना शामिल है। यह विभिन्न निर्माताओं के बीच इस्पात की गुणवत्ता में एकरूपता सुनिश्चित करता है। ऐसे इस्पात को बीआईएस द्वारा परिभाषित मानक का पालन करना आवश्यक है और घरेलू और विदेशी निर्माताओं को विनिर्माण के लिए बीआईएस लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है। क्यूसीओ को लागू करके, सरकार केवल गुणवत्ता वाले उत्पाद की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। अब तक बीआईएस द्वारा तैयार किए गए 151 ऐसे इस्पात मानकों को क्यूसीओ में शामिल किया गया है और यह देश में खपत होने वाले सभी प्रकार के इस्पात के लिए मानक तैयार करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। इस्पात खेप की तय मानकों के अनुरूप जांच की जाती है। सम्बंधित पोर्टल (टीसीक्यूसीओ) के माध्यम से आयातित स्टील खेपों के आवेदनों की जांच की जाती है। अब इसे एसआईएमएस 2.0 पोर्टल के साथ मिला दिया गया है स्विफ्ट 2.0 पहल के तहत कस्टम के आइसगेट के साथ इसे एकीकृत किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, नये सम्मिलित पोर्टल के माध्यम से आयातकों को आवश्यकतानुसार शुरुआत में केवल छह महीने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्रदान किया जाएगा और एनओसी से व्यक्तिगत खेप को प्रणाली द्वारा मंजूरी मिल जाएगी।

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