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राष्ट्रपति ने भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के 55वें स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया


संसाधनों के प्रबंधन में कॉर्पोरेट जगत की भूमिका ट्रस्टी की होनी चाहिए: राष्ट्रपति मुर्म

Posted On: 04 OCT 2023 7:12PM by PIB Delhi

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (4 अक्टूबर, 2023) नई दिल्ली में भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) के 55वें स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि कंपनी सचिवों को यह याद रखना चाहिए कि उनकी निष्ठा किसी कंपनी के अधिकारी या पेशेवर के रूप में कानूनी कार्य करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनका कर्तव्य देश के हर उस नागरिक के प्रति भी है जो इस विकास यात्रा में पीछे छूट गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संसाधनों के प्रबंधन में कॉर्पोरेट जगत की भूमिका ट्रस्टी की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा की भावना ही उनका मूल मंत्र होना चाहिए। उन्होंने उनसे गांधीजी के बताए सूत्र "सबसे गरीब और सबसे असहाय व्यक्ति का चेहरा याद रखें" को याद रखते हुए अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन के मार्ग पर आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य "मानवीय गरिमा के साथ समृद्धि" का होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांधीजी द्वारा बताए गए सात पापों में से तीन पाप हैं - बिना मेहनत के धन, चरित्र के बिना ज्ञान और नैतिकता के बिना व्यापार। उन्होंने कहा कि इन तीन पापों से जुड़े सबक कंपनी सचिवों के लिए हमेशा मार्गदर्शक बने रहने चाहिए। उन्होंने कहा कि "व्यापार में नैतिकता" "व्यावसाय नैतिकता" से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कॉर्पोरेट प्रशासन के एक सतर्क प्रहरी के रूप में कंपनी सचिवों को यह ध्यान रखना होगा कि 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' को और बेहतर करने के लिए बनाए गए कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग न हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत नई ऊंचाइयों को छू रहा है। आर्थिक हो या सामाजिक विकास, हम अग्रणी राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमारे पेशेवर न केवल योग्य और सक्षम हों, बल्कि साहसी और रचनात्मक भी हों। उन्होंने कहा कि भारत के कॉर्पोरेट प्रशासन का भविष्य कंपनी सचिवों की इच्छाशक्ति और कार्यों पर निर्भर करता है। वे भारत को 'गुड कॉरपोरेट गवर्नेंस' के साथ-साथ 'गुड गवर्नेंस' का रोल मॉडल भी बना सकते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि आईसीएसआई का काम न केवल देश में ऐसे पेशेवर तैयार करना है जो कॉर्पोरेट कामकाज और कानूनों में सक्षम, योग्य और कुशल हों बल्कि उन्हें ऐसे बोर्डरूम, ऐसा समाज और संस्कृति का निर्माण भी करना है जहां सुशासन, सत्यनिष्ठा और अनुशासन सिर्फ खोखले शब्द भर न हों। ये तो जीवन के हर पहलू के सार्वभौमिक सत्य होने चाहिए और किसी भी निर्णय को मापने का पैमाना भी होने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। अगर हम परिवर्तन के साथ सहज नहीं हैं, या अगर हम समय के साथ अपने नज़रिए, पद्धति और काम करने के तरीके को नहीं बदलते हैं तो सुशासन की हमारी आकांक्षा पूरी नहीं होगी। चाहे वह एआई जैसे नए तकनीकी आविष्कार हों, या नियामक माहौल में बदलाव हो, इन सभी बदलावों के साथ हमें भी बदलना होगा। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि आईसीएसआई ने न केवल आवश्यकता के अनुसार अपने पाठ्यक्रम को अपडेट किया है बल्कि अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया है।

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